A-p (31) The burden of sins on our heads: its test and identification

आत्मा-पदम (31)हमारे सिर पर पापों का बोझा: उसकी कसौटी और पहचान

A-p 31 “The burden of sins on our heads: its test and identification

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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हमारे सिर पर पापों का बोझा: उसकी कसौटी और पहचान

परिचय

हम कितने जन्मों से पाप करते आए हैं, हमने अपने सिर पर कितने पापों का बोझा रखा हुआ है, और इसे कैसे पहचानें? यह अध्याय इन्हीं प्रश्नों का उत्तर देगा और आत्मा की शुद्धि के मार्ग को स्पष्ट करेगा।

1. पापों का बोझा: परिभाषा और आरंभिक प्रभाव

पापों का बोझा वह भार है जो आत्मा पर उसके द्वारा किए गए विकर्मों से चढ़ता है। यह बोझ हमारे जीवन में दुख, अशांति और आत्मिक कमजोरी के रूप में प्रकट होता है। जैसे ही आत्मा कोई पाप करती है, उसका प्रभाव उसी क्षण आरंभ हो जाता है।

2. जंक और पापों के बोझ का अंतर

जंक आत्मा की अशुद्धता है, जो धीरे-धीरे उसके स्वरूप को बदल देती है। यह ठीक वैसे ही है जैसे धातु पर जंग लगती है। पाप तब होता है जब आत्मा किसी को दुख देती है या स्वयं को पतन की ओर ले जाती है।

3. देह-अभिमान और आत्मा की गिरती कला

जब आत्मा देह-अभिमान में आती है, तो उसकी आत्मिक शक्ति कम हो जाती है और वह गिरती कला में आ जाती है। देह-अभिमान आत्मा को उन्नति से रोकता है और विकारों की ओर ले जाता है।

4. आत्मा पर जंक का प्रभाव

जन्म-जन्मांतर से चढ़ने वाला जंक आत्मा को उसके मूल स्वरूप से दूर कर देता है। जब आत्मा परमात्मा को भूल जाती है, तो विकर्म बढ़ते जाते हैं और अशुद्धता का भार बढ़ता रहता है।

5. 63 जन्मों का पापों का बोझा

हमने केवल एक या दो जन्मों में पाप नहीं किए, बल्कि द्वापर युग से 63 जन्मों से पापों का संचय किया है। देह-अभिमान से उत्पन्न विकारों का प्रभाव हमें हर जन्म में भुगतना पड़ा है।

6. पाप और पुण्य की परिभाषा

पाप: जिससे स्वयं को और दूसरों को दुख मिले। पुण्य: जिससे स्वयं और सभी को सुख मिले।

7. बाप से दिल लगाना या देह-धारियों से?

यदि हमारी दिल बाप से लगी हुई है, तो हमारा प्रेम और ध्यान परमात्मा में रहेगा। यदि मन बार-बार किसी व्यक्ति की ओर जाता है, तो यह देह-अभिमान का संकेत है।

8. कर्म संबंधियों की याद और आत्म निरीक्षण

हमें यह देखना है कि कर्म संबंधियों की याद हमें किस दिशा में ले जा रही है। यह आत्मा को ऊँचा उठाने वाली है या नीचे गिराने वाली? आत्म-निरीक्षण करना आवश्यक है।

9. योग में पवित्रता का महत्व

योग में पवित्रता का बहुत अधिक महत्व है। आत्मा को अपनी शक्ति प्राप्त करने के लिए पवित्र बनना आवश्यक है। जब आत्मा पवित्र होती है, तभी वह परमात्मा के साक्षात्कार का अनुभव कर सकती है।

10. देह-अभिमान और देह-भान में अंतर

देह-भान: शरीर की पहचान को समझना, जैसे पुरुष या स्त्री का भान। देह-अभिमान: अपने शरीर की विशेषताओं पर गर्व करना, जैसे “मैं सुंदर हूँ,” “मैं शक्तिशाली हूँ” आदि।

11. बाप की याद से पापों का बोझा उतारने की विधि

बाबा ने हमें योगबल द्वारा पापों का बोझा उतारने की विधि सिखाई है। जब आत्मा निरंतर बाप की याद में रहती है, तो पुराने विकर्म जलकर समाप्त हो जाते हैं।

12. सतोप्रधान और तमोप्रधान आत्मा

सतोप्रधान आत्मा: पुण्य कर्म करती है और दूसरों को सुख देती है। तमोप्रधान आत्मा: देह-अभिमान में रहती है और दुख देने वाले कर्म करती है।

13. पुण्य आत्मा और पाप आत्मा की परिभाषा

पुण्य आत्मा: जो आत्म-भाव से व्यवहार करती है और सबको सुख देती है। पाप आत्मा: जो देह-भाव से व्यवहार करती है और दूसरों को दुख पहुँचाती है।

14. पवित्रता और आत्मा की मुक्ति

परमात्मा की याद और पवित्रता के अभ्यास से आत्मा अपने पापों के बोझ को हल्का कर सकती है और अपने मूल स्वरूप में स्थित हो सकती है। यही आत्मा की सच्ची मुक्ति है।

हमारे सिर पर पापों का बोझा: उसकी कसौटी और पहचान

1. प्रश्न -पापों का बोझा क्या है और इसका आत्मा पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: पापों का बोझा आत्मा पर किए गए विकर्मों का संचित भार है। यह आत्मा को अशांत, कमजोर और दुखी बना देता है। जैसे-जैसे पाप बढ़ते जाते हैं, आत्मा अपनी मूल शांति और आनंद से दूर हो जाती है।

2. प्रश्न -जंक और पापों के बोझ में क्या अंतर है?

उत्तर: जंक आत्मा की अशुद्धता है, जो धीरे-धीरे उसे कमजोर बनाती है, जैसे धातु पर जंग लगती है। पाप तब होता है जब आत्मा किसी को दुख देती है या स्वयं को पतन की ओर ले जाती है।

3. प्रश्न -देह-अभिमान आत्मा की गिरती कला का कारण कैसे बनता है?

उत्तर: जब आत्मा देह-अभिमान में आ जाती है, तो वह अपनी आत्मिक शक्ति खो देती है और विकारों में गिर जाती है। यह उन्नति को रोकता है और आत्मा को संसारिक बंधनों में उलझा देता है।

4.प्रश्न – आत्मा पर जंक का प्रभाव क्या होता है?

उत्तर: जन्म-जन्मांतर से चढ़ने वाला जंक आत्मा को उसके मूल स्वरूप से दूर कर देता है। परमात्मा को भूलने से विकर्म बढ़ते जाते हैं, जिससे अशुद्धता का भार और बढ़ता है।

5.प्रश्न – हम 63 जन्मों से पापों का बोझ क्यों ढो रहे हैं?

उत्तर: द्वापर युग से आत्मा ने देह-अभिमान में आकर पाप कर्म किए हैं, जिससे 63 जन्मों से यह बोझ बढ़ता जा रहा है। हर जन्म में विकारों के प्रभाव से आत्मा दुख भोगती रही है।

6. प्रश्न -पाप और पुण्य की परिभाषा क्या है?

उत्तर:

  • पाप: जिससे स्वयं को और दूसरों को दुख मिले।
  • पुण्य: जिससे स्वयं और सबको सुख मिले।

7.प्रश्न – बाप से दिल लगाना और देह-धारियों से दिल लगाने में क्या अंतर है?

उत्तर: यदि हमारी दिल परमात्मा से लगी हुई है, तो हमारा प्रेम और ध्यान केवल उसमें रहेगा। लेकिन यदि मन बार-बार किसी व्यक्ति की ओर जाता है, तो यह देह-अभिमान का संकेत है।

8.प्रश्न – कर्म संबंधियों की याद का आत्मा पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: यदि कर्म संबंधियों की याद आत्मा को ऊपर उठाने वाली है, तो यह लाभकारी है। लेकिन यदि यह मोह या अशुद्धता को बढ़ाती है, तो यह आत्मा को गिराने का कारण बनती है।

9. प्रश्न -योग में पवित्रता का क्या महत्व है?

उत्तर: पवित्रता आत्मा की शक्ति का आधार है। जब आत्मा पवित्र होती है, तभी वह परमात्मा की याद में टिक सकती है और साक्षात्कार का अनुभव कर सकती है।

10.प्रश्न – देह-अभिमान और देह-भान में क्या अंतर है?

उत्तर:

  • देह-भान: शरीर की पहचान को समझना, जैसे पुरुष या स्त्री का भान।
  • देह-अभिमान: अपने शरीर की विशेषताओं पर गर्व करना, जैसे “मैं सुंदर हूँ” या “मैं शक्तिशाली हूँ।”

11.प्रश्न – बाप की याद से पापों का बोझा उतारने की विधि क्या है?

उत्तर: योगबल से आत्मा अपने विकर्मों को समाप्त कर सकती है। जब आत्मा निरंतर बाप की याद में रहती है, तो पाप जलकर समाप्त हो जाते हैं और आत्मा हल्की हो जाती है।

12.प्रश्न – सतोप्रधान और तमोप्रधान आत्मा में क्या अंतर है?

उत्तर:

  • सतोप्रधान आत्मा: पुण्य कर्म करती है और दूसरों को सुख देती है।
  • तमोप्रधान आत्मा: देह-अभिमान में रहती है और दुख देने वाले कर्म करती है।

13.प्रश्न – पुण्य आत्मा और पाप आत्मा की परिभाषा क्या है?

उत्तर:

  • पुण्य आत्मा: जो आत्म-भाव से व्यवहार करती है और सबको सुख देती है।
  • पाप आत्मा: जो देह-भाव से व्यवहार करती है और दूसरों को दुख पहुँचाती है।

14. प्रश्न -पवित्रता और आत्मा की मुक्ति में क्या संबंध है?

उत्तर: परमात्मा की याद और पवित्रता के अभ्यास से आत्मा अपने पापों के बोझ को हल्का कर सकती है और अपने मूल स्वरूप में स्थित हो सकती है। यही आत्मा की सच्ची मुक्ति है।

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