आत्मा-पदम(44)जीवघात |आत्मा-घात:रोकने के लिए यथार्थ और प्रभावी पुरुषार्थ क्या?
P-A-44′ Self-murder: what is the real and effective effort to prevent it?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
1. अकर्म का खाता और पद्मा पदम पति बनना
हमारे जीवन का उद्देश्य है “पद्मा पदम पति” बनना, जो कि हमारी आत्मिक यात्रा का सर्वोच्च लक्ष्य है। इस मार्ग पर चलने के लिए हमें अकर्म का खाता जोड़ना होगा। अकर्म का खाता परमात्मा के निर्देशन और श्रीमत के अनुसार ही संभव है। जितने अधिक अकर्म के खाते हम जोड़ेंगे, उतने ही अधिक हम पद्मा पदम पति बनेंगे।
2. जीव घात और आत्म घात का अंतर
आत्मा के लिए जीव घात और आत्म घात के बीच का अंतर समझना महत्वपूर्ण है। जब हम कहते हैं कि “जीव घात हो गया,” इसका अर्थ है कि जीव समाप्त हो गया, लेकिन आत्मा तो अजर-अमर और अविनाशी है। आत्मा का घात नहीं हो सकता, क्योंकि वह नष्ट नहीं हो सकती। तो फिर आत्मा का घात कैसे हो सकता है? इसका उत्तर है: आत्म घात का मतलब आत्मा के गुण और शक्तियों का अभाव है। जब आत्मा अपने दिव्य गुणों और शक्तियों से दूर होती है, तब इसे आत्मा का घात कहा जाता है।
3. आत्मा का घात: गुणों और शक्तियों की कमी
आत्मा के घात का असली कारण है, उसके अंदर के दिव्य गुणों का अभाव। आत्मा जब अपने उच्चतम गुणों—जैसे शांति, प्रेम, ज्ञान, धैर्य, और शक्ति—से दूर हो जाती है, तो उसका आंतरिक संतुलन टूट जाता है। आत्मा का घात तभी होता है जब वह अपने आत्मिक गुणों को खो देती है और नकारात्मक शक्तियों की ओर आकर्षित होती है।
4. जीव घात और आत्म घात रोकने के लिए प्रभावी पुरुषार्थ
जीव घात और आत्म घात को रोकने के लिए हमें अपने जीवन में यथार्थ और प्रभावी पुरुषार्थ करना होता है। यह पुरुषार्थ केवल बाहरी प्रयासों तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह आंतरिक रूप से अपने विचारों, शब्दों और कर्मों को शुद्ध करने का प्रयास है।
- प्रभु की श्रीमत पर चलना: आत्मा को अपनी राह पर चलने के लिए परमात्मा की श्रीमत का पालन करना आवश्यक है। श्रीमत हमें सही दिशा दिखाती है, जिससे हम अपनी आंतरिक शक्ति को पुनः जागृत कर सकते हैं।
- ध्यान और आत्मचिंतन: आत्मा को शुद्ध करने के लिए नियमित ध्यान और आत्मचिंतन जरूरी है। इससे हम अपने मन और हृदय को नकारात्मकता से मुक्त कर सकते हैं और दिव्य गुणों को अपने जीवन में शामिल कर सकते हैं।
- समर्पण और विश्वास: परमात्मा पर पूर्ण समर्पण और विश्वास रखना हमें आत्मिक शांति और बल देता है। जब हम परमात्मा के प्रति पूर्ण निष्ठा और प्रेम रखते हैं, तो हम आत्म घात और जीव घात दोनों को रोक सकते हैं।
5. यथार्थ पुरुषार्थ: आत्मा के गुणों को पुनः प्राप्त करना
अर्थात, हमें अपने जीवन में उस पुरुषार्थ को लाना होगा जो हमें अपने दिव्य गुणों को पुनः प्राप्त करने में मदद करे। यह पुरुषार्थ निम्नलिखित उपायों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है:
- नैतिकता और शुद्धता: हमें अपने कर्मों में शुद्धता और नैतिकता बनाए रखनी चाहिए। किसी भी प्रकार की नकारात्मकता से बचते हुए, हम अपने भीतर की दिव्यता को जागृत कर सकते हैं।
- सत्संग और गुरुदर्शन: सत्संग और गुरुदर्शन से हमें मार्गदर्शन मिलता है, जो हमारी आत्मा को उच्चतम स्तर तक उठाता है। यह हमें आत्मा के दिव्य गुणों को पुनः प्राप्त करने में सहायता करता है।
- अच्छे संस्कार और आदतें: हमें अपनी आदतों और संस्कारों को शुद्ध करना होगा। अच्छे संस्कार ही आत्मा को ऊंचाई तक पहुंचाते हैं और आत्मघात को रोकते हैं।
6. निष्कर्ष: आत्मा के घात से बचने के उपाय
आत्मा के घात को रोकने के लिए हमें अपने भीतर के दिव्य गुणों को जागृत करना चाहिए। न केवल बाहरी कर्मों में, बल्कि हमारे आंतरिक रूप में भी सुधार लाने की आवश्यकता है। यही यथार्थ पुरुषार्थ है जो आत्मा को आत्मघात से बचाता है और उसे अपनी दिव्यता की ओर अग्रसर करता है।
7. प्रेरणा और मार्गदर्शन
जीव घात और आत्म घात से बचने के लिए, हमें अपने कर्मों में परमात्मा की दिशा पर चलने की आवश्यकता है। इस रास्ते पर हम आत्मा के गुणों को जागृत कर सकते हैं, आत्मा के घात को रोक सकते हैं, और “पद्मा पदम पति” बनने की दिशा में कदम बढ़ा सकते
1. अकर्म का खाता और पद्मा पदम पति बनना
प्रश्न: “पद्मा पदम पति बनने के लिए हमें क्या करना चाहिए?”
उत्तर: पद्मा पदम पति बनने के लिए हमें अकर्म का खाता जोड़ना चाहिए। यह अकर्म का खाता परमात्मा के श्रीमत के अनुसार ही संभव है, जिससे हम आत्मिक रूप से ऊँचा उठ सकते हैं।
2. जीव घात और आत्म घात का अंतर
प्रश्न: “जीव घात और आत्म घात में क्या अंतर है?”
उत्तर: जीव घात का मतलब है जीव का समाप्त हो जाना, जबकि आत्मा का घात तब होता है जब आत्मा अपने दिव्य गुणों और शक्तियों से दूर हो जाती है। आत्मा अजर और अमर है, लेकिन गुणों की कमी से आत्मा का घात हो सकता है।
3. आत्मा का घात: गुणों और शक्तियों की कमी
प्रश्न: “आत्मा का घात किस कारण से होता है?”
उत्तर: आत्मा का घात उसके भीतर के दिव्य गुणों की कमी से होता है। जब आत्मा शांति, प्रेम, ज्ञान, धैर्य, और शक्ति जैसे गुणों से दूर होती है, तो उसे आत्मा का घात कहा जाता है।
4. जीव घात और आत्म घात रोकने के लिए प्रभावी पुरुषार्थ
प्रश्न: “जीव घात और आत्म घात को रोकने के लिए कौन से उपाय हैं?”
उत्तर:
- प्रभु की श्रीमत पर चलना: परमात्मा की श्रीमत के अनुसार अपने जीवन को दिशा देना आवश्यक है।
- ध्यान और आत्मचिंतन: आत्मा को शुद्ध करने के लिए नियमित ध्यान और आत्मचिंतन करें।
- समर्पण और विश्वास: परमात्मा पर समर्पण और विश्वास रखने से आत्मा को शांति और बल मिलता है।
5. यथार्थ पुरुषार्थ: आत्मा के गुणों को पुनः प्राप्त करना
प्रश्न: “यथार्थ पुरुषार्थ के द्वारा हम आत्मा के गुण कैसे पुनः प्राप्त कर सकते हैं?”
उत्तर:
- नैतिकता और शुद्धता: हमें अपने कर्मों में नैतिकता और शुद्धता बनाए रखनी चाहिए।
- सत्संग और गुरुदर्शन: सत्संग और गुरुदर्शन से मार्गदर्शन प्राप्त करके हम अपने आत्मिक गुणों को पुनः जागृत कर सकते हैं।
- अच्छे संस्कार और आदतें: अच्छे संस्कारों को अपनाकर हम आत्मा के गुणों को पुनः प्राप्त कर सकते हैं।
6. निष्कर्ष: आत्मा के घात से बचने के उपाय
प्रश्न: “आत्मा के घात से बचने के लिए हमें क्या कदम उठाने चाहिए?”
उत्तर: आत्मा के घात से बचने के लिए हमें अपने भीतर के दिव्य गुणों को जागृत करना चाहिए और बाहरी कर्मों में भी सुधार लाना चाहिए। यह यथार्थ पुरुषार्थ है जो आत्मा को आत्मघात से बचाता है।
7. प्रेरणा और मार्गदर्शन
प्रश्न: “हम किस प्रकार अपनी आत्मा के गुणों को जागृत कर सकते हैं?”
उत्तर: आत्मा के गुणों को जागृत करने के लिए हमें परमात्मा की दिशा पर चलना चाहिए, जिससे हम आत्मा के घात को रोक सकते हैं और पद्मा पदम पति बनने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
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