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“संगमयुग में रक्षाबंधन का आत्मिक अर्थ | आत्मा और परमात्मा का पवित्र बंधन”


वर्तमान समय की पुनरावृत्ति – संगमयुग में राखी का पुनर्जन्म

 1. भूमिका: क्या राखी सिर्फ एक परंपरा है?

राखी को हमने सदियों से भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना है।
परंतु क्या आप जानते हैं – इस त्यौहार की आत्मिक जड़ें ईश्वर से जुड़ी हुई हैं?

यह केवल एक पारिवारिक रस्म नहीं, बल्कि आत्मा के पवित्र संकल्प का पर्व है,
जो हर कल्प में संगमयुग पर ही होता है।


 2. संगमयुग – जब आत्मा परमात्मा से मिलती है

संगमयुग वह विशेष समय है,
जब कलियुग के अंधकार का अंत हो रहा होता है
और सतयुग की रचना प्रारंभ होती है।

इसी समय परमात्मा शिव ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर
आत्माओं को पुनः आत्म-स्मृति का ज्ञान देते हैं।


 3. राखी का वास्तविक अर्थ – आत्मा को विकारों से रक्षा का सूत्र

राखी बँधवाने का अर्थ क्या है?

 सिर्फ रक्षा की माँग करना नहीं,
 बल्कि आत्मा द्वारा स्वयं को पवित्रता की प्रतिज्ञा से बाँधना है।

यहाँ रक्षा का बंधन बाहरी धागा नहीं,
बल्कि आत्मा का संकल्प है –
“अब मैं विकारों से नहीं बँधूँगा।”


 4. मुरली प्रमाण ( 4 अगस्त 2014):

“यह रक्षाबन्धन पर्व ईश्वरीय यज्ञ से उत्पन्न हुआ है।
यह विकारों से रक्षा का बंधन है। आत्मा स्वयं परमात्मा से बंध जाती है।”

इस वाक्य से स्पष्ट होता है कि राखी कोई सांसारिक परंपरा नहीं,
बल्कि यह परमात्मा द्वारा रचित आध्यात्मिक यज्ञ से जन्मा है।


 5. आत्मा की आत्मा से भेंट – सच्ची राखी

जब आत्मा देह-अभिमान छोड़ती है,
और स्वयं को आत्मा स्वरूप में अनुभव करती है,
तब ही उसकी सच्ची भेंट परमात्मा से होती है।

यही आत्मिक स्थिति राखी का असली स्वरूप है।


 6. ब्रह्माकुमारी बहनें क्या कहती हैं राखी बाँधते समय?

जब ब्रह्माकुमारी बहनें किसी को राखी बाँधती हैं,
तो वह सिर्फ धागा नहीं बाँधतीं,
बल्कि एक दिव्य संदेश देती हैं:

“भाई, तू आत्मा है। अब विकारों से रक्षा कर।”

यह एक आंतरिक प्रतिज्ञा है –
संयम, पवित्रता और आत्म-जागृति की।


 7. ड्रामा की पुनरावृत्ति में राखी का स्थान

हर कल्प में संगमयुग आता है।
और हर संगमयुग में यही राखी का त्योहार आता है –
जहाँ आत्मा स्वयं परमात्मा से जुड़ती है
और विकारों से रक्षा का संकल्प करती है।

यह सिर्फ एक दिन का पर्व नहीं,
बल्कि जन्म-जन्मांतर की सुरक्षा का सूत्र है।


8. तुलना – पारंपरिक राखी vs संगमयुग की राखी

पारंपरिक राखी संगमयुग की राखी
भाई-बहन का पर्व आत्मा और परमात्मा का पर्व
बाहरी धागा आत्मा की आंतरिक प्रतिज्ञा
एक दिन की रस्म जन्म-जन्मांतर की सुरक्षा
भौतिक रक्षा की भावना आत्मा की विकारों से रक्षा

 9. समापन संदेश: राखी केवल रक्षा नहीं, आत्म-विजय का पर्व है

आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि
रक्षाबंधन एक पारंपरिक बंधन नहीं,
बल्कि आत्मिक बल और आत्म-विजय का संकल्प है।

जब आत्मा पवित्र बनती है,
तब ही वह सच्चे अर्थों में सुरक्षित होती है।

 इसलिए आइए –
इस संगमयुग की राखी को आत्मा और परमात्मा के पवित्र बंधन के रूप में मनाएँ।

Q&A: वर्तमान समय की पुनरावृत्ति – संगमयुग में राखी का पुनर्जन्म

प्रश्न 1: क्या रक्षाबंधन केवल एक पारंपरिक पर्व है?

उत्तर: नहीं, रक्षाबंधन केवल एक पारिवारिक पर्व नहीं है। इसकी आत्मिक जड़ें बहुत गहरी हैं। यह आत्मा के पवित्र संकल्प का पर्व है, जो परमात्मा शिव द्वारा संगमयुग पर आत्माओं को पवित्रता का रक्षा-सूत्र बाँधने की प्रक्रिया है।


प्रश्न 2: संगमयुग क्या है और इसका राखी से क्या संबंध है?

उत्तर: संगमयुग वह महान समय है जब परमात्मा शिव ब्रह्मा के तन में आकर आत्माओं को पुनः आत्म-स्मृति दिलाते हैं। यही वह काल है जब विकारों से मुक्ति का ‘रक्षा सूत्र’ आत्मा को दिया जाता है – जिसे रक्षाबंधन का आत्मिक स्वरूप कहा जाता है।


प्रश्न 3: राखी का वास्तविक अर्थ क्या है?

उत्तर: राखी का अर्थ है – आत्मा द्वारा आत्मा को विकारों से बचाने का संकल्प। यह बाहरी धागा नहीं, बल्कि आत्मा की वह प्रतिज्ञा है – “अब मैं विकारों में नहीं जाऊँगा। मैं पवित्र रहूँगा।”


मुरली प्रमाण:

 मुरली दिनांक: 4 अगस्त 2014

“यह रक्षाबन्धन पर्व ईश्वरीय यज्ञ से उत्पन्न हुआ है। यह विकारों से रक्षा का बंधन है। आत्मा स्वयं परमात्मा से बंध जाती है।”


प्रश्न 4: ब्रह्माकुमारी बहनें राखी बाँधते समय क्या कहती हैं?

उत्तर: वह कहती हैं – “भाई, तू आत्मा है। अब विकारों से रक्षा कर।”
यह एक आध्यात्मिक स्मृति दिलाने का कार्य है कि हम पवित्रता का जीवन जिएँ।


प्रश्न 5: पारंपरिक राखी और संगमयुग की राखी में क्या अंतर है?

पारंपरिक राखी संगमयुग की राखी
भाई-बहन का पर्व आत्मा और परमात्मा का पर्व
बाहरी धागा आत्मा की आंतरिक प्रतिज्ञा
एक दिन की रस्म जन्म-जन्मांतर की सुरक्षा
भौतिक रक्षा आत्मा की विकारों से रक्षा

प्रश्न 6: क्या यह पर्व हर कल्प में होता है?

उत्तर: हाँ, जैसा ड्रामा चक्र दोहराता है, वैसा ही यह आत्मिक पर्व भी हर कल्प के संगमयुग पर आता है। आत्मा फिर से परमात्मा से जुड़ती है, और पवित्रता का रक्षा-सूत्र बाँधती है।


प्रश्न 7: राखी हमें क्या संकल्प दिलाती है?

उत्तर: यह हमें आत्म-विजय का संकल्प दिलाती है –
 इन्द्रियों पर संयम,
 पाँच विकारों से बचाव,
 और परमात्मा से जुड़कर सच्ची सुरक्षा की अनुभूति।

Disclaimer:

 यह वीडियो ब्रह्माकुमारी आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित है और इसमें प्रस्तुत सभी विचार, मुरली बिंदु व व्याख्याएं आधिकारिक BK Murli (प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय) के अनुसार हैं। इसका उद्देश्य केवल आत्मिक शिक्षा और पवित्रता का संदेश देना है, न कि किसी धर्म, परंपरा या व्यक्ति की आलोचना करना।
© BK Dr Surender Sharma – Om Shanti Gyan

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