MURLI 11-05-2025/BRAHMAKUMARIS

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(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

11-05-25
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज: 07-03-2005 मधुबन

“सम्पूर्ण पवित्रता का व्रत रखना और मैं पन को समर्पित करना ही शिवजयन्ती मनाना है”

आज विशेष शिव बाप अपने शालिग्राम बच्चों का बर्थ डे मनाने आये हैं। आप बच्चे बाप का जन्म दिन मनाने आये हो और बापदादा बच्चों का बर्थ डे मनाने आये हैं क्योंकि बाप का बच्चों से बहुत प्यार है। बाप अवतरित होते ही यज्ञ रचते हैं और यज्ञ में ब्राह्मणों के बिना यज्ञ सम्पन्न नहीं होता है इसलिए यह बर्थ डे अलौकिक है, न्यारा और प्यारा है। ऐसा बर्थ डे जो बाप और बच्चों का इकट्ठा हो यह सारे कल्प में न हुआ है, न कभी हो सकता है। बाप है निराकार, एक तरफ निराकार है दूसरे तरफ जन्म मनाते हैं। एक ही शिव बाप है जिसको अपना शरीर नहीं होता इसलिए ब्रह्मा बाप के तन में अवतरित होते हैं, यह अवतरित होना ही जयन्ती के रूप में मनाते हैं। तो आप सभी बाप का जन्म दिन मनाने आये हो वा अपना मनाने आये हो? मुबारक देने आये हो वा मुबारक लेने आये हो? यह साथ-साथ का वायदा बच्चों से बाप का है। अभी भी संगम पर कम्बाइण्ड साथ है, अवतरण भी साथ है, परिवर्तन करने का कार्य भी साथ है और घर परमधाम में चलने में भी साथ-साथ है। यह है बाप और बच्चों के प्यार का स्वरूप।

शिव जयन्ती भगत भी मनाते हैं लेकिन वह सिर्फ पुकारते हैं, गीत गाते हैं। आप पुकारते नहीं, आपका मनाना अर्थात् समान बनना। मनाना अर्थात् सदा उमंग-उत्साह से उड़ते रहना इसीलिए इसको उत्सव कहते हैं। उत्सव का अर्थ ही है उत्साह में रहना। तो सदा उत्सव अर्थात् उत्साह में रहने वाले हो ना! सदा है या कभी-कभी है? वैसे देखा जाए तो ब्राह्मण जीवन का श्वांस ही है – उमंग-उत्साह। जैसे श्वांस के बिना रह नहीं सकते हैं, ऐसे ब्राह्मण आत्मायें उमंग-उत्साह के बिना ब्राह्मण जीवन में रह नहीं सकते हैं। ऐसे अनुभव करते हो ना? देखो विशेष जयन्ती मनाने के लिए कहाँ-कहाँ से, दूर-दूर से भाग करके आये हैं। बापदादा को अपने जन्म दिन की इतनी खुशी नहीं है जितनी बच्चों के जन्म दिन की है इसलिए बापदादा एक-एक बच्चे को पदमगुणा खुशी की थालियां भर-भर के मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।

बापदादा को आज के दिन सच्चे भगत भी बहुत याद आ रहे हैं। वह व्रत रखते हैं एक दिन का और आपने व्रत रखा है सारे जीवन में सम्पूर्ण पवित्र बनने का। वह खाने का व्रत रखते हैं, आपने भी मन के भोजन व्यर्थ संकल्प, निगेटिव संकल्प, अपवित्र संकल्पों का व्रत रखा है। पक्का व्रत रखा है ना? यह डबल फारेनर्स आगे-आगे बैठे हैं। यह कुमार बोलो, कुमारों ने व्रत रखा है, पक्का? कच्चा नहीं। माया सुन रही है। सब झण्डियां हिला रहे हैं ना तो माया देख रही है, झण्डियां हिला रहे हैं। जब व्रत रखते हैं – पवित्र बनना ही है, तो व्रत रखना अर्थात् श्रेष्ठ वृत्ति बनाना। तो जैसी वृत्ति होती है वैसे ही दृष्टि, कृति स्वत: ही बन जाती है। तो ऐसा व्रत रखा है ना? पवित्र शुभ वृत्ति, पवित्र शुभ दृष्टि, जब एक दो को देखते हो तो क्या देखते हो? फेस को देखते हो या भृकुटी के बीच चमकती हुई आत्मा को देखते हो? कोई बच्चे ने पूछा कि जब बात करना होता है, काम करना होता है तो फेस को देख करके ही बात करनी पड़ती है, आंखों के तरफ ही नज़र जाती है, तो कभी-कभी फेस को देख करके थोड़ा वृत्ति बदल जाती है। बापदादा कहते हैं – आंखों के साथ-साथ भृकुटी भी है, तो भृकुटी के बीच आत्मा को देख बात नहीं कर सकते हैं! अभी बापदादा सामने बैठे बच्चों के आंखों में देख रहे हैं या भृकुटी में देख रहे हैं, मालूम पड़ता है? साथ-साथ ही तो है। तो फेस में देखो लेकिन फेस में भृकुटी में चमकता हुआ सितारा देखो। तो यह व्रत लो, लिया है लेकिन और अटेन्शन दो। आत्मा को देख बात करना है, आत्मा से आत्मा बात कर रहा है। आत्मा देख रहा है। तो वृत्ति सदा ही शुभ रहेगी और साथ-साथ दूसरा फायदा है जैसी वृत्ति वैसा वायुमण्डल बनता है। वायुमण्डल श्रेष्ठ बनाने से स्वयं के पुरुषार्थ के साथ-साथ सेवा भी हो जाती है। तो डबल फायदा है ना! ऐसी अपनी श्रेष्ठ वृत्ति बनाओ जो कैसा भी विकारी, पतित आपके वृत्ति के वायुमण्डल से परिवर्तन हो जाए। ऐसा व्रत सदा स्मृति में रहे, स्वरूप में रहे।

आजकल बापदादा ने बच्चों का चार्ट देखा, अपने वृत्ति से वायुमण्डल बनाने के बजाए कहाँ-कहाँ, कभी-कभी दूसरों के वायुमण्डल का प्रभाव पड़ जाता है। कारण क्या होता? बच्चे रूहरिहान में बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं, कहते हैं इसकी विशेषता अच्छी लगती है, इनका सहयोग बहुत अच्छा मिलता है, लेकिन विशेषता प्रभु की देन है। ब्राह्मण जीवन में जो भी प्राप्ति है, जो भी विशेषता है, सब प्रभु प्रसाद है, प्रभु देन है। तो दाता को भूल जाए, लेवता को याद करे…! प्रसाद कभी किसका पर्सनल गाया नहीं जाता, प्रभु प्रसाद कहा जाता है। फलाने का प्रसाद नहीं कहा जाता है। सहयोग मिलता है, अच्छी बात है लेकिन सहयोग दिलाने वाला दाता तो नहीं भूले ना! तो पक्का-पक्का बर्थ डे का व्रत रखा है? वृत्ति बदल गई है? सम्पन्न पवित्रता, यह सच्चा-सच्चा व्रत लेना वा प्रतिज्ञा करना। चेक करो – बड़े-बड़े विकार का व्रत तो रखा है लेकिन छोटे-छोटे उनके बाल-बच्चों से मुक्त हैं? वैसे भी देखो जीवन में प्रवृत्ति वालों का बच्चों से ज्यादा पोत्रे-धोत्रे से प्यार होता है। माताओं का प्यार होता है ना। तो बड़े बड़े रूप से तो जीत लिया लेकिन छोटे-छोटे सूक्ष्म स्वरूप में वार तो नहीं करते? जैसे कई कहते हैं – आसक्ति नहीं है लेकिन अच्छा लगता है। यह चीज़ ज्यादा अच्छी लगती है लेकिन आसक्ति नहीं है। विशेष अच्छा क्यों लगता? तो चेक करो छोटे-छोटे रूप में भी अपवित्रता का अंश तो नहीं रह गया है? क्योंकि अंश से कभी वंश पैदा हो सकता है। कोई भी विकार चाहे छोटे रूप में, चाहे बड़े रूप में आने का निमित्त एक शब्द का भाव है, वह एक शब्द है – “मैं”। बॉडी-कॉन्सेस का मैं। इस एक मैं शब्द से अभिमान भी आता है और अभिमान अगर पूरा नहीं होता तो क्रोध भी आता है क्योंकि अभिमान की निशानी है – वह एक शब्द भी अपने अपमान का सहन नहीं कर सकता, इसलिए क्रोध आ जाता। तो भगत तो बलि चढ़ाते हैं लेकिन आप आज के दिन जो भी हद का मैं पन हो, उसको बाप को देकर समर्पित करो। यह नहीं सोचो करना तो है, बनना तो है… तो तो नहीं करना। समर्थ हो और समर्थ बन समाप्ति करो। कोई नई बात नहीं है, कितने कल्प, कितने बार सम्पूर्ण बने हो, याद है? कोई नई बात नहीं है। कल्प-कल्प बने हो, बनी हुई बन रही है, सिर्फ रिपीट करना है। बनी को बनाना है, इसलिए कहा जाता है बना बनाया ड्रामा। बना हुआ है सिर्फ अभी रिपीट करना अर्थात् बनाना है। मुश्किल है कि सहज है? बापदादा समझते हैं संगमयुग का वरदान है – सहज पुरुषार्थ। इस जन्म में सहज पुरुषार्थ के वरदान से 21 जन्म सहज जीवन स्वत: ही प्राप्त होगी। बाप-दादा हर बच्चे को मेहनत से मुक्त करने आये हैं। 63 जन्म मेहनत की, एक जन्म परमात्म प्यार, मुहब्बत से मेहनत से मुक्त हो जाओ। जहाँ मुहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं, जहाँ मेहनत है वहाँ मुहब्बत नहीं। तो बापदादा सहज पुरुषार्थी भव का वरदान दे रहा है और मुक्त होने का साधन है – मुहब्बत, बाप से दिल का प्यार। प्यार में लवलीन और महा यंत्र है – मनमनाभव का मंत्र। तो यंत्र को काम में लगाओ। काम में लगाना तो आता है ना! बापदादा ने देखा संगमयुग में परमात्म प्यार द्वारा, बापदादा द्वारा कितनी शक्तियां मिली हैं, गुण मिले हैं, ज्ञान मिला है, खुशी मिली है, इन सब प्रभु देन को, खजानों को समय पर कार्य में लगाओ।

तो बापदादा क्या चाहते हैं, सुना? हर एक बच्चा सहज पुरुषार्थी, सहज भी, तीव्र भी। दृढ़ता को यूज़ करो। बनना ही है, हम नहीं बनेंगे तो कौन बनेगा। हम ही थे, हम ही हैं और हर कल्प हम ही होंगे। इतना दृढ़ निश्चय स्वयं में धारण करना ही है। करेंगे नहीं कहना, करना ही है। होना ही है। हुआ पड़ा है।

बापदादा देश विदेश के बच्चों को देख खुश है। लेकिन सिर्फ आप सामने सम्मुख वालों को नहीं देख रहे हैं, चारों ओर के देश और विदेश के बच्चों को देख रहे हैं। मैजारिटी जहाँ-तहाँ से बर्थ डे की मुबारकें आई हैं, कार्ड भी मिले हैं, ई-मेल भी मिले हैं, दिल का संकल्प भी मिला है। बाप भी बच्चों के गीत गाते हैं, आप लोग गीत गाते हो ना – बाबा आपने कर दी कमाल, तो बाप भी गीत गाते हैं मीठे बच्चों ने कर दी कमाल। बापदादा सदा कहते हैं कि आप तो सम्मुख बैठे हो लेकिन दूर वाले भी बापदादा के दिल पर बैठे हैं। आज चारों ओर बच्चों के संकल्प में है – मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। बापदादा के कानों में आवाज पहुंच रहा है और मन में संकल्प पहुंच रहे हैं। यह निमित्त कार्ड हैं, पत्र हैं लेकिन बहुत बड़े हीरे से भी ज्यादा मूल्यवान गिफ्ट हैं। सभी सुन रहे हैं, हर्षित हो रहे हैं। तो सभी ने अपना बर्थ डे मना लिया। चाहे दो साल का हो, चाहे एक साल का हो, चाहे एक सप्ताह का हो, लेकिन यज्ञ की स्थापना का बर्थ डे है। तो सभी ब्राह्मण यज्ञ निवासी तो हैं ही, इसलिए सभी बच्चों को बहुत-बहुत दिल का यादप्यार भी है, दुआयें भी हैं, सदा दुआओं में ही पलते रहो, उड़ते रहो। दुआयें देना और लेना सहज है ना! सहज है? जो समझते हैं सहज है, वह हाथ उठाओ। झण्डियां हिलाओ। तो दुआयें छोड़ते तो नहीं? सबसे सहज पुरुषार्थ ही है – दुआयें देना, दुआयें लेना। इसमें योग भी आ जाता, ज्ञान भी आ जाता, धारणा भी आ जाती, सेवा भी आ जाती। चारों ही सबजेक्ट आ जाती हैं दुआयें देने और लेने में।

तो डबल फारेनर्स दुआयें देना और लेना सहज है ना! सहज है? 20 साल वाले जो आये हैं वह हाथ उठाओ। आपको तो 20 साल हुए हैं लेकिन बापदादा आप सबको पदम गुणा मुबारक दे रहे हैं। कितने देशों के आये हैं? (69 देशों के) मुबारक हो। 69 वाँ बर्थ डे मनाने के लिए 69 देशों से आये हैं। कितना अच्छा है। आने में तकलीफ तो नहीं हुई ना। सहज आ गये ना! जहाँ मुहब्बत है वहाँ कुछ मेहनत नहीं। तो आज का विशेष वरदान क्या याद रखेंगे? सहज पुरुषार्थी। सहज कार्य जल्दी-जल्दी किया ही जाता है। मेहनत का काम मुश्किल होता है ना तो टाइम लगता है। तो सभी कौन हो? सहज पुरुषार्थी। बोलो, याद रखना। अपने देश में जाके मेहनत में नहीं लग जाना। अगर कोई मेहनत का काम आवे भी तो दिल से कहना, बाबा, मेरा बाबा, तो मेहनत खत्म हो जायेगी। अच्छा। मना लिया ना! बाप ने भी मना लिया, आपने भी मना लिया। अच्छा।

अभी एक सेकण्ड में ड्रिल कर सकते हो? कर सकते हो ना! अच्छा। (बापदादा ने ड्रिल कराई)

चारों ओर के सदा उमंग-उत्साह में रहने वाले श्रेष्ठ बच्चों को, सदा सहज पुरुषार्थी संगमयुग के सर्व वरदानी बच्चों को, सदा बाप और मैं आत्मा इसी स्मृति से मैं बोलने वाले, मैं आत्मा, सदा सर्व आत्माओं को अपने वृत्ति से वायुमण्डल का सहयोग देने वाले ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार, दुआयें, मुबारक और नमस्ते।

डबल विदेशी बड़ी बहिनों से:- सभी ने मेहनत अच्छी की है। ग्रुप-ग्रुप बनाया है ना तो मेहनत अच्छी की है। और यहाँ वायुमण्डल भी अच्छा है, संगठन की भी शक्ति है, तो सबको रिफ्रेशमेंट अच्छी मिल जाती है और आप निमित्त बन जाते हो। अच्छा है। दूर-दूर रहते हैं ना, तो संगठन की जो शक्ति होती है वह भी बहुत अच्छी है। इतना सारा परिवार इकट्ठा होता है तो हर एक की विशेषता का प्रभाव तो पड़ता है। अच्छा प्लैन बनाया है। बापदादा खुश है। सबकी खुशबू आप ले लेते हो। वह खुश होते हैं आपको दुआयें मिलती हैं। अच्छा है, यह जो सभी इकट्ठे हो जाते हो यह बहुत अच्छा है, आपस में लेन देन भी हो जाती है और रिफ्रेशमेंट भी हो जाती है। एक दो की विशेषता जो अच्छी पसन्द आती है, उसको यूज़ करते हैं, इससे संगठन अच्छा हो जाता है। यह ठीक है।

सेन्टर वासी भाई बहिनों से:- (सभी बैनर दिखा रहे हैं, उस पर लिखा है – प्रेम और दया की ज्योति जगा कर रखेंगे) बहुत अच्छा संकल्प लिया है। अपने पर भी दया दृष्टि, साथियों के ऊपर भी दया दृष्टि और सर्व के ऊपर भी दया दृष्टि। ईश्वरीय लव चुम्बक है, तो आपके पास ईश्वरीय लव का चुम्बक है। किसी भी आत्मा को ईश्वरीय लव के चुम्बक से बाप का बना सकते हो। बापदादा सेन्टर पर रहने वालों को विशेष दिल की दुआयें देते हैं, जो आप सभी ने विश्व में नाम बाला किया है। कोने-कोने में ब्रह्माकुमारीज़ का नाम तो फैलाया है ना! और बापदादा को बहुत अच्छी बात लगती है कि जैसे डबल विदेशी हो, वैसे डबल जॉब करने वाले हो। मैजारिटी लौकिक जॉब भी करते हैं तो अलौकिक जॉब भी करते हैं और बापदादा देखते हैं, बापदादा की टी.वी. बहुत बड़ी है, ऐसी बड़ी टी.वी. यहाँ नहीं है। तो बापदादा देखते हैं कैसे फटाफट क्लास करते, नाश्ता खड़े-खड़े करते, जॉब में टाइम पर पहुंचते, कमाल करते हैं। बापदादा देखते-देखते दिल का प्यार देते रहते हैं। बहुत अच्छा, सेवा के निमित्त बने हो और निमित्त बनने की गिफ्ट बाप सदा विशेष दृष्टि देते रहते हैं। बहुत अच्छा लक्ष्य रखा है, अच्छे हो, अच्छे रहेंगे, अच्छे बनायेंगे। अच्छा।

वरदान:- सर्व खजानों की इकॉनामी का बजट बनाने वाले महीन पुरुषार्थी भव
जैसे लौकिक रीति में यदि इकॉनामी वाला घर न हो तो ठीक रीति से नहीं चल सकता। ऐसे यदि निमित्त बने हुए बच्चे इकॉनामी वाले नहीं हैं तो सेन्टर ठीक नहीं चलता। वह हुई हद की प्रवृत्ति, यह है बेहद की प्रवृत्ति। तो चेक करना चाहिए कि संकल्प, बोल और शक्तियों में क्या-क्या एक्स्ट्रा खर्च किया? जो सर्व खजानों की इकॉनामी का बजट बनाकर उसी अनुसार चलते हैं उन्हें ही महीन पुरुषार्थी कहा जाता है। उनके संकल्प, बोल, कर्म व ज्ञान की शक्तियां कुछ भी व्यर्थ नहीं जा सकती।
स्लोगन:- स्नेह के खजाने से मालामाल बन सबको स्नेह दो और स्नेह लो।

 

अव्यक्त इशारे – रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो

पवित्रता की शक्ति परमपूज्य बनाती है। पवित्रता की शक्ति से इस पतित दुनिया को परिवर्तन करते हो। पवित्रता की शक्ति विकारों की अग्नि में जलती हुई आत्माओं को शीतल बना देती है। आत्मा को अनेक जन्मों के विकर्मों के बन्धन से छुड़ा देती है। पवित्रता के आधार पर द्वापर से यह सृष्टि कुछ न कुछ थमी हुई है। इसके महत्व को जानकर पवित्रता के लाइट का क्राउन धारण कर लो।

शीर्षक: “सम्पूर्ण पवित्रता का व्रत रखना और मैं-पन को समर्पित करना ही सच्ची शिव जयन्ती मनाना है”

प्रश्नोत्तर (Questions & Answers):


प्रश्न 1: शिव जयन्ती को “अलौकिक” और “न्यारी” क्यों कहा गया है?

उत्तर:क्योंकि यह एक ऐसा बर्थडे है जहाँ स्वयं निराकार शिव बाबा, ब्रह्मा के तन में अवतरित होकर अपने बच्चों का भी जन्मदिन मनाते हैं। यह बाप और बच्चों का संयुक्त जन्म दिन है, जो पूरे कल्प में एक बार संगमयुग पर ही होता है।

प्रश्न 2: सच्चे ब्राह्मण शिव जयन्ती कैसे मनाते हैं?

उत्तर:सच्चे ब्राह्मण शिव जयन्ती को केवल गीत गाकर या पूजा करके नहीं मनाते, बल्कि बाप समान बनकर, सम्पूर्ण पवित्रता का आजीवन व्रत लेकर और “मैं” पन को समर्पित करके मनाते हैं। यही सच्ची शिव जयन्ती की पहचान है।

प्रश्न 3: पवित्रता का व्रत रखना किस रूप में समझाया गया है?

उत्तर:पवित्रता का व्रत केवल शारीरिक पवित्रता नहीं, बल्कि मन, बुद्धि और दृष्टि की सम्पूर्ण पवित्रता है। इसमें व्यर्थ संकल्पों, अपवित्र वृत्तियों और दृष्टियों का त्याग करके शुभ, निर्मल और आत्मिक दृष्टी धारण करना शामिल है।

प्रश्न 4: “मैं-पन” को समर्पित करने का क्या अर्थ है?

उत्तर:“मैं” अर्थात् देह-अभिमान और उससे उत्पन्न क्रोध, अहम, अपेक्षा आदि विकारों को समर्पित करके ‘मैं आत्मा’ की स्मृति में रहना। जब “मैं” समाप्त होता है, तब बाप समाया जाता है और सम्पूर्णता की यात्रा सहज बनती है।

प्रश्न 5: जब दृष्टि कभी नीचे गिर जाती है या आकर्षण होता है तो क्या करें?

उत्तर:बापदादा कहते हैं — चेहरा देखो, लेकिन चेहरों के मध्य भृकुटी में चमकती हुई आत्मा को देखो। आत्मा से आत्मा बात करो, यही पवित्र वृत्ति और दृष्टि का अभ्यास है। यही वृत्ति वायुमण्डल को भी शक्तिशाली बनाती है।

प्रश्न 6: सच्चे व्रत और पवित्र वृत्ति से सेवा कैसे होती है?

उत्तर:जब आत्मा शुभ वृत्ति और पवित्र संकल्प में रहती है, तो उसके चारों ओर ऐसा वायुमण्डल बनता है कि विकारी आत्माएं भी उससे प्रभावित होकर परिवर्तन के मार्ग पर चल पड़ती हैं। यह मौन सेवा का शक्तिशाली तरीका है।

प्रश्न 7: क्यों कहा गया कि विशेषता को देखकर ‘दाता’ को नहीं भूलना चाहिए?

उत्तर:क्योंकि ब्राह्मण जीवन की हर विशेषता, शक्ति, और सहयोग परमात्मा की देन है — यह प्रभु प्रसाद है। यदि हम किसी व्यक्ति को ही स्रोत मान लें, तो वह “मैं-पन” में आकर विकार उत्पन्न कर सकता है।

प्रश्न 8: सहज पुरुषार्थ का क्या अर्थ है?

उत्तर:सहज पुरुषार्थ का अर्थ है — बाप के प्यार और मुहब्बत में लवलीन होकर आत्मा को ऊँचा उड़ाना। जहाँ मुहब्बत होती है वहाँ मेहनत नहीं लगती। ऐसे सहज पुरुषार्थ से 21 जन्मों की सहजता स्वतः मिलती है।

प्रश्न 9: सच्चे ब्राह्मण का जीवन किस ‘श्वास’ पर चलता है?

उत्तर:ब्राह्मण जीवन का श्वास है — उमंग और उत्साह। जैसे श्वास के बिना जीवन नहीं, वैसे उमंग-उत्साह के बिना ब्राह्मण जीवन नहीं।

प्रश्न 10: शिव जयन्ती पर सबसे बड़ा तोहफा क्या देना है?

उत्तर:अपने “मैं-पन” को बाप को समर्पित करना — यही सबसे बड़ा तोहफा है। यही बलिदान सच्चा बलिदान है जो सच्ची शिव जयन्ती को सफल बनाता है।

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