D.P 114″ बेहद के नाटक कीअध्दुत स्मृति से अपार खुशी
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“बेहद के नाटक की अद्भुत स्मृति से अपार खुशी”
🪷 1. ओम् शांति: आज का पदम
पदम: “बेहद के नाटक की अद्भुत स्मृति से अपार खुशी…”
आज के दिव्य महावाक्य में बाबा ने हमें एक गुप्त रहस्य याद दिलाया है — बेहद के नाटक की स्मृति। इस स्मृति से कैसे हमें अपार खुशी मिलती है, आइए गहराई से समझते हैं।
🌌 2. बेहद का नाटक: इसका अर्थ और व्यापकता
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‘बेहद’ शब्द का अर्थ होता है: असीमित, जिसमें कोई सीमा नहीं।
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यह नाटक क्यों बेहद कहा जाता है? क्योंकि इसमें संपूर्ण ब्रह्मांड, सभी आत्माएं, पांचों तत्व, 118 तत्व, प्रकृति, समय, परमधाम, सूक्ष्म वतन — सब कुछ शामिल है।
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इस नाटक के बाहर कुछ भी नहीं है — न आत्मा, न परमात्मा, न तत्व।
“हर आत्मा, हर जीव-जंतु, हर ग्रह, हर क्षण — सब एक्यूरेट अपने रोल के अनुसार चलते हैं।”
✨ 3. परमधाम भी नाटक में सम्मिलित है
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बाबा हमें बार-बार याद दिलाते हैं: परमधाम भी ड्रामा का ही हिस्सा है।
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यह जगह जहाँ कुछ भी नहीं है, वो भी इस ड्रामा में समय अनुसार शामिल होती है।
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यह स्थान पाँचों तत्वों और 118 तत्वों से परे है, फिर भी नाटक में बिल्कुल स्टिक समय अनुसार आता है।
🧠 स्पष्टीकरण:
परमधाम का पाँचों तत्वों पर प्रभाव नहीं होता और न ही कोई तत्व उस पर प्रभाव डाल सकता है।
🎭 4. यह नाटक क्यों कहा जाता है ‘संपूर्ण और परिपूर्ण’?
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संपूर्ण = कंप्लीट, पूर्ण।
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परिपूर्ण = एक-दूसरे के पूरक, परस्पर आधारित।
जैसे:
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ज्ञान बढ़ता है तो अज्ञान घटता है,
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कर्म होता है तो प्रतिक्रिया निश्चित है,
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जो दुख है वह भी अपनी भूमिका निभा रहा है।
🎬 ड्रामा का हर एक्ट — हर एक्शन और रिएक्शन — पूरा और परिपूर्ण है।
🔭 5. यह नाटक कितना सूक्ष्म और स्टिक है
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बाबा कहते हैं:
“हर कल्प में हर घटना बिल्कुल उसी समय, उसी प्रकार होती है।”
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आज जो चंद्रमा में परिवर्तन हो रहा है, वह हर कल्प में ठीक उसी समय होता है।
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यह ड्रामा इतना सूक्ष्म है कि हवा की गति, सूर्य की रौशनी, समुद्र की लहर तक निश्चल और समयानुसार चलती हैं।
🙌 6. परमात्मा भी इस नाटक में बंधे हुए हैं
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परमात्मा इस नाटक के डायरेक्टर, क्रिएटर और मुख्य एक्टर हैं।
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वह भी इस ड्रामा के टाइमटेबल से बंधे हैं और एक्यूरेट समय पर आते हैं।
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यह बताता है कि कोई भी इस नाटक से बाहर नहीं।
☀️ 7. स्मृति से स्थिरता और खुशी कैसे मिलती है?
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जब आत्मा इस बेहद के नाटक को स्मृति में रखती है, तो:
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मन स्थिर, अचल, अडोल हो जाता है।
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हर परिस्थिति को आत्मा दृष्टा बनकर देखती है, विचलित नहीं होती।
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यह समझ आती है कि:
“यह दुख, यह घटना, यह बदलाव — सब ड्रामा का पार्ट है। यह भी बीत जाएगा।”
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💎 8. बाबा की मुरली: सच्चे खुशी का स्रोत
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याद का अर्थ है:
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बाबा का ज्ञान,
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बाबा की श्रीमत,
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बाबा की शिक्षाएँ।
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जब हम बाबा की मुरली से प्रेम करते हैं और उसे आत्मसात करते हैं, तो:
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वह ज्ञान हमें बेहद की नाटक की याद दिलाता है,
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जिससे हमारे अंदर स्वाभाविक खुशी का संचार होता है।
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🌅 9. निष्कर्ष: इस नाटक की स्मृति से बना लें जीवन आनंदमय
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इस बेहद के नाटक की स्मृति हमें सिखाती है:
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हम सभी अभिनेत्री आत्माएं हैं,
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हमारा हर कर्म, हर भावना पूर्व निर्धारित है,
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हमें केवल रोल निभाना है, डायरेक्टर की श्रीमत अनुसार।
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🎁 इस स्मृति में रहकर — हम निश्चिंत, निडर, और हमेशा खुश रह सकते हैं।
📌 अंतिम संदेश
“परमधाम से लेकर प्रकृति तक, सब कुछ इस बेहद के नाटक का भाग है।
इस गहन स्मृति में स्थित आत्मा ही सच्चे अर्थों में स्थितप्रज्ञ, आनंदमय और विजयी बनती है।”
🪷 बेहद के नाटक की अद्भुत स्मृति से अपार खुशी — प्रश्नोत्तर
❓1. ‘बेहद का नाटक’ क्या होता है?
उत्तर:‘बेहद’ का अर्थ है असीमित — जिसमें न कोई सीमा है, न कोई अंत।
‘बेहद का नाटक’ वह दिव्य और शाश्वत घटनाचक्र है जिसमें पूरा ब्रह्मांड, सभी आत्माएं, पाँचों तत्व, 118 सूक्ष्म तत्व, परमधाम और समय स्वयं भी शामिल हैं।
यह सम्पूर्ण, परिपूर्ण और एक्यूरेट नाटक है — जिससे बाहर कुछ भी नहीं है।
❓2. परमधाम जो शांति और स्थिरता का स्थान है, वह भी नाटक का भाग कैसे है?
उत्तर:परमधाम पाँचों तत्वों से परे है, लेकिन वह भी समय अनुसार ड्रामा में आता है।
जैसे आत्मा शरीर में आती है, वैसे ही समय अनुसार परमधाम का पार्ट भी चलता है — यह भी ड्रामा की सटीकता को दर्शाता है।
❓3. यह नाटक ‘संपूर्ण’ और ‘परिपूर्ण’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:‘संपूर्ण’ का अर्थ है: हर दृश्य, हर आत्मा का रोल पूरा और तय है।
‘परिपूर्ण’ का अर्थ है: हर घटना आपसी सामंजस्य और क्रिया-प्रतिक्रिया के सिद्धांत पर आधारित है।
हर परिवर्तन, हर सुख-दुख, हर विकास-प्रलय — सब एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। इसीलिए यह नाटक संपूर्ण और परिपूर्ण है।
❓4. क्या इस ड्रामा में कोई त्रुटि या गलती हो सकती है?
उत्तर:बिल्कुल नहीं।यह नाटक इतना सूक्ष्म और एक्यूरेट है कि हर कल्प में चंद्रग्रहण, समुद्र की लहरें, सूर्य की गति — सब वैसा ही होता है।
बाबा कहते हैं: “हर कल्प में हर घटना उसी समय, उसी प्रकार होती है।”
❓5. क्या परमात्मा स्वयं भी इस नाटक में बंधे हुए हैं?
उत्तर:हाँ, परमात्मा शिव भी इस ड्रामा के एक्टर, क्रिएटर और निर्देशक हैं।
वे भी एक्यूरेट टाइमटेबल से बंधे हैं — संगमयुग में तय समय पर अवतरित होते हैं, ज्ञान देते हैं और पुनः अपने परमधाम लौट जाते हैं।
❓6. इस नाटक की स्मृति आत्मा को कैसे स्थिर और निडर बनाती है?
उत्तर:जब आत्मा इस बेहद नाटक की गहराई को समझती है, तो वह दृष्टा भाव में स्थित हो जाती है।
हर परिस्थिति को रोल समझकर आत्मा विचलित नहीं होती — चाहे वह दुख हो, अपमान हो या परिवर्तन।
यह स्मृति हमें सिखाती है: “यह भी बीत जाएगा”।
❓7. इस स्मृति से हमें अपार खुशी क्यों मिलती है?
उत्तर:क्योंकि यह स्मृति आत्मा को ईश्वर, ज्ञान और आत्म-रियलिटी से जोड़ती है।
जब हमें समझ आता है कि यह सब नाटक का पार्ट है — हम निश्चिंत हो जाते हैं।
“मैं आत्मा हूँ, रोल बजा रहा हूँ — सब पूर्वनिर्धारित है” — इस भावना से डर, चिंता और अशांति समाप्त हो जाती है।
❓8. बाबा की मुरली हमें इस नाटक की स्मृति कैसे दिलाती है?
उत्तर:बाबा की मुरली आत्मा को सच्चे ज्ञान से भरती है — जिसमें आत्मा को अपना मूल, परमधाम, कर्मों का चक्र और नाटक की गहराई समझ आती है।
मुरली हमें बार-बार ड्रामा की परिपूर्णता, ईश्वर की यथार्थता और आत्मा की शाश्वतता याद दिलाती है — जिससे अंदर स्वाभाविक खुशी उत्पन्न होती है।
❓9. इस नाटक की स्मृति में स्थित रहकर हम जीवन को कैसे आनंदमय बना सकते हैं?
उत्तर:जब हम जान जाते हैं कि यह नाटक पहले भी ऐसा ही चला है, आगे भी वैसा ही चलेगा — तो हम हर परिस्थिति में स्थिर, सहज, निडर और हर्षित रहते हैं।
हमें अब कर्म करने हैं डायरेक्टर (बाबा) की श्रीमत अनुसार।
इसलिए, ड्रामा की स्मृति हमें सच्चा विजयी और सदा खुश बना देती है।
📌 अंतिम निष्कर्ष:
“परमधाम से लेकर पाताल तक — सब कुछ इस बेहद के नाटक में सम्मिलित है।
जो आत्मा इस गहन स्मृति में स्थित रहती है, वही सच्चे अर्थों में स्थितप्रज्ञ, आनंदमय और विजयी बनती है।”#बेहद_का_नाटक, #ब्रह्माकुमारी_ज्ञान, #परमधाम_का_रहस्य, #बाबा_की_मुरली, #आत्मिक_स्थिति, #ड्रामा_की_स्मृति, #संपूर्ण_ड्रामा, #परिपूर्ण_नाटक, #आनंदमय_जीवन, #परमात्मा_का_पाठ, #स्थिर_मन, #साक्षी_भाव, #ज्ञान_की_खुशी, #ब्रह्माकुमारी_स्पीच, #आध्यात्मिक_ज्ञान, #बाबा_का_ज्ञान, #नाटक_की_गहराई, #स्वधर्म_की_स्मृति, #स्मृति_से_शक्ति, #परमधाम_की_स्मृति,
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