अध्याय : क्या रावण सचमुच बाहर था या हमारे अंदर?
1. परिचय
हमने बचपन से सुना है कि रावण लंका का राजा था जिसके दस सिर थे। हर साल दशहरे पर उसका पुतला जलाते हैं।
लेकिन असली सवाल यह है – क्या रावण कोई बाहर का व्यक्ति था, या फिर वह वास्तव में हमारे अंदर ही है?
2. शिव बाबा की मुरली से स्पष्टता
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साकार मुरली 25 अक्टूबर 2004
बाबा ने कहा – “रावण तो विकारों का नाम है। मनुष्य समझते हैं कोई राक्षस था, इसलिए पुतला जलाते रहते हैं। असली रावण का दहन तो आत्मा में विकारों को खत्म करने से होगा।” -
अव्यक्त मुरली 9 अक्टूबर 1979
बाबा ने कहा – “दशहरा का असली अर्थ है आत्मा की विजय। जब आत्मा रावण रूपी विकारों पर जीत पाती है, तो सच्चा विजय दशमी मनाई जाती है।” -
साकार मुरली 18 अक्टूबर 1919
बाबा ने स्पष्ट किया – “रावण का 10 सिर कोई मनुष्य का सिर नहीं था। वो 10 विकारों का प्रतीक है – पाँच विकार पुरुष के और पाँच स्त्री के। यही है असली रावण।”
3. रावण कौन है?
असली रावण कोई बाहर का व्यक्ति नहीं, बल्कि वह है हमारे अंदर बैठे पाँच विकार:
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काम
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क्रोध
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लोभ
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मोह
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अहंकार
जब आत्मा इन विकारों के वश में हो जाती है, तभी दुख, कलह और असंतोष शुरू होता है।
4. उदाहरण द्वारा समझें
मान लीजिए, घर में ही दीमक लग गई हो और हम बाहर किसी पेड़ को काटते रहें – क्या घर बचेगा? नहीं।
ठीक उसी प्रकार, अगर असली बुराई अंदर है और हम बाहर पुतला जलाते रहें, तो उसका कोई लाभ नहीं।
5. क्यों कहते हैं रावण के 10 सिर?
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पाँच विकार पुरुष के
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पाँच विकार स्त्री के
जब दोनों मिलते हैं तो बनता है 10 सिर वाला रावण।
यह प्रतीक है कि विकारों के कारण ही आत्मा दास बन जाती है और सुख-शांति खो बैठती है।
6. अंदर का रावण और बाहर का पुतला
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बाहर का पुतला तो हर साल जलाते हैं।
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लेकिन अगर अंदर का रावण न जले, तो पुतला जलाने का कोई फायदा नहीं।
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बाबा कहते हैं – “सच्चा दशहरा वही है जब आत्मा विकारों पर विजय प्राप्त करती है।”
7. व्यवहारिक शिक्षा – विकार पर विजय कैसे?
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काम पर विजय → पवित्र दृष्टि और ईश्वर प्रेम
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क्रोध पर विजय → सहनशीलता और शांति
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लोभ पर विजय → संतोष और दान
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मोह पर विजय → आत्मिक संबंध
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अहंकार पर विजय → “मैं आत्मा हूं” की स्थिति
8. निष्कर्ष
भाइयों और बहनों, रावण कहीं बाहर नहीं है।
वह हमारे अंदर के विकारों के रूप में है।
दशहरा हमें यही सिखाता है कि असली विजय दशमी तब है जब आत्मा रावण रूपी विकारों से मुक्त होकर अपनी देवी-देवता सृष्टि को प्राप्त करे।
बाहर का पुतला तो केवल संकेत है, असली दहन तो आत्मा का होना चाहिए।
क्या रावण सचमुच बाहर था या हमारे अंदर?
प्रश्न 1: बचपन से हम रावण को कैसे जानते आए हैं?
उत्तर: बचपन से हमने सुना है कि रावण लंका का राजा था जिसके दस सिर थे। हर साल दशहरे पर उसका पुतला जलाया जाता है। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या रावण कोई बाहरी व्यक्ति था या वह हमारे अंदर ही है।
प्रश्न 2: शिव बाबा मुरली में रावण को कैसे समझाते हैं?
उत्तर:
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साकार मुरली 25 अक्टूबर 2004: “रावण तो विकारों का नाम है। मनुष्य समझते हैं कोई राक्षस था, इसलिए पुतला जलाते रहते हैं। असली रावण का दहन तो आत्मा में विकारों को खत्म करने से होगा।”
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अव्यक्त मुरली 9 अक्टूबर 1979: “दशहरा का असली अर्थ है आत्मा की विजय। जब आत्मा रावण रूपी विकारों पर जीत पाती है, तो सच्चा विजय दशमी मनाई जाती है।”
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साकार मुरली 18 अक्टूबर 1919: “रावण का 10 सिर कोई मनुष्य का सिर नहीं था। वो 10 विकारों का प्रतीक है – पाँच विकार पुरुष के और पाँच स्त्री के। यही है असली रावण।”
प्रश्न 3: असली रावण कौन है?
उत्तर: असली रावण हमारे अंदर ही बैठा है – काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के रूप में। जब आत्मा इन विकारों के वश में हो जाती है, तभी दुख, कलह और असंतोष शुरू होता है।
प्रश्न 4: बाहर का पुतला जलाना क्यों पर्याप्त नहीं है?
उत्तर: यदि घर में दीमक लग गई हो और हम बाहर पेड़ काटते रहें – क्या घर बच जाएगा? नहीं। उसी प्रकार, असली बुराई अंदर है और हम केवल बाहर पुतला जलाते रहें, तो उसका कोई लाभ नहीं।
प्रश्न 5: रावण के 10 सिर का क्या अर्थ है?
उत्तर:
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पाँच विकार पुरुष के,
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पाँच विकार स्त्री के।
जब ये दोनों मिलते हैं तो प्रतीक बनता है 10 सिर वाला रावण। इसका अर्थ है कि विकारों के कारण आत्मा दास बन जाती है और सुख-शांति खो देती है।
प्रश्न 6: सच्चा दशहरा कौन-सा है?
उत्तर: बाहर का पुतला जलाना तो केवल एक संकेत है। असली दशहरा वही है जब आत्मा विकारों पर विजय पाकर पवित्रता और शांति को धारण करती है।
प्रश्न 7: विकारों पर विजय कैसे पाई जा सकती है?
उत्तर:
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काम पर विजय: पवित्र दृष्टि और ईश्वर प्रेम से।
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क्रोध पर विजय: सहनशीलता और शांति से।
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लोभ पर विजय: संतोष और दान से।
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मोह पर विजय: आत्मिक संबंध की भावना से।
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अहंकार पर विजय: “मैं आत्मा हूं” की स्थिति से।
प्रश्न 8: इस शिक्षा का निष्कर्ष क्या है?
उत्तर: भाइयों और बहनों, रावण कहीं बाहर नहीं है, वह हमारे अंदर के विकारों के रूप में है। दशहरा हमें यही सिखाता है कि असली विजय दशमी तब है जब आत्मा विकारों से मुक्त होकर देवी-देवता सृष्टि को प्राप्त करे।