Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“पार्टियों के साथ”
- पाठशाला में जाते हो। पाठशाला का पहला पाठ क्या है? अपने को मरजीवा बनाना मरजीवा अर्थात् अपने देह से, मित्र सम्बन्धियों से, पुरानी दुनिया से मरजीवा। यह पहला पाठ पक्का किया है? (संस्कार से मरजीवा नहीं हुए हैं) जब कोई मर जाता है तो पिछले संस्कार भी खत्म हो जाते हैं। तो यहाँ भी पिछले संस्कार क्यों याद आना चाहिए। जबकि जन्म ही दूसरा तो पिछली बातें भी खत्म होनी चाहिए। यह पहला पाठ है मरजीवा बनने का। वह पक्का करना है। पिछले पुराने संस्कार ऐसे लगने चाहिए जैसे और कोई के थे। हमारे नहीं। पहले शूद्रों के थे अभी ब्राह्मणों के हैं। तो पुराने शूद्रों के संस्कार नहीं होने चाहिए। पराये संस्कार अपने क्यों बनाते हो। जो पराई चीज को अपना बनाते हैं उनको क्या कहेंगे? चोर। तो यह भी चोरी क्यों करते हो? यह तो – शूद्रों के संस्कार हैं, ब्राह्मणों के नहीं। शूद्र की चीज को ब्राह्मण स्वीकार क्यों करते हैं। अछूत के साथ कपड़ा भी लग जाये तो नहाते हैं। तो शुद्रपने का संस्कार ब्राह्मणों को लग जाये तो क्या करना चाहिए? उसके लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। जैसे गन्दी चीज को नहीं छूते हैं वैसे पुराने सस्कारों से बचना है। छूना नहीं है। इतना जब ध्यान रखेंगे तो औरों को भी ध्यान दिला सकेंगे।
- सर्विस की सफलता का मुख्य गुण कौन सा है? नम्रता। जितनी नम्रता उतनी सफलता। नम्रता आती है निमित्त समझने से। निमित्त समझकर सर्विस करना। नम्रता के गुण से सब आप के आगे नमन करेंगे। जो खुद झुकता है उसके आगे सभी झुकते हैं। निमित्त समझकर कार्य करना है। जैसे बाप शरीर का आधार निमित्त मात्र लेते हैं। वैसे आप समझो कि निमित्त मात्र शरीर का आधार लिया है। एक तो शरीर को निमित्त मात्र समझना है और दूसरा सर्विस में अपने को निमित्त सम- झना। तब नम्रता आयेगी। फिर देखो सफलता आप के आगे चलेगी। जैसे बापदादा टेम्प्रेरी देह में आते हैं ऐसे देह को निमित्त आधार समझो। बापदादा की देह में अटेचमेंन्ट होती है क्या? आधार समझने से अधीन नहीं होंगे। अभी देह के अधीन होते हो फिर देह को अधीन करेंगे।
- गायन है दृष्टि से सृष्टि बनती है। कौन सी सृष्टि बनती है और कब बनती है? दृष्टि और सृष्टि का ही गायन क्यों है, मुख का गायन क्यों नहीं हैं? काम पर पहले-पहले क्या बदली करते हैं? पहला पाठ क्या पढ़ाते हैं? भाई-भाई की दृष्टि से देखो। भाई-भाई की दृष्टि अर्थात् पहले दृष्टि को बदलने से सब बातें बदल जाती हैं। इसलिए गायन है कि दृष्टि से सृष्टि बनती है। जब आत्मा को देखते हैं तब यह सृष्टि पुरानी देखने में आती है। पुरुषार्थ भी मुख्य इस चीज का ही है दृष्टि बदलने का। जब यह दृष्टि बदल जाती है तो स्थिति और परिस्थिति भी बदल जाती है। दृष्टि बदलने से गुण और कर्म आप ही बदल जाते हैं। यह आत्मिक दृष्टि नैचुरल हो जाये।
- जो संगमयुग पर अपना राजा बनता है वह प्रजा का भी राजा बन सकता है। जो यहाँ अपना राजा नहीं वह वहाँ प्रजा का राजा भी नहीं बन सकता। संगमयुग पर ही सभी सस्कारों का बीज पड़ता है। यहाँ के बीज के सिवाए भविष्य का वृक्ष पैदा हो नहीं सकता है। यहाँ बीज न डालेंगे तो फूल कहाँ से निकलेगा। यहाँ अपना राजा बनने से क्या होगा? अपने को अधिकारी समझेंगे। अधिकारी बनने के लिए उदारचित का विशेष गुण चाहिए। जितना उदारचित्त होंगे उतना अधि- कारी बनेंगे। ब्राह्मणों का मुख्य कर्तव्य है पढ़ना और पढ़ाना। इसमें बिजी रहेंगे तो और बातों में बुद्धि नहीं जायेगी। तो अपने को पढ़ने और पढ़ाने में बिजी रखो। आजकल तक बापदादा ने सुनाया है कि मन की वृत्ति और अव्यक्त दृष्टि से सर्विस कर सकते हो। अपनी वृत्ति-दृष्टि से सर्विस करने में कोई बन्धन नहीं हैं। जिस बात में स्वतन्त्र हो वह सर्विस करनी चाहिए। पार्टियों के साथQ1: पाठशाला का पहला पाठ क्या है?
A1: पाठशाला का पहला पाठ है “अपने को मरजीवा बनाना,” यानी पुराने संस्कारों से मुक्त होकर नए संस्कार अपनाना।Q2: मरजीवा बनने का क्या मतलब है?
A2: मरजीवा बनने का मतलब है अपने पुराने संस्कारों को खत्म करके, आत्मा को नया रूप देना और शुद्ध बनाना।Q3: पुराने शूद्रों के संस्कार क्यों नहीं होने चाहिए?
A3: पुराने शूद्रों के संस्कारों को अपनाना चोरी करने जैसा है, क्योंकि शूद्रों के संस्कार ब्राह्मणों के संस्कारों के खिलाफ होते हैं।Q4: सर्विस की सफलता का मुख्य गुण कौन सा है?
A4: सर्विस की सफलता का मुख्य गुण है “नम्रता,” जो निमित्त समझने से आती है।Q5: नम्रता कैसे आती है?
A5: नम्रता निमित्त समझकर कार्य करने से आती है, जैसे बाप शरीर का आधार निमित्त समझते हैं।Q6: दृष्टि और सृष्टि का क्या संबंध है?
A6: दृष्टि से सृष्टि बनती है। जब आत्मा को सही दृष्टि से देखेंगे, तो सृष्टि और परिस्थितियाँ बदल जाएँगी।Q7: संगमयुग पर अपना राजा बनना क्यों महत्वपूर्ण है?
A7: संगमयुग पर अपना राजा बनने से हम अपने संस्कारों को सुधार सकते हैं, और भविष्य में प्रजा का राजा बनने के योग्य बन सकते हैं।Q8: ब्राह्मणों का मुख्य कर्तव्य क्या है?
A8: ब्राह्मणों का मुख्य कर्तव्य है “पढ़ना और पढ़ाना,” और इस कार्य में व्यस्त रहना चाहिए।Q9: कैसे सर्विस में कोई बंधन नहीं होते?
A9: मन की वृत्ति और अव्यक्त दृष्टि से सर्विस की जा सकती है, इसमें कोई बंधन नहीं होते, और हम स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं।Q10: अधिकारी बनने के लिए कौन सा गुण जरूरी है?
A10: अधिकारी बनने के लिए “उदारचित्त” का विशेष गुण चाहिए, जितना उदारचित्त होंगे, उतना अधिकारी बनेंगे।पार्टियों के साथ, मरजीवा बनाना, पुराने संस्कार, शूद्र और ब्राह्मण संस्कार, नम्रता, निमित्त समझना, सर्विस में सफलता, दृष्टि बदलना, आत्मिक दृष्टि, संगमयुग, अधिकारी बनना, उदारचित्त, ब्राह्मणों का कर्तव्य, पढ़ना और पढ़ाना, मन की वृत्ति, अव्यक्त दृष्टि, स्वतंत्र सर्विस, पुरुषार्थ, सृष्टि बनाना, मानसिक पुरुषार्थ, आत्मिक गुण, गुरु का मार्गदर्शन, साधना, ध्यान, आध्यात्मिक शिक्षा, जीवन में परिवर्तन With parties, making a dead soul, old rituals, Shudra and Brahmin rituals, humility, considering oneself a medium, success in service, changing the vision, spiritual vision, Confluence Age, becoming an officer, generous minded, duty of Brahmins, reading and teaching, attitude of mind, latent vision, independent service, effort, creation of the world, mental effort, spiritual qualities, guidance of the Guru, Sadhana, meditation, spiritual education, change in life