अव्यक्त मुरली-(36)17-05-1983 “संगम युग – मौजों के नज़ारों का युग”
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
17-05-1983 “संगम युग – मौजों के नज़ारों का युग”
आज बापदादा अपने छोटे बड़े बेफिकर बादशाहों को देख रहे हैं। संगमयुग पर ही इतनी बड़े ते बड़े बादशाहों की सभा लगती है। किसी भी युग में इतने बादशाहों की सभा नहीं होती है। इस समय ही बेफिकर बादशाहों की सभा कहो वा स्वराज्य सभा कहो, सभी देख रहे हो। छोटे बड़े यही जानते हैं और मानकर चलते हैं कि हम सभी इस शरीर के मालिक शुद्ध आत्मा हैं। आत्मा कौन हुई? मालिक! स्वराज्य अधिकारी! छोटे में छोटा बच्चा भी यही मानते हैं कि मैं बादशाह हूँ। तो बादशाहों की सभा वा स्वराज्य सभा कितनी बड़ी हुई! और बादशाहों का बादशाह वा राजाओं का भी राजा बनाने वाले – वर्तमान के राजे सो भविष्य के राजे, ऐसे राजाओं को देख वा सर्व बेफिकर बादशाहों को देख कितना हर्षित होंगे, सारे कल्प में ऐसा बाप कोई होगा जिसके लाखों बच्चे बादशाह हों। किसी से भी पूछो तो क्या कहते? नन्हा सा बच्चा भी कहता ‘मैं लक्ष्मी-नारायण बनूँगा’, सभी बच्चे ऐसे समझते हो ना। ऐसे बाप को ऐसे राज़े बच्चों के ऊपर कितना नाज़ होगा! आप सभी को भी यह ईश्वरीय फखुर है कि हम भी राजा फैमिली के हैं। राज्यवंशी हैं? तो आज बापदादा एक-एक बच्चे को देख रहे हैं। बाप के कितने भाग्यवान बच्चे हैं! हर एक बच्चा भाग्यवान है। साथ-साथ समय का भी सहयोग है क्योंकि यह संगमयुग जितना छोटा युग है उतना ही विशेषताओं से भरा हुआ युग है। जो संगमयुग पर प्राप्तियाँ हैं वह और कोई युग में नहीं हो सकती। संगमयुग है ही मौजों के नज़ारों का युग। मौजें ही मौजें हैं ना! खाओ तो भी बाप के साथ मौजों में खाओ। चलो तो भी भाग्यविधाता बाप के साथ हाथ देते चलो। ज्ञान-अमृत पिओ तो भी ज्ञान दाता बाप के साथ-साथ पिओ। कर्म करो तो भी करावनहार बाप के साथ निमित्त करने वाले समझ करो। सोओ तो भी याद की गोदी में सोओ। उठो तो भी भगवान से रूहरिहान करो। सारी दिनचर्या बाप और आप। और बाप है तो पाप नहीं है। तो क्या होगा! मौजें ही मौजें होंगी ना। बापदादा देख रहे थे तो सभी बच्चे मौजों में रहते हैं। यह छोटा सा जन्म लिया ही मौजें मनाने के लिए है। खाओ, पिओ याद की मौज में रहो। इस अलौकिक जन्म का धर्म अर्थात् धारणा ‘मौज’ में रहना है। दिव्य कर्म सेवा की मौज में रहना है। जन्म का लक्ष्य ही है मौजों में रहना और सारे विश्व को सर्व मौजों वाली दुनिया बनाना। तो सवेरे से लेकर रात तक मौजों के नज़ारे में रहते हो ना! बेफिकर बादशाह हो करके दिन रात बिताते हो ना! तो सुना आज वतन में क्या देखा! बेफिकर बादशाहों की सभा। हरेक बादशाह अपने याद की मौज में बाप के दिलतख्तनशीन स्मृति के तिलकधारी थे। अच्छा, आज तो मिलने का दिन है इसलिए अपने बादशाहों से मिलने आये हैं। अच्छा।
सदा बेफिकर बादशाह, मौजों की जीवन में मौजों के नज़ारे देखने वाले, सदा भाग्यवान बाप के साथ-साथ रहने वाले, ऐसे स्वराज्य अधिकारी, दिलतख्तनशीन, पद्मापद्म भाग्यवान बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
छोटे बच्चों से:- सभी बच्चे अपने को महान आत्मायें समझते हुए पढ़ते हो, खेलते हो, चलते हो? हम महात्मायें हैं, सदा यह खुशी रखो, नशा रखो कि हम ऊंचे ते ऊंचे भगवान के बच्चे हैं। भगवान को देखा है? कहाँ हैं? कोई कहे हमको भी भगवान से मिलाओ तो मिला सकते हो? सभी भगवान के बच्चे हो तो भगवान के बच्चे कभी लड़ते तो नहीं हो? चंचलता करते हो? भगवान के बच्चे तो योगी होते हैं फिर आप चंचलता क्यों करते हो? सदा अपने को महान आत्मा, योगी आत्मा समझो। क्या बनेंगे? लक्ष्मी-नारायण! दोनों ही एक साथ बनेंगे? या कभी लक्ष्मी बनेंगे, कभी नारायण बनेंगे! लक्ष्मी बनना पसंद है? अच्छा। सदा नारायण बनना चाहते हो तो सदा शान्त योगी जीवन में रहना और रोज़ सुबह उठकर गुडमार्निंग जरूर करना। ऐसे नहीं देरी से उठो और जल्दी-जल्दी तैयार होकर चले जाओ। 3 मिनट भी याद में बैठ गुडमार्निंग जरूर करो, बातें करो पीछे तैयार हो। यह व्रत कभी भी भूलना नहीं। अगर गुडमॉर्निंग नहीं करेंगे तो खाना नहीं खायेंगे। खाना याद रहेगा तो पहले गुडमार्निंग करना याद रहेगा। गुडमार्निंग करके फिर खाना खाना। याद करो ज्ञान की पढ़ाई को, अच्छे गुण धारण करो तो विश्व में आप रूहानी गुलाब बन खुशबू फैलायेंगे। गुलाब के फल सदा खिले रहते हैं और सदा खुशबू देते हैं। तो ऐसे ही खुशबूदार फूल हो ना! सदा खुश रहते हो या कभी थोड़ा दु:ख भी होता है? जब कोई चीज नहीं मिलती होगी तब दु:ख होता होगा या मम्मी डेडी कुछ कहते होंगे तो दु:ख होता होगा। ऐसा कुछ करो ही नहीं जो मम्मी डेडी कहें। ऐसा चलो जैसा फरिश्ते चल रहे हैं। फरिश्तों का आवाज़ नहीं होता। मनुष्य जो होते हैं वह आवाज़ करते हैं। आप ब्राह्मण सो फरिश्ते आवाज़ नहीं करो। ऐसा चलो जो किसी को पता ही न चले। खाओ पियो, चलो फरिश्ता बन करके। बापदादा सभी बच्चों को बहुत-बहुत बधाई दे रहे हैं। बहुत अच्छे बच्चे हैं और सदा अच्छे ही बनकर रहना। अच्छा।
बच्चियों से:- कुमारी जीवन की क्या महिमा है? कुमारियों को पूजा जाता है, क्यों? पवित्र आत्मायें हैं। तो सभी पवित्र आत्मायें पवित्र याद से औरों को भी पवित्र बनाने की सेवा में रहने वाली हो ना! चाहे छोटी हो, चाहे बड़ी हो लेकिन बाप का परिचय तो सभी को दे सकते हो ना। छोटे भी बहुत अच्छा भाषण करते हैं। बापदादा सबसे छोटे से छोटी कुमारी को बड़ी स्टेज पर भाषण करने के लिए कहें तो तैयार हो? संकोच तो नहीं करेंगी। डर तो नहीं जायेंगी! सदा अपने को विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण करने वाली विश्व कल्याणकारी आत्मा समझो। रिवाजी साधारण कुमारियाँ नहीं लेकिन श्रेष्ठ कुमारी। श्रेष्ठ कुमारी श्रेष्ठ काम करेगी ना! सबसे श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ कार्य है बाप का परिचय दे बाप का बनाना। दुनिया वाले भटक रहे हैं, ढूँढ रहे हैं और तुम लोगों ने जान लिया, पा लिया, कितनी तकदीरवान, भाग्यवान हो। भगवान के बन गये इससे बड़ा भाग्य और कुछ होता है। तो सदा भाग्यवान आत्मा हूँ – इसी खुशी में रहो। यह खुशी अगर गुम हुई तो फिर कभी रोयेंगे, कभी चंचलता करेंगे। सदा आपस में भी प्यार से रहो और लौकिक माता-पिता के भी कहने पर आज्ञाकारी रहो। पारलौकिक बाप की सदा याद में रहो, तब ही श्रेष्ठ कुमारियाँ बन सकेंगी। तो सदा अपने को श्रेष्ठ कुमारी, पूज्य कुमारी समझो। मन्दिरों में जो शक्तियों की पूजा होती है, वही हो ना! एक-एक कुमारी बहुत बड़ा कार्य कर सकती। विश्व परिवर्तन करने के निमित्त बन सकती हो। बापदादा ने विश्व परिवर्तन का कार्य बच्चों को दिया है। तो सदा बाप और सेवा की याद में रहो। विश्व परिवर्तन करने की सेवा के पहले अपना परिवर्तन करो। जो पहले की जीवन थी उससे बिल्कुल बदलकर बस श्रेष्ठ आत्मा हूँ, पवित्र आत्मा हूँ, महान आत्मा हूँ, भाग्यवान आत्मा हूँ, इसी याद में रहो। यह याद स्कूल या कालेज में जाकर भूलती तो नहीं हो ना! संग का रंग तो नहीं लगता! कभी खाने पीने की तरफ कहाँ आकर्षण तो नहीं जाती। थोड़ा बिस्कुट या आइपीम खा लें, ऐसी इच्छा तो नहीं होती! सदैव याद में रहकर बनाया हुआ भोजन ब्रह्मा भोजन खाने वाली – ऐसे पक्के! देखना वहाँ जाकर संग में नहीं आ जाना। कुमारियाँ जितना भाग्य बनाने चाहो बना सकती हो। छोटे-पन से लेकर सेवा के शौक में रहो। पढ़ाई भी पढ़ो और पढ़ाना भी सीखो। छोटेपन में होशियार हो जायेंगे तो बड़े होकर चारों ओर की सेवा में निमित्त बन जायेंगे। स्थापना के समय भी छोटे-छोटे थे, वह अब कितनी सेवा कर रहे हैं, आप लोग उनसे भी होशियार बनना। कल की तकदीर हो। कल भारत स्वर्ग बन जायेगा तो कल की तकदीर आप हो। कोई भी आपको देखे तो अनुभव करे कि यह साधारण नहीं, विशेष कुमारियाँ हैं।
वह पढ़ाई पढ़ते भी मन की लगन ज्ञान की पढ़ाई में रहनी चाहिए। पढ़ने के बाद भी क्या लक्ष्य है? श्रेष्ठ आत्मा बन श्रेष्ठ कार्य करने का है। नौकरी की टोकरी उठाने का तो नहीं है ना! अगर कोई कारण होता है तो वह दूसरी बात है। माँ बाप के पास कमाई का दूसरा कोई साधन नहीं है, तो वह हुई मजबूरी। लेकिन अपना वर्तमान और भविष्य सदा याद रखो। काम में क्या आयेगा? यह ज्ञान की पढ़ाई ही 21 जन्म काम आयेगी। इसलिए निमित्त मात्र अगर लौकिक कार्य करना भी पड़ता तो भी मन की लगन बाप और सेवा में रहे। तो सभी राइट हैण्ड्स बनना, लेफ्ट हैण्ड नहीं। अगर इतने सब राइटहैण्ड हो जाएं तो विनाश हुआ कि हुआ। इतनी शक्तियाँ विजय का झण्डा लेकर आ जाएं तो रावण राज्य का समय समाप्त हो जाए। जब ब्रह्माकुमारी बनना है तो फिर डिग्री क्या करेंगी? यह तो निमित्त मात्र जनरल नॉलेज से बुद्धि विशाल बने उसके लिए यह पढ़ाई पढ़ी जाती। मन की लगन से नहीं, ऐसे नहीं बाकी एक साल में यह डिग्री लें, फिर दूसरे साल में यह डिग्री लें… ऐसे करते-करते काल आ जाए तो… इसलिए जो निमित्त हैं, उनसे राय लेते रहो। आगे पढ़ें या न पढ़ें। कई हैं जो पढ़ाई की शौक में अपना वर्तमान और भविष्य छोड़ देती हैं, धोखा खा लेती हैं। अपने जीवन का फैसला स्वयं खुद को करना है। माँ बाप कहें, नहीं। स्वयं जज बनो। आप शिव शक्तियाँ हो, आपको कोई बन्धन में बाँध नहीं सकता। बकरियों को बन्धन में बांध सकते हैं, शक्तियों को नहीं। शक्तियों की सवारी शेर पर है, शेर खुले में रहता है, बन्धन में नहीं, तो सदा हम बाप की राइट हैण्ड हैं – यह याद रखना।
टीचर्स के साथ:– सदा यही स्मृति में रहता है ना कि हम निमित्त सेवाधारी हैं। करावनहार निमित्त बनाए करा रहा है। तो करावनहार जिम्मेवार हुआ ना। निमित्त बनने वाले सदा हल्के। डायरेक्शन मिला, कार्य किया और सदा हल्के रहे। ऐसे रहते हो या कभी सेवा का बोझ अनुभव होता है? क्योंकि अगर बोझ होगा तो सफलता नहीं होगी। बोझ समझने से कोई भी कर्म यथार्थ नहीं होगा। स्थूल में भी जब कोई कार्य का बोझ पड़ जाता है तो कुछ तोड़ेंगे, कुछ फोड़ेंगे, कुछ मनमुटाव होगा, डिस्टर्ब होंगे। कार्य भी सफल नहीं होगा। ऐसे यह अलौकिक कार्य भी बोझ समझकर किया तो यथार्थ नहीं होगा। सफल नहीं हो सकेंगे। फिर बोझ बढ़ता जाता है। तो संगमयुग का जो श्रेष्ठ भाग्य है हल्के हो उड़ने का, वह ले नहीं सकेंगे। फिर संगमयुगी ब्राह्मण बन किया क्या! इसलिए सदा हल्के बन निमित्त समझते हुए हर कार्य करना – इसी को ही सफलतामूर्त कहा जाता है। जैसे आजकल के जमाने में पैर के नीचे पहिये लगाकर दौड़ते हैं, वह कितने हल्के होते हैं। उनकी रफ्तार तेज हो जाती है। तो जब बाप चला रहा है, तो श्रीमत के पहिये लग गये ना। श्रीमत के पहिये लगने से स्वत: ही पुरूषार्थ की रफ्तार तेज हो जायेगी। सदा ऐसे सेवाधारी बनकर चलो। जरा भी बोझ महसूस नहीं करो। करावनहार जब बाप है तो बोझ क्यों? इसी स्मृति से सदा उड़ती कला में जाते रहो। बस सदा उड़ते चलो। इसको कहा जाता है नम्बरवन योग्य सेवाधारी। बस बाबा, बाबा और बाबा। हर सेकेण्ड यह अनहद साज़ बजता रहे। बस “बाबा और मैं”, सदा ऐसे समाये रहो तो तीसरा बीच में आ नहीं सकता। जहाँ सदा समाये होंगे, दोनों राज़ी होंगे तो बीच में कोई नहीं आयेगा। इसको ही कहा जाता है श्रेष्ठ सेवाधारी। ऐसे हो? दूसरा कुछ नहीं देखो, कुछ नहीं सुनो। सुनने से भी प्रभाव पड़ता। बस बाबा और मैं, सदा मौज मनाओ। मेहनत तो बहुत की, अभी मौज मनाने का समय है। एक गीत भी है ना मौजे ही मौजे… उठो, चलो, सेवा करो, सोओ सब मौज में। खूब नाचो, गाओ, खुशी में रहो। सेवा भी खुशी-खुशी से नाचते-नाचते करो। ऐसे नहीं लुढ़ते लमते, (गिरते चढ़ते) करो। संगम पर सर्व सम्बन्ध की मौजें हैं। तो खूब मौज मनाओ। सदा मौजों के ही नजारे में रहो।
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प्रश्न 1: संगम युग का परिचय क्या है?
उत्तर:
संगम युग छोटा है, लेकिन विशेषताओं से भरा हुआ है।
यह समय आत्माओं के लिए खुशियों का युग है।
बाबा कहते हैं – “यह छोटा-सा जन्म लिया ही मौज मनाने के लिए है।”उदाहरण:
जैसे एक छोटी-सी छुट्टी पूरे साल को रिफ्रेश कर देती है, वैसे ही संगम युग आत्मा को 84 जन्मों के लिए शक्ति और सुख देता है।
प्रश्न 2: बेफिक्र बादशाहों की सभा किसे कहा गया है?
उत्तर:
बापदादा कहते हैं – “आज मैं अपने छोटे-बड़े बेफिक्र बादशाह बच्चों को देख रहा हूँ।”
किसी भी युग में इतने राजाओं की सभा नहीं लगी जितनी आज संगम युग पर है।
हर बच्चा स्वयं को राजा मानता है क्योंकि आत्मा अपने शरीर की स्वराज्य अधिकारी है।Murli Note (अव्यक्त मुरली, 1978):
“संगम युग की सभा बेफिक्र बादशाहों की सभा है, जहाँ हर आत्मा अपने राज्य की मालिक है।”
प्रश्न 3: भगवान के बच्चों का गर्व क्या है?
उत्तर:
छोटा बच्चा भी कहता है – “मैं लक्ष्मी-नारायण बनूँगा।”
यह ईश्वरीय गर्व है कि हम राजवंशी परिवार से हैं।
बापदादा कहते हैं – “सारे कल्प में ऐसा बाप कोई नहीं जिसके लाखों बच्चे बादशाह हों।”
प्रश्न 4: मौजों में जीने की कला क्या है?
उत्तर:
संगम युग = मौजों का युग, नजारों का युग।
बाबा समझाते हैं –-
खाओ तो भी बाप के साथ मौज में खाओ।
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चलो तो भी बाप के साथ हाथ पकड़कर चलो।
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कर्म करो तो करावनहार के निमित्त होकर करो।
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सोवो तो याद की गोदी में सोवो।
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उठो तो रूह-रिहान (Planning) करो।
उदाहरण:
जैसे बच्चा मां से बातें करते-करते सो जाता है, वैसे ही योगी आत्मा बाबा की याद में सोती है और सुबह उसी की योजना के साथ उठती है।
प्रश्न 5: आत्मा का धर्म क्या है?
उत्तर:
अव्यक्त वाणी में कहा गया –
“इस अलौकिक जन्म का धर्म ही मौज में रहना है और दिव्य कर्म सेवा में रहना है।”
लक्ष्य – मौजों में रहकर सारे विश्व को मौजों वाली दुनिया बनाना।
प्रश्न 6: दिल-तख्तनशी और भाग्यवान आत्माओं की विशेषता क्या है?
उत्तर:
बाबा ने वतन में देखा – हर बच्चा मौज की याद में, दिल-तख्तनशी और स्मृति का तिलकधारी है।
ऐसे बच्चों को बापदादा का विशेष याद-प्यार और नमस्ते।
प्रश्न 7: भगवान के बच्चों की पहचान क्या है?
उत्तर:
भगवान के बच्चे लड़ते नहीं, वे योगी आत्माएँ होती हैं।
हमेशा अपने को महान आत्मा, महात्मा समझकर चलो।Murli Note (अव्यक्त मुरली – 1982):
“भगवान के बच्चे चंचलता नहीं करते, वे सदा योगी और महान आत्मा बनते हैं।”
प्रश्न 8: लक्ष्मी-नारायण और विष्णु स्वरूप का क्या संबंध है?
उत्तर:
प्रश्न: क्या हम अलग-अलग लक्ष्मी और नारायण बनेंगे?
उत्तर: लौकिक में अलग, पर अलौकिक में दोनों गुण धारण कर एक साथ विष्णु स्वरूप बनते हैं।
संपूर्णता वही है जहाँ दोनों गुण मिल जाते हैं।
निष्कर्ष
संगम युग छोटा है, परन्तु अनमोल है।
यहाँ हमें बेफिक्र बादशाह, स्वराज्य अधिकारी और मौजों में रहने वाला योगी बनना है।
यही बीज भविष्य के रामराज्य का आधार है। -
- Disclaimer :यह वीडियो ब्रह्माकुमारियों की अव्यक्त वाणी (Murli) पर आधारित है। इसका उद्देश्य आध्यात्मिक शिक्षा और जीवन में सकारात्मकता लाना है। यह किसी भी धर्म, पंथ या संस्था के विरोध के लिए नहीं है।
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- Confluence Age, Age of enjoyment, Carefree King, Soul with right to self rule, Pride of God’s children, Soul and enjoyment, Features of Confluence Age, Avyakt Murli 1978, Avyakt Murli 1982, Lakshmi Narayan Swaroop, Vishnu Swaroop, Introduction to Confluence Age, Art of living in enjoyment, Soul’s religion is enjoyment and service, Soul seated on the heart throne, Wearing tilak of awareness, Yogi soul, Great soul, Brahma Kumari knowledge, Basis of Ram Rajya,

