(54) “Confluence Age – The Age of Easy Attainment”

अव्यक्त मुरली-(54)29-12-1983 “संगमयुग – सहज प्राप्ति का युग”

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(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

29-12-1983 “संगमयुग – सहज प्राप्ति का युग”

आज रहमदिल, दिलवाला बाप अपने बड़ी दिल रखने वाले दिल खुश बच्चों से मिलने आये हैं। जैसे बापदादा सदा बड़ी दिल वाले बेहद की दिल वाले हैं, इसलिए सर्व की दिल लेने वाले दिलाराम हैं। ऐसे बच्चे भी बेहद की दिल, फ्राकदिल, दातापन की दिल रखने वाले सदा दिल खुश से जहान को खुश करते हैं। ऐसे खुशनसीब आत्मायें हो। आप श्रेष्ठ आत्माएं ही जहान के आधार हो। आप सभी जगते, जागती ज्योत बनते तो जहान वाले भी जगते। आप सोते हैं तो जहान सोता है। आप सबकी चढ़ती कला होती तो सर्व आत्माओं का कल्याण हो जाता। सर्व यथा-शक्ति समय प्रमाण मुक्ति और जीवन-मुक्ति को प्राप्त होते हैं। आप विश्व पर राज्य करते हो तो सर्व आत्माएं मुक्ति की स्थिति में रहती हैं। तीनों लोकों में आपके राज्य के समय दु:ख अशान्ति का नाम निशान नहीं। ऐसी सर्व आत्माओं को बाप द्वारा सुख-शान्ति की अंचली दिलाते हो जो उसी अंचली द्वारा बहुत समय की मुक्ति की आशा सर्व की पूर्ण हो जाती है। ऐसे सर्व आत्माओं को, विश्व को यथाशक्ति प्राप्ति कराने वाले स्व प्राप्ति स्वरुप हो ना! क्योंकि डायरेक्ट सर्व प्राप्तियों के दाता, सर्व शक्तियों के विधाता सेकण्ड में सर्व अधिकार देने वाले वरदाता, श्रेष्ठ भाग्य-विधाता, अविनाशी बाप के बच्चे बने। ऐसी अधिकारी आत्माओं को सदा अधिकार को याद करते रुहानी श्रेष्ठ नशा और सदा की खुशी रहती है? बेहद की दिल वाले किसी हद के प्राप्ति की तरफ दिल आकर्षित तो नहीं होती? सदा सहज प्राप्ति के अनुभवी मूर्त बने हो वा ज्यादा मेहनत करने के बाद थोड़ा-सा फल प्राप्त करते हो? वर्तमान समय सीजन है प्रत्यक्ष फल खाने की। एक शक्तिशाली संकल्प वा कर्म किया और एक बीज द्वारा पदमगुणा फल पाया। तो सीज़न का फल अर्थात् सहज फल की प्राप्ति करते हो? फल अनुभव होता है वा फल निकलने के पहले माया रुपी पंछी फल को खत्म तो नहीं कर देते हैं? तो इतना अटेन्शन रहता है वा मेहनत करते, योग लगाते, पढ़ाई भी पढ़ते, यथाशक्ति सेवा भी करते फिर भी जैसा प्राप्त होना चाहिए वैसा नहीं होता। होना सदा चाहिए क्योंकि एक का पदमगुणा है तो अनगिनत फल की प्राप्ति हुई ना। फिर भी सदा नहीं रहता। जितना चाहिए उतना नहीं रहता। उसका कारण? संकल्प, कर्म रुपी बीज शक्तिशाली नहीं। वातावरण रुपी धरनी शक्तिशाली नहीं वा धरनी और बीज ठीक है, फल भी निकलता है लेकिन “मैंने किया”, इस हद के संकल्प द्वारा कच्चा फल खा लेते वा माया की भिन्न-भिन्न समस्याएं, वातावरण, संगदोष, परमत वा मनमत, व्यर्थ संकल्प रुपी पंछी फल को समाप्त कर देते हैं, इसलिए फल अर्थात् प्राप्तियों से अनुभूतियों के खजाने से वचिंत रह जाते। ऐसी वंचित आत्माओं के बोल यही होते कि पता नहीं क्यों! ऐसे व्यर्थ मेहनत करने वाले तो नहीं हो ना! सहज योगी हो ना? सहज प्राप्ति की सीज़न पर मेहनत क्यों करते हो! वर्सा है, वरदान है, सीज़न है, बड़ी दिल वाला दाता है। फ्राकदिल भाग्य विधाता है फिर भी मेहनत क्यों? सदा दिलतख्तनशीन बच्चों को मेहनत हो नहीं सकती। संकल्प किया और सफलता मिली। विधि का स्विच ऑन किया और सिद्धि प्राप्त हुई। ऐसे सिद्धि स्वरुप हो ना वा मेहनत कर करके थक जाते हो? मेहनत करने का कारण है – अलबेलापन और आलस्य। स्मृति स्वरुप के किले के अन्दर नहीं रहते हो वा किले में रहते हुए कोई न कोई शक्ति की कमजोरी के दरवाजे वा खिड़की खोल देते हो। इसलिए माया को चांस दे देते हो। चेक करो कि कौन-सी शक्ति की कमी है अर्थात् कौन-सा रास्ता खुला हुआ है? संकल्प में भी दृढ़ता नहीं है तो समझो थोड़ा सा रास्ता खुला हुआ है। इसलिए कहते हो चल तो ठीक रहे हैं, नियम तो सब पालन कर रहे हैं, श्रीमत पर चल रहे हैं लेकिन नम्बरवन खुशी और दृढ़ता से नहीं। नियम पर चलना ही पड़ेगा, ब्राह्मण परिवार की लोकलाज के वश, क्या कहेंगे, क्या समझेंगे… इस मजबूरी वा भय से नियम तो नहीं पालन करते? दृढ़ता की निशानी है सफलता। जहाँ दृढ़ता हैं वहाँ सफलता न हो, यह हो नहीं सकता। जो संकल्प में भी नहीं होगा वह प्राप्ति होगी अर्थात् संकल्प से प्राप्ति ज्यादा होगी। तो वर्तमान समय सहज सर्व प्राप्ति का युग है इसलिए सदा सहज योगी भव के अधिकारी और वरदानी बनो। समझा। मास्टर सर्वशक्तिवान बन करके भी मेहनत की तो मास्टर बन के क्या किया! मेहनत से छुड़ाने वाला, मुश्किल को सहज करने वाला बाप मिला फिर भी मेहनत! बोझ उठाते हो इसलिए मेहनत करते। बोझ छोड़ो, हल्के बनो तो फरिश्ता बन उड़ते रहेंगे। अच्छा।

ऐसे सदा दिल खुश, सदा सहज फल की प्राप्ति स्वरुप, सदा वरदाता द्वारा सफलता को पाने वाले वरदानी, वारिस बच्चों को दिलाराम बाप का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से – पंजाब जोन

सभी स्वदर्शन चक्रधारी हो? स्वदर्शन चक्र चलता रहता है? जहाँ स्वदर्शन चक्र है वहाँ सर्व विघ्नों से मुक्त हैं क्योंकि स्वदर्शन चक्र माया के विघ्नों को समाप्त करने के लिए है। जहाँ स्वदर्शन चक्र है वहाँ माया नहीं। बाप के बच्चे बने और स्व का दर्शन हुआ। बाप का बच्चा बनना अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बनना। ऐसे स्वदर्शन चक्रधारी ही विश्व कल्याणकारी हैं क्योंकि विघ्न-विनाशक हैं। विघ्न-विनाशक गणेश को कहते हैं। गणेश की कितनी पूजा होती है। कितना प्यार से पूजा करते हैं, कितना सजाते हैं, कितना खर्चा करते हैं, ऐसे विघ्न-विनाशक हैं, यह संकल्प ही विघ्न को समाप्त कर देता है क्योंकि संकल्प ही स्वरुप बनाता है। विघ्न हैं, विघ्न हैं कहने से विघ्न स्वरुप बन जाते, कमजोर संकल्प से कमजोर सृष्टि की रचना हो जाती है क्योंकि एक संकल्प कमजोर है तो उसके पीछे अनेक कमजोर संकल्प पैदा हो जाते हैं। एक क्यों और क्या का संकल्प अनेक क्यों, क्या में ले आता है। समर्थ संकल्प उत्पन्न हुआ – मैं महावीर हूँ, मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तो सृष्टि भी श्रेष्ठ होती है। तो जैसा संकल्प वैसी सृष्टि। यह सारी संकल्प की बाजी है। अगर खुशी का संकल्प रचो तो उसी समय खुशी का वातावरण अनुभव होगा। दु:ख का संकल्प रचो तो खुशी के वातावरण में भी दु:ख का वातावरण लगेगा। खुशी का अनुभव नहीं होगा। तो वातावरण बनाना, सृष्टि रचना अपने हाथ में है, दृढ़ संकल्प रचो तो विघ्न छू मंत्र हो जायेंगे। अगर सोचते पता नहीं होगा या नहीं होगा तो मंत्र काम नहीं करता। जैसे कोई डाक्टर के पास जाते हैं तो डाक्टर भी पहले यही पूछते हैं कि तुम्हारा मेरे में फेथ है। कितनी भी बढ़िया दवाई हो लेकिन अगर फेथ नहीं तो उस दवाई का असर नहीं हो सकता। वह विनाशी बात है, यहाँ है अविनाशी बात। तो सदा विघ्न-विनाशक आत्मायें हैं, पूज्य आत्मायें हैं, आपकी अभी भी किस रुप में पूजा हो रही है? यह लास्ट का विकारी जन्म होने के कारण इस रुप का यादगार नहीं रखते हैं लेकिन किस न किस रुप में आपका यादगार है। तो सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान, विघ्न-विनाशक शिव के बच्चे गणेश समझकर चलो। अपना ही संकल्प रचते हो कि “पता नहीं, पता नहीं”, तो इस कमजोर संकल्प के कारण ही फंस जाते हो। तो सदा खुशी में झूलने वाले सर्व के विघ्न हर्ता बनो। सर्व की मुश्किल को सहज करने वाले बनो। इसके लिए बस सिर्फ दृढ़ संकल्प और डबल लाइट। मेरा कुछ नहीं, सब कुछ बाप का है। जब बोझ अपने ऊपर रखते हो तब सब प्रकार के विघ्न आते हैं। मेरा नहीं तो निर्विघ्न। मेरा है तो विघ्नों का जाल है। तो जाल को खत्म करने वाले विघ्न-विनाशक। बाप का भी यही कार्य है। जो बाप का कार्य वह बच्चों का कार्य। कोई भी कार्य खुशी से करते हो तो उस समय विघ्न नहीं होता। तो खुशी-खुशी कार्य में बिज़ी रहो। बिज़ी रहेंगे तो माया नहीं आयेगी। अच्छा।

2- सदा सफलता के चमकते हुए सितारे हैं, यह स्मृति रहती है? आज भी इस आकाश के सितारों को सब कितना प्यार से देखते हैं क्योंकि रोशनी देते हैं, चमकते हैं इसलिए प्यारे लगते हैं। तो आप भी चमकते हुए सितारे सफलता के हो। सफलता को सभी पसन्द करते हैं, कोई प्रार्थना भी करते हैं तो कहते यह कार्य सफल हो। सफलता सब मांगते हैं और आप स्वयं सफलता के सितारे बन गये। आपके जड़ चित्र भी सफलता का वरदान अभी तक देते हैं, तो कितने महान हो, कितने ऊंच हो, इसी नशे और निश्चय में रहो। सफलता के पीछे भागने वाले नहीं लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् सफलता स्वरुप। सफलता आपके पीछे-पीछे स्वत: आयेगी।

“संगमयुग – सहज प्राप्ति का युग | वरदानी, अधिकारधारी और सफलता के सितारे”

मुरली दिनांक: 18-01-1984


 सहज प्राप्ति के अनुभवी बच्चे

मुख्य बिंदु:
बापदादा अपने सदा दिल खुश और दिलवाले बच्चों से मिलने आये। ये बच्चे बेहद दिल, दातापन और सहज प्राप्ति के अनुभव वाले हैं।

उदाहरण:

  • आप सोते हैं तो जहान सोता है।

  • आपकी चढ़ती कला से सर्व आत्माओं का कल्याण होता है।

मुरली नोट:
“डायरेक्ट सर्व प्राप्तियों के दाता, सर्व शक्तियों के विधाता, सेकण्ड में सर्व अधिकार देने वाले वरदाता, श्रेष्ठ भाग्य-विधाता, अविनाशी बाप के बच्चे बने।”


 सहज योगी और सरल फल की प्राप्ति

मुख्य बिंदु:
संपूर्ण सहज योगी बच्चे बिना मेहनत के भी सहज फल प्राप्त करते हैं। मेहनत करने का कारण आलस्य या अलबेलापन होता है।

उदाहरण:

  • संकल्प किया और सफलता मिली।

  • विधि का स्विच ऑन किया और सिद्धि प्राप्त हुई।

मुरली नोट:
“वर्तमान समय सहज सर्व प्राप्ति का युग है इसलिए सदा सहज योगी भव के अधिकारी और वरदानी बनो।”


 स्वदर्शन चक्र – विघ्नों का विनाशक

मुख्य बिंदु:
स्वदर्शन चक्रधारी बनने का अर्थ है स्वयं का दर्शन और माया के विघ्नों से मुक्त रहना।

उदाहरण:

  • जहाँ स्वदर्शन चक्र है, वहाँ माया का प्रवेश नहीं।

  • संकल्प के अनुसार सृष्टि रचना और वातावरण बनाना संभव है।

मुरली नोट:
“समर्थ संकल्प उत्पन्न हुआ – मैं महावीर हूँ, मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तो सृष्टि भी श्रेष्ठ होती है।”


 दृढ़ संकल्प और विघ्न विनाश

मुख्य बिंदु:
दृढ़ संकल्प से विघ्न विनाश होता है। जो संकल्प कमजोर है, वह विघ्न उत्पन्न करता है।

उदाहरण:

  • “पता नहीं, पता नहीं” जैसे संकल्प से विघ्न आते हैं।

  • दृढ़ संकल्प + बाप की याद = विघ्नों का विनाश।

मुरली नोट:
“मेरा कुछ नहीं, सब कुछ बाप का है। जब बोझ अपने ऊपर रखते हो तब सब प्रकार के विघ्न आते हैं।”


 सफलता के चमकते सितारे

मुख्य बिंदु:
सदा सफलता के सितारे वही हैं जो बिना पीछे भागे, मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरुप में स्वत: सफलता प्राप्त करते हैं।

उदाहरण:

  • आपकी सफलता से सभी प्रभावित होते हैं।

  • जड़ चित्रों में भी आपके वरदान और सफलता का प्रभाव दिखाई देता है।

मुरली नोट:
“सफलता सब मांगते हैं और आप स्वयं सफलता के सितारे बन गये। सफलता आपके पीछे-पीछे स्वत: आयेगी।”


 मुख्य संदेश

  1. सहज प्राप्ति के अनुभवी, दिल खुश, वरदानी और अधिकारी बनो।

  2. स्वदर्शन चक्रधारी बनो, स्वयं का दर्शन कर माया के विघ्नों से मुक्त रहो।

  3. दृढ़ संकल्प और याद से विघ्न विनाशक बनो।

  4. मास्टर सर्वशक्तिवान बनो, सफलता आपके पीछे स्वत: आएगी।

  5. हमेशा बापदादा की याद और सेवा में अटल रहो।

  6. “संगमयुग – सहज प्राप्ति का युग | वरदानी, अधिकारधारी और सफलता के सितारे”

    मुरली दिनांक: 18-01-1984


    1️⃣ सवाल: सहज प्राप्ति के अनुभवी बच्चे कौन होते हैं?

    जवाब:
    सहज प्राप्ति के अनुभवी बच्चे वे हैं जो सदा दिल खुश, दिलवाले और दातापन वाले होते हैं। ये बच्चे सहज रूप से सफलता और आनंद के अनुभव प्राप्त करते हैं।

    उदाहरण:

    • आप सोते हैं तो जहान सोता है।

    • आपकी चढ़ती कला से सर्व आत्माओं का कल्याण होता है।

    मुरली नोट:
    “डायरेक्ट सर्व प्राप्तियों के दाता, सर्व शक्तियों के विधाता, सेकण्ड में सर्व अधिकार देने वाले वरदाता, श्रेष्ठ भाग्य-विधाता, अविनाशी बाप के बच्चे बने।”


    2️⃣ सवाल: सहज योगी और सरल फल क्या होते हैं?

    जवाब:
    सहज योगी वे बच्चे हैं जो बिना अतिरिक्त मेहनत के अपने संकल्प और कर्म के अनुसार सहज फल प्राप्त करते हैं। मेहनत का कारण केवल आलस्य या अलबेलापन होता है।

    उदाहरण:

    • संकल्प किया और सफलता मिली।

    • विधि का स्विच ऑन किया और सिद्धि प्राप्त हुई।

    मुरली नोट:
    “वर्तमान समय सहज सर्व प्राप्ति का युग है इसलिए सदा सहज योगी भव के अधिकारी और वरदानी बनो।”


    3️⃣ सवाल: स्वदर्शन चक्र क्या है और इसके क्या लाभ हैं?

    जवाब:
    स्वदर्शन चक्रधारी वह होता है जो स्वयं का दर्शन करता है और माया के विघ्नों से मुक्त रहता है। यह चक्र आत्मा को स्थिर और विघ्न-रहित बनाता है।

    उदाहरण:

    • जहाँ स्वदर्शन चक्र है, वहाँ माया का प्रवेश नहीं।

    • संकल्प के अनुसार सृष्टि रचना और वातावरण बनाना संभव है।

    मुरली नोट:
    “समर्थ संकल्प उत्पन्न हुआ – मैं महावीर हूँ, मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तो सृष्टि भी श्रेष्ठ होती है।”


    4️⃣ सवाल: दृढ़ संकल्प और विघ्न विनाश में क्या संबंध है?

    जवाब:
    दृढ़ संकल्प से विघ्न विनाश होता है। कमजोर संकल्प विघ्न उत्पन्न करता है। यदि बच्चा दृढ़ संकल्प + बाप की याद में रहता है, तो सभी विघ्न समाप्त हो जाते हैं।

    उदाहरण:

    • “पता नहीं, पता नहीं” जैसे संकल्प से विघ्न आते हैं।

    • दृढ़ संकल्प और बाप की याद = विघ्नों का विनाश।

    मुरली नोट:
    “मेरा कुछ नहीं, सब कुछ बाप का है। जब बोझ अपने ऊपर रखते हो तब सब प्रकार के विघ्न आते हैं।”


    5️⃣ सवाल: सफलता के चमकते सितारे कौन हैं?

    जवाब:
    सफलता के चमकते सितारे वे बच्चे हैं जो बिना पीछे भागे, मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरुप में स्वत: सफलता प्राप्त करते हैं।

    उदाहरण:

    • आपकी सफलता से सभी प्रभावित होते हैं।

    • जड़ चित्रों में भी आपके वरदान और सफलता का प्रभाव दिखाई देता है।

    मुरली नोट:
    “सफलता सब मांगते हैं और आप स्वयं सफलता के सितारे बन गये। सफलता आपके पीछे-पीछे स्वत: आयेगी।”


     मुख्य संदेश

    1. सहज प्राप्ति के अनुभवी, दिल खुश, वरदानी और अधिकारी बनो।

    2. स्वदर्शन चक्रधारी बनो, स्वयं का दर्शन कर माया के विघ्नों से मुक्त रहो।

    3. दृढ़ संकल्प और याद से विघ्न विनाशक बनो।

    4. मास्टर सर्वशक्तिवान बनो, सफलता आपके पीछे स्वत: आएगी।

    5. हमेशा बापदादा की याद और सेवा में अटल रहो।

  7. Disclaimer: यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज के आध्यात्मिक शिक्षाओं और मुरली संदर्भों पर आधारित है। यह केवल आध्यात्मिक प्रेरणा हेतु है और किसी भी धार्मिक मत या व्यावहारिक जीवन निर्णय का विकल्प नहीं है।
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