भूत ,प्रेत:-(30)जल की आत्माएं – जल परी, नाग नागिन या प्रकृति की चेतना शक्ति
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
अध्याय 30 : जल की आत्माएं – जल परी, नाग नागिन या प्रकृति की चेतना शक्ति
1. जल में बसने वाली आत्माओं का रहस्य
जब हम किसी शांत झील या समुद्र को देखते हैं, तो एक अद्भुत शांति और गहराई का अनुभव होता है।
लोग कहते हैं — “यहां कोई शक्ति बसती है।”
वास्तव में जल केवल पदार्थ नहीं, चेतना का दर्पण है।
यह जीवन का वाहक और भावना का प्रतीक है।
उदाहरण:
जिस प्रकार आत्मा शरीर में चेतना भरती है,
वैसे ही जल प्रकृति में शुद्ध भावनाओं का प्रवाह बनाए रखता है।
2. जल आत्माएं कौन होती हैं और कहां रहती हैं?
जल आत्माएं वे सूक्ष्म आत्माएं हैं जो अपने कर्मों या भावनात्मक बंधनों के कारण जल तत्व से जुड़ जाती हैं।
उनका कर्म या अनुभव जल से संबंधित होने के कारण, वे उसी क्षेत्र में आकर्षित होती हैं।
उदाहरण:
यदि किसी आत्मा का कर्म किसी झील, नदी या समुद्र से जुड़ा हो —
तो मृत्यु के बाद उसकी चेतना उसी क्षेत्र में खिंच जाती है।
जैसे आत्मा अपने कर्म क्षेत्र में बार-बार जन्म लेती है,
वैसे ही सूक्ष्म स्तर पर भी आत्मा अपने तत्वीय बंधन में रहती है।
3. क्यों कुछ स्थानों पर शांति और कुछ पर भय का अनुभव होता है?
हर आत्मा अपनी स्थिति के अनुसार कंपन (vibration) फैलाती है।
कभी किसी नदी किनारे बैठकर शांति महसूस होती है —
वहां की आत्माएं पवित्र और शांत होती हैं।
लेकिन कहीं डर या बेचैनी महसूस होती है —
तो समझो वहां की ऊर्जा असंतुलित है।
मुरली (9 जनवरी 1977):
“बच्चे, हर स्थान का वातावरण आत्माओं के संस्कारों से बनता है।”
4. कंपन का रहस्य
कंपन यानी ऊर्जा की तरंगें।
जैसे हमारे मन में भाव आता है तो शरीर में हलचल होती है,
वैसे ही प्रकृति में आत्माओं के संस्कारों के अनुसार तरंगें उठती हैं।
उदाहरण:
किसी संत की उपस्थिति में वातावरण पवित्र लगता है —
वह आत्मा अपने शुभ संस्कारों से वातावरण को ऊर्जा देती है।
5. जल परी, नाग-नागिन जैसी आत्माओं की उत्पत्ति
ये प्रतीकात्मक नाम हैं।
-
जलपरी = आकर्षण और सौंदर्य में बंधी आत्मा।
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नाग-नागिन = क्रोध, बदले या आसक्ति में फँसी आत्मा।
मुरली (30 अप्रैल 1970):
“आसुरी संस्कारों में बंधी आत्माएं ही प्रकृति के तत्वों में फँस जाती हैं।”
आत्मा यदि मोह या आसक्ति नहीं छोड़ती,
तो वही उसे बांध लेती है — और वही रूपक ‘नागिन’ या ‘जलपरी’ बन जाता है।
6. क्या जल आत्माएं दुष्ट होती हैं या शुभ भी हो सकती हैं?
दोनों प्रकार की हो सकती हैं।
हर आत्मा का मूल स्वभाव शांति और प्रेम है।
जब आत्मा अज्ञान में रहती है तो नकारात्मक ऊर्जा बन जाती है,
परंतु जब वह ज्ञान और याद में आती है,
तो वही आत्मा प्रकृति को पवित्र बना देती है।
मुरली (12 मार्च 1966):
“आत्मा का भाव ही संसार की रचना करता है।
शुभ भाव से प्रकृति सहयोगी बनती है, अशुभ भाव से बंधक।”
7. जल आत्माओं की कहानियों का आध्यात्मिक अर्थ
प्रत्येक कथा एक आंतरिक स्थिति का प्रतीक है —
| प्रतीक | आंतरिक अर्थ |
|---|---|
| जलपरी | आकर्षण और मोह में फँसी आत्मा |
| नाग | बदले और क्रोध में फँसी आत्मा |
| समुद्र देव | गहराई में स्थिर ज्ञानी आत्मा |
मुरली (9 जनवरी 1977):
“हर कथा में ज्ञान छिपा है, मनुष्य ने उसे रूपक बना लिया है।”
8. आत्मिक सुरक्षा के उपाय
जहां भी भय या भारीपन महसूस हो —
वहां अपने संकल्प को पवित्र रखो और “ओम शांति” का कंपन फैलाओ।
मुरली (5 अगस्त 1982):
“योगी आत्मा की उपस्थिति ही प्रकाश है, जो हर अंधकार को मिटा देती है।”
उदाहरण:
यदि किसी स्थान पर डर लगे, तो
“मैं आत्मा हूं, शिव बाबा मेरे साथ हैं” —
यह स्मृति ही ऊर्जा का कवच है।
9. अंतिम बोध — जल की आत्माएं नहीं, हमारी अपनी भावनाएं
वास्तव में ये सब प्रतीक हैं —
हमारी अपनी भावनाओं के।
जब मन की गहराई शुद्ध होती है,
तो बाहरी जल भी हमें शांति और आनंद देता है।
ब्रह्मा बाबा कहते हैं:
“जहां भय लगे, वहां बाबा को याद करो;
फिर देखो, वही स्थान मधुर संगीत बन जाएगा।”
निष्कर्ष
जल की आत्माएं वास्तव में प्रकृति की चेतना शक्ति का संकेत हैं —
जो हमारे ही भावनात्मक तरंगों का प्रतिबिंब हैं।
जब हम आत्म-स्मृति में रहते हैं,
तो जल, वायु, अग्नि — सब तत्व हमारे सहयोगी बन जाते हैं।
Murli References:
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30 अप्रैल 1970 – “आसुरी संस्कारों में बंधी आत्माएं ही प्रकृति के तत्वों में फँस जाती हैं।”
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12 मार्च 1966 – “आत्मा का भाव ही संसार की रचना करता है।”
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9 जनवरी 1977 – “हर कथा में ज्ञान छिपा है।”
-
5 अगस्त 1982 – “योगी आत्मा की उपस्थिति प्रकाश फैलाती है।”

