Blindmen and the Elephant

अंधे और हाथी

अंधे और हाथी एक गाँव में अंधों के लिए एक पाठशाला थी। एक बार गुरुजी को संकल्प आया कि इन्हें हाथी के बारे में बताऊँ। गुरुजी अंधों को हाथी के पास ले गये और कहा कि इसे छूकर देखो कि हाथी कैसा है। अंधों ने उसे छूना शुरू किया। एक ने उसका कान पकड़कर सोचा कि हाथी तो हाथ की पंखा जैसा है। दूसरे ने पैर पकड़ा और सोचने लगा कि हाथी एक स्तम्भ जैसा है। तीसरे ने सूंड को छूआ और कहने लगा, अरे हाथी तो एक मोटे डंडे जैसा है। चौथे अंधे ने हाथी के पेट को छूकर सोचा कि हाथी तो दीवार जैसा है। पाँचवें ने हाथी की पूंछ पकड़कर सोचा कि हाथी तो रस्सी जैसा है। बाद में जब सभी हाथी के बारे में अपनी-अपनी राय बताने लगे तो उनमें उसके अस्तित्व को लेकर वाद-विवाद होने लगा। पहले ने कहा, हाथी सूप (पंखा) जैसा है तो दूसरा कहने लगा, नहीं, वो तो स्तंभ जैसा है। तीसरा कहने लगा कि अरे हाथी तो मोटे डंडे के समान है, तो चौथे ने उसे टोकते हुए कहा कि हाथी तो एक दीवार की तरह है। इतने में गुरुजी ने बीच में ही रोककर सबको शान्त करते हुए कहा कि आपमें से कोई भी गलत नहीं है लेकिन आप में से एक-एक ने हाथी का एक-एक भाग पकड़कर उसे ही पूरा हाथी समझ लिया। वास्तव में, आप सभी के अनुभवों को मिलाकर ही पूरे हाथी की कल्पना की जा सकती है। आध्यात्मिक भाव: – भगवान के अस्तित्व के बारे में भी इस दुनिया में जितने लोग हैं उतनी ही बातें, उतने ही विचार हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा से सम्बन्धित किसी एक बात को जान लेने का मतलब यह नहीं कि उन लोगों ने परमात्मा के अस्तित्व के बारे में सब कुछ जान लिया है। जब भगवान इस धरती पर अवतरित होकर अपना परिचय खुद देते हैं तब ही उनके बारे में पूरी रीति से जाना जा सकता है। जिनके पास भगवान का दिया हुआ ज्ञान-चक्षु नहीं है वो जैसे अंधे हैं। भगवान अपने परिचय में स्वयं कहते हैं कि मेरा नाम सदाशिव है। मैं निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप हूँ और मैं परमधाम निवासी हूँ।

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