P-P 53″ क्या परमात्मा सृष्टि का रचता है?कैसे रचता है?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
ओम शांति
प्रिय आत्माओं,
आज हम एक अत्यंत गहन और महत्वपूर्ण विषय पर चिंतन करेंगे:
आत्मा कैसे अपने परिवार और शरीर का चयन करती है?
हम समझेंगे कि यह कोई संयोग नहीं, बल्कि गहरा रूहानी रहस्य है।
अगर हम “पद्मा पदम पति” बनना चाहते हैं, तो हमें आत्मा और उसके कर्मों की इस सूक्ष्म गहराई को जानना होगा।
भूमिका: आत्मा को न्यारा और प्यारा बनाना
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आत्मा को ऐसा बनाना है जो न्यारा (डिटैच) और प्यारा (अत्यंत पवित्र और आकर्षक) हो।
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जब आत्मा न्यारी और प्यारी बनती है, तभी वह ऐसे कर्म करती है जो उसे पद्मा पदम पति बनाते हैं।
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उन्हीं कर्मों के आधार पर अगला जन्म, परिवार और शरीर निर्धारित होता है।
मुख्य प्रश्न
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आत्मा ने विशेष रूप से इसी परिवार में जन्म क्यों लिया?
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इसी व्यक्ति से विवाह क्यों हुआ?
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शरीर धारण करने का आधार क्या है?
यह कोई संयोग नहीं है, बल्कि इसके पीछे हैं तीन गहरे आधार:
1. ड्रामा का पाठ (World Drama)
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सृष्टि का खेल पहले से फिक्स है – एक पूर्व-निर्धारित ड्रामा।
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हर आत्मा का अद्वितीय और सटीक पार्ट है, कोई भी गलती नहीं हो सकती।
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आत्मा उसी समय, उसी परिस्थिति में जन्म लेती है जो उसके कर्मों के अनुसार बिल्कुल सटीक है।
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5000 वर्ष के चक्र में हर दृश्य, हर घटना एक्यूरेट टाइमिंग से रिपीट होती है।
2. आत्मा के नैसर्गिक संस्कार
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आत्मा उसी परिवार में जन्म लेती है, जहां वह अपने संस्कारों को व्यक्त कर सकती है।
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हमारे संस्कार पिछले जन्मों के कर्मों से बने हैं।
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माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी – सब पूर्व जन्म के गहरे संस्कारिक रिश्तों के पुनः मिलन हैं।
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आत्मा अपने संस्कारों को अनुभव करने और पूरा करने के लिए उपयुक्त वातावरण और परिवार का चयन करती है।
3. आत्माओं का परस्पर हिसाब-किताब (Karmic Account)
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आत्माओं के बीच पिछले जन्मों में हुए लेन-देन का हिसाब बनता है।
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सुख-दुख का लेन-देन तय करता है कि आत्मा किस परिवार में और किन रिश्तों के बीच जन्म लेगी।
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जब तक कर्मों का हिसाब बराबर नहीं होता, आत्माएं फिर से एक-दूसरे से जुड़ती हैं।
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जब हिसाब पूरा होता है, तब संबंध स्वतः समाप्त हो जाते हैं (जैसे तलाक, मृत्यु, बिछड़ना आदि)।
4. शरीर धारण करने का उद्देश्य
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आत्मा शरीर इसलिए धारण करती है ताकि अपने संस्कारों और कार्मिक अकाउंट को संतुलित कर सके।
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हर जन्म आत्मा के सीखने और शुद्ध बनने का अवसर है।
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जैसे-जैसे हिसाब-किताब समाप्त होता है, आत्मा अपने नैसर्गिक स्वरूप – शुद्धता, प्रेम और शांति – में लौटने लगती है।
निष्कर्ष: कर्मों को समझदारी से संचालित करना
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परिवार और जन्म स्थान का चयन आत्मा का पूर्व निर्धारित पाठ है।
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यह गहरी रूहानी योजना का हिस्सा है, जिसे ड्रामा, संस्कार और हिसाब-किताब द्वारा निर्धारित किया गया है।
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इस समझ के साथ, हमें अपने हर कर्म को पवित्रता और प्यार से भरपूर बनाना चाहिए।
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ताकि हम अपने अगले जन्म को सुंदर, श्रेष्ठ और पद्मा पदम पति बनने योग्य बना सकें।
समापन
तो आइए, आज से ही यह प्रतिज्ञा करें:
“मैं आत्मा हूँ — न्यारा और प्यारा बनूँगा।
अपने कर्मों को शुद्ध बनाऊंगा।
और इस अमूल्य जीवन को सफल बनाऊंगा।”
ओम शांति।

