Avyakta Murli”18-03-1971

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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विजयी बनने के लिए संग्रह और संग्राम की शक्ति आवश्यक

आज विशेष भट्ठी वालों के लिए बुलाया है। भट्ठी वालों ने क्या-क्या धारणायें की हैं – वह देख रहे हैं। आज खास दो बातों की धारणायें हरेक के इस साकार चित्र द्वारा देख रहे हैं। दो शक्तियों की धारणाएं देख रहे हैं कि कहां तक हरेक ने अपनी यथा शक्ति धारणा की हैं। वह दो शक्तियां कौनसी देख रहे हैं? एक तो संग्रह करने की शक्ति और दूसरी संग्राम करने की शक्ति। संग्रह करने की शक्ति भी अति आवश्यक है। तो जो भट्ठी में ज्ञान-रत्नों की धारणा मिली है, उसको बुद्धि में संग्रह रखना और इस संग्रह करने से ही लोक-संग्रह कर सकेंगे। इसलिये संग्रह करने की और फिर संग्राम करने की शक्ति-दोनों ही जरूरी हैं। दोनों शक्तियां धारण की हैं? दोनों में कोई की भी कमी होगी तो कमी वाला कभी भी सदा विजयी नहीं बन सकता। जिसमें जितनी संग्रह करने की शक्ति है उतनी ही संग्राम करने की भी शक्ति रहती है। दोनों शक्तियाँ धारण करने के लिये भट्ठी में आये हो। तो शक्तिस्वरूप बने हो? भट्ठी से कौनसे वरदान प्राप्त किये हैं? भक्ति-मार्ग में वरदान देते हैं ना – पुत्रवान भव, धनवान भव। लेकिन इस भट्ठी से क्या मुख्य वरदान मिला? शिक्षक बने वा मास्टर वरदाता भी बने? एक वरदान मिला शक्तिवान भव, दूसरा वरदान मिला सदैव अव्यक्त एकरस अवस्था का। इन दोनों वरदानों में दोनों ही बातें समाई हुई हैं। यह दोनों ही वरदान प्राप्त करके सम्पत्तिवान बनकर अपना प्रैक्टिकल सबूत दिखाने लिये जाना है। ऐसे नहीं समझना कि घर जा रहे हैं वा अपने स्थान पर जा रहे हैं। लेकिन जो शक्तियां वा वरदान लिये हैं उन्हों को प्रैक्टिकल करने के लिए विश्व स्टेज पर जा रहे हैं, ऐसे समझना है। स्टेज पर एक्टर को कौनसी मुख्य बातें ध्यान में रहती हैं? अटेन्शन और एक्यूरेसी – यह दोनों ही बातें याद रहती हैं। ऐसे ही आप लोग भी अब स्टेज पर एक्ट करके बापदादा को प्रत्यक्ष करने के लिए जा रहे हो। तो यह दोनों ही बातें याद रखना। हर सेकेण्ड, हर संकल्प में अटेन्शन और एक्यूरेट। नहीं तो बापदादा को प्रत्यक्ष करने का श्रेष्ठ पार्ट बजा नहीं सकेंगे। तो अब समझा, क्या करने जा रहे हो? बापदादा को प्रत्यक्ष करने का पार्ट प्ले करने जा रहे हो। यह लक्ष्य रखकर के जाना। जो भी कर्म करो पहले यह देखो कि इस कर्म द्वारा बापदादा की प्रत्यक्षता होगी? ऐसे भी नहीं कि सिर्फ वाणी द्वारा प्रत्यक्ष करना है। लेकिन हर समय के, हर कर्म द्वारा प्रत्यक्ष करना है। ऐसे प्रत्यक्ष करो जो सभी आत्माओं के मुख से यह बोल निकले कि यह तो एक- एक जैसे साक्षात् बाप के समान हैं। आपका हर कर्म दर्पण बन जाए, जिस दर्पण से बापदादा के गुणों और कर्त्तव्य का दिव्य रूप और रूहानियत का साक्षात्कार हो। लेकिन दर्पण कौन बन सकेगा? जो न सिर्फ संकल्पों को लेकिन इस देहाभिमान को भी अर्पण करेगा। जो देहाभिमान को अर्पण करता है उसका हर कर्म दर्पण बन जाता है, जैसे कोई चीज अर्पण की जाती है तो फिर वह अर्पण की हुई चीज़ अपनी नहीं समझी जाती है। तो इस देह के भान को भी अर्पण करने से जब अपनापन मिट जाता है तो लगाव भी मिट जाता है। ऐसे समर्पण हुए हो? ऐसे समर्पण होने वालों की निशानी क्या रहेगी? एक तो सदा योगयुक्त और दूसरा सदा बन्धनमुक्त। जो योगयुक्त होगा वह बन्धन- मुक्त ज़रूर होगा। योगयुक्त का अर्थ ही है देह के आकर्षण के बन्धन से भी मुक्त। जब देह के बन्धन से मुक्त हो गये तो सर्व बन्धन मुक्त बन ही जाते हैं। तो समर्पण अर्थात् सदा योगयुक्त और सर्व बन्धन मुक्त। यह निशानी अपनी सदा कायम रखना। अगर कोई भी बन्धनयुक्त होंगे तो योगयुक्त नहीं कहलायेंगे। जो योगयुक्त होगा तो उनकी परख यह भी होगी – जो उनका हर संकल्प, हर कर्म योगयुक्त होगा। क्योंकि जो भी युक्तियाँ सर्व प्रकार की मिली हैं उन युक्तियों की धारणाओं के कारण युक्तियुक्त और योगयुक्त रहेंगे। समझा, परख की निशानी? इससे अपने आपको समझ सकते हो कि कहाँ तक पहुँचे हैं, इसलिए कहा कि संग्रह और संग्राम की शक्ति, दोनों भरकर जाना। रिजल्ट क्या देखी? सर्टिफिकेट मिला? एक, अपने आप से सेटिस्फाइड होने का सर्टिफिकेट लेना है, दूसरा, सर्व को सेटिस्फाइड करने का सर्टिफिकेट लेना है। तीसरा, सम्पूर्ण समर्पण बनने का।

समर्पण यह नहीं कि आबू में आकर बैठ जाएं। तो समर्पण होने का भी सर्टिफिकेट लेना है। चौथा, जो भी ज्ञान की युक्तियाँ मिलीं उनको संग्रह करने की शक्ति का सर्टिफिकेट भी लेना हैं। यह चार सर्टिफिकेट अपनी टीचर से लेकर जाना। कोई बात में 100 मार्क्स भी इस ग्रुप को हैं। वह कौनसी बात? पुरूषार्थ के भोलेपन में 100 प्रतिशत हैं। पुरूषार्थ में भोलापन ही अलबेलापन है। और एक विशेष गुण भी है। वह यह है कि सभी को अपने में परिवर्तन करने की तीव्र इच्छा ज़रूर है। इसलिए बापदादा इस ग्रुप को उम्मीदवार ग्रुप समझते हैं। लेकिन उम्मीदें तब पूरी कर सकेंगे जब सदैव नम्रचित्त होकर चलेंगे। उम्मीदवार क्वालिटी हो लेकिन जो क्वालिटीज़ मिली हैं उनको धारण करते चलेंगे तो प्रत्यक्ष सबूत दे सकेंगे। समझा?

ज्ञान का साज सुनने में और राज सुनने में अच्छा है, लेकिन अब क्या करना है? राजयुक्त बनना है। योग अच्छा है लेकिन योगयुक्त बनना है। बन्धनमुक्त बनने की इच्छा है लेकिन पहले देह-अभिमान का बन्धन तोड़ना है। फिर सर्व बन्धनमुक्त आपेही बन जायेंगे। समझा? अभी यही कोशिश करना। सबूतमूर्त्त और सपूत बनना है। शक्तिवान और सम्पत्तिवान बने हो? हरेक ने अपने आप से प्रतिज्ञा भी की है। जो प्रतिज्ञा की जाती है उसको पूर्ण करने के लिए पावर भी अवश्य इकट्ठी करेंगे। कितना भी सहन करना पड़े, सामना करना पड़े लेकिन प्रतिज्ञा को पूरा करना ही है। ऐसी प्रतिज्ञा की है? भले सारे विश्व की आत्माएं मिलकर भी प्रतिज्ञा से हटाने की कोशिश करें, तो भी प्रतिज्ञा से नहीं हटेंगे लेकिन सामना करके सम्पूर्ण बनकर के ही दिखायेंगे। ऐसी प्रतिज्ञा करने वालों का यादगार बना हुआ है – अचलघर। तो सदैव यह याद रखना कि जैसा हमारा यादगार है वैसा अब बनना ही है। यह तो सहज है ना। स्थूल निशानी को याद रखने से नशा और निशाना याद रहेगा। यह ज़रूर अपने को समझना है कि सारे विश्व से चुने हुए हम विशेष आत्मायें हैं। जितनी विशेष आत्मायें उतनी उनके हर कर्म में विशेषता होती है। विशेष आत्मा हो ना। कम नहीं हो।

सभी मधुबन-निवासियों को अपने को प्रैक्टिकल विशेष आत्माएं दिखाकर अपने इस ग्रुप का नाम बाला करना है। ऐसा ही लक्ष्य रखना कि कहेंगे कम, लेकिन करके दिखायेंगे। आपके इस ग्रुप की यह विशेषता देखेंगे। स्टेज पर जाकर ऐसा पार्ट बजाना जो सभी वन्स मोर (once more; एक बार और) भी करें। समझा? आपकी निमित्त टीचर आपके ग्रुप को बार-बार निमंत्रण दें। और ग्रुप्स को एक एग्जाम्पल बनकर दिखाना है। कोई अच्छा कर्म करके जाता है तो वह बार-बार याद आता है। तो यह ग्रुप भी ऐसा कमाल करके दिखाये।

विजयी बनने के लिए संग्रह और संग्राम की शक्ति आवश्यक

प्रश्न 1: संग्रह और संग्राम की शक्ति का महत्व क्यों है?

उत्तर: संग्रह और संग्राम की शक्ति दोनों ही एक विजयी बनने के लिए आवश्यक हैं। संग्रह करने की शक्ति से हम ज्ञान और शक्तियों को अपनी बुद्धि में धारण कर सकते हैं, जबकि संग्राम करने की शक्ति हमें मुश्किलों का सामना करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने में मदद करती है। दोनों शक्तियाँ मिलकर एक पूर्ण और संतुलित जीवन जीने के लिए जरूरी हैं।


प्रश्न 2: भट्ठी से क्या मुख्य वरदान प्राप्त होते हैं?

उत्तर: भट्ठी से दो मुख्य वरदान प्राप्त होते हैं: (1) शक्तिवान भव और (2) सदैव अव्यक्त एकरस अवस्था का वरदान। इन वरदानों से हम शक्तियों और आत्मिक स्थिति में स्थिर रहते हुए अपने कार्यों को बिना किसी बन्धन के पूरा कर सकते हैं।


प्रश्न 3: कैसे हम बापदादा की प्रत्यक्षता को हर कर्म में दिखा सकते हैं?

उत्तर: बापदादा की प्रत्यक्षता को हर कर्म में दिखाने के लिए हमें अटेन्शन और एक्यूरेसी के साथ अपने कर्मों को निभाना होगा। हमें यह देखना होगा कि हर कार्य, हर संकल्प बापदादा के गुणों और दिव्यता का साक्षात्कार कराए। इस प्रक्रिया में देहाभिमान को अर्पण करना और हर कर्म को योगयुक्त बनाना जरूरी है।


प्रश्न 4: समर्पण की निशानी क्या होती है?

उत्तर: समर्पण की निशानी यह है कि व्यक्ति सदा योगयुक्त रहता है और हर बन्धन से मुक्त रहता है। जब कोई व्यक्ति अपने देहाभिमान को अर्पण कर देता है, तो वह योगयुक्त और सर्व बन्धनमुक्त हो जाता है, जिससे उसका हर कर्म दिव्यता और समर्पण का प्रतीक बन जाता है।


प्रश्न 5: “संग्रह और संग्राम” की शक्तियों का संतुलन कैसे बनाए रखें?

उत्तर: संग्रह और संग्राम की शक्तियों का संतुलन बनाए रखने के लिए हमें अपनी आत्मिक शक्तियों और ज्ञान को एकत्रित करते हुए, साथ ही जीवन की चुनौतियों और संघर्षों का सामना करना होगा। जब हम दोनों शक्तियाँ संतुलित रूप से धारण करते हैं, तो हम हमेशा विजयी रह सकते हैं।


प्रश्न 6: एक शिक्षिका के लिए समर्पण और सफलता के क्या संकेत हैं?

उत्तर: एक शिक्षिका के लिए समर्पण का संकेत यह है कि वह हमेशा स्वयं को निमित्त मानकर कार्य करती है। सफलता का संकेत यह है कि वह अपने कर्मों और वाणी से बापदादा की प्रत्यक्षता को दिखाती है, और साथ ही आत्मिक गुणों और शुद्धता के साथ जीवन को जीती है।


प्रश्न 7: हम “ज्ञान की युक्तियाँ” को संग्रह करने के लिए क्या कदम उठा सकते हैं?

उत्तर: “ज्ञान की युक्तियाँ” को संग्रह करने के लिए हमें पहले तो ज्ञान को अपनी बुद्धि में पूरी तरह से धारण करना होगा। फिर हमें इन युक्तियों को अपने जीवन में लागू करते हुए आत्मविकास करना होगा। संग्रह का उद्देश्य न केवल स्वयं के लिए, बल्कि दूसरों के लिए भी लाभकारी बनाना होना चाहिए।


प्रश्न 8: विशेष आत्मा होने का क्या अर्थ है?

उत्तर: विशेष आत्मा होने का अर्थ है कि हम दूसरों से अलग हैं और हमारे कर्मों में विशेषता है। एक विशेष आत्मा हर कार्य में बापदादा की दिव्यता और गुणों का प्रतिबिंब होती है। उसकी हर क्रिया, हर संकल्प, और हर विचार में यह विशेषता प्रकट होती है।

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