Satya Yuga-(17)”Womb Palace and Divinity of Conception in Satya Yuga”

सतयुग-(17)”सतयुग में गर्भ महल और गर्भ धारण की दिव्यता”

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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सत्ययुग में गर्भ महल और गर्भ धारण की दिव्यता

ब्रह्माकुमारीज़ के ज्ञान के अनुसार, सत्ययुग और त्रेतायुग (जिसे स्वर्ग या देवी-देवताओं का युग कहा जाता है) में गर्भ धारण की प्रक्रिया आज की तरह नहीं होती थी।

वहाँ आत्माएँ पवित्र और पूर्ण थीं, और जन्म लेने की विधि दिव्य थी।सत्ययुग में गर्भ धारण कैसे होता था?

योगबल से दिव्य संकल्प द्वारा गर्भ धारण सत्ययुग में आत्माएँ पूरी तरह पवित्र होती थीं, इसलिए वहाँ जन्म देने की प्रक्रिया भी स्वाभाविक और कष्टहीन थी।

 माता-पिता अपनी संतान को योगबल और दिव्य संकल्प द्वारा आकर्षित करते थे।

यह एक प्राकृतिक और सुखद अनुभव होता था, जिसमें कोई पीड़ा या कठिनाई नहीं होती थी।

 दिव्य वातावरण और गर्भ महल सत्ययुग और त्रेतायुग में राजमहलों में “गर्भ महल” नामक विशेष स्थान होते थे, जहाँ रानी गर्भ धारण के समय विश्राम करती थी।

 यह एक अत्यंत शुद्ध और शांत जगह होती थी, जहाँ प्रकृति के सुंदर तत्वों से वातावरण संतुलित रहता था।पवित्रता और संस्कारों का प्रभाव

माता-पिता के पवित्र विचार और सतोप्रधान जीवनशैली से गर्भ में पल रही आत्मा भी श्रेष्ठ संस्कार लेकर जन्म लेती थी।

 गर्भवती माता को पूर्ण शांति और खुशी का अनुभव होता था।

 कलियुग में “गर्भ जेल” क्यों कहा जाता है?

आज के समय में गर्भधारण की प्रक्रिया पीड़ादायक और कष्टदायक मानी जाती है।

विकारों का प्रभाव:आज जन्म विकारों और शरीर के आकर्षण के आधार पर होता है, जिससे आत्मा को गर्भ में प्रवेश करना कठिन लगता है।

 शरीर और विकारों के कारण जन्म लेने की प्रक्रिया पीड़ादायक हो गई है।

अशुद्धता और अशांति का वातावरण:

आज के समय में गर्भधारण के दौरान माता अनेक तनावों और अशुद्ध विचारों से प्रभावित होती है, जिससे बच्चे के संस्कार भी प्रभावित होते हैं।

इसी कारण इसे “गर्भ जेल” कहा जाता है क्योंकि आत्मा को वहाँ नौ महीने एक सीमित, संकुचित और असहज स्थिति में रहना पड़ता है।

 सत्ययुग और कलियुग में अंतर विशेषता सत्ययुग (गर्भ महल) कलियुग (गर्भ जेल)

गर्भधारण की विधि योगबल और संकल्प से शारीरिक मिलन द्वारा

माता का अनुभव   पूर्ण आनंद, सुखद मानसिक तनाव और पीड़ापर्यावरण  शुद्ध, शांत, दिव्य   अशुद्ध, अशांत

संस्कारों का प्रभाव श्रेष्ठ, सतोप्रधान मिश्रित, विकारीजन्म की प्रकृति   बिना पीड़ा के, स्वाभाविक    कष्टदायक, पीड़ादायक

निष्कर्ष सत्ययुग में जन्म लेना सौभाग्य और दिव्यता का प्रतीक होता था, क्योंकि वहाँ आत्माएँ शुद्ध और सतोप्रधान होती थीं।

 संगमयुग में हम राजयोग के अभ्यास से अपनी आत्मा को फिर से पवित्र बनाकर सत्ययुग के योग्य बना सकते हैं।

जो आज योगबल से अपने संस्कार बदलेंगे, वे भविष्य में दिव्य जन्म का अनुभव करेंगे

तो आइए, योग और ज्ञान से अपनी आत्मा को फिर से सत्ययुग के योग्य बनाएँ!

सत्ययुग में गर्भ महल और गर्भ धारण की दिव्यता

प्रश्न 1: सत्ययुग में गर्भ धारण की प्रक्रिया कैसी होती थी?

उत्तर:सत्ययुग में गर्भ धारण का तरीका योगबल और दिव्य संकल्प द्वारा होता था। माता-पिता अपने पवित्र और सतोप्रधान जीवन से संतान को आकर्षित करते थे। यह प्रक्रिया प्राकृतिक और कष्टहीन होती थी, जिसमें कोई भी पीड़ा या कठिनाई नहीं होती थी।


प्रश्न 2: सत्ययुग में गर्भ महल का क्या महत्व था?

उत्तर:सत्ययुग में राजमहलों में “गर्भ महल” नामक विशेष स्थान होता था, जहाँ रानी गर्भधारण के समय विश्राम करती थीं। यह एक अत्यंत शुद्ध और शांत स्थान होता था, जहाँ प्रकृति के सुंदर तत्वों से वातावरण संतुलित रहता था, जिससे गर्भवती को पूर्ण शांति और सुखद अनुभव मिलता था।


प्रश्न 3: सत्ययुग में गर्भवती माता को कैसा अनुभव होता था?

उत्तर:सत्ययुग में गर्भवती माताओं को पूर्ण शांति और आनंद का अनुभव होता था। उनके जीवन में कोई मानसिक तनाव या पीड़ा नहीं होती थी, क्योंकि उनका वातावरण और संस्कार पूरी तरह से सतोप्रधान और पवित्र होते थे।


प्रश्न 4: कलियुग में गर्भधारण की प्रक्रिया को “गर्भ जेल” क्यों कहा जाता है?

उत्तर:कलियुग में गर्भधारण की प्रक्रिया पीड़ादायक और कष्टदायक मानी जाती है, क्योंकि आज की दुनिया में विकारों और अशुद्ध वातावरण का प्रभाव होता है। माँ पर मानसिक तनाव, अशुद्ध विचार, और शारीरिक विकार होते हैं, जो बच्चे के संस्कारों को भी प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि इसे “गर्भ जेल” कहा जाता है, क्योंकि आत्मा को वहाँ नौ महीने एक असहज और सीमित स्थिति में रहना पड़ता है।


प्रश्न 5: सत्ययुग और कलियुग में गर्भधारण में क्या अंतर है?

उत्तर:सत्ययुग और कलियुग में गर्भधारण की प्रक्रिया में मुख्य अंतर है:

  • सत्ययुग में गर्भधारण योगबल और संकल्प से होता है, वातावरण शुद्ध और शांत होता है, और जन्म बिना पीड़ा के स्वाभाविक होता है।

  • कलियुग में गर्भधारण शारीरिक मिलन द्वारा होता है, वातावरण अशुद्ध और अशांत होता है, और जन्म कष्टदायक और पीड़ादायक होता है।


प्रश्न 6: सत्ययुग के योग्य बनने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

उत्तर:संगमयुग में हम राजयोग के अभ्यास और ज्ञान के द्वारा अपनी आत्मा को फिर से पवित्र बना सकते हैं। जो आज योगबल से अपने संस्कार बदलेंगे, वे भविष्य में दिव्य और सुखद जन्म का अनुभव करेंगे और सत्ययुग के योग्य बनेंगे।


प्रश्न 7: सत्ययुग में जन्म लेना क्यों विशेष था?

उत्तर:सत्ययुग में जन्म लेना सौभाग्य और दिव्यता का प्रतीक था, क्योंकि वहाँ आत्माएँ पूरी तरह से शुद्ध और सतोप्रधान होती थीं। जन्म लेने की प्रक्रिया स्वाभाविक और कष्टहीन होती थी, और वातावरण भी शुद्ध और दिव्य था।


निष्कर्ष:सत्ययुग में गर्भधारण और जन्म लेना एक दिव्य अनुभव था, जिसमें पवित्रता, शांति, और आनंद की भावना होती थी। हम संगमयुग में अपने आत्मिक संस्कारों को शुद्ध करके, राजयोग के अभ्यास से सत्ययुग के योग्य बन सकते हैं और भविष्य में दिव्य जन्म का अनुभव कर सकते हैं।

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