MURLI 04-02-2025/BRAHMAKUMARIS

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Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

04-02-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – बाप तुम्हें अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देते हैं, तुम फिर औरों को दान देते रहो, इसी दान से सद्गति हो जायेगी”
प्रश्नः- कौन-सा नया रास्ता तुम बच्चों के सिवाए कोई भी नहीं जानता है?
उत्तर:- घर का रास्ता वा स्वर्ग जाने का रास्ता अभी बाप द्वारा तुम्हें मिला है। तुम जानते हो शान्तिधाम हम आत्माओं का घर है, स्वर्ग अलग है, शान्तिधाम अलग है। यह नया रास्ता तुम्हारे सिवाए कोई भी नहीं जानता। तुम कहते हो अब कुम्भकरण की नींद छोड़ो, आंख खोलो, पावन बनो। पावन बनकर ही घर जा सकेंगे।
गीत:- जाग सजनियाँ जाग……….

ओम् शान्ति। भगवानुवाच। यह तो बाप ने समझाया है कि मनुष्य को वा देवताओं को भगवान नहीं कहा जाता क्योंकि इनका साकारी रूप है। बाकी परमपिता परमात्मा का न आकारी, न साकारी रूप है इसलिए उनको शिव परमात्माए नम: कहा जाता है। ज्ञान का सागर वह एक ही है। कोई मनुष्य में ज्ञान हो नहीं सकता। किसका ज्ञान? रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान अथवा आत्मा और परमात्मा का यह ज्ञान कोई में नहीं है। तो बाप आकर जगाते हैं – हे सजनियां, हे भक्तियां जागो। सभी मेल अथवा फीमेल भक्तियां हैं। भगवान को याद करते हैं। सभी ब्राइड्स याद करती हैं एक ब्राइडग्रूम को। सभी आशिक आत्मायें परमपिता परमात्मा माशूक को याद करती हैं। सभी सीतायें हैं, राम एक परमपिता परमात्मा है। राम अक्षर क्यों कहते हैं? रावणराज्य है ना। तो उसकी भेंट में रामराज्य कहा जाता है। राम है बाप, जिसको ईश्वर भी कहते हैं, भगवान भी कहते हैं। असली नाम उनका है शिव। तो अब कहते हैं जागो, अब नवयुग आता है। पुराना खत्म हो रहा है। इस महाभारत लड़ाई के बाद सतयुग स्थापन होता है और इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य होगा। पुराना कलियुग खत्म हो रहा है इसलिए बाप कहते हैं – बच्चे, कुम्भकरण की नींद छोड़ो। अब आंख खोलो। नई दुनिया आती है। नई दुनिया को स्वर्ग, सतयुग कहा जाता है। यह है नया रास्ता। यह घर वा स्वर्ग में जाने का रास्ता कोई भी जानते नहीं हैं। स्वर्ग अलग है, शान्तिधाम जहाँ आत्मायें रहती हैं, वह अलग है। अब बाप कहते हैं जागो, तुम रावणराज्य में पतित हो गये हो। इस समय एक भी पवित्र आत्मा नहीं हो सकती। पुण्य आत्मा नहीं कहेंगे। भल मनुष्य दान-पुण्य करते हैं, परन्तु पवित्र आत्मा तो एक भी नहीं है। यहाँ कलियुग में हैं पतित आत्मायें, सतयुग में हैं पावन आत्मायें, इसलिए कहते हैं – हे शिवबाबा, आकर हमको पावन आत्मा बनाओ। यह पवित्रता की बात है। इस समय बाप आकर तुम बच्चों को अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देते हैं। कहते हैं तुम भी औरों को दान देते रहो तो 5 विकारों का ग्रहण छूट जाए। 5 विकारों का दान दो तो दु:ख का ग्रहण छूट जाए। पवित्र बन सुखधाम में चले जायेंगे। 5 विकारों में नम्बरवन है काम, उसको छोड़ पवित्र बनो। खुद भी कहते हैं – हे पतित-पावन, हमको पावन बनाओ। पतित विकारी को कहा जाता है। यह सुख और दु:ख का खेल भारत के लिए ही है। बाप भारत में ही आकर साधारण तन में प्रवेश करते हैं फिर इनकी भी बायोग्राफी बैठ सुनाते हैं। यह हैं सब ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ, प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद। तुम सबको पवित्र बनने की युक्ति बताते हो। ब्रह्माकुमार और कुमारियां तुम विकार में जा नहीं सकते हो। तुम ब्राह्मणों का यह एक ही जन्म है। देवता वर्ण में तुम 20 जन्म लेते हो, वैश्य, शूद्र वर्ण में 63 जन्म। ब्राह्मण वर्ण का यह एक अन्तिम जन्म है, जिसमें ही पवित्र बनना है। बाप कहते हैं पवित्र बनो। बाप की याद अथवा योगबल से विकर्म भस्म होंगे। यह एक जन्म पवित्र बनना है। सतयुग में तो कोई पतित होता नहीं। अभी यह अन्तिम जन्म पावन बनेंगे तो 21 जन्म पावन रहेंगे। पावन थे, अब पतित बने हो। पतित हैं तब तो बुलाते हैं। पतित किसने बनाया है? रावण की आसुरी मत ने। सिवाए मेरे तुम बच्चों को रावण राज्य से, दु:ख से कोई भी लिबरेट कर नहीं सकते। सभी काम चिता पर बैठ भस्म हो पड़े हैं। मुझे आकर ज्ञान चिता पर बिठाना पड़ता है। ज्ञान जल डालना पड़ता है। सबकी सद्गति करनी पड़े। जो अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ते हैं उनकी ही सद्गति होती है। बाकी सब चले जाते हैं शान्तिधाम में। सतयुग में सिर्फ देवी-देवतायें हैं, उनको ही सद्गति मिली हुई है। बाकी सबको गति अथवा मुक्ति मिलती है। 5 हज़ार वर्ष पहले इन देवी-देवताओं का राज्य था। लाखों वर्ष की बात है नहीं। अब बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों, मुझ बाप को याद करो। मन्मनाभव अक्षर तो प्रसिद्ध है। भगवानुवाच – कोई भी देहधारी को भगवान नहीं कहा जाता। आत्मायें तो एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हैं। कभी स्त्री, कभी पुरूष बनती हैं। भगवान कभी भी जन्म-मरण के खेल में नहीं आता। यह ड्रामा अनुसार नूँध है। एक जन्म न मिले दूसरे से। फिर तुम्हारा यह जन्म रिपीट होगा तो यही एक्ट, यही फीचर्स फिर लेंगे। यह ड्रामा अनादि बना-बनाया है। यह बदल नहीं सकता। श्रीकृष्ण को जो शरीर सतयुग में था वह फिर वहाँ मिलेगा। वह आत्मा तो अभी यहाँ है। तुम अभी जानते हो हम सो बनेंगे। यह लक्ष्मी-नारायण के फीचर्स एक्यूरेट नहीं हैं। बनेंगे फिर भी वही। यह बातें नया कोई समझ न सके। अच्छी रीति जब किसको समझाओ तब 84 का चक्र जानेंगे और समझेंगे बरोबर हरेक जन्म में नाम, रूप, फीचर्स आदि अलग-अलग होते हैं। अभी इनके अन्तिम 84 वें जन्म के फीचर्स यह हैं इसलिए नारायण के फीचर्स करीब-करीब ऐसे दिखाये हैं। नहीं तो मनुष्य समझ न सकें।

तुम बच्चे जानते हो – मम्मा-बाबा ही यह लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। यहाँ तो 5 तत्व पवित्र हैं नहीं। यह शरीर सब पतित हैं। सतयुग में शरीर भी पवित्र होते हैं। श्रीकृष्ण को मोस्ट ब्युटीफुल कहते हैं। नैचुरल ब्युटी होती है। यहाँ विलायत में भल गोरे मनुष्य हैं परन्तु उनको देवता थोड़ेही कहेंगे। दैवीगुण तो नहीं हैं ना। तो बाप कितना अच्छी रीति बैठ समझाते हैं। यह है ऊंच ते ऊंच पढ़ाई, जिससे तुम्हारी कितनी ऊंच कमाई होती है। अनगिनत हीरे जवाहर, धन होता है। वहाँ तो हीरे जवाहरों के महल थे। अभी वह सब गुम हो गया है। तो तुम कितने धनवान बनते हो। अपरमअपार कमाई है 21 जन्मों के लिए, इसमें बहुत मेहनत चाहिए। देही-अभिमानी बनना है, हम आत्मा हैं, यह पुराना शरीर छोड़ अब वापस अपने घर जाना है। बाप अभी लेने लिए आये हैं। हम आत्मा ने 84 जन्म अब पूरे किये, अब फिर पावन बनना है, बाप को याद करना है। नहीं तो कयामत का समय है। सजायें खाकर वापिस चले जायेंगे। हिसाब-किताब तो सबको चुक्तू करना ही है। भक्ति मार्ग में काशी कलवट खाते थे तो भी कोई मुक्ति को नहीं पाते। वह है भक्ति मार्ग, यह है ज्ञान मार्ग। इसमें जीवघात करने की दरकार नहीं रहती। वह है जीव-घात। फिर भी भावना रहती है कि मुक्ति को पावें इसलिए पापों का हिसाब-किताब चुक्तू हो फिर चालू होता है। अभी तो काशी कलवट का कोई मुश्किल साहस रखते हैं। बाकी मुक्ति वा जीवनमुक्ति नहीं मिल सकती। बाप बिगर जीवनमुक्ति कोई दे ही नहीं सकते। आत्मायें आती रहती हैं फिर वापस कैसे जायेंगे? बाप ही आकर सर्व की सद्गति कर वापिस ले जायेंगे। सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य रहते हैं। आत्मा तो कभी विनाश नहीं होती है। आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है। सतयुग में आयु बड़ी होती है। दु:ख की बात नहीं। एक शरीर छोड़ दूसरा ले लेते हैं। जैसे सर्प का मिसाल है, उसको मरना नहीं कहा जाता है। दु:ख की बात नहीं। समझते हैं अब टाइम पूरा हुआ है, इस शरीर को छोड़ दूसरा लेंगे। तुम बच्चों को इस शरीर से डिटैच होने का अभ्यास यहाँ ही डालना है। हम आत्मा हैं, अब हमको घर जाना है फिर नई दुनिया में आयेंगे, नई खाल लेंगे, यह अभ्यास डालो। तुम जानते हो आत्मा 84 शरीर लेती है। मनुष्यों ने फिर 84 लाख कह दिया है। बाप के लिए तो फिर अनगिनत ठिक्कर भित्तर में कह देते हैं। उसको कहा जाता है धर्म की ग्लानि। मनुष्य स्वच्छ बुद्धि से बिल्कुल तुच्छ बन जाते हैं। अब बाप तुमको स्वच्छ बुद्धि बनाते हैं। स्वच्छ बनते हो याद से। बाप कहते हैं अब नवयुग आता है, उसकी निशानी यह महाभारत लड़ाई है। यह वही मूसलों वाली लड़ाई है, जिसमें अनेक धर्म विनाश, एक धर्म की स्थापना हुई थी, तो जरूर भगवान होगा ना। श्रीकृष्ण यहाँ कैसे आ सके? ज्ञान का सागर निराकार या श्रीकृष्ण? श्रीकृष्ण को यह ज्ञान ही नहीं होगा। यह ज्ञान ही गुम हो जाता है। तुम्हारे भी फिर भक्ति मार्ग में चित्र बनेंगे। तुम पूज्य ही पुजारी बनते हो, कला कम हो जाती है। आयु भी कम होती जाती है क्योंकि भोगी बन जाते हो। वहाँ हैं योगी। ऐसे नहीं कि किसकी याद में योग लगाते हो। वहाँ है ही पवित्र। श्रीकृष्ण को भी योगेश्वर कहते हैं। इस समय श्रीकृष्ण की आत्मा बाप के साथ योग लगा रही है। श्रीकृष्ण की आत्मा इस समय योगेश्वर है, सतयुग में योगेश्वर नहीं कहेंगे। वहाँ तो प्रिन्स बनती है। तो तुम्हारी पिछाड़ी में ऐसी अवस्था रहनी चाहिए जो सिवाए बाप के और कोई शरीर की याद न रहे। शरीर से और पुरानी दुनिया से ममत्व मिट जाए। संन्यासी रहते तो पुरानी दुनिया में हैं परन्तु घरबार से ममत्व मिटा देते हैं। ब्रह्म को ईश्वर समझ उनसे योग लगाते हैं। अपने को ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी कहते हैं। समझते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। बाप कहते हैं यह सब रांग है। राइट तो मैं हूँ, मुझे ही ट्रूथ कहा जाता है।

तो बाप समझाते हैं याद की यात्रा बड़ी पक्की चाहिए। ज्ञान तो बड़ा सहज है। देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है। बाप कहते हैं किसकी भी देह याद न आये, यह है भूतों की याद, भूत पूजा। मैं तो अशरीरी हूँ, तुमको याद करना है मुझे। इन आंखों से देखते हुए बुद्धि से बाप को याद करो। बाप के डायरेक्शन पर चलो तो धर्मराज की सजाओं से छूट जायेंगे। पावन बनेंगे तो सजायें खत्म हो जायेंगी, बड़ी भारी मंज़िल है। प्रजा बनना तो बहुत सहज है, उसमें भी साहूकार प्रजा, गरीब प्रजा कौन-कौन बन सकते हैं, सब समझाते हैं। पिछाड़ी में तुम्हारे बुद्धि का योग रहना चाहिए बाप और घर से। जैसे एक्टर्स का नाटक में पार्ट पूरा होता है तो बुद्धि घर में चली जाती है। यह है बेहद की बात। वह होती है हद की आमदनी, यह है बेहद की आमदनी। अच्छे एक्टर्स की आमदनी भी बहुत होती है ना। तो बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते बुद्धियोग वहाँ लगाना है। वह आशिक-माशूक होते हैं एक-दो के। यहाँ तो सब आशिक हैं एक माशूक के। उनको ही सब याद करते हैं। वन्डरफुल मुसाफिर है ना। इस समय आये हैं सब दु:खों से छुड़ाकर सद्गति में ले जाने लिए। उनको कहा जाता है सच्चा-सच्चा माशूक। वह एक-दो के शरीर पर आशिक होते हैं, विकार की बात नहीं। उसको कहेंगे देह-अभिमान का योग। वह भूतों की याद हो गई। मनुष्य को याद करना माना 5 भूतों को, प्रकृति को याद करना। बाप कहते हैं प्रकृति को भूल मुझे याद करो। मेहनत है ना और फिर दैवीगुण भी चाहिए। कोई से बदला लेना, यह भी आसुरी गुण है। सतयुग में होता ही है एक धर्म, बदले की बात नहीं। वह है ही अद्वेत देवता धर्म जो शिवबाबा बिगर कोई स्थापन कर न सके। सूक्ष्मवतनवासी देवताओं को कहेंगे फ़रिश्ते। इस समय तुम हो ब्राह्मण फिर फ़रिश्ता बनेंगे। फिर वापिस जायेंगे घर फिर नई दुनिया में आकर दैवी गुण वाले मनुष्य अर्थात् देवता बनेंगे। अभी शूद्र से ब्राह्मण बनते हो। प्रजापिता ब्रह्मा का बच्चा न बनें तो वर्सा कैसे लेंगे। यह प्रजापिता ब्रह्मा और मम्मा, वह फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। अब देखो तुमको जैनी लोग कहते हैं हमारा जैन धर्म सबसे पुराना है। अब वास्तव में महावीर तो आदि देव ब्रह्मा को ही कहते हैं। है ब्रह्मा ही, परन्तु कोई जैन मुनि आया तो उसने महावीर नाम रख दिया। अभी तुम सब महावीर हो ना। माया पर जीत पा रहे हो। तुम सब बहादुर बनते हो। सच्चे-सच्चे महावीर-महावीरनियाँ तुम हो। तुम्हारा नाम है शिव शक्ति, शेर पर सवारी है और महारथियों की हाथी पर। फिर भी बाप कहते हैं बड़ी भारी मंजिल है। एक बाप को याद करना है तो विकर्म विनाश हों, और कोई रास्ता नहीं हैं। योगबल से तुम विश्व पर राज्य करते हो। आत्मा कहती है, अब मुझे घर जाना है, यह पुरानी दुनिया है, यह है बेहद का संन्यास। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है और चक्र को समझने से चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) धर्मराज की सजाओं से बचने के लिए किसी की भी देह को याद नहीं करना है, इन आंखों से सब कुछ देखते हुए एक बाप को याद करना है, अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। पावन बनना है।

2) मुक्ति और जीवनमुक्ति का रास्ता सबको बताना है। अब नाटक पूरा हुआ, घर जाना है – इस स्मृति से बेहद की आमदनी जमा करनी है।

वरदान:- एक सेकण्ड की बाजी से सारे कल्प की तकदीर बनाने वाले श्रेष्ठ तकदीरवान भव
इस संगम के समय को वरदान मिला है जो चाहे, जैसा चाहे, जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हैंक्योंकि भाग्य विधाता बाप ने तकदीर बनाने की चाबी बच्चों के हाथ में दी है। लास्ट वाला भी फास्ट जाकर फर्स्ट आ सकता है। सिर्फ सेवाओं के विस्तार में स्वयं की स्थिति सेकण्ड में सार स्वरूप बनाने का अभ्यास करो। अभी-अभी डायरेक्शन मिले एक सेकण्ड में मास्टर बीज हो जाओ तो टाइम न लगे। इस एक सेकण्ड की बाजी से सारे कल्प की तकदीर बना सकते हैं।
स्लोगन:- डबल सेवा द्वारा पावरफुल वायुमण्डल बनाओ तो प्रकृति दासी बन जायेगी।

 

अव्यक्त-इशारे – एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ

अनेक वृक्षों की डालियाँ अब एक ही चन्दन का वृक्ष हो गया। लोग कहते हैं – दो चार मातायें भी एक साथ इकट्ठी नहीं रह सकती और अभी मातायें सारे विश्व में एकता स्थापन करने के निमित्त हैं। माताओं ने ही भिन्नता में एकता लाई है। देश भिन्न है, भाषा भिन्न-भिन्न है, कल्चर भिन्न-भिन्न है लेकिन आप लोगों ने भिन्नता को एकता में लाया है।

मीठे बच्चे – बाप तुम्हें अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देते हैं, तुम फिर औरों को दान देते रहो, इसी दान से सद्गति हो जायेगी

प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: कौन-सा नया रास्ता तुम बच्चों के सिवाए कोई भी नहीं जानता है?
उत्तर: घर का रास्ता वा स्वर्ग जाने का रास्ता अभी बाप द्वारा तुम्हें मिला है। तुम जानते हो कि शान्तिधाम आत्माओं का घर है और स्वर्ग अलग स्थान है। यह नया रास्ता तुम्हारे सिवाए कोई भी नहीं जानता। इसलिए बाप कहते हैं – कुम्भकरण की नींद छोड़ो, आंख खोलो, पावन बनो। पावन बनकर ही घर जा सकेंगे।

प्रश्न 2: भगवान को क्यों न आकारी कहा जाता है, न साकारी?
उत्तर: परमपिता परमात्मा का न आकारी रूप है, न साकारी, इसलिए उनको “शिव परमात्माए नमः” कहा जाता है। वे ज्ञान का सागर हैं, जबकि कोई भी मनुष्य ज्ञान सागर नहीं हो सकता। आत्मा और परमात्मा का सत्य ज्ञान केवल वही देते हैं।

प्रश्न 3: किस प्रकार सभी आत्माएँ भगवान को याद करती हैं?
उत्तर: सभी आत्माएँ ब्राइड (दुल्हन) हैं और परमपिता परमात्मा एक ही ब्राइडग्रूम (वर) हैं। सभी भक्त आत्माएँ परमात्मा को माशूक (प्रियतम) की तरह याद करती हैं। सभी सीताएँ एक ही राम (परमात्मा) को पुकारती हैं।

प्रश्न 4: इस समय सभी आत्माएँ पतित क्यों हैं?
उत्तर: अभी रावणराज्य है, इसलिए एक भी आत्मा पावन नहीं हो सकती। सभी पतित विकारी बन गए हैं। बाप कहते हैं कि पतित आत्माएँ ही उन्हें पुकारती हैं कि “हे पतित-पावन, हमें पावन बनाओ।” यह पवित्रता की ही बात है।

प्रश्न 5: बाप अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान क्यों देते हैं?
उत्तर: बाप ज्ञान का सागर हैं और वे अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान बच्चों को इसलिए देते हैं ताकि बच्चे 5 विकारों का दान देकर अपने दु:खों को समाप्त कर सकें। 5 विकारों में मुख्य विकार काम है, जिससे छुटकारा पाकर ही आत्मा पावन बन सकती है।

प्रश्न 6: सतयुग और कलियुग के आत्माओं में क्या अंतर है?
उत्तर: सतयुग में आत्माएँ पावन होती हैं, वहाँ पतित कोई भी नहीं होता। वहीं, कलियुग में सभी आत्माएँ पतित होती हैं और सुख के लिए बाप को पुकारती हैं।

प्रश्न 7: ब्राह्मण वर्ण का यह जन्म क्यों विशेष है?
उत्तर: ब्राह्मण वर्ण का यह जन्म अन्तिम है जिसमें ही पवित्र बनना है। यह एकमात्र जन्म है जिसमें आत्मा योगबल से विकर्म भस्म कर सकती है और 21 जन्मों के लिए पावन बन सकती है।

प्रश्न 8: ज्ञान चिता और काम चिता में क्या अंतर है?
उत्तर:

  • काम चिता पर बैठने से आत्मा पतित बन जाती है और दु:ख भोगती है।
  • ज्ञान चिता पर बैठने से आत्मा पावन बन जाती है और सुखधाम (स्वर्ग) में जाती है।

प्रश्न 9: महाभारत युद्ध के बाद क्या परिवर्तन होता है?
उत्तर: इस महाभारत युद्ध के बाद सतयुग की स्थापना होती है और देवी-देवताओं का राज्य आता है। पुराना कलियुग समाप्त हो जाता है और नया युग (सतयुग) प्रारंभ होता है।

प्रश्न 10: बाप को याद करने से क्या प्राप्ति होती है?
उत्तर: बाप को याद करने से विकर्म विनाश होते हैं और आत्मा पावन बन जाती है। इस याद को ही मन्मनाभव कहा जाता है।

प्रश्न 11: सतयुग में आत्मा का शरीर कैसा होता है?
उत्तर: सतयुग में शरीर पवित्र और नैचुरल ब्यूटीफुल होता है। वहाँ कोई विकार नहीं होते, इसलिए शरीर भी दिव्य और सुखमय होता है।

प्रश्न 12: बाप अभी आकर कौन-सा अभ्यास कराते हैं?
उत्तर: बाप अभी बच्चों को यह अभ्यास कराते हैं कि हम आत्मा हैं और अब अपने घर (शान्तिधाम) जाना है। यह अभ्यास जीवनमुक्ति की ओर ले जाता है।

प्रश्न 13: बाप किस प्रकार सद्गति और मुक्ति का मार्ग बताते हैं?
उत्तर: बाप ज्ञान और योग के द्वारा आत्माओं की सद्गति करते हैं। जो अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ते हैं, वे सतयुग में देवता बनते हैं, और बाकी आत्माएँ शान्तिधाम में चली जाती हैं।

प्रश्न 14: सतयुग में आत्माएँ शरीर त्यागने को कैसे देखती हैं?
उत्तर: सतयुग में आत्माएँ शरीर त्याग को एक सर्प के खाल बदलने जैसा समझती हैं, वहाँ दु:ख की कोई भावना नहीं होती।

प्रश्न 15: ज्ञान और भक्ति मार्ग में क्या अंतर है?
उत्तर:

  • भक्ति मार्ग में लोग जीव-घात कर काशी कलवट खाते हैं और फिर भी मुक्ति नहीं पाते।
  • ज्ञान मार्ग में आत्मा बाप की याद से पावन बनती है और जीवनमुक्ति प्राप्त करती है।

प्रश्न 16: सतयुग में कौन-सा धर्म होता है?
उत्तर: सतयुग में केवल एक ही धर्म होता है – अद्वितीय देवता धर्म, जिसे शिवबाबा ही स्थापन करते हैं।

प्रश्न 17: शिव शक्ति और महारथी कौन हैं?
उत्तर:

  • शिव शक्ति वे हैं, जो शेर पर सवारी करने वाली माया पर जीत पाने वाली हैं।
  • महारथी वे हैं, जो ज्ञान रथ पर सवार होकर बाप का पूरा सहयोग देते हैं।

प्रश्न 18: माया पर जीत पाने के लिए मुख्य साधन क्या हैं?
उत्तर: बाप की याद (योगबल) और दिव्यगुणों को धारण करना ही माया पर जीत पाने का मुख्य साधन हैं।

प्रश्न 19: बाप क्यों कहते हैं कि सबसे बड़ी मंज़िल एक बाप की याद है?
उत्तर: बाप कहते हैं कि यदि आत्मा केवल बाप को याद करे और किसी भी शरीर, मनुष्य, वस्तु, प्रकृति को न देखे, तो वह विकर्म विनाश कर सकती है और बेहद की कमाई जमा कर सकती है।

प्रश्न 20: सबसे ऊँच कमाई किसे कहा जाता है?
उत्तर: सबसे ऊँच कमाई 21 जन्मों के लिए देवता पद की प्राप्ति है, जिसे बाप की याद और ज्ञान से प्राप्त किया जा सकता है।

सार:

  • देही-अभिमानी बनकर बाप को याद करना है।
  • जीवनमुक्ति का रास्ता सबको बताना है।
  • धर्मराज की सजाओं से बचने के लिए पावन बनना है।
  • बेहद की कमाई जमा करनी है।

वरदान:“एक सेकण्ड की बाजी से सारे कल्प की तकदीर बनाने वाले श्रेष्ठ तकदीरवान भव।”

स्लोगन:“डबल सेवा द्वारा पावरफुल वायुमण्डल बनाओ तो प्रकृति दासी बन जायेगी।”

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