अंगद
(किष्किंधा कांड, रामायण)
अंगद बाली का पुत्र था। वह बहुत समझदार, धार्मिक और शक्तिशाली व्यक्ति था। श्रीरामजी का असीम भक्त था और सुग्रीव (वाली का छोटा भाई) के राज्य में बहुत वफादारी से सेवा करता था। जब सीता को रावण ने चुराया तब अंगद को श्रीरामजी का दूत बनाकर भेजने का निर्णय लिया गया। अंगद रामदूत बनकर रावण की सभा में प्रविष्ट हुआ। अंगद ने बहुत ही नम्रता से रावण को समझाया कि उसने सीता का अपहरण करके बहुत बड़ा पाप किया है इसलिए अपना अपराध स्वीकार कर, सीताजी को छोड़, श्रीरामजी की शरण में आ जाए। घमण्डी रावण ने अंगद को कहा कि वह उन्हें एक क्षण में उठा फेंकेगा। तब अंगद ने रावण को ललकारते हुए कहा कि इतनी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है। अगर वह अपनी शक्ति बताना चाहता है तो उनका एक पैर ही हिलाकर दिखाए। सभा में उपस्थित सभी राक्षस वीरों ने अंगद का पैर हिलाने का भरसक प्रयास किया परन्तु असमर्थ रहे। आखिर में जब रावण अंगद के पैर पकड़कर हिलाने के लिए आगे बढ़ा तो अंगद ने कहा – “हे रावण! मेरे पाँव पकड़ने की बजाए यदि श्रीराम की शरण लोगे तो पुण्य आत्मा बन जाओगो”।
आध्यात्मिक भाव: – “निश्चयबुद्धि विजयन्ति” – अंगद की कहानी इस मन्त्र का प्रत्यक्ष प्रमाण है। अंगद की अटूट भक्ति-भाव और सम्पूर्ण निश्चय श्रीराम में था इसलिए उनको कोई हिला नहीं सका। इसी तरह माया भी बुद्धि रूपी पाँव को हिलाने के लिए भिन्न भिन्न रूपों से, भिन्न भिन्न समय पर आती है। जो निश्चयबुद्धि हैं उनका माया कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती है।