Garuda Purana / Brahma Kumari Gyan (23) Not rituals, but the power of actions

गरुड़ पुराण/ब्रह्मकुमारी ज्ञान (23) कर्मकांड नहीं, कर्मों की शक्ति

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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आज हम उस अटूट सत्य पर चर्चा करेंगे जो हर आत्मा की गति का निर्णायक हैकर्म

गरुड़ पुराण और अन्य शास्त्रों में जहाँ मृत्यु के बाद के कर्मकांडों पर जोर दिया गया,

वहीं ईश्वरीय ज्ञान हमें एक बिल्कुल भिन्न और गहन सत्य सिखाता है

“जैसे कर्म, वैसी गति।”क्या मृत्यु के बाद कर्मकांड आत्मा को गति देते हैं?यह प्रश्न हर युग में उठा है

क्या मृत आत्मा को गति दिलाने के लिए दसगात्र, पिंडदान, हवन, तर्पण जैसे कर्मकांड जरूरी हैं?

 ब्रह्मा कुमारियों के ज्ञान के अनुसार,उत्तर हैनहीं।क्यों? क्योंकि आत्मा की गति निर्धारित होती है

उसके जीवन के कर्मों,उसकी सोच,और अंत समय के संकल्प पर।

 कर्मों की शक्ति का सिद्धांत ईश्वरीय ज्ञान हमें यह स्मरण कराता हैहम आत्मा हैं

 हम ही अपने कर्मों के रचयिता हैं और हमारे हर संकल्प और हर भावना का लेखा-जोखा है

 जिस आत्मा ने:सात्विक जीवन जिया सच्चाई और पवित्रता अपनाई और अंत समय में ईश्वर की याद में रही

 उस आत्मा की गति किसी कर्मकांड पर निर्भर नहीं होती। शुद्ध संकल्प

= सहज यात्रा  जब आत्मा परमात्मा की याद में देह छोड़ती है,

तो वह जैसे पहले से तैयार होती है अगली यात्रा के लिए।

 कोई डर नहीं कोई भटकाव नहीं कोई प्रेत योनि होती नहीं बल्कि एक शांत, स्थिर, और सहज गति

 यह आत्मा की अपनी अर्जित आत्मिक शक्ति का परिणाम होता है।तो फिर कर्मकांड

क्यों? धार्मिक दृष्टिकोण से कर्मकांड:सामाजिक परंपरा हैं

 शांति का प्रतीक मानी जाती हैं लेकिन आत्मा की गति नहीं तय करतीं

 ईश्वरीय ज्ञान हमें सिखाता है कि मृत आत्मा की मदद करना है,तो आज ही अपने कर्मों को शुद्ध बनाओ।

 दूसरों की आत्मा के लिए, खुद आत्मा के लिएपरमात्मा की याद और श्रेष्ठ संकल्प ही सबसे श्रेष्ठ दानहैं।

 निष्कर्ष: आत्मा की गति का असली आधार मृत्यु के बाद नहीं, मृत्यु से पहले के कर्म ही आत्मा की गति का आधार हैं

परमात्मा की याद ही सच्चा तर्पण है कर्मकांड से नहीं, कर्मों की पवित्रता से आत्मा पवित्र बनती है

ईश्वर-स्मृति से आत्मा स्वतः मुक्त हो जाती है

कर्मकांड नहीं, कर्मों की शक्ति

प्रश्नः-1. क्या मृत्यु के बाद कर्मकांड आत्मा को गति देते हैं?

उत्तर: ब्रह्मा कुमारियों के ज्ञान के अनुसार, मृत्यु के बाद कर्मकांड आत्मा को गति नहीं देते। आत्मा की गति उसके जीवन के कर्मों, उसकी सोच, और अंत समय के संकल्प पर निर्भर करती है। आत्मा की असली गति उसके शुद्ध संकल्पों और ईश्वर की याद में स्थित रहने पर निर्भर होती है, न कि कर्मकांडों पर।

प्रश्नः-2. ईश्वरीय ज्ञान के अनुसार आत्मा की गति कैसे निर्धारित होती है?

उत्तर: आत्मा की गति उसके जीवन में किए गए कर्मों, उसकी सोच, और अंत समय में किए गए संकल्पों पर निर्भर होती है। जो आत्मा शुद्ध, सात्विक जीवन जीती है और अंत समय में परमात्मा की याद में स्थित होती है, उसकी गति सहज और स्थिर होती है, जो कर्मकांडों से स्वतंत्र होती है।

प्रश्नः-3. कर्मकांडों का धार्मिक दृष्टिकोण क्या है?

उत्तर: धर्म के दृष्टिकोण से कर्मकांड सामाजिक परंपरा के रूप में होते हैं और शांति का प्रतीक माने जाते हैं। हालांकि, ये आत्मा की गति निर्धारित नहीं करते। आत्मा की गति उसके जीवन के कर्मों और संकल्पों से तय होती है, न कि कर्मकांडों से।

प्रश्नः-4. शुद्ध संकल्पों का क्या महत्व है?

उत्तर: शुद्ध संकल्प आत्मा की सहज और पवित्र यात्रा का आधार होते हैं। जब आत्मा परमात्मा की याद में देह छोड़ती है, तो वह अपनी अर्जित आत्मिक शक्ति के कारण स्वाभाविक रूप से अगली यात्रा के लिए तैयार होती है। शुद्ध संकल्प आत्मा को आत्मिक शांति और गति प्रदान करते हैं।

प्रश्नः-5. कर्मकांड से आत्मा कैसे पवित्र बनती है?

उत्तर: कर्मकांड से नहीं, बल्कि कर्मों की पवित्रता से आत्मा पवित्र बनती है। आत्मा को सच्चा तर्पण और पवित्रता प्राप्त करने के लिए परमात्मा की याद और श्रेष्ठ संकल्पों की आवश्यकता होती है।

प्रश्नः-6. मृत्यु के बाद आत्मा की मदद करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका क्या है?

उत्तर: ब्रह्मा कुमारियों के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा की मदद करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका यह है कि हम आज ही अपने कर्मों को शुद्ध बनाएं। दूसरों की आत्मा के लिए, खुद अपनी आत्मा के लिए—परमात्मा की याद और श्रेष्ठ संकल्प ही सबसे श्रेष्ठ ‘दान’ हैं।

प्रश्नः-7. निष्कर्ष क्या है?

उत्तर: आत्मा की गति का असली आधार मृत्यु के बाद नहीं, बल्कि मृत्यु से पहले के कर्म होते हैं। कर्मकांडों से नहीं, कर्मों की पवित्रता से आत्मा पवित्र बनती है। परमात्मा की याद ही सच्चा तर्पण है, और यही आत्मा को स्वाभाविक रूप से मुक्ति दिलाती है।

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