Drama-padam (106) “Can drama or knowledge make one devoid of effort?

D.P 106 “क्या ड्रामा क्या ज्ञान पुरुषार्थ हीन बना सकता है

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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क्या ड्रामा का ज्ञान हमें पुरुषार्थ-हीन बना सकता है? | गहन आध्यात्मिक रहस्य | Brahma Kumaris Gyaan


🗣️ प्रस्तावना (Introduction)

बहुत से भाई-बहनों के मन में यह प्रश्न आता है —
“जब सब कुछ ड्रामा में पहले से तय है, तो हम मेहनत क्यों करें? फिर पुरुषार्थ करने की क्या ज़रूरत है?”
क्या यह ड्रामा का ज्ञान हमें निष्क्रिय, आलसी या पुरुषार्थ-हीन बना देता है?

आइए इस प्रश्न की गहराई में जाकर इसे यथार्थ रूप में समझते हैं।


🧠 1. ड्रामा का ज्ञान: पुरुषार्थ का परम सहयोगी

  • ड्रामा की समझ हमें निष्क्रिय नहीं बनाती, बल्कि पुरुषार्थ की तीव्रता बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है।

  • परमात्मा ने ड्रामा का ज्ञान इसलिए दिया ताकि हम साक्षी बनकर श्रेष्ठतम कर्म करें।

  • यह ज्ञान हमें निष्क्रिय नहीं बनाता, बल्कि हमें यह स्मृति दिलाता है कि “मैं अभी भी अपने कर्मों को सुधार रहा हूँ और श्रेष्ठ बना रहा हूँ।”

🔸 Murli Point: “जो ड्रामा को जान जाता है, वह कभी निष्क्रिय नहीं हो सकता।”


🔥 2. पुरुषार्थ का सही अर्थ: वर्तमान को खुशी-खुशी श्रेष्ठ बनाना

  • पुरुष + अर्थ = वह जो आत्मा के लिए शांति और उन्नति का मार्ग बनाता है।

  • सच्चा पुरुषार्थ यह नहीं कि हम संघर्ष में जियें, बल्कि यह है कि हम हर कर्म को आत्मिक स्मृति में रहकर श्रीमत अनुसार करें।

  • जो आत्मा साक्षी बनकर कर्म करती है, वही सहज पुरुषार्थी है।


💊 3. अगर दवाई न ली जाए, तो खांसी कैसे ठीक होगी?

  • बाबा ने उदाहरण दिया है —
    “अगर किसी को खांसी है और वह बिना दवा लिए बस ड्रामा के भरोसे बैठा है कि ठीक हो जाएगा — तो क्या यह संभव है?”

  • ड्रामा तभी साथ देता है, जब हम प्रयास करते हैं।

  • परिवर्तन पुरुषार्थ से ही संभव है, साक्षी होकर बैठने से नहीं।


⛓️ 4. ड्रामा और पुरुषार्थ: गहराई से जुड़े हुए हैं

  • ड्रामा और पुरुषार्थ विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।

  • ड्रामा हमें प्रेरित करता है —
    “जो कर्म कल्प पहले किया था, वही अब दुबारा करने की प्रेरणा मिलती है।”

  • अगर हम पुरुषार्थ करेंगे, तभी हमारी प्रारब्ध (भाग्य) बनेगी।
    “आज का पुरुषार्थ = कल की प्राप्ति”


🌀 5. ड्रामा का ज्ञान: निर्विकल्प और निर्विचार स्थिति का आधार

  • संकल्प = आत्म-स्मृति में किए गए विचार।

  • विकल्प = आत्म-विस्मृति में आए हुए विकल्प।

  • निर्विकल्प = श्रीमत अनुसार कर्म करना, कोई विकल्प न रखना।
    “बाबा ने जो कहा है, बस वही करना है — कोई विकल्प नहीं।”

  • जब आत्मा इस स्थिति में पहुँचती है, तो वह स्वाभाविक रूप से सहज पुरुषार्थी बन जाती है
    क्योंकि अब वह न उलझती है, न विचलित होती है।


👁️ 6. ड्रामा को साक्षी होकर देखना: श्रेष्ठ कर्म का आधार

  • जब हम ड्रामा को साक्षी होकर देखते हैं, तो हमारे अंदर कोई संकल्पों का तूफान नहीं आता।

  • यह स्थिति हमें परमात्मा की याद में बीज रूप स्थति तक पहुँचा देती है।

  • इस अवस्था में आत्मा सहजता से श्रेष्ठ कर्म करती है — क्योंकि मन और बुद्धि व्यर्थ की उलझनों से मुक्त हो चुके हैं।


🏆 7. निष्कर्ष: पुरुषार्थ ही सफलता का आधार है

  • ड्रामा का सही ज्ञान पुरुषार्थ से विमुख नहीं करता, बल्कि सही दिशा देता है।

  • जो आत्मा ड्रामा को गहराई से समझती है, वह कभी निष्क्रिय नहीं, बल्कि परम पुरुषार्थी बन जाती है।

  • इसलिए हमें ड्रामा को खेल समझकर, साक्षी होकर श्रेष्ठतम पुरुषार्थ करते रहना है।


📍 Final Call to Action

अगर आप भी इस ज्ञान को और गहराई से समझना चाहते हैं, तो
प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के किसी भी नजदीकी सेवा केंद्र पर संपर्क करें।


🙏 समापन

इस नाटक में भाग्यशाली कलाकार बनना है — इसलिए हर क्षण को मूल्यवान समझें, पुरुषार्थ करें और अपना श्रेष्ठ भविष्य स्वयं रचें।

🎯 शीर्षक:क्या ड्रामा का ज्ञान हमें पुरुषार्थ-हीन बना सकता है? | गहन आध्यात्मिक रहस्य | Brahma Kumaris Gyaan

Q1: अगर सब कुछ ड्रामा में पहले से तय है, तो फिर पुरुषार्थ क्यों करें?

उत्तर:ड्रामा में सब कुछ तय है, लेकिन उस “तय” भाग्य को रचने का माध्यम हमारा वर्तमान पुरुषार्थ है।
आज का पुरुषार्थ = कल की प्राप्ति।
ड्रामा हमें बताता है कि जो हम अभी करेंगे, वही पुनः कल्प-कल्प दोहराया जाएगा।


Q2: क्या ड्रामा का ज्ञान हमें निष्क्रिय या आलसी बना देता है?

उत्तर:नहीं। ड्रामा का ज्ञान आत्मा को साक्षी बनकर श्रेष्ठ कर्म करने की प्रेरणा देता है।
बाबा कहते हैं – “जो ड्रामा को जान जाता है, वह कभी निष्क्रिय नहीं हो सकता।”
यह ज्ञान आत्मा को सहज पुरुषार्थ की ओर ले जाता है।


Q3: सच्चा पुरुषार्थ किसे कहते हैं?

उत्तर:सच्चा पुरुषार्थ है – हर कर्म को आत्मिक स्मृति में रहकर, श्रीमत अनुसार, प्रेमपूर्वक करना।
पुरुष + अर्थ = वह कर्म जो आत्मा को अर्थ (शांति, शक्ति, खुशी) देता है।


Q4: अगर हम कुछ न करें और सोचें कि “ड्रामा में जो होगा, अच्छा ही होगा”, तो क्या वह सही सोच है?

उत्तर:यह गलतफहमी है।
बिना प्रयास के फल की अपेक्षा करना, जैसे बिना दवा लिए खांसी के ठीक होने की उम्मीद करना है।
ड्रामा का सहयोग तब मिलता है जब हम पुरुषार्थ करें।


Q5: क्या ड्रामा और पुरुषार्थ एक-दूसरे के विरोधी हैं?

उत्तर:नहीं, ये पूरक हैं।
ड्रामा हमें बताता है कि कल्प पहले जो श्रेष्ठ कर्म किया था, वही अब दोहराने का समय है।
इस प्रेरणा से आत्मा श्रेष्ठ पुरुषार्थ करती है।


Q6: ‘निर्विकल्प स्थिति’ क्या होती है और इसका ड्रामा से क्या संबंध है?

उत्तर:निर्विकल्प स्थिति का अर्थ है — केवल श्रीमत अनुसार चलना, बिना कोई विकल्प या द्वंद्व के।
ड्रामा का साक्षी ज्ञान आत्मा को इतना स्थिर बनाता है कि वह निर्विचार, निर्विकल्प बनकर सहज पुरुषार्थ करती है।


Q7: ड्रामा को साक्षी होकर देखने से क्या लाभ होता है?

उत्तर:जब आत्मा ड्रामा को साक्षी होकर देखती है, तो मन शांत, बुद्धि स्पष्ट और कर्म श्रेष्ठ हो जाते हैं।
स्मृति रहती है — “मैं अभिनेता हूँ, यह सब एक खेल है।”
इस भाव से आत्मा बीज रूप स्थिति में स्थित होकर परमात्मा की याद में टिकती है।


Q8: निष्कर्ष रूप में, ड्रामा का ज्ञान पुरुषार्थ में कैसे सहायक है?

उत्तर:ड्रामा का ज्ञान आत्मा को यह बोध कराता है कि
“हर क्षण मूल्यवान है, और मैं ही अपने भाग्य का निर्माता हूँ।”
इस स्मृति से आत्मा हर पल श्रेष्ठतम पुरुषार्थ करती है, जो अंततः संपूर्णता तक पहुँचाता है।

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