(53)”27-12-1983 “भिखारी नहीं सदा के अधिकारी बनो”
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
27-12-1983 “भिखारी नहीं सदा के अधिकारी बनो”
आज विश्व रचता बाप विश्व की परिक्रमा लगाते हुए अपने मिलन स्थान पर बच्चों की रुहानी महफिल में पहुँच गये हैं। विश्व परिक्रमा में क्या देखा? दाता के बच्चे सर्व आत्माएं भिखारी के रुप में भीख मांग रही हैं। कोई रॉयल भिखारी, कोई साधारण भिखारी। सभी के मुख में वा मन में यह दे दो, ये दे दो का ही आवाज सुनाई देता था। कोई धन के भिखारी, कोई सहयोग के भिखारी, कोई सम्बन्ध के भिखारी, कोई थोड़े समय के लिए सुख-चैन के भिखारी, कोई आराम वा नींद के भिखारी, कोई मुक्ति के भिखारी, कोई दर्शन के भिखारी, कोई मृत्यु के भिखारी, कोई फालोअर्स के भिखारी। ऐसे अनेक प्रकार के बाप से, महान आत्माओं से, देव आत्माओं से और साकार सम्बन्ध वाली आत्माओं से, यह दो… यह दो की भीख माँग रहे हैं। तो बेगर्स की दुनिया देख, स्वराज्य अधिकारियों की महफिल में आए पहुँचे हैं। अधिकारी और अधीन, भिखारी आत्माओं में कितना अन्तर है। बेगर से दाता के बच्चे बन गये अर्थात् मास्टर वा अधिकारी बन गये। अधिकारी “यह दो, यह दो…”, संकल्प में भी भीख नहीं मांगते। भिखारी का शब्द है दे दो। और अधिकारी का शब्द है “यह सब अधिकार हैं।” ऐसी अधिकारी आत्माएं बने हो ना! दाता बाप ने बिना माँगे सर्व अविनाशी प्राप्ति का अधिकार स्वत: ही दे दिया। आप सबने एक शब्द का संकल्प किया – मेरा बाबा और बाप ने एक ही शब्द में कहा सर्व खज़ानों का संसार तेरा। एक ही संकल्प वा बोल अधिकारी बनाने के निमित्त बना। मेरा और तेरा। यही दोनों शब्द चक्र में भी फँसाता हैं और यही दोनों शब्द सर्व विनाशी दु:खमय चक्र से छुड़ाए सर्व प्राप्तियों के अधिकारी भी बनाता है। अनेक चक्र से छूटकर एक स्वदर्शन चक्र ले लिया अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बन गये। कभी भी किसी भी प्रकार के तन-मन-धन-जन, सम्बन्ध-सम्पर्क के चक्र में फँसते हो तो उसका कारण स्वदर्शन चक्र को छोड़ देते हो। स्वदर्शन चक्र सदा ही एक ही अंगुली पर दिखाते हैं। पाँच अंगुलियाँ वा दो अंगुलियाँ नहीं। एक अंगुली अर्थात् एक ही संकल्प – “मैं बाप का और बाप मेरा”। एक इस संकल्प रुपी एक अंगुली पर स्वदर्शन चक्र चलता है। एक को छोड़ अनेक संकल्पों में जाते हो, अनेक चक्करों में फँसते हो। स्वदर्शन-चक्रधारी अर्थात् स्व का दर्शन करना और सदा के लिए प्रसन्नचित्त रहना। स्वदर्शन नहीं तो प्रसन्नचित्त के बजाए प्रश्नचित हो जाता। प्रसन्नचित अर्थात् जहाँ कोई प्रश्न नहीं। तो सदा स्वदर्शन द्वारा प्रसन्नचित्त अर्थात् सर्व प्राप्ति के अधिकारी। स्वप्न में भी बाप के आगे भिखारी रुप नहीं। यह काम कर लो या करा लो। यह अनुभव करा लो, यह विघ्न मिटा लो। मास्टर दाता की दरबार में कोई अप्राप्ति हो सकती है? अविनाशी स्वराज्य, ऐसे राज्य में जहाँ सर्व खजानों के भण्डार भरपूर हैं। भण्डारे भरपूर में कोई कमी हो सकती है? जो स्वत: ही बिना आपके माँगने के अविनाशी और अथाह देने वाला दाता, उसको कहने की क्या आवश्यकता है। आपके संकल्प से सोचने से पदमगुणा ज्यादा बाप स्वयं ही देते हैं। तो संकल्प में भी यह भिखारीपन नहीं। इसको कहा जाता है अधिकारी। ऐसे अधिकारी बने हो? सब कुछ पा लिया – यही गीत गाते हो ना! या अभी यह पाना है, यह पाना है…. यह फरियाद के गीत गाते हो। जहाँ याद है वहाँ फरियाद नहीं। जहाँ फरियाद है वहाँ याद नहीं। समझा!
कभी-कभी राज्य अधिकारी की स्थिति की ड्रेस बदलकर माँगने वाली भिखारी की स्थिति की पुरानी ड्रेस धारण तो नहीं कर लेते हो? संस्कार रुपी पेटी में छिपाकर तो नहीं रखी है। पेटी सहित स्थिति रुपी ड्रेस को जला दिया है व आईवेल के लिए किनारे कर रख लिया है? संस्कार में भी अंशमात्र न हो। नहीं तो दुरंगी बन जाते। कभी भिखारी, कभी अधिकारी। इसलिए सदा एक श्रेष्ठ रंग में रहो। पंजाब वाले तो रंग चढ़ाने में होशियार हैं ना! कच्चे रंग वाले तो नहीं हैं ना और राजस्थान वाले राज्य अधिकारी हैं ना। अधीनता के संस्कार वाले नहीं। सदा राज्य अधिकारी। तीसरा है इन्दौर – सदा माया के प्रभाव से परे, इन डोर। अन्दर रहने वाले अर्थात् सदा बाप की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले। वह भी मायाजीत हो गये ना। चौथा ग्रुप है – महाराष्ट्र अर्थात् महान आत्मा। सबमें महान। संकल्प, बोल और कर्म तीनों महा महान हैं। महान आत्मायें अर्थात् सम्पन्न आत्मायें। चार तरफ की चार नदियाँ इकट्ठी हुई हैं लेकिन सभी सर्व प्राप्ति स्वरुप अधिकारी हो ना। चार के बीच में पांचवे हैं डबल विदेशी। 5 नदियों का मिलन कहाँ पर हैं? मधुबन के तट पर। नदियों और सागर का मिलन है। अच्छा।
सदा स्वराज्य अधिकारी, स्वदर्शन चक्रधारी सदा प्रसन्नचित्त रहने वाले, सर्व खजानों से भरपूर महान आत्मायें, भिखारीपन को स्वप्न से भी समाप्त करने वाले, ऐसे दाता के मालामाल बच्चों को अविनाशी बापदादा की “अमर भव” की सदा सम्पन्न स्वरुप की याद प्यार और नमस्ते।
पार्टियों के साथ:- कितने तकदीरवान हो जो कहाँ-कहाँ की डाली को एक वृक्ष बना दिया। अभी सभी अपने को एक ही वृक्ष के समझते हो ना! सभी एक ही चन्दन का वृक्ष बन गये। पहले कौन-कौन सी लकड़ी थे। अभी चन्दन के वृक्ष की लकड़ी हो गये। चन्दन खुशबू देता है। सच्चे चन्दन की कितनी वैल्यु होती है और सब कितना प्यार से चन्दन को साथ में रखते हैं। ऐसे चन्दन के समान खुशबू देने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बाप भी सदा साथ रखते हैं। एक बाप साथ रखते, दूसरा विश्व के आगे अमूल्य रत्न हैं। अभी विश्व नहीं जानती, आगे चल कितनी ऊंची नजर से देखेंगे। जैसे सितारों को ऊंची नजर से देखते हैं ऐसे आप ज्ञान सितारों को देखेंगे। वैल्युबुल हो गये ना। सिर्फ चन्दन के वृक्ष में आ गये, भगवान के साथी बन गये। तो सदा अपने को बाप के साथ रहने वाली नामीग्रामी आत्मायें समझते हो ना! कितनी नामीग्रामी हो जो आज तक भी जड़ चित्रों द्वारा गाये और पूजे जाते हो। सारा कल्प भी नामीग्रामी हो।
घर बैठे पदमापदम भाग्यवान बन गये हो ना। तकदीर आपके पास पहुँच गई। आप तकदीर के पीछे नहीं गये लेकिन तकदीर आपके घर पहुँच गई। ऐसे तकदीरवान और कोई हो सकता है! जीवन ही श्रेष्ठ बन गई। जीवन घण्टे दो घण्टे की नहीं होती। जीवन सदा है। योगी नहीं बने लेकिन योगी जीवन वाले बने गये। योगी जीवन अर्थात् निरन्तर के योगी। जो निरन्तर योगी होंगे – उनकी खाते-पीते चलते-फिरते बाप और मैं श्रेष्ठ आत्मा यही स्मृति रहेगी। जैसा बाप वैसा बच्चा, जो बाप के गुण, जो बाप का कार्य वह बच्चों का। इसको कहा जाता है योगी जीवन। ऐसे योगी जो सदा एक लगन में मगन रहते हैं, वही सदा हर्षित रह सकते हैं। मन का हर्ष तन पर भी आता है। जब हैं ही सर्व प्राप्ति स्वरुप, जहाँ सर्व प्राप्ति हैं वहाँ हर्ष होगा ना! दु:ख का नाम निशान नहीं। सदा सुख स्वरुप अर्थात् सदा हर्षित। जरा भी दु:ख के संसार की आकर्षण नहीं। अगर दु:ख के संसार में बुद्धि जाती है तो बुद्धि जाना माना आकर्षण, जो सदा हर्षित रहता वह दु:खों की दुनिया तरफ आकर्षित नहीं हो सकता। अगर आकर्षित होता तो हर्षित नहीं। तो सदा के हर्षित। वर्सा ही सदा का है। यही विशेषता है।
संगमयुग, वरदान का युग है। वरदानों के युग में पार्ट बजाने वाले सदा वरदानी होंगे ना। वरदान में मेहनत नहीं करनी पड़ती। जहाँ मेहनत है, वहाँ वरदान नहीं। आप सबको राज्य भाग्य वरदान में मिला है या मेहनत से? वरदाता के बच्चे बने, वरदान मिला। सबसे श्रेष्ठ वरदान – अविनाशी भव। अविनाशी बनें तो अविनाशी वर्सा स्वत: मिलेगा। अविनाशी युग की अविनाशी आत्मायें हो। वरदाता बाप बन गया, वरदाता शिक्षक बन गया, सद्गुरु बन गया तो और बाकी क्या रहा। ऐसी स्मृति सदा रहे। अविनाशी माना सदा एकरस स्थिति में रहने वाले। कभी ऊपर, कभी नीचे नहीं क्योंकि बाप का वर्सा मिला, वरदान मिला तो नीचे क्यों आयें। तो सदा ऊंची स्थिति में रहने वाली महान आत्मायें हैं, यही सदा याद रखना। बाप के बच्चे बने तो विशेष आत्मा बन गये। विशेष आत्मा का हर संकल्प, हर बोल और कर्म विशेष होगा। ऐसा विशेष बोल, कर्म वा संकल्प हो जिससे और भी आत्माओं को विशेष बनने की प्रेरणा मिले। ऐसी विशेष आत्मायें हो, चाहे साधारण दुनिया में साधारण रुप में रहे पड़े हो लेकिन रहते हुए भी न्यारे और बाप के प्यारे। कमल पुष्प समान। कीचड़ में फंसने वाले नहीं, औरों को कीचड़ से निकालने वाले। अनुभवी कभी भी फंसने का धोखा नहीं खायेंगे।
अध्याय: “भिखारी नहीं, सदा के अधिकारी बनो”
मुरली दिनांक: 18-01-1984
1. भिखारी और अधिकारी में अंतर
मुख्य बिंदु:
विश्व परिक्रमा में बच्चों ने देखा कि कई आत्माएँ भिखारी बनकर भीख मांग रही थीं। कोई धन की भीख, कोई सुख-चैन की, कोई मुक्ति की। अधिकारी आत्माएं भिखारी नहीं मांगतीं।
उदाहरण:
अधिकारी आत्मा कहती है: “यह सब अधिकार हैं।”
भिखारी कहती है: “दे दो… दे दो…”
मुरली नोट:
“दाता बाप ने बिना माँगे सर्व अविनाशी प्राप्ति का अधिकार स्वत: ही दे दिया।”
2. स्वदर्शन चक्र – अधिकारी बनने का साधन
मुख्य बिंदु:
स्वदर्शन चक्रधारी बनने का अर्थ है स्वयं का दर्शन करना और प्रसन्नचित्त रहना। एक अंगुली पर केवल एक संकल्प: “मैं बाप का और बाप मेरा।”
उदाहरण:
कई संकल्पों में फँसने से बचने के लिए केवल इस एक अंगुली पर स्वदर्शन चक्र बनाए रखा जाता है।
मुरली नोट:
“स्वदर्शन नहीं तो प्रसन्नचित्त के बजाय प्रश्नचित हो जाता। प्रसन्नचित्त अर्थात् जहाँ कोई प्रश्न नहीं।”
3. अविनाशी स्वराज्य और मास्टर दाता
मुख्य बिंदु:
मास्टर दाता की दरबार में कोई अप्राप्ति नहीं हो सकती। अविनाशी स्वराज्य में खजाने भरपूर हैं।
उदाहरण:
बिना माँगे सभी अधिकार स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। संकल्प और याद में रहने वाले भिखारी नहीं बनते।
मुरली नोट:
“जहाँ याद है वहाँ फरियाद नहीं। जहाँ फरियाद है वहाँ याद नहीं।”
4. संस्कार और स्थिति
मुख्य बिंदु:
भिखारी की पुरानी ड्रेस या अधीनता के संस्कार को जला देना आवश्यक है। सदा श्रेष्ठ रंग – अधिकारी का रंग – में रहना।
उदाहरण:
पंजाब वाले रंग चढ़ाने में होशियार, राजस्थान वाले राज्य अधिकारी, इन्दौर मायाजीत, महाराष्ट्र महान आत्मा।
मुरली नोट:
“सदा राज्य अधिकारी, सदा माया के प्रभाव से परे, सदा बाप की छत्रछाया में रहो।”
5. चारों दिशाओं के अधिकारी और डबल विदेशी
मुख्य बिंदु:
चारों दिशाओं की आत्माएँ – पंजाब, राजस्थान, इन्दौर, महाराष्ट्र – सर्व प्राप्ति अधिकारी बन चुकी हैं। डबल विदेशी बच्चों का मिलन मधुबन के तट पर हुआ।
उदाहरण:
चार नदियों का मिलन और पांचवे डबल विदेशी – सभी अविनाशी अधिकारी।
मुरली नोट:
“सदा स्वराज्य अधिकारी, स्वदर्शन चक्रधारी, सर्व खजानों से भरपूर महान आत्मायें।”
6. योगी जीवन और हर्षित स्थिति
मुख्य बिंदु:
योगी जीवन का अर्थ – निरंतर योग में मगन रहना, तन और मन में हर्षित रहना। दुःखों का आकर्षण नहीं होना।
उदाहरण:
जो निरंतर योगी जीवन वाले हैं, उनका हर्ष तन और मन में आता है। जीवन सदा श्रेष्ठ और अमर बन जाता है।
मुरली नोट:
“जहाँ सर्व प्राप्ति हैं वहाँ हर्ष होगा। दुःख के संसार की ओर आकर्षण नहीं।”
7. वरदानों का संगम
मुख्य बिंदु:
संगमयुग में वरदानों का युग है। वरदाता बाप बन गए, वरदाता शिक्षक बन गए। बच्चों को अविनाशी भव का वरदान मिला।
उदाहरण:
कमल पुष्प समान बच्चे, जो कीचड़ में फँसने वाले नहीं बल्कि दूसरों को निकालने वाले हैं।
मुरली नोट:
“अविनाशी माना सदा एकरस स्थिति में रहने वाले। बाप का वर्सा और वरदान मिला तो नीचे क्यों आयें?”
मुख्य संदेश
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भिखारीपन छोड़, सदा अधिकारी बनो।
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स्वदर्शन चक्रधारी बनो, स्वयं का दर्शन कर प्रसन्नचित्त रहो।
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अविनाशी स्वराज्य, अविनाशी भव और योगी जीवन अपनाओ।
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वरदाता बाप और वरदानों की प्राप्ति से विशेष आत्मा बनो।
-
सदा बापदादा की याद में और सेवा में अटल रहो।
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भिखारी और अधिकारी में अंतर
प्रश्न: विश्व परिक्रमा में बच्चों ने भिखारी और अधिकारी आत्माओं में क्या अंतर देखा?
उत्तर: कई आत्माएँ भिखारी बनकर भीख मांग रही थीं – कोई धन की भीख, कोई सुख-चैन की, कोई मुक्ति की। अधिकारी आत्माएं भिखारी नहीं मांगतीं।उदाहरण:
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अधिकारी आत्मा कहती है: “यह सब अधिकार हैं।”
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भिखारी कहती है: “दे दो… दे दो…”
मुरली नोट:
“दाता बाप ने बिना माँगे सर्व अविनाशी प्राप्ति का अधिकार स्वत: ही दे दिया।”
स्वदर्शन चक्र – अधिकारी बनने का साधन
प्रश्न: स्वदर्शन चक्रधारी बनने का क्या अर्थ है?
उत्तर: स्वयं का दर्शन करना और प्रसन्नचित्त रहना। केवल एक संकल्प पर ध्यान देना – “मैं बाप का और बाप मेरा।”उदाहरण:
कई संकल्पों में फँसने से बचने के लिए केवल इस एक अंगुली पर स्वदर्शन चक्र बनाए रखा जाता है।मुरली नोट:
“स्वदर्शन नहीं तो प्रसन्नचित्त के बजाय प्रश्नचित हो जाता। प्रसन्नचित्त अर्थात् जहाँ कोई प्रश्न नहीं।”
अविनाशी स्वराज्य और मास्टर दाता
प्रश्न: मास्टर दाता की दरबार में क्या स्थिति होती है?
उत्तर: वहाँ कोई अप्राप्ति नहीं हो सकती। अविनाशी स्वराज्य में खजाने भरपूर हैं।उदाहरण:
बिना माँगे सभी अधिकार स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। संकल्प और याद में रहने वाले भिखारी नहीं बनते।मुरली नोट:
“जहाँ याद है वहाँ फरियाद नहीं। जहाँ फरियाद है वहाँ याद नहीं।”
संस्कार और स्थिति
प्रश्न: भिखारी की पुरानी ड्रेस और अधीनता के संस्कार को कैसे समाप्त किया जाता है?
उत्तर: उन्हें जला देना और सदा श्रेष्ठ रंग – अधिकारी का रंग – में रहना।उदाहरण:
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पंजाब वाले रंग चढ़ाने में होशियार
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राजस्थान वाले राज्य अधिकारी
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इन्दौर मायाजीत
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महाराष्ट्र महान आत्मा
मुरली नोट:
“सदा राज्य अधिकारी, सदा माया के प्रभाव से परे, सदा बाप की छत्रछाया में रहो।”
चारों दिशाओं के अधिकारी और डबल विदेशी
प्रश्न: चारों दिशाओं और डबल विदेशी बच्चों की स्थिति क्या है?
उत्तर: चारों दिशाओं की आत्माएँ – पंजाब, राजस्थान, इन्दौर, महाराष्ट्र – सर्व प्राप्ति अधिकारी बन चुकी हैं। डबल विदेशी बच्चों का मिलन मधुबन के तट पर हुआ।उदाहरण:
चार नदियों का मिलन और पांचवे डबल विदेशी – सभी अविनाशी अधिकारी।मुरली नोट:
“सदा स्वराज्य अधिकारी, स्वदर्शन चक्रधारी, सर्व खजानों से भरपूर महान आत्मायें।”
योगी जीवन और हर्षित स्थिति
प्रश्न: योगी जीवन का क्या अर्थ है?
उत्तर: निरंतर योग में मगन रहना, तन और मन में हर्षित रहना, और दुःखों के आकर्षण से दूर रहना।उदाहरण:
जो निरंतर योगी जीवन वाले हैं, उनका हर्ष तन और मन में आता है। जीवन सदा श्रेष्ठ और अमर बन जाता है।मुरली नोट:
“जहाँ सर्व प्राप्ति हैं वहाँ हर्ष होगा। दुःख के संसार की ओर आकर्षण नहीं।”
वरदानों का संगम
प्रश्न: संगमयुग में बच्चों को किस प्रकार का वरदान मिला?
उत्तर: वरदाता बाप और वरदाता शिक्षक बन गए। बच्चों को अविनाशी भव का वरदान मिला।उदाहरण:
कमल पुष्प समान बच्चे, जो कीचड़ में फँसने वाले नहीं बल्कि दूसरों को निकालने वाले हैं।मुरली नोट:
“अविनाशी माना सदा एकरस स्थिति में रहने वाले। बाप का वर्सा और वरदान मिला तो नीचे क्यों आयें?”
मुख्य संदेश
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भिखारीपन छोड़, सदा अधिकारी बनो।
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स्वदर्शन चक्रधारी बनो, स्वयं का दर्शन कर प्रसन्नचित्त रहो।
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अविनाशी स्वराज्य, अविनाशी भव और योगी जीवन अपनाओ।
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वरदाता बाप और वरदानों की प्राप्ति से विशेष आत्मा बनो।
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सदा बापदादा की याद में और सेवा में अटल रहो।
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- Disclaimer:
यह अध्याय ब्रह्माकुमारीज़ के आध्यात्मिक शिक्षाओं और बापदादा द्वारा दी गई मुरली संदेशों पर आधारित है। यह आध्यात्मिक प्रेरणा और मार्गदर्शन के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है। - भिखारी और अधिकारी, अविनाशी स्वराज्य, मास्टर दाता, स्वदर्शन चक्र, अधिकारी आत्मा, भिखारी आत्मा, संस्कार और स्थिति, चारों दिशाओं के अधिकारी, डबल विदेशी बच्चे, सर्व प्राप्ति अधिकारी, योगी जीवन, हर्षित स्थिति, वरदानों का संगम, वरदाता बाप, वरदाता शिक्षक, अविनाशी भव, सदा अधिकारी बनो, प्रसन्नचित्त रहो, स्वयं का दर्शन, बापदादा की याद, सेवा में अटल, अविनाशी स्थिति, सदा श्रेष्ठ रंग, माया से परे, अमर आत्मा, संतुलित जीवन, आध्यात्मिक वरदान, संगमयुग, विशेष आत्मा, स्नेह और सेवा,Beggar and officer, imperishable self-rule, master giver, Sudarshan Chakra, officer soul, beggar soul, sanskar and stage, officer of all four directions, double foreign children, officer of all attainments, yogi life, happy stage, confluence of blessings, Father who gives blessings, Teacher who gives blessings, may you be imperishable, always become an officer, remain happy, vision of yourself, remembrance of BapDada, steadfast in service, imperishable stage, always elevated colour, beyond Maya, immortal soul, balanced life, spiritual blessing, Confluence Age, special soul, love and service,

