कर्मातीतऔर कर्मातीतअवस्था ?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
कर्मातीत और कर्मातीतअवस्था
“मनुष्य का जीवन केवल कर्म करने के लिए नहीं है, बल्कि ऐसा कर्म करने के लिए है जो आत्मा को बंधन से मुक्त करे।”
आज हम चर्चा करेंगे एक ऐसी अवस्था की, जो हर आत्मा की अंतिम मंज़िल है — कर्मातीत अवस्था।जहाँ आत्मा कर्म करती है लेकिन बंधती नहीं।
जहाँ कर्म में रहते हुए भी, वह आत्मा स्वयं को मुक्त अनुभव करती है।
यह कोई शरीर त्यागने की स्थिति नहीं, बल्कि आत्मा की पूर्ण जागृति की स्थिति है।
जैसे बापदादा ने कहा —
“अब तुम्हें चलते-फिरते, खाते-पीते भी अलिप्त बनना है। यही है कर्मातीत स्थिति”
- ‘कर्मातीत’ शब्द का अर्थ‘कर्मातीत’ = कर्म + अतीत
अर्थात: कर्म करते हुए भी कर्म के फल, दुख-सुख, प्रशंसा या आलोचना में फँसे बिना रहना।
जैसे जल में कमल रहता है, पर जल उसे छूता नहीं — ऐसे ही कर्म करते हुए भी आत्मा ‘छूने मात्र’ भी प्रभावित नहीं होती।
Sakar Murli Point:
“बच्चे! कर्म करते हुए भी, तुम्हारी बुद्धि बाप में लगी रहे — यही कर्मातीत बनने का अभ्यास है।” —
- कर्मातीत अवस्था क्या होती है? यह वह स्थिति है जब:
- आत्मा कर्मेन्द्रियों की स्वामी बन जाती है
- हर कर्म में साक्षी और सहयोगी बनकर कार्य करती है
- सभी संकल्प शुभ और कल्याणकारी हो जाते हैं
- आत्मा को कोई भी परिस्थिति, व्यक्ति या संस्कार प्रभावित नहीं कर पाते
Murli Point:
“बच्चे, जब तुम एक बाप की याद में रहकर सेवा करते हो, तो वह कर्म तुम्हें बंधन में नहीं बाँधता। यह ही है कर्मातीत स्थिति।”
- कर्मातीत अवस्था की विशेषताएँ
- निर्विकारी स्थिति आत्मा काम, क्रोध, लोभ जैसे विकारों से परे हो जाती है।
उदाहरण:जैसे श्री कृष्ण के मुख पर सदा मुस्कान रहती है, क्योंकि वह कर्म करते हुए भी विकारों से परे था।
- संपूर्ण स्मृति स्वरूप हर समय: “मैं आत्मा हूँ, यह ड्रामा है, बाबा मेरा साथी है” ऐसी स्मृति बनी रहतीहै
- साक्षी भाव से कर्म जैसे कोई फिल्म देखता है — देखकर भी उसमें खोता नहीं।
उदाहरण:आपके सामने कोई गाली दे — पर आप केवल ‘द्रष्टा’ बनें, ‘प्रतिक्रिया’ न दें।
- वाणीऔर दृष्टि में दिव्यता उनकी आँखों से भी आशीर्वाद झलकता है। वाणी से शक्ति मिलती है।
📖 Avyakt Vani:
“बोलो कम, देखो कम, लेकिन संकल्पों से सेवा करो — यही है कर्मातीत स्थिति।
- उपस्थिति से सेवा ऐसी आत्मा केवल बैठकर भी बहुतों को शांति और शक्ति देती है।
- 6. कैसे प्राप्त करें कर्मातीत अवस्था?
- स्व-स्वरूप में स्थित रहना हर समय स्मृति रहे —“मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं।”
मुरली:“बच्चे, देही-अभिमानी बनो, तभी कर्मातीत स्थिति संभव है।”
- बाबा की याद में रहना हर कर्म में परमात्मा को साथी बनाकर कार्य करें।
उदाहरण: खाना बनाते समय सोचें — “बाबा के लिए बना रही हूँ।”
मुरली:“जो बच्चे कर्म करते हुए बाप को याद करते हैं, वही हैं कर्मयोगी।”
- पवित्र संकल्प और वाणी जो बोला जाए, वह अर्थ सहित और कल्याणकारी हो।
- सेवा में निःस्वार्थता “मैं कर रहा हूँ” — यह भाव मोह का रूप है। सेवा बाबा के नाम पर करें।
- विकल्पों से परे बनें मन में कोई भी ‘क्यों’, ‘कब’, ‘कैसे’ नहीं — पूर्ण समर्पण और स्वीकार्यता।
मुरली:“सच्चा कर्मातीत वही, जो परिस्थिति में भी स्थिति से हिलता न हो”
- कर्मातीत आत्मा की भूमिका क्या है?
- वह आत्मा माँ बन सबकी पालना करती है
- वह धर्म, वर्ण, व्यक्ति से परे — सर्वधर्म समान दृष्टि रखती है
- वह स्वयं को नहीं, केवल बाबा को श्रेय देती है
- ऐसी आत्मा “चलता-फिरता मंदिर” बन जाती है
- उसकी उपस्थिति ही सेवा बन जाती है
- निष्कर्ष (अंतिम सार)कर्मातीत बनना कोई कल्पना नहीं, यह हर आत्मा की संगम युग पर संभव यात्रा है।
परमात्मा शिव स्वयं आकर यह स्थिति सिखा रहे हैं।इसलिए कहा गया:मुरली वाक्य:
“बच्चे! कर्मातीत वही बनता है, जो हर कर्म में बाप को साथी बनाए। वही अंत में उड़ता फूल बन जाता है।”
अंतिम पंक्तियाँ (स्मृति स्वरूप विचार)“मैं आत्मा, कर्म करते हुए भी अलिप्त हूँ।मैं बाप समान साक्षी, सहयोगी और शुभचिंतक हूँ।
हर कर्म में बाप साथ है, इसलिए मैं मुक्त हूँ, हल्का हूँ, उड़ता फूल हूँ।”
कर्मातीत और कर्मातीत अवस्था — प्रश्नोत्तरी रूप में सम्पूर्ण समझ
❓प्रश्न 1: ‘कर्मातीत’ शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर:‘कर्मातीत’ का अर्थ है — कर्म + अतीत।
अर्थात: ऐसा कर्म करना जिससे आत्मा को कोई बंधन, दुःख, प्रशंसा या आलोचना प्रभावित न करे। जैसे कमल जल में रहते हुए भी जल से अछूता रहता है, वैसे ही आत्मा कर्म करती हुई भी अलिप्त बनी रहती है।
❓प्रश्न 2: कर्मातीत अवस्था क्या होती है?
उत्तर:कर्मातीत अवस्था वह होती है जहाँ आत्मा:
-
कर्मेन्द्रियों की स्वामी बन जाती है,
-
हर कर्म साक्षी भाव से करती है,
-
परिस्थितियों, व्यक्तियों, संस्कारों से प्रभावित नहीं होती,
-
कर्म करते हुए भी अंदर से मुक्त और हल्का अनुभव करती है।
❓प्रश्न 3: क्या कर्मातीत बनना शरीर छोड़ने की अवस्था है?
उत्तर:नहीं। कर्मातीत बनना शरीर छोड़ने की नहीं, बल्कि पूर्ण आत्म-जागृति की अवस्था है। यह अवस्था जीवन जीते हुए प्राप्त की जाती है — चलते, फिरते, खाते, पीते अलिप्त रहने की स्थिति है।
❓प्रश्न 4: कर्मातीत अवस्था की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
-
निर्विकारी स्थिति
-
संपूर्ण स्मृति स्वरूप – “मैं आत्मा हूँ”, “यह ड्रामा है”, “बाबा साथ है”
-
साक्षी भाव से कर्म
-
वाणी और दृष्टि में दिव्यता
-
उपस्थिति मात्र से सेवा
❓प्रश्न 5: एक उदाहरण से समझाइए कि साक्षी भाव क्या होता है?
उत्तर:जैसे कोई व्यक्ति फिल्म देखता है — दृश्य देखकर भी उसमें खोता नहीं।
उसी प्रकार, जब कोई गाली दे और आत्मा केवल द्रष्टा बन जाए, प्रतिक्रिया न दे — यही साक्षी भाव है।
❓प्रश्न 6: कर्मातीत अवस्था कैसे प्राप्त करें?
उत्तर:
-
स्व-स्वरूप की स्मृति — “मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं।”
-
बाबा की याद में रहकर कर्म — जैसे खाना बनाते समय सोचें, “यह बाबा के लिए है।”
-
पवित्र संकल्प और वाणी — अर्थ-सहित और कल्याणकारी बोलना।
-
सेवा में निःस्वार्थता — “मैं” नहीं, “बाबा” भावना से सेवा।
-
विकल्पों से परे बनना — कोई ‘क्यों’, ‘कब’, ‘कैसे’ नहीं।
❓प्रश्न 7: कर्मातीत आत्मा की भूमिका क्या होती है?
उत्तर:
-
वह आत्मा सबकी माँ बनकर पालना करती है।
-
वह सर्वधर्म समान दृष्टि रखती है।
-
वह बाबा को ही श्रेय देती है।
-
वह चलता-फिरता मंदिर बन जाती है।
-
उसकी उपस्थिति ही सेवा बन जाती है।
❓प्रश्न 8: क्या हर आत्मा कर्मातीत बन सकती है?
उत्तर:हाँ, यह हर आत्मा की संगम युग पर अंतिम मंज़िल है।
परमात्मा शिव स्वयं आकर इस स्थिति की शिक्षा देते हैं, जिससे हम उड़ता फूल बन जाते हैं — हल्के, पवित्र और अलिप्त।
✨अंतिम स्मृति स्वरूप विचार:
“मैं आत्मा, कर्म करते हुए भी अलिप्त हूँ।
मैं बाप समान साक्षी, सहयोगी और शुभचिंतक हूँ।
हर कर्म में बाप साथ है, इसलिए मैं मुक्त हूँ, हल्का हूँ, उड़ता फूल हूँ।”
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