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Atma-padam (49) Arrival of the soul from the Supreme Abode to the Golden Age

April 1, 2025June 3, 2025omshantibk07@gmail.com

A-P”49 आत्मा का परमधाम से सतयुग में आगमन

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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*ओम शांति*
कौन बनेगा पद्मा पदम पति? सभी ईश्वरीय ज्ञान पर अकर्म का खाता बनाएंगे। जितना अकर्म का खाता बनाएंगे, उतने पद्मों के पति बनेंगे, स्वामी बनेंगे। अब हमें कितने पद्म का स्वामी बनना है, कितने अकर्म के खाते बनाने हैं, यह हर एक आत्मा का अपना-अपना पार्ट है। यह एक अवसर है कि हम सभी बैठकर ज्ञान सागर का मंथन करें, ज्ञान की पॉइंट्स का मंथन करें, और जितना हमें समझ में आता जा रहा है, हमें खुशी हो रही है। हम इसे और अच्छी तरह से समझकर अपने जीवन में परिवर्तन लाएंगे और अपना भाग्य श्रेष्ठ लिख सकेंगे।

*आज का टॉपिक:* आत्मा का परमधाम से सतयुग में आगमन

सबसे पहली आत्मा परमधाम से सतयुग में आती है। हमें समझना होगा कि सतयुग किसे कहते हैं। क्योंकि आत्मा को कौन से सतयुग में आना है, यह भी हमें समझना होगा। सतयुग भी दो होते हैं—एक संगम पर सतयुग और दूसरा कल्प के आदि का सतयुग। संगम युग पर भी सतयुग होता है, जब उसमें सुधार आता है और जब बाबा ज्ञान देता है।

हमें यह भी समझना होगा कि सतयुग क्या है और क्यों इसे सतयुग कहा जाता है। सृष्टि चक्र में परिवर्तन आता है—सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। इन चारों युगों के चक्र को हमें ध्यान से समझना होगा ताकि हमें सही ज्ञान प्राप्त हो।

*आत्मा का परमधाम से आगमन*
जब आत्मा परमधाम से सतयुग में आती है, तो उसकी स्थिति एकदम पवित्र होती है, उसमें किसी भी प्रकार का दोष नहीं होता। परमधाम की अवस्था पूरी तरह से शांति और निर्विकार होती है। इसलिए जब आत्मा पहली बार पृथ्वी पर आती है, तो उसे कोई पूर्व स्मृति नहीं होती। वह पूरी तरह से शुद्ध और निर्विकार होती है।

विनाश के समय आत्माओं में बेहद का वैराग्य उत्पन्न हो जाता है, और जब सभी आत्माएं परमधाम लौट जाती हैं, तो पृथ्वी पर कोई आत्मा नहीं रहती। इस समय वातावरण में बहुत कम वाइब्रेशंस होते हैं, जिससे वातावरण शांत हो जाता है। जब आत्माएं वापस आना शुरू करती हैं, तो उनके विचारों की तरंगें वातावरण में हलचल उत्पन्न करती हैं और सृष्टि का चक्र पुनः आरंभ हो जाता है।

*शांति की प्रियता और आत्मा की भूमिका*
जब आत्माएं परमधाम से पृथ्वी पर आती हैं, तो वे शांति में रहना पसंद करती हैं। उनका वातावरण भी शांतिपूर्ण होता है। यह शांति आत्मा के दिव्य रूप को प्रकट करने में सहायक होती है। जैसे-जैसे आत्माएं अपने भाग्य के अनुसार कर्म करने लगती हैं, वातावरण में विचार तरंगों का विस्तार होता है।

*मेरिट सिस्टम और आत्माओं का क्रमबद्ध आगमन*
हर आत्मा की मेरिट यूनिक होती है। किसी दो आत्माओं को एक ही नंबर नहीं मिल सकता। परमधाम से पृथ्वी पर सबसे पहले वही आत्मा आती है, जिसकी मेरिट सबसे अधिक होती है। उसके बाद क्रमबद्ध रूप से बाकी आत्माएं आती जाती हैं।

पहली बार आने वाली आत्माओं को दो श्रेणियों में बांटा जाता है:
1. वे आत्माएं जिनका शरीर पहले से सुरक्षित था, जो अपने माता-पिता द्वारा पवित्रता से जन्मी थीं। वे अपनी याददाश्त के आधार पर अपने शरीर को धारण कर लेंगी।
2. वे आत्माएं जो गर्भ में प्रवेश करके जन्म लेंगी। उन्हें कोई बुला रहा है, ऐसा महसूस होगा और वे मां के गर्भ में प्रवेश करेंगी।

*निष्कर्ष*
आत्मा का परमधाम से सतयुग में आगमन एक शुद्ध और निर्दोष प्रक्रिया है। यह पूरी तरह से शांति और वैराग्य से जुड़ी होती है। जब आत्माएं अपने भाग्य के अनुसार कर्म करने लगती हैं, तो वातावरण में संतुलन और विचार तरंगों का विस्तार होता है।

ओम शांति। यदि इस विषय पर और अधिक जानकारी चाहिए, तो प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के किसी भी सेवा केंद्र पर संपर्क करें।

ओम शांति कौन बनेगा पद्मा पदम पति?

सभी ईश्वरीय ज्ञान पर अकर्म का खाता बनाएंगे। जितना अकर्म का खाता बनाएंगे, उतने पद्मों के पति बनेंगे, स्वामी बनेंगे।


प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1:“पद्मा पदम पति” बनने का अर्थ क्या है?

उत्तर:“पद्मा पदम पति” बनने का अर्थ है आत्मा द्वारा ईश्वरीय ज्ञान को धारण करके, संपूर्ण निष्काम सेवा और योगबल द्वारा श्रेष्ठ भाग्य बनाना। जितना अकर्म का खाता बढ़ेगा, उतना ही आत्मा श्रेष्ठता प्राप्त करेगी और स्वर्णिम युग में उच्च पद की अधिकारी बनेगी।

प्रश्न 2:अकर्म का खाता क्या होता है, और इसे कैसे बनाया जाता है?

उत्तर:अकर्म का खाता वह दिव्य खाता है, जिसमें आत्मा ऐसा कर्म करती है, जो कर्मबंधन में नहीं आता। यह तब संभव होता है जब आत्मा निस्वार्थ भाव से सेवा में तत्पर होती है और हर कर्म को परमात्मा की आज्ञा अनुसार निष्काम भाव से करती है। इसे बनाने के लिए हमें योगबल को बढ़ाकर, संकल्पों को शुद्ध कर, और हर कर्म को ईश्वरीय रीति से करना होगा।

प्रश्न 3:सतयुग और संगमयुग के सतयुग में क्या अंतर है?

उत्तर:संगमयुग का सतयुग वह अवस्था है, जब आत्मा संगमयुग पर अपने संस्कारों को शुद्ध कर, दिव्यता को धारण कर लेती है और स्वर्णिम संकल्पों में स्थित हो जाती है।
कल्प के आदि का सतयुग वह समय है, जब नई सृष्टि आरंभ होती है और सभी आत्माएं परमधाम से पृथ्वी पर आकर पवित्र और दिव्य जीवन जीती हैं।

प्रश्न 4:सृष्टि चक्र में आत्मा का परमधाम से सतयुग में कैसे आगमन होता है?

उत्तर:जब कल्प का अंत होता है, तब सभी आत्माएँ अपने-अपने कर्मों के अनुसार परमधाम में चली जाती हैं। फिर, नए सृष्टि चक्र के आरंभ में, सबसे पहले वे आत्माएँ पृथ्वी पर आती हैं, जिनकी मेरिट सर्वश्रेष्ठ होती है। ये आत्माएँ पवित्र, शुद्ध और दिव्यता से भरपूर होती हैं।

प्रश्न 5:परमधाम से आत्मा के आगमन का क्रम कैसे तय होता है?

उत्तर:परमधाम से आत्माओं का क्रम मेरिट सिस्टम के आधार पर तय होता है। सबसे पहले वे आत्माएँ आती हैं, जिनकी आत्मिक स्थिति सबसे श्रेष्ठ होती है। जैसे-जैसे क्रमबद्ध रूप से अन्य आत्माएँ आती जाती हैं, वे अपने-अपने संस्कारों और भाग्य के अनुसार जीवन का अनुभव करती हैं।

प्रश्न 6:परमधाम से आने वाली आत्माओं की दो मुख्य श्रेणियाँ कौन-सी होती हैं?

उत्तर:

  1. वे आत्माएँ जिनका शरीर पहले से सुरक्षित था – ये आत्माएँ अपने पुराने शरीर में पुनः प्रवेश करके नई सृष्टि में अपना भाग्य बनाती हैं।

  2. वे आत्माएँ जो गर्भ में प्रवेश करके जन्म लेती हैं – इन्हें उनके माता-पिता के संकल्प और कर्म अनुसार बुलाया जाता है, और वे नए शरीर में प्रवेश करती हैं।

प्रश्न 7:नई दुनिया की स्थापना में हमारा योगदान क्या हो सकता है?

उत्तर:हमें अपने संकल्पों को शुद्ध करना होगा, ईश्वरीय ज्ञान का गहरा मंथन करना होगा, और संपूर्ण निष्काम सेवा द्वारा अपने अकर्म के खाते को बढ़ाना होगा। जब हम स्वयं को परिवर्तन के योग्य बना लेंगे, तो संगठित रूप से यह दिव्य परिवर्तन संभव हो जाएगा।

🔔 अब संकल्प करो – “हम तैयार हैं, नई दुनिया की स्थापना निश्चित है!” 🚀

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