Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
अधिकारी बनने के लिए अधीनता छोडो
ऐसे विल-पावर अपने में भरी है? अपने को सर्व समर्पण किया? सर्व समर्पण उसको कहा जाता है जिसके संकल्प में भी बाडी-कानसेस न हो, देह-अभिमन न हो। उसको कहा जाता है सर्व समर्पण। अपने देह का भान भी अर्पण करना है। मैं फलानी हूँ – यह संकल्प भी अर्पण हो। उसको कहते हैं सर्व समर्पण, सर्व गुणों से सम्पन्न। सर्व गुणों से सम्पन्न को ही सम्पूर्ण कहा जाता है। कोई भी गुण की कमी नहीं। अभी तो वर्णन करते हो ना कि यह कमी है। इससे सिद्ध है कि सम्पूर्ण स्टेज नहीं है। तो सर्व गुण सम्पन्न हैं? तो लक्ष्य यही रखना है कि सर्व समर्पण बनकर सर्व गुण सम्पन्न बन सम्पूर्ण स्टेज को प्राप्त करेंगे ही। ऐसे पुरूषार्थियों को बाप भी वरदान देते हैं कि ‘सदा विजयी भव’। हर संकल्प में कमाल दिखाओ यही विशेषता दिखाओ – जीवन का फैसला कर आई हो ना? अपने आप से फैसला करके आई हो। कोई भी संस्कार के वश नहीं होना। जो हैं ही जगतजीत, विश्व के विजयी वह किसके भी वश हो नहीं सकते। जो स्वयं सर्व आत्माओं को नजर से निहाल करने वाली हैं,उनकी नजर और कहां भी नहीं जा सकती। ऐसे दृढ़ निश्चयबुद्धि हो? अपनी सभी कमजोरियों को भट्ठी में स्वाहा किया वा करना है? फिर ऐसे तो नहीं कहेंगी कि बाकी यह थोड़ी रह गई है? अपनी मंसा की जेब को अच्छी तरह से जांच करना – कहां कोई कोने में कुछ रहा तो नहीं? वा जानबूझ कर जेब खर्च रखा है? यह अच्छी तरह से देखना। उम्मीदवार ग्रुप हो वा इससे भी ऊपर? इससे ऊपर क्या होता है? उम्मीदवार भी हैं और विजयी भी हैं। तो यह अनेक बार का विजयी ग्रुप है। विजयी हैं ही। उम्मीद की बात नहीं। ऐसे विजयी ही विजय-माला के मणके बनते हैं। उम्मीद नहीं लेकिन 100% निश्चय है कि हम विजयी हैं ही। देखना, माया कम नहीं है। माया की छम-छम, रिमझिम कम नहीं। माया भी बड़ी रौनकदार है। सभी तरफ से, सभी रूप से माया की नॉलेज को भी समझ गये हो कि माया क्या चीज़ होती है और किस रूप से, किस रीति से आती है? इसकी भी पूरी नॉलेज ली है? ऐसे तो नहीं कहेंगे कि इस बात की तो हमें नॉलेज नहीं थी? ऐसे अनजान बनकर अपने को छुड़ाना नहीं। कई कहते हैं हमको तो पता नहीं था कि ऐसे भी कोई होता है, क्या-क्या करते रहते हैं! अनजान होने कारण भी धोखे में आ जाते। लेकिन जब मास्टर नॉलेजफुल हो तो अनजानपना नहीं रह सकता। यह जो शब्द निकलता है कि मुझे इस बात का ज्ञान नहीं था; यह भी कमजोरी है। ज्ञानी अर्थात् ज्ञानी। कोई भी बात का अज्ञान रहा तो ज्ञानी कहेंगे क्या? ज्ञान-स्वरूप को कोई भी बात का अज्ञान न रहेगा। जो योगयुक्त होंगे उनको न अनुभव होते भी ऐसा ही अनुभव होगा जैसे कि पहले से सभी-कुछ जानते हैं। त्रिकालदर्शा फिर अनजान कैसे हो सकते हैं! तो मास्टर नॉलेजफुल भी बने और विजयी भी बने; तो हार असम्भव ही अनुभव होगी ना। अब देखेंगे – यह ग्रुप कैसी झलक दिखाता है? आपकी झलक से सभी को बाप की झलक दिखाई दे। बेचारी आत्मायें तड़पती हैं, बाप की जरा झलक दिखाई दे तो सर्व प्राप्ति हो। तो अब बाप की झलक अपनी झलक से दिखाओ। समझा? तो यह विजयी ग्रुप है। उल्लास से आलस्य को भगाने वाले हो। अभी प्रैक्टिकल देखेंगे। प्रैक्टिस को प्रैक्टिकल में कहां तक लाती हो, यह भी मालूम पड़ जायेगा। यह कमाल दिखाओ। जो जिस-जिस भी स्थान पर जाओ, जिस साथी के साथ सर्विस में मददगार बनो उनके तरफ से कमाल के सिवाय और कोई बात ही न आये। एक-एक लाईन में कमाल लिखें, तब कहेंगे विजयी ग्रुप है। बाप समान बनकर दिखाओ। ऐसे कमाल कर दिखाओ जो बड़े भी बाप के गुणगान करें कि सचमुच यह ग्रुप निर्विघ्न, सदा बाप की लगन में मगन रहने वाला है। एक के सिवाय और कुछ सूझता ही नहीं। चाहे एक बाप की लगन, चाहे बाप के कर्त्तव्य की लगन – इसके सिवाय और कुछ सूझेगा ही नहीं। संसार में और कोई वस्तु या व्यक्ति है भी — यह अनुभव ही न हो। ऐसी एक लगन, एक भरोसे में, एकरस अवस्था में, चढ़ती कला में रहने वाले बनकर दिखाओ, तब कहेंगे कमाल। ‘क्यों’ को तो एकदम भस्म करके जाना, इतने तक जो कोई कारण सामने बने तो उस कारण को भी परिवर्तन कर निवारण रूप बना दो। फिर यह नहीं कहना कि यह कारण था। कितने भी कारण हों – मैं निवारण करने वाली हूँ; न कि कारण को देख कमजोर बनना है। कारण को निवारण में परिवर्तन करने वाले ग्रुप हो। इसको विजयी कहा जाता। ऐसे श्रेष्ठ लक्षणधारी भविष्य में लक्ष्मी रूप बनते हैं। लक्ष्मी अर्थात् लक्षण वाली। तो अभी भी चेहरे में,चलन में वह चमक दिखाई देनी चाहिए। ऐसे नहीं कि अभी तो यहां सीख रहे हैं, वहां जाकर दिखायेंगी। जब यहां अपना सबूत देकर जायेंगी तब वहां भी सबूत दे सकेंगी। समझा? अभी तुम सभी हो ही सेवाधारी। सेवाधारी कब भी सुहेजों के संकल्प में नहीं आते। सर्व सम्बन्धों से सर्व अनुभव करना, वह दूसरी बात है लेकिन सदा स्मृति में अपना सेवाधारी स्वरूप रखना है। सुहेजों में लगेंगे तो सेवा भूल जायेगी। सेवाधारी हूँ, विश्व-परिवर्तन करने वाली पतित-पावनी हूँ, – यह अपना स्वरूप स्मृति में रखो। पतित-पावनी के ऊपर कोई पतित आत्मा की नज़र की परछाई भी नहीं पड़ सकती। पतित-पावनी के सामने आने से ही पतित बदलकर पावन बन जावे, इतनी पावर चाहिए। पतित आत्माओं के पतित संकल्प भी न चल सकें, ऐसी अपनी ब्रेक पावरफुल होनी चाहिए। जब उसका ही पतित संकल्प नहीं चल सकता तो पतित-पन का प्रभाव कैसे पड़ सकता? यह भी नहीं सोचना – मैं तो पावन हूँ लेकिन इस पतित आत्मा का प्रभाव पड़ गया। यह भी कमजोरी है। प्रभाव पड़ने का अर्थ ही है प्रभावशाली नहीं हो, तब उनका प्रभाव आपको प्रभावित करता है। पतित- पावनी पतित संकल्पों के भी प्रभाव में नहीं आ सकती। पतित-पावनी के स्वप्न में भी पतितपन के संकल्प वा सीन नहीं आ सकती। अगर स्वप्न में भी पतितपन के दृश्य आते हैं तो समझना चाहिए कि पतित संस्कारों के प्रभाव का असर है। उसको भी हल्का नहीं छोड़ना चाहिए। स्वप्न में भी क्यों आये? इतनी कड़ी दृष्टि, कड़ी वृत्ति, कड़ी स्मृति स्वरूप बनना चाहिए। पतित आत्मा मुझ शस्त्रधारी शक्ति के आगे एक सेकेण्ड में भस्म हो जाए। कोई व्यक्ति भस्म नहीं होगा लेकिन उनके पतित संस्कार नाश हो जायेंगे। आसुरी संस्कारों को नाश करने की आवश्यकता है। मैं पतित-पावनी, आसुरी-पतित संस्कार संहारी हूँ। जो स्वयं संहारी हैं वह कब किसका शिकार नहीं बन सकते। इतना प्रैक्टिकल प्रभाव होना चाहिए जो कोई भी आपके सामने संकल्प करे और उनका संकल्प मूर्छित हो जाए। ऐसा काली रूप बनना है। एक सेकेण्ड में पतित संकल्प की बलि ले लेवें। ऐसी भलेवान बनी हो जो कोई की परछाई भी न पड़ सके? कोमल नहीं बनना है। कोमल जो होते हैं वह निर्बल होते हैं। शक्तियां कोमल नहीं होतीं। माया पर तरस कभी नहीं करना। तुम माया का तिरस्कार करने वाली हो। जितना माया का तिरस्कार करेंगी उतना भक्तों द्वारा या दैवी परिवार द्वारा सत्कार प्राप्त करेंगी। माया पर रोब दिखाना है, न कि रहम। कोई के पुरूषार्थ में मददगार बनने में तरस करना है, माया से नहीं।
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