कैसे होता है आत्मा का जन्म और 84वें जन्म का महत्व?(How is the soul born and the significance of the 84th birth?)
Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
सृष्टि चक्र के अनुसार, आत्मा अनेक जन्मों की यात्रा करती है। हर युग में आत्मा का जीवनकाल और जन्मों की संख्या अलग-अलग होती है। सतयुग से लेकर कलियुग तक आत्मा 83 जन्मों की यात्रा करती है, और संगम युग पर उसे अपना 84वां विशेष जन्म प्राप्त होता है। इसे “डायमंड जन्म” कहा जाता है। आइए, आत्मा के जन्मों और 84वें जन्म के महत्व को विस्तार से समझते हैं।
सृष्टि चक्र और आत्मा के 84 जन्म
1. सतयुग: स्वर्णिम युग
- संख्या: 8 जन्म
- विशेषता: सत्य, पवित्रता, और दिव्यता का युग।
- आत्मा इस काल में अपने सबसे ऊंचे स्तर पर होती है और इसे “गोल्डन स्टेज” कहा जाता है।
2. त्रेता युग: चांदी युग
- संख्या: 12 जन्म
- विशेषता: चांदी के समान चमकता हुआ युग।
- सत्य थोड़ा कम होता है, लेकिन आत्मा अभी भी दिव्यता से भरपूर होती है।
3. द्वापर युग: तांबा युग
- संख्या: 21 जन्म
- विशेषता: भक्ति और कर्म का आरंभ।
- इस काल में आत्मा के गुण और शक्तियां धीरे-धीरे कम होने लगती हैं।
4. कलियुग: लौह युग
- संख्या: 42 जन्म
- विशेषता: संघर्ष, भौतिकता, और पतन का युग।
- आत्मा अपने सबसे निम्न स्तर पर पहुंच जाती है और कई विकारों से प्रभावित होती है।
5. संगम युग: परिवर्तन का युग
- संख्या: 84वां जन्म
- विशेषता: सत्य और कलियुग के बीच का अद्वितीय समय।
- इसे आत्मा का “डायमंड जन्म” कहा जाता है, जहां वह ईश्वरीय ज्ञान से पुनः दिव्यता प्राप्त करती है।
संगम युग का 84वां जन्म: अंतिम या प्रारंभिक?
संगम युग में आत्मा का जन्म अपने आप में अनोखा है। इसे “जीते जी मरना” भी कहा जाता है। जब आत्मा परमपिता शिव बाबा का ज्ञान प्राप्त करती है, तो यह उसका नया जन्म कहलाता है।
यह जन्म विशेष क्यों है?
- दाग रहित बनना: 83 जन्मों के दौरान आत्मा पर जो विकारों के दाग लगे होते हैं, उन्हें मिटाने का यही अवसर होता है।
- डायमंड जन्म: यह जन्म अन्य सभी जन्मों से अधिक मूल्यवान है और आत्मा को पवित्र और शक्तिशाली बनाता है।
- पुनर्नवा जीवन: आत्मा को दिव्यता और पवित्रता की ओर ले जाने वाला यह जन्म, उसके जीवन का सर्वोच्च क्षण होता है।
किसी आत्मा का 84वां जन्म कैसे तय होता है?
1. सतयुग में जन्म का समय:
जो आत्माएं सतयुग के प्रारंभिक 150 वर्षों में जन्म लेती हैं, वे अपने पूरे 84 जन्म पूरे करती हैं।
2. देरी से आने वाली आत्माएं:
यदि आत्मा सतयुग के मध्य या अंत में (300 या 450 वर्षों के बाद) जन्म लेती है, तो उसके जन्मों की संख्या कम हो जाती है।
3. संगम युग का विशेष योगदान:
- संगम युग पर आत्मा गर्भ से नहीं, बल्कि ज्ञान के माध्यम से जन्म लेती है।
- शिव बाबा की संतान के रूप में आत्मा “गोद” ली जाती है।
संगम युग में जन्म लेने की प्रक्रिया
1. एडवांस पार्टी:
- संगम युग में पवित्र बन चुकी आत्माएं एडवांस पार्टी में शामिल होती हैं।
- उनका शरीर प्रकृति द्वारा सुरक्षित रखा जाता है।
2. संकल्प से गर्भ धारण:
- सतयुग की शुरुआत में आत्माएं संकल्प से गर्भ धारण करती हैं।
- वे स्वयं अपनी इच्छानुसार शरीर धारण करती हैं।
3. पहला जन्म या 84वां जन्म?
- सतयुग में आत्मा का जन्म उसका पहला जन्म कहलाता है।
- संगम युग पर शरीर बदलकर सतयुग में प्रवेश करने वाली आत्मा का यह 84वां जन्म होता है।
संगम युग और आत्मा की भूमिका
1. डायमंड जन्म:
संगम युग का जन्म आत्मा को कोयले से हीरे में बदलने जैसा है। यह सबसे मूल्यवान जन्म है।
2. मुक्ति और जीवनमुक्ति:
- संगम युग में परमात्मा सभी आत्माओं को ज्ञान और शक्ति प्रदान करते हैं।
- सभी आत्माओं को मुक्ति (शांति) और जीवनमुक्ति (दिव्यता) प्राप्त करनी होती है।
3. आत्माओं का अंतिम लक्ष्य:
परमात्मा की संतान बनना और सतयुग के स्वर्णिम युग में प्रवेश करना।
निष्कर्ष
संगम युग में आत्मा का 84वां जन्म न केवल दिव्य प्रक्रिया है, बल्कि यह उसके नए जीवन का आरंभ भी है। यह जन्म आत्मा को 83 जन्मों के कर्म बंधनों से मुक्त कर, उसे पुनः पवित्र और शक्तिशाली बनाता है।
“डायमंड जन्म” का महत्व
यह जन्म आत्मा को स्वयं को तराशने का अवसर देता है। यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है और सतयुग के स्वर्णिम युग में प्रवेश दिलाता है।
“डायमंड जन्म हमें अपनी दिव्यता और पवित्रता का एहसास कराने का माध्यम है। यह आत्मा का सबसे मूल्यवान जन्म है, जो उसे परमात्मा की ओर ले जाता है।”
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Q1: सृष्टि चक्र में आत्मा के कुल कितने जन्म होते हैं?
A:सृष्टि चक्र में आत्मा कुल 84 जन्म लेती है:
- सतयुग में: 8 जन्म
- त्रेता युग में: 12 जन्म
- द्वापर युग में: 21 जन्म
- कलियुग में: 42 जन्म
84वां जन्म संगम युग पर होता है, जिसे “डायमंड जन्म” कहा जाता है।
Q2: संगम युग में आत्मा का जन्म विशेष क्यों होता है?
A:संगम युग का जन्म आत्मा का “डायमंड जन्म” होता है। यह जन्म आत्मा को 83 जन्मों के दौरान लगे दागों को मिटाने का अवसर देता है और उसे पवित्रता तथा दिव्यता की ओर ले जाता है। यह जन्म ज्ञान और ईश्वरीय संतान के रूप में होता है, न कि गर्भ से।
Q3: क्या संगम युग का जन्म आत्मा का अंतिम जन्म है?
A:संगम युग का जन्म आत्मा का 84वां जन्म माना जाता है। यह अंतिम जन्म है यदि इसे पूरे सृष्टि चक्र के संदर्भ में देखें। साथ ही, यह पहला दिव्य जन्म भी है क्योंकि इसमें आत्मा ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त कर नए जीवन की शुरुआत करती है।
Q4: आत्मा का 84वां जन्म कैसे तय होता है?
A:आत्मा का 84वां जन्म तब होता है जब वह सतयुग के शुरुआती 150 वर्षों में जन्म लेती है।
- यदि आत्मा सतयुग में देर से आती है (300 या 450 वर्षों बाद), उसके जन्मों की संख्या घट जाती है।
- संगम युग पर जन्म, ज्ञान और ईश्वरीय संतान के रूप में होता है।
Q5: “डायमंड जन्म” का क्या अर्थ है?
A:डायमंड जन्म संगम युग पर आत्मा का विशेष जन्म है। यह जन्म आत्मा को 83 जन्मों के कर्मों के बंधन से मुक्त कर पवित्र और शक्तिशाली बनाता है। यह आत्मा के जीवन का सबसे मूल्यवान और दिव्य जन्म है।
Q6: एडवांस पार्टी का संगम युग में क्या महत्व है?
A:एडवांस पार्टी वे आत्माएं हैं जो संगम युग में पवित्र बन चुकी होती हैं। उनका शरीर नष्ट नहीं होता; प्रकृति उनके शरीर को सुरक्षित रखती है। वे सतयुग के प्रारंभ में संकल्प के माध्यम से जन्म लेंगी और दिव्य आत्माओं के लिए पथप्रदर्शक होंगी।
Q7: क्या संगम युग में सभी आत्माओं को ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त होता है?
A:हाँ, संगम युग में परमात्मा सभी आत्माओं को ईश्वरीय ज्ञान देते हैं। चाहे आत्मा 1 जन्म के लिए आए या 83 जन्मों के लिए, सभी आत्माओं को मुक्ति और सद्गति प्राप्त होती है।
Q8: संगम युग में जन्म लेने की प्रक्रिया क्या है?
A:संगम युग में आत्मा का जन्म दो तरीकों से हो सकता है:
- एडवांस पार्टी: आत्मा का शरीर सुरक्षित रहता है और वह स्वयं संकल्प से शरीर धारण करती है।
- ज्ञान द्वारा जन्म: आत्मा ब्रह्मा बाबा के माध्यम से शिव बाबा की संतान बनती है।
Q9: संगम युग का जन्म क्या केवल पवित्र आत्माओं का होता है?
A:संगम युग पर ज्ञान प्राप्त करने वाली आत्माओं का जन्म दिव्य होता है। जो आत्माएं पवित्रता की ओर बढ़ती हैं, वे एडवांस पार्टी में शामिल होकर सतयुग में प्रवेश करती हैं।
Q10: संगम युग और सतयुग के बीच का संबंध क्या है?
A:
संगम युग सतयुग और कलियुग के बीच का समय है। इसे “मिलन युग” कहा जाता है, क्योंकि यह आत्मा का परमात्मा से मिलन कराता है। संगम युग का जन्म सतयुग के स्वर्णिम युग में प्रवेश का मार्ग बनता है।
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