T.L.P 87″When there are jewels, clothes etc. in the subtle world? Can this be the secret of the subtle world?

T.L.P 87″जब सूक्ष्मवतन में जवाहरात कपड़ेआदि हो? सकते हैं सूक्ष्मवतन का राज है?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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हम सबने निर्णय लिया है कि हम पदमा पदम भाग्यशाली बनेंगे। उसके लिए हम रोजाना बाबा की मुरली का मंथन करेंगे, और मुरली का मंथन करके हम अपने आप को श्रेष्ठ भाग्यवान बनाएँगे।

आज के लिए जो मुरली मंथन का विषय है:
जब सूक्ष्म वतन में जवाहरात, कपड़े आदि हो सकते हैं।

सूक्ष्म वतन का राज क्या है?
क्या भाई जी सूक्ष्म वतन में भी कपड़े, जवाहरात हो सकते हैं?
जैसे सूक्ष्म वतन में सूक्ष्म शरीर है ना, उस तरह से सूक्ष्म वतन में भी सूक्ष्म चीज़ें हो सकती हैं, दिख सकती हैं।

होने में और दिखने में अंतर है।
कोई नेचुरल में नहीं, पर दिख सकते हैं।
दिख सकते हैं, होना नहीं।
दिखने में और होने में अंतर — इस बात को हमें अपनी बुद्धि के अंदर बहुत अच्छी तरह से समझ कर रखना है।

दिख सकते हैं, सज सकते हैं, तो दिख सकते हैं।
शरीर होता नहीं, कपड़े दिख सकते हैं, दिखाई देंगे।
हाँ, होंगे नहीं।
जैसे शरीर दिखाई नहीं देता ना — सूक्ष्म शरीर होता नहीं है, सिर्फ दिखाई देता है।
ऐसे ही दिखाई देंगे, होंगे नहीं।

सूक्ष्म वतन में भौतिक वस्तुएँ जैसे कि जवाहरात आदि नहीं होते।
इसलिए ब्रह्मा को सफेद पोशाक में, ब्राह्मण रूप में दिखाया गया है।
श्रृंगार आदि वहाँ संभव नहीं, परंतु चित्रों में इसे प्रतीकात्मक रूप में दर्शाया गया है।

बाबा ने जितने भी संदेश दिए हैं, उनमें दिखाया कि — “मैं तुम्हारा रोज़ाना श्रृंगार करता हूँ।”
देखो मेरा म्यूजियम — तो दादी गुलजार जाकर म्यूजियम देखती हैं, तो उसमें सारे कहते — “इसमें तो हम खड़े हैं।”
दादी पूछती हैं बाबा से — “इसमें तो हम खड़े हैं?”
बाबा कहते हैं — “हाँ, मैं तुम्हें तो श्रृंगारित करता हूँ।”

फिर दादी कहती — “मुझे तो सारे एक जैसे दिखाई दे रहे हैं।”
बाबा ने कहा — “अब देखो।”
तो दादी को दिखाई देने लगा — किसी के श्रृंगार में कुछ रत्न लगे हुए थे, कुछ श्रृंगार किया हुआ था, किसी में अधूरा श्रृंगार था।

मतलब कहने का है कि — इसी मुरली को देख कर यह प्रश्न खड़ा हुआ है कि ऊपर (सूक्ष्म वतन में) ये सब चीज़ें होती हैं क्या?
क्या बाबा सचमुच रत्न, हीरे, जवाहरात दिखाते हैं?
तो बाबा ने मुरली में कहा है — वहाँ वास्तव में कुछ नहीं है।

जैसे तुम वहाँ गए हो — वहाँ कोई रस नहीं है, कोई पानी नहीं है, फिर भी बाबा कहता है — “तुमने पी लिया है।”

तो चित्रों में इसे प्रतीकात्मक रूप में दर्शाया जाता है।
बाबा साक्षात्कार कराकर उसका आध्यात्मिक अर्थ समझाते हैं।
बाबा चित्रों को दिखाता है, फिर उनका आध्यात्मिक रहस्य समझाता है।
केवल दिखाई देता है साक्षात्कार में।

यह साकार मुरली है — 9 नवंबर 2005 की, जो रिवाइज़ हुई थी।

सूक्ष्म वतन में यह बातें होती नहीं।
ना जवाहरात आदि होते हैं, हो सकते हैं।
इसलिए ब्रह्मा को सफेद पोशाक में ब्राह्मण दिखाया गया है।
सूक्ष्म वतन में श्रृंगार आदि होना नहीं चाहिए, परंतु चित्रों में दिखाया गया है।

तो बाबा उसका साक्षात्कार कराए, फिर उसका अर्थ समझाते हैं।
चित्रों को दिखाकर उनका साक्षात्कार करा के, फिर अर्थ समझाते हैं।

हम सबने निर्णय लिया है कि हम पदमा पदम भाग्यशाली बनेंगे। उसके लिए हम रोजाना बाबा की मुरली का मंथन करेंगे, और मुरली का मंथन करके हम अपने आप को श्रेष्ठ भाग्यवान बनाएँगे।

🌟 **आज का मुरली मंथन विषय: “जब सूक्ष्म वतन में जवाहरात, कपड़े आदि हो सकते हैं” 🌟


प्रश्न 1: क्या सूक्ष्म वतन में वास्तव में कपड़े, जवाहरात, श्रृंगार आदि होते हैं?

उत्तर:नहीं, सूक्ष्म वतन में ऐसी भौतिक वस्तुएँ “होती नहीं हैं”, लेकिन “दिखाई दे सकती हैं”। यह सब साक्षात्कार की अनुभूति में होता है। वहाँ कपड़े, रत्न, श्रृंगार आदि की वास्तविक उपस्थिति नहीं होती, परंतु आत्मा की स्थिति के आधार पर वे सूक्ष्म रूप से दिख सकते हैं।


प्रश्न 2: फिर जब बाबा कहता है कि “मैं तुम्हारा श्रृंगार करता हूँ”, तो उसका क्या अर्थ है?

उत्तर:यह एक आध्यात्मिक अनुभव है। बाबा आत्मा के गुणों और शक्तियों का श्रृंगार करते हैं — ज्ञान, पवित्रता, प्रेम, शक्ति आदि से। वह श्रृंगार बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक दिव्यता का होता है, जो साक्षात्कार के रूप में दिखाई देता है।


प्रश्न 3: अगर सूक्ष्म वतन में कुछ “होता” नहीं है, तो फिर “दिखाई” कैसे देता है?

उत्तर:जैसे वहाँ सूक्ष्म शरीर होता नहीं, लेकिन दिखाई देता है, वैसे ही कपड़े, रत्न, श्रृंगार भी होते नहीं, पर बुद्धि के दिव्य नेत्रों द्वारा दिखाई देते हैं। यह दिखना किसी मूर्त रूप में नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभूति होती है।


प्रश्न 4: दादी गुलज़ार को जो दृश्य दिखे — उसमें श्रृंगार वाले और अधूरे श्रृंगार वाले कौन थे?

उत्तर:यह बाबा ने आत्माओं की पुरुषार्थ स्थिति दिखाने के लिए कराया। जो आत्माएँ अधिक योगयुक्त और सच्चे ब्राह्मण जीवन में आगे थीं, उन्हें सुंदर श्रृंगारित रूप में दिखाया गया। और जिनका पुरुषार्थ अधूरा था, उनका श्रृंगार भी अधूरा दिखाई दिया। यह एक प्रकार से आत्मा की आंतरिक स्थिति का प्रतीकात्मक दर्शन था।


प्रश्न 5: बाबा जब कहता है — “तुमने रस पी लिया है”, जबकि वहाँ कुछ होता नहीं — इसका क्या अर्थ है?

उत्तर:यह बाबा की रूहानी अनुभूतियों की भाषा है। वहाँ कोई भौतिक रस या पानी नहीं, परंतु आत्मा को जो आनंद, शांति और प्रेम की अनुभूति होती है, वह रस के समान मधुर अनुभव देती है। इसलिए बाबा उसे रस पीना कहते हैं।


प्रश्न 6: चित्रों में जो श्रृंगार या वस्त्र दिखाए जाते हैं, वह सत्य है या प्रतीक?

उत्तर:वह सब प्रतीकात्मक है। बाबा उन चित्रों द्वारा आत्मा की स्थिति को दिखाते हैं — कि यह आत्मा कितनी पावन, श्रेष्ठ, दिव्य है। चित्र माध्यम बनते हैं, पर बाबा उसका आध्यात्मिक अर्थ समझाते हैं।


प्रश्न 7: सूक्ष्म वतन को सही तरह से समझने के लिए हमें क्या ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर:हमें यह स्पष्ट समझना चाहिए कि सूक्ष्म वतन दृश्य अनुभूति का क्षेत्र है, ना कि भौतिक अस्तित्व का क्षेत्र। वहाँ दिखना — “साक्षात्कार” — होता है, पर वह वस्तुएँ वास्तव में नहीं होतीं। यह अंतर — होने में और दिखने में — हमारी बुद्धि में साफ़ और अचल रूप से बैठना चाहिए।


✨ निष्कर्ष (Essence):

बाबा हमें अनुभव कराते हैं — दृश्य नहीं, पर दिव्य अनुभूति
श्रृंगार नहीं, पर गुणों का तेज
कपड़े नहीं, पर पावन स्वरूप
रत्न नहीं, पर सत्य गुणों की चमक

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