Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
19-03-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
|
मधुबन |
“मीठे बच्चे – तुम्हें इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर से जीते जी मरकर घर जाना है, इसलिए देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनो” | |
प्रश्नः- | अच्छे-अच्छे पुरूषार्थी बच्चों की निशानी क्या होगी? |
उत्तर:- | जो अच्छे पुरूषार्थी हैं वह सवेरे-सवेरे उठकर देही-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करेंगे। वह एक बाप को याद करने का पुरूषार्थ करेंगे। उन्हें लक्ष्य रहता कि और कोई देहधारी याद न आये, निरन्तर बाप और 84 के चक्र की याद रहे। यह भी अहो सौभाग्य कहेंगे। |
ओम् शान्ति। अभी तुम बच्चे जीते जी मरे हुए हो। कैसे मरे हो? देह के अभिमान को छोड़ दिया तो बाकी रही आत्मा। शरीर तो खत्म हो जाता है। आत्मा नहीं मरती। बाप कहते हैं जीते जी अपने को आत्मा समझो और परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाने से आत्मा पवित्र हो जायेगी। जब तक आत्मा बिल्कुल पवित्र नहीं बनी है तब तक पवित्र शरीर मिल न सके। आत्मा पवित्र बन गई तो फिर यह पुराना शरीर आपेही छूट जायेगा, जैसे सर्प की खल ऑटोमेटिकली छूट जाती है, उनसे ममत्व मिट जाता है, वह जानता है हमको नई खल मिलती है, पुरानी उतर जायेगी। हर एक को अपनी-अपनी बुद्धि तो होती है ना। अभी तुम बच्चे समझते हो हम जीते जी इस पुरानी दुनिया से, पुराने शरीर से मर चुके हैं फिर तुम आत्मायें भी शरीर छोड़ कहाँ जायेंगी? अपने घर। पहले-पहले तो यह पक्का याद करना है – हम आत्मा हैं, शरीर नहीं। आत्मा कहती है – बाबा, हम आपके हो चुके, जीते जी मर चुके हैं। अब आत्मा को फ़रमान मिला हुआ है कि मुझ बाप को याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। यह याद का अभ्यास पक्का चाहिए। आत्मा कहती है – बाबा, आप आये हैं तो हम आपके ही बनेंगे। आत्मा मेल है, न कि फीमेल। हमेशा कहते हैं हम भाई-भाई हैं, ऐसे थोड़ेही कहते हम सब सिस्टर्स हैं, सब बच्चे हैं। सब बच्चों को वर्सा मिलना है। अगर अपने को बच्ची कहेंगे तो वर्सा कैसे मिलेगा? आत्मायें सब भाई-भाई हैं। बाप सबको कहते हैं – रूहानी बच्चों मुझे याद करो। आत्मा कितनी छोटी है। यह है बहुत महीन समझने की बातें। बच्चों को याद ठहरती नहीं है। संन्यासी लोग दृष्टान्त देते हैं – मैं भैंस हूँ, भैंस हूँ…….. ऐसे कहने से फिर भैंस बन जाते हैं। अब वास्तव में भैंस कोई बनते थोड़ेही हैं। बाप तो कहते हैं अपने को आत्मा समझो। यह आत्मा और परमात्मा का ज्ञान तो कोई को है नहीं इसलिए ऐसी-ऐसी बातें कह देते हैं। अब तुमको देही-अभिमानी बनना है, हम आत्मा हैं, यह पुराना शरीर छोड़ हमको जाए नया लेना है। मनुष्य मुख से कहते भी हैं कि आत्मा स्टॉर है, भ्रकुटी के बीच में रहती है फिर कह देते अंगुष्ठे मिसल है। अब सितारा कहाँ, अंगुष्टा कहाँ! और फिर मिट्टी के सालिग्राम बैठ बनाते हैं, इतनी बड़ी आत्मा तो हो नहीं सकती। मनुष्य देह-अभिमानी हैं ना तो बनाते भी मोटे रूप में हैं। यह तो बड़ी सूक्ष्म महीनता की बातें हैं। भक्ति भी मनुष्य एकान्त में, कोठी में बैठ करते हैं। तुमको तो गृहस्थ व्यवहार में, धन्धे आदि में रहते हुए बुद्धि में यह पक्का करना है – हम आत्मा हैं। बाप कहते हैं – मैं तुम्हारा बाप भी इतनी छोटी बिन्दू हूँ। ऐसे नहीं कि मैं बड़ा हूँ। मेरे में सारा ज्ञान है। आत्मा और परमात्मा दोनों एक जैसे ही हैं, सिर्फ उनको सुप्रीम कहा जाता है। यह ड्रामा में नूंध है। बाप कहते हैं – मैं तो अमर हूँ। मैं अमर न होता तो तुमको पावन कैसे बनाऊं। तुमको स्वीट चिल्ड्रेन कैसे कहूँ। आत्मा ही सब कुछ करती है। बाप आकर देही-अभिमानी बनाते हैं, इसमें ही मेहनत है। बाप कहते हैं – मुझे याद करो, और कोई को याद न करो। योगी तो दुनिया में बहुत हैं। कन्या की सगाई होती है तो फिर पति के साथ योग लग जाता है ना। पहले थोड़ेही था। पति को देखा फिर उनकी याद में रहती है। अब बाप कहते हैं – मामेकम् याद करो। यह बहुत अच्छी प्रैक्टिस चाहिए। जो अच्छे-अच्छे पुरूषार्थी बच्चे हैं वह सवेरे-सवेरे उठकर देही-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करेंगे। भक्ति भी सवेरे करते हैं ना। अपने-अपने ईष्ट देव को याद करते हैं। हनूमान की भी कितनी पूजा करते हैं लेकिन जानते कुछ भी नहीं। बाप आकर समझाते हैं – तुम्हारी बुद्धि बन्दर मिसल हो गई है। अब फिर तुम देवता बनते हो। अब यह है पतित तमोप्रधान दुनिया। अभी तुम आये हो बेहद के बाप पास। मैं तो पुनर्जन्म रहित हूँ। यह शरीर इस दादा का है। मेरा कोई शरीर का नाम नहीं। मेरा नाम ही है कल्याणकारी शिव। तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा कल्याणकारी आकर नर्क को स्वर्ग बनाते हैं। कितना कल्याण करते हैं। नर्क का एकदम विनाश करा देते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा अभी स्थापना हो रही है। यह है प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली। चलते फिरते एक-दो को सावधान करना है – मन्मनाभव। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। पतित-पावन तो बाप है ना। उन्होंने भूल से भगवानुवाच के बदले श्रीकृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है। भगवान तो निराकार है, उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। उनका नाम है शिव। शिव की पूजा भी बहुत होती है। शिव काशी, शिव काशी कहते रहते हैं। भक्ति मार्ग में अनेक प्रकार के नाम रख दिये हैं। कमाई के लिए अनेक मन्दिर बनाये हैं। असली नाम है शिव। फिर सोमनाथ रखा है, सोमनाथ, सोमरस पिलाते हैं, ज्ञान धन देते हैं। फिर जब पुजारी बनते हैं तो कितना खर्चा करते हैं उनके मन्दिर बनाने पर क्योंकि सोमरस दिया है ना। सोमनाथ के साथ सोमनाथिनी भी होगी! यथा राजा रानी तथा प्रजा सब सोमनाथ सोमनाथिनी हैं। तुम सोनी दुनिया में जाते हो। वहाँ सोने की ईटें होती हैं। नहीं तो दीवारें आदि कैसे बनें! बहुत सोना होता है इसलिए उसको सोने की दुनिया कहा जाता है। यह है लोहे, पत्थरों की दुनिया। स्वर्ग का नाम सुनकर ही मुख पानी हो जाता है। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण अलग-अलग बनेंगे ना। तुम विष्णुपुरी के मालिक बनते हो। अभी तुम हो रावण पुरी में। तो अब बाप कहते हैं सिर्फ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। बाप भी परमधाम में रहते हैं, तुम आत्मायें भी परमधाम में रहती हो। बाप कहते हैं तुमको कोई तकलीफ नहीं देता हूँ। बहुत सहज है। बाकी यह रावण दुश्मन तुम्हारे सामने खड़ा है। यह विघ्न डालते हैं। ज्ञान में विघ्न नहीं पड़ते, विघ्न पड़ते हैं याद में। घड़ी-घड़ी माया याद भुला देती है। देह-अभिमान में ले आती है। बाप को याद करने नहीं देती, यह युद्ध चलती है। बाप कहते हैं तुम कर्मयोगी तो हो ही। अच्छा, दिन में याद नहीं कर सकते हो तो रात को याद करो। रात का अभ्यास दिन में काम आयेगा।
निरन्तर स्मृति रहे – जो बाप हमको विश्व का मालिक बनाते हैं, हम उसे याद करते हैं! बाप की याद और 84 जन्मों के चक्र की याद रहे तो अहो सौभाग्य। औरों को भी सुनाना है – बहनों और भाइयों, अब कलियुग पूरा हो सतयुग आता है। बाप आये हैं, सतयुग के लिए राजयोग सिखला रहे हैं। कलियुग के बाद सतयुग आना है। एक बाप के सिवाए और कोई को याद नहीं करना है। वानप्रस्थी जो होते हैं वह संन्यासियों का जाए संग करते हैं। वानप्रस्थ, वहाँ वाणी का काम नहीं है। आत्मा शान्त रहती है। लीन तो हो नहीं सकती। ड्रामा से कोई भी एक्टर निकल नहीं सकता। यह भी बाप ने समझाया है – एक बाप के सिवाए और कोई को याद नहीं करना है। देखते हुए भी याद न करो। यह पुरानी दुनिया तो विनाश हो जानी है, कब्रिस्तान है ना। मुर्दों को कभी याद किया जाता है क्या! बाप कहते हैं यह सब मरे पड़े हैं। मैं आया हूँ, पतितों को पावन बनाए ले जाता हूँ। यहाँ यह सब खत्म हो जायेंगे। आजकल बॉम्बस आदि जो भी बनाते हैं, बहुत तीखे-तीखे बनाते रहते हैं। कहते हैं यहाँ बैठे जिस पर छोड़ेंगे उस पर ही गिरेंगे। यह नूँध है, फिर से विनाश होना है। भगवान आते हैं, नई दुनिया के लिए राजयोग सिखला रहे हैं। यह महाभारत लड़ाई है, जो शास्त्रों में गाई हुई है। बरोबर भगवान आये हैं – स्थापना और विनाश करने। चित्र भी क्लीयर है। तुम साक्षात्कार कर रहे हो – हम यह बनेंगे। यहाँ की यह पढ़ाई खत्म हो जायेगी। वहाँ तो बैरिस्टर, डॉक्टर आदि की दरकार नहीं होती। तुम तो यहाँ का वर्सा ले जाते हो। हुनर भी सब यहाँ से ले जायेंगे। मकान आदि बनाने वाले फर्स्टक्लास होंगे तो वहाँ भी बनायेंगे। बाजार आदि भी तो होगी ना। काम तो चलेगा। यहाँ से सीखा हुआ अक्ल ले जाते हैं। साइन्स से भी अच्छे हुनर सीखते हैं। वह सब वहाँ काम आयेंगे। प्रजा में जायेंगे। तुम बच्चों को तो प्रजा में नहीं आना है। तुम आये ही हो बाबा-मम्मा के तख्तनशीन बनने। बाप जो श्रीमत देते हैं, उस पर चलना है। फर्स्टक्लास श्रीमत तो एक ही देते हैं कि मुझे याद करो। कोई का भाग्य अनायास भी खुल जाता है। कोई कारण निमित्त बन पड़ता है। कुमारियों को भी बाबा कहते हैं शादी तो बरबादी हो जायेगी। इस गटर में मत गिरो। क्या तुम बाप का नहीं मानेंगी! स्वर्ग की महारानी नहीं बनेगी! अपने साथ प्रण करना चाहिए कि हम उस दुनिया में कभी नहीं जायेंगे। उस दुनिया को याद भी नहीं करेंगे। शमशान को कभी याद करते हैं क्या! यहाँ तो तुम कहते हो कहाँ यह शरीर छूटे तो हम अपने स्वर्ग में जायें। अब 84 जन्म पूरे हुए, अब हम अपने घर जाते हैं। औरों को भी यही सुनाना है। यह भी समझते हो – बाबा बिगर सतयुग की राजाई कोई दे नहीं सकते।
इस रथ को भी कर्मभोग तो होता है ना। बापदादा की भी आपस में कभी रूहरिहान चलती है – यह बाबा कहते हैं बाबा आशीर्वाद कर दो। खांसी के लिए कोई दवाई करो या छू मंत्र से उड़ा दो। कहते हैं – नहीं, यह तो भोगना ही है। यह तुम्हारा रथ लेता हूँ, उसके एवज में तो देता ही हूँ, बाकी यह तो तुम्हारा हिसाब-किताब है। अन्त तक कुछ न कुछ होता रहेगा। तुम्हें आशीर्वाद करूँ तो सब पर करना पड़े। आज यह बच्ची यहाँ बैठी है, कल ट्रेन में एक्सीडेंट हो जाता है, मर पड़ती है, बाबा कहेंगे ड्रामा। ऐसे थोड़ेही कह सकते कि बाबा ने पहले क्यों नहीं बताया। ऐसा कायदा नहीं है। मैं तो आता हूँ पतित से पावन बनाने। यह बतलाने थोड़ेही आया हूँ। यह हिसाब-किताब तो तुमको अपना चुक्तू करना है। इसमें आशीर्वाद की बात नहीं। इसके लिए जाओ संन्यासियों के पास। बाबा तो बात ही एक बताते हैं। मुझे बुलाया ही इसलिए है कि हमको आकर नर्क से स्वर्ग में ले जाओ। गाते भी हैं पतित-पावन सीताराम। परन्तु अर्थ उल्टा निकाल दिया है। फिर राम की बैठ महिमा करते – रघुपति राघव राजा राम…….। बाप कहते हैं इस भक्ति मार्ग में तुमने कितने पैसे गंवाये हैं। एक गीत भी है ना – क्या कौतुक देखा…… देवियों की मूर्तियाँ बनाए पूजा कर फिर समुद्र में डूबो देते हैं। अब समझ में आता है – कितने पैसे बरबाद करते हैं, फिर भी यह होगा। सतयुग में तो ऐसा काम होता ही नहीं। सेकण्ड बाई सेकण्ड की नूँध है। कल्प बाद फिर यही बात रिपीट होगी। ड्रामा को बड़ा अच्छी रीति समझना चाहिए। अच्छा, कोई जास्ती नहीं याद कर सकते हैं तो बाप कहते हैं सिर्फ अल्फ और बे, बाप और बादशाही को याद करो। अन्दर में यही धुन लगा दो कि हम आत्मा कैसे 84 का चक्र लगाकर आई हैं। चित्रों पर समझाओ, बहुत सहज है। यह है रूहानी बच्चों से रूहरिहान। बाप रूहरिहान करते ही हैं बच्चों से। और कोई से तो कर न सकें। बाप कहते हैं – अपने को आत्मा समझो। आत्मा ही सब कुछ करती है। बाप याद दिलाते हैं, तुमने 84 जन्म लिये हैं। मनुष्य ही बने हैं। जैसे बाप ऑर्डीनेन्स निकालते हैं कि विकार में नहीं जाना है, ऐसे यह भी ऑर्डीनेन्स निकालते हैं कि किसको रोना नहीं है। सतयुग-त्रेता में कभी कोई रोते नहीं, छोटे बच्चे भी नहीं रोते। रोने का हुक्म नहीं। वह है ही हर्षित रहने की दुनिया। उसकी प्रैक्टिस सारी यहाँ करनी है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप से आशीर्वाद मांगने के बजाए याद की यात्रा से अपना सब हिसाब चुक्तू करना है। पावन बनने का पुरूषार्थ करना है। इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझना है।
2) इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी याद नहीं करना है। कर्मयोगी बनना है। सदा हर्षित रहने का अभ्यास करना है। कभी भी रोना नहीं है।
वरदान:- | प्रवृत्ति में रहते मेरे पन का त्याग करने वाले सच्चे ट्रस्टी, मायाजीत भव जैसे गन्दगी में कीड़े पैदा होते हैं वैसे ही जब मेरापन आता है तो माया का जन्म होता है। मायाजीत बनने का सहज तरीका है – स्वयं को सदा ट्रस्टी समझो। ब्रह्माकुमार माना ट्रस्टी, ट्रस्टी की किसी में भी अटैचमेंट नहीं होती क्योंकि उनमें मेरापन नहीं होता। गृहस्थी समझेंगे तो माया आयेगी और ट्रस्टी समझेंगे तो माया भाग जायेगी इसलिए न्यारे होकर फिर प्रवृत्ति के कार्य में आओ तो मायाप्रूफ रहेंगे। |
स्लोगन:- | जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान की फीलिंग जरूर आती है। |
19-03-2025 प्रात: मुरली ओम् शान्ति – बापदादा, मधुबन
प्रश्न-उत्तर (संक्षिप्त रूप में)
प्रश्न 1: अच्छे-अच्छे पुरूषार्थी बच्चों की निशानी क्या होगी?
उत्तर: वे सवेरे-सवेरे उठकर देही-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करेंगे और निरन्तर एक बाप को याद करेंगे। उनका लक्ष्य रहेगा कि कोई भी देहधारी याद न आए, केवल बाप और 84 जन्मों का चक्र स्मृति में रहे।
प्रश्न 2: आत्मा की पवित्रता क्यों आवश्यक है?
उत्तर: जब तक आत्मा पूरी तरह पवित्र नहीं बनती, तब तक पवित्र शरीर नहीं मिल सकता। आत्मा शुद्ध बनती है तो पुराना शरीर स्वयं छूट जाता है, जैसे सर्प की पुरानी केंचुल अपने आप निकल जाती है।
प्रश्न 3: बाप का मुख्य फ़रमान क्या है?
उत्तर: “मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जाओगे।” यही याद का अभ्यास आत्मा को शुद्ध और शक्तिशाली बनाता है।
प्रश्न 4: देही-अभिमानी बनने में क्या बाधा आती है?
उत्तर: माया बार-बार देह-अभिमान में ले आती है और बाप को याद करने नहीं देती। इसलिए इस युद्ध में विजयी बनने के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है।
प्रश्न 5: ज्ञान और भक्ति में क्या अंतर है?
उत्तर: भक्ति में मनुष्य ईश्वर की याद एकान्त में या कोठरी में बैठकर करता है, जबकि ज्ञान में रहते हुए गृहस्थ में भी आत्मा की स्मृति बनी रहती है और कर्मयोगी बना जाता है।
प्रश्न 6: सच्चे ट्रस्टी की पहचान क्या है?
उत्तर: सच्चे ट्रस्टी “मेरा-तेरा” की भावना से मुक्त होते हैं। जहाँ मेरापन आता है, वहाँ माया जन्म लेती है। ट्रस्टी को किसी भी चीज़ से लगाव नहीं होता, इसलिए वह मायाजीत बन जाता है।
प्रश्न 7: आत्मा और परमात्मा में क्या समानता है?
उत्तर: आत्मा और परमात्मा दोनों बिंदू स्वरूप हैं, लेकिन परमात्मा सर्वोच्च सत्ता (सुप्रीम) है, जबकि आत्मा कर्मों के अनुसार जन्म और मृत्यु के चक्र में आती है।
प्रश्न 8: सतयुग की दुनिया कैसी होगी?
उत्तर: सतयुग सोने की दुनिया होगी, जहाँ सुख, शांति और समृद्धि होगी। वहाँ आत्माएँ शुद्ध, पवित्र और हर्षित रहेंगी।
प्रश्न 9: सतयुग के राज्य में कौन-कौन आएंगे?
उत्तर: जो इस समय बाप की श्रीमत पर चलकर राजयोग सीखेंगे, वे सतयुग में तख्तनशीन (राजा-रानी) बनेंगे।
प्रश्न 10: बाबा से आशीर्वाद क्यों नहीं माँगना चाहिए?
उत्तर: क्योंकि हमें अपने पुराने कर्मों का हिसाब चुक्तू करना है और पावन बनने का पुरुषार्थ स्वयं करना होगा। याद की यात्रा ही हमें विकर्मों से मुक्त करती है।
प्रश्न 11: हमें रोने की मनाही क्यों है?
उत्तर: सतयुग में रोने का कोई स्थान नहीं, वहाँ आत्माएँ सदा हर्षित रहती हैं। इसलिए अभी से हमें यह अभ्यास करना है कि किसी भी परिस्थिति में रोएं नहीं।
प्रश्न 12: बाप को याद करने का सहज तरीका क्या है?
उत्तर: “अल्फ और बे” को याद करो – अर्थात बाप (शिव) और बादशाही (सतयुग की राज्याई)। इससे आत्मा की स्मृति बनी रहेगी।
प्रश्न 13: हमें किसे और कैसे समझाना है?
उत्तर: “भाइयों और बहनों, अब कलियुग पूरा हो रहा है और सतयुग आ रहा है। बाप आए हैं, हमें सतयुग के लिए तैयार करने। इसलिए हमें केवल एक बाप को ही याद करना है।”
प्रश्न 14: परमधाम में आत्मा का क्या स्वभाव होगा?
उत्तर: आत्मा वहाँ पूर्ण शांति और स्थिरता में होगी, वाणी का कोई काम नहीं रहेगा, केवल शुद्ध शांति की अनुभूति होगी।
प्रश्न 15: आत्मा को कब्रिस्तान (पुरानी दुनिया) को क्यों भूलना चाहिए?
उत्तर: यह पुरानी दुनिया विनाश होने वाली है, और मृत चीजों को कोई याद नहीं करता। इसलिए हमें भी इसे याद नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 16: विनाश कैसे होगा?
उत्तर: महाभारत युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से यह पुरानी दुनिया समाप्त हो जाएगी और एक नई, पवित्र दुनिया की स्थापना होगी।
प्रश्न 17: इस समय हमें कौन-सा अभ्यास करना चाहिए?
उत्तर: हमें सदा हर्षित रहने, कर्मयोगी बनने और केवल बाप को याद करने का अभ्यास करना चाहिए ताकि हम सहज ही स्वर्ग के अधिकारी बन सकें।
मीठे बच्चे, जीते जी मरना, देह-अभिमान छोड़ना, देही-अभिमानी बनना, अच्छे पुरूषार्थी, सवेरे उठना, बाप को याद करना, 84 जन्मों की याद, आत्मा की पवित्रता, योग का अभ्यास, मन्मनाभव, आत्मा और परमात्मा का ज्ञान, भक्ति मार्ग, सतयुग की स्थापना, रूहानी बच्चे, कर्मयोगी, पुरानी दुनिया का अंत, ड्रामा की समझ, स्वर्ग की पढ़ाई, ट्रस्टी भाव, मायाजीत, मेरापन का त्याग, आत्मा का स्वधर्म, हर्षित रहने की कला, परमात्म प्रत्यक्षता, पवित्रता की शमा, सत्यता और सभ्यता, अचल पवित्रता।
Sweet children, die while alive, renounce body-consciousness, become soul-conscious, good effort-makers, wake up early, remember the Father, remembrance of 84 births, purity of the soul, practise of yoga, Manmanaabhav, knowledge of the soul and the Supreme Soul, the path of devotion, establishment of the Golden Age, spiritual children, karmyogi, the end of the old world, understanding of the drama, the study of heaven, trusteeship, conquerors of Maya, renunciation of mineness, the soul’s original religion, the art of remaining happy, revelation of the Supreme Soul, the flame of purity, truthfulness and civility, unshakeable purity.