(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
05-06-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – बेहद के सुखों के लिए तुम्हें बेहद की नॉलेज मिलती है, तुम फिर से राजयोग की शिक्षा से राजाई ले रहे हो” | |
प्रश्नः- | तुम्हारा ईश्वरीय कुटुम्ब किस बात में बिल्कुल ही निराला है? |
उत्तर:- | इस ईश्वरीय कुटुम्ब में कोई एक रोज़ का बच्चा है, कोई 8 रोज़ का लेकिन सब पढ़ रहे हैं। बाप ही टीचर बनकर अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। यह है निराली बात। आत्मा पढ़ती है। आत्मा कहती है बाबा, बाबा फिर बच्चों को 84 जन्मों की कहानी सुनाते हैं। |
गीत:- | दूरदेश का रहने वाला……. |
ओम् शान्ति। वृक्षपति वार, उसका नाम रख दिया है बृहस्पति। यह त्योहार आदि तो वर्ष-वर्ष मनाते हैं। तुम हर हफ्ते बृहस्पति डे मनाते हो। वृक्षपति अथवा इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का जो बीजरूप है, चैतन्य है, वही इस झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, और जो भी वृक्ष हैं वह सब जड़ होते हैं। यह है चैतन्य, इनको कहा जाता है कल्पवृक्ष। इनकी आयु है 5 हज़ार वर्ष और यह वृक्ष 4 भाग में है। हर चीज़ 4 भाग में होती है। यह दुनिया भी 4 भाग में है। अब इस पुरानी दुनिया का अन्त है। दुनिया कितनी बड़ी है, यह ज्ञान कोई भी मनुष्य मात्र की बुद्धि में नहीं है। यह है नई दुनिया के लिए नई शिक्षा। और फिर नई दुनिया का राजा बनने के लिए अथवा आदि सनातन देवी-देवता बनने के लिए शिक्षा भी नई है। भाषा तो हिन्दी ही है। बाबा ने समझाया है जब दूसरी राजाई स्थापन होती है तो उनकी भाषा अलग होती है। सतयुग में क्या भाषा होगी? सो बच्चे थोड़ा-थोड़ा जानते हैं। आगे बच्चियाँ ध्यान में जाकर बतलाती थी। वहाँ कोई संस्कृत नहीं है। संस्कृत तो यहाँ है ना। जो यहाँ है वह फिर वहाँ नहीं हो सकती। तो बच्चे जानते हैं यह है वृक्षपति। उनको फादर रचता भी कहते हैं झाड़ का। यह है चैतन्य बीजरूप। वह सब होते हैं जड़। बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को भी जानना चाहिए ना। इस समय नॉलेज न होने कारण मनुष्यों को सुख नहीं है। यह है बेहद की नॉलेज, जिससे बेहद का सुख होता है। हद की नॉलेज से काग विष्टा समान सुख मिलता है। तुम जानते हो, हम बेहद के सुख के लिए अभी पुरुषार्थ कर रहे हैं फिर से। यह ‘फिर से’ अक्षर सिर्फ तुम सुनते हो। तुम ही फिर से मनुष्य से देवता बनने के लिए यह राजयोग की शिक्षा प्राप्त कर रहे हो। यह भी तुम जानते हो ज्ञान का सागर बाप निराकार है। निराकारी तो बच्चे आत्मायें भी हैं, लेकिन सबको अपना-अपना शरीर है, इनको अलौकिक जन्म कहा जाता है। और कोई मनुष्य ऐसे जन्म ले नहीं सकते। जैसे यह लेते हैं और इनकी भी वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश करते हैं। बच्चों (आत्माओं) को सम्मुख बैठ समझाते हैं, और कोई आत्माओं को बच्चे-बच्चे कह न सकें। कोई भी धर्म वाला हो – जानते हैं शिवबाबा हम आत्माओं का बाबा है, वह तो जरूर बच्चे-बच्चे ही कहेंगे। बाकी कोई भी मनुष्यात्मा को ईश्वर नहीं कह सकते, बाबा नहीं कह सकते। यूँ तो गांधी को भी बापू कहते थे। म्युनिसपाल्टी के मेयर को भी फादर कह देते। परन्तु वह फादर हैं सब देहधारी। तुम जानते हो हमारी आत्माओं का बाप हमको पढ़ाते हैं। बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं अपने को आत्मा समझो। वह बाप आकर पढ़ाते भी आत्माओं को हैं। यह है ईश्वरीय कुटुम्ब। बाप के इतने ढेर बच्चे हैं। तुम भी कहते हो बाबा हम आपके हैं। तुम बच्चे हो गये। कहते हैं बाबा हम एक रोज़ का बच्चा हूँ, 8 रोज का बच्चा हूँ, मास का बच्चा हूँ। पहले जरूर छोटा ही होगा। भल 2-4 दिन का बच्चा ही है परन्तु आरगन्स तो बड़े हैं ना इसलिए सब बड़े बच्चों को पढ़ाई चाहिए। जो भी आते हैं सबको बाप पढ़ाते हैं। तुम भी पढ़ते हो। बाप के बच्चे बने फिर बाप समझाते हैं, तुमने 84 जन्म कैसे लिये हैं? बाप कहते हैं मैं भी बहुत जन्मों के अन्त में इनमें प्रवेश करता हूँ और फिर पढ़ाता हूँ। बच्चे जानते हैं यहाँ हम बड़े ते बड़े टीचर के पास आये हैं। जिससे ही फिर यह टीचर्स निकले हैं जिनको पण्डे कहते हैं। वह भी सबको पढ़ाते रहते हैं। जो-जो जानते जायेंगे, पढ़ाते रहेंगे।
पहले-पहले तो समझाना ही यह है, दो बाप हैं ना। एक लौकिक और दूसरा पारलौकिक। बड़ा तो जरूर पारलौकिक बाप हो गया, जिसको भगवान कहा जाता है। तुम जानते हो अभी हमको पारलौकिक बाप मिला है, और किसी को पता नहीं। धीरे-धीरे जानते जायेंगे। तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं को बाबा पढ़ाते हैं। हम आत्मायें ही एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेंगी। ऊंच से ऊंच देवता बनेंगी। ऊंच से ऊंच बनने के लिए आये हैं। कई बच्चे चलते-चलते ऊंचे से ऊंची पढ़ाई को छोड़ देते हैं, किसी न किसी बात में संशय आ जाता है या माया का कोई तूफान सहन नहीं कर सकते हैं, काम महाशत्रु से हार खा लेते हैं, इन्हीं कारणों से पढ़ाई छूट जाती है। काम महा-शत्रु के कारण ही बच्चों को बहुत सहन करना पड़ता है। बाप कहते हैं कल्प-कल्प तुम अबलायें मातायें ही पुकारती हो। कहते हैं बाबा हमको नंगन होने से बचाओ। बाप कहते हैं याद के सिवाए और कोई रास्ता नहीं। याद से ही बल आता जायेगा। माया बलवान की ताकत कम होती जायेगी। फिर तुम छूट जायेंगे। ऐसे बहुत बन्धन से छूट-कर आते हैं। फिर अत्याचार होना बन्द हो जाता है फिर आकर शिवबाबा से ब्रह्मा द्वारा बातचीत करते हैं। यह भी आदत पड़ जानी चाहिए। बुद्धि में यह रहना चाहिए कि हम शिवबाबा पास जाते हैं। वह इस ब्रह्मा तन में आते हैं। हम शिवबाबा के आगे बैठे हैं। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। यही शिक्षा मिलती है। बाप से मिलने आओ तो भी अपने को आत्मा समझो। आत्म-अभिमानी भव। यह ज्ञान भी तुमको अभी मिलता है। यह है मेहनत। उस भक्ति मार्ग में तो कितने वेद शास्त्र आदि पढ़ते हैं। यह तो एक ही मेहनत है – सिर्फ याद की। यह बहुत सहज ते सहज है, बहुत डिफीकल्ट ते डिफीकल्ट भी है। बाप को याद करना – इससे सहज कोई बात होती नहीं। बच्चा पैदा हुआ और मुख से बाबा-बाबा निकलेगा। बच्ची के मुख से माँ निकलेगा। आत्मा ने फीमेल का शरीर धारण किया है। फीमेल माँ के पास ही जायेगी। बच्चा अक्सर करके बाप को याद करता है क्योंकि वर्सा मिलता है। अभी तुम आत्मायें तो सब बच्चे हो। तुमको वर्सा मिलता है बाप से। आत्मा को बाप से वर्सा मिलता है, याद करने से। देह-अभिमानी होंगे तो वर्सा पाने में मुश्किलात होगी। बाप कहते हैं मैं बच्चों को ही पढ़ाता हूँ। बच्चे भी जानते हैं हम बच्चों को बाप पढ़ाते हैं। यह बातें बाप के सिवाए कोई बता न सके। उनके साथ ही भक्ति मार्ग में तुम्हारा प्यार था। तुम सब आशिक थे, उस माशूक के। सारी दुनिया आशिक है एक माशूक की। परमात्मा को सब परमपिता भी कहते हैं। बाप को आशिक नहीं कहा जाता। बाप समझाते हैं तुम भक्ति मार्ग में आशिक थे। अभी भी हैं बहुत, परन्तु परमात्मा किसको कहा जाए, इसमें बहुत मूँझते हैं। गणेश, हनूमान आदि को परमात्मा कह एकदम सूत मुँझा दिया है। सिवाए एक के कोई ठीक कर न सके। कोई की ताकत नहीं। बाप ही आकर बच्चों को समझाते हैं। बच्चे फिर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार समझते हैं और समझाने के लायक बनते हैं। राजधानी स्थापन हो रही है। हूबहू कल्प पहले मिसल तुम यहाँ पढ़ते हो। फिर प्रालब्ध नई दुनिया में पायेंगे उनको अमरलोक कहा जाता है। तुम काल पर विजय पाते हो। वहाँ कभी अकाले मृत्यु होती नहीं। नाम ही है स्वर्ग। तुम बच्चों को इस पढ़ाई में बहुत खुशी होनी चाहिए। बाप की याद से बाप की प्रापर्टी भी याद आयेगी। सेकण्ड में सारे ड्रामा का ज्ञान बुद्धि में आ जाता है। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूल वतन, 84 का चक्र बस, यह नाटक सारा भारत पर ही बना हुआ है। बाकी सब हैं बाईप्लाट। बाप नॉलेज भी तुमको सुनाते हैं। तुम ही ऊंच से ऊंच फिर नींच बने हो। डबल सिरताज राव और फिर बिल्कुल ही रंक। अब भारत रंक भिखारी है। प्रजा का प्रजा पर राज्य है। सतयुग में था डबल सिरताज महाराजा-महारानी का राज्य। सब मानते हैं आदि देव ब्रह्मा को नाम बहुत दिये हैं। महावीर भी उनको कहते हैं, महावीर हनूमान को भी कहते हैं। वास्तव में तुम बच्चे ही सच्चे-सच्चे महावीर हनूमान हो क्योंकि तुम योग में इतना रहते हो जो माया के भल कितने भी तूफान आयें लेकिन तुम्हें हिला नहीं सकते। तुम महावीर के बच्चे महावीर बने हो क्योंकि तुम माया पर जीत पाते हो। 5 विकार रूपी रावण पर हर एक जीत पाते हैं। एक मनुष्य की बात नहीं। तुम हर एक को धनुष तोड़ना है अर्थात् माया पर जीत पानी है। इसमें लड़ाई आदि की कोई बात नहीं। यूरोपवासी कैसे लड़ते हैं, भारत में कौरवों और यौवनों की लड़ाई है। गाया भी हुआ है रक्त की नदियां बहती हैं। दूध की भी नदियां बहेंगी। विष्णु को क्षीरसागर में दिखाते हैं, लक्ष्मी-नारायण है पारसनाथ। उनका फिर नेपाल तरफ पशुपति नाम रख दिया है। है एक ही विष्णु के दो रूप, पारसनाथ पारसनाथिनी। वह है पशुपतिनाथ पति, पशुपतिनाथ पत्नी। उसमें विष्णु का चित्र बनाते हैं। लेक भी बनाते हैं। अब लेक में क्षीर (दूध) कहाँ से आया। बड़े दिन पर उस लेक में दूध डालते हैं, फिर दिखाते हैं क्षीरसागर में विष्णु सोया पड़ा है। अर्थ कुछ भी नहीं। 4 भुजा वाला मनुष्य तो कोई होता नहीं।
अभी तुम बच्चे सोशल वर्कर हो, रूहानी बाप के बच्चे हो ना। बाप सब बातें समझाते हैं, इसमें कोई संशय नहीं आना चाहिए। संशय माना माया का तूफान। तुम हमको बुलाते ही हो हे पतित-पावन आओ, आकर हमको पावन बनाओ। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। 84 के चक्र को भी याद करना है। बाप को कहा जाता है पतित-पावन, ज्ञान का सागर, दो चीज़ हो गई। पतितों को पावन बनाते और 84 के चक्र का ज्ञान सुनाते हैं। यह भी तुम बच्चे जानते हो 84 का चक्र चलता ही रहेगा, इनकी इन्ड नहीं है। यह भी तुम नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हो – बाप कितना मीठा है, उनको पतियों का पति भी कहते हैं। बाप भी है। अब बाप कहते हैं मेरे से तुम बच्चों को बड़ा भारी वर्सा मिलता है। परन्तु ऐसे मुझ बाप को भी फारकती दे देते हैं। यह भी ड्रामा में नूँध है, पढ़ाई को ही छोड़ देते। गोया फारकती दे देते, कितने बेसमझ हैं। जो अक्लमंद बच्चे हैं वह सहज ही सब बातों को समझकर दूसरों को पढ़ाने लग पड़ेंगे। वह फौरन निर्णय लेंगे कि उस पढ़ाई से क्या मिलता है और इस पढ़ाई से क्या मिलता है। क्या पढ़ना चाहिए। बाबा बच्चों से पूछते हैं, बच्चे समझते भी हैं कि यह पढ़ाई बहुत अच्छी है। फिर भी कहते क्या करें, जिस्मानी पढ़ाई नहीं पढ़ेंगे तो मित्र-सम्बन्धी आदि नाराज़ होंगे। बाप कहते हैं – दिन-प्रतिदिन टाइम बहुत थोड़ा होता जाता है। इतनी पढ़ाई तो पढ़ नहीं सकेंगे। बड़े ज़ोर से तैयारियाँ हो रही हैं। हर प्रकार से तैयारी होती है ना। दिन-प्रतिदिन एक-दो में दुश्मनी बढ़ती जाती है। कहते भी हैं ऐसी-ऐसी चीज़ें बनाई हैं जो फट से सबको खलास कर देंगे। तुम बच्चे जानते हो ड्रामा अनुसार अब लड़ाई लग नहीं सकती, राजाई स्थापन होनी है तब तक हम भी तैयारी कर रहे हैं। यह भी तैयारी करते रहते हैं। तुम्हारा पिछाड़ी में बहुत प्रभाव निकलने का है। गाया भी जाता है अहो प्रभू तेरी लीला। यह इसी समय का गायन है। यह भी गाया हुआ है तुम्हारी गति मत न्यारी। सब आत्माओं का पार्ट न्यारा है। अभी बाप तुमको श्रीमत दे रहे हैं कि मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। कहाँ श्रीमत, कहाँ मनुष्यों की मत। तुम जानते हो विश्व में शान्ति सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई कर न सके। 100 परसेन्ट पवित्रता-सुख-शान्ति 5 हज़ार वर्ष पहले मुआफिक ड्रामा अनुसार स्थापन कर रहे हैं। कैसे? सो आकर समझो। तुम बच्चे भी मददगार बनते हो। जो बहुत मदद करेंगे वह विजय माला के दाने बन जाते। तुम बच्चों के नाम भी कितने रमणीक थे। वह नाम की लिस्ट एलबम में रख देनी चाहिए। तुम भट्टी में थे, घरबार छोड़ बाप के आकर बने। एकदम भट्टी में आकर पड़े। ऐसी पक्की भट्टी थी जो अन्दर कोई आ न सके। जब बाप के बन गये तो फिर नाम जरूर होने चाहिए। सब कुछ सरेन्डर कर दिया, इसलिए नाम रख दिये। वन्डर है ना – बाप ने सबके नाम रखे। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी बात में संशय बुद्धि नहीं बनना है, माया के तूफानों को महावीर बन पार करना है, ऐसा योग में रहो जो माया का तूफान हिला न सके।
2) अक्लमंद बन अपनी जीवन ईश्वरीय सेवा में लगानी है। सच्चा-सच्चा रूहानी सोशल वर्कर बनना है। रूहानी पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है।
वरदान:- | अहम् और वहम को समाप्त कर रहमदिल बनने वाले विश्व कल्याणकारी भव कैसी भी अवगुण वाली, कड़े संस्कार वाली, कम बुद्धि वाली, सदा ग्लानि करने वाली आत्मा हो लेकिन जो रहमदिल विश्व कल्याणकारी बच्चे हैं वे सर्व आत्माओं के प्रति लॉफुल के साथ लवफुल होंगे। कभी इस वहम में नहीं आयेंगे कि यह तो कभी बदल ही नहीं सकते, यह तो हैं ही ऐसे….या यह कुछ नहीं कर सकते, मैं ही सब कुछ हूँ..यह कुछ नहीं हैं। इस प्रकार का अहम् और वहम छोड़, कमजोरियों वा बुराइयों को जानते हुए भी क्षमा करने वाले रहमदिल बच्चे ही विश्व कल्याण की सेवा में सफल होते हैं। |
स्लोगन:- | जहाँ ब्राह्मणों के तन-मन-धन का सहयोग है वहाँ सफलता साथ है। |
अव्यक्त इशारे – आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो
आत्मायें जब आपके आत्मिक स्वरूप का अनुभव करेंगी तब वे बाप की तरफ आकर्षित होकर, अहो प्रभू के गीत गायेंगी और देहभान से सहज अर्पण हो जायेंगी। अहो आपका भाग्य! ओहो! मेरा भाग्य! इस भाग्य की अनुभूति के कारण देह और देह के सम्बन्ध की स्मृति का त्याग कर देंगी।
“मीठे बच्चे – बेहद के सुखों के लिए तुम्हें बेहद की नॉलेज मिलती है, तुम फिर से राजयोग की शिक्षा से राजाई ले रहे हो”
प्रश्न–उत्तर
प्रश्न 1: तुम्हारा ईश्वरीय कुटुम्ब किस बात में बिल्कुल निराला है?
उत्तर: इस ईश्वरीय कुटुम्ब में कोई एक रोज़ का बच्चा है, कोई आठ रोज़ का—पर सब पढ़ाई में लगे हैं। स्वयं निराकार शिव बाबा टीचर बनकर आत्माओं को पढ़ाते हैं; इसी अद्भुत पढ़ाई के कारण यह कुटुम्ब बिल्कुल निराला है।
प्रश्न 2: वृक्षपति (बृहस्पति) किसे कहा जाता है और यह चैतन्य बीज क्या दर्शाता है?
उत्तर: वृक्षपति अर्थात् कल्पवृक्ष का चैतन्य बीजरूप शिव बाबा है। वही झाड़ के आदि-मध्य-अन्त को जानने वाला है; बाकी सम्पूर्ण वृक्ष (सभी आत्माएँ) जड़ स्वरूप हैं। पाँच-हज़ार वर्ष के इस कल्पवृक्ष का बीज चैतन्य एवं ज्ञान सागर बाबा ही है।
प्रश्न 3: ‘बेहद की नॉलेज’ और ‘हद की नॉलेज’ में मूल अंतर क्या है?
उत्तर: बेहद की नॉलेज आत्मा को उसके 84 जन्मों का रहस्य समझाकर बेहद का सुख—स्वर्ग का राज्य—दिलाती है। हद की नॉलेज देही-अभिमान तक सीमित रहकर तुच्छ भौतिक सुख देती है, जो ‘काग-विष्टा समान’ कहलाती है।
प्रश्न 4: आत्म-अभिमानी रहने व बाप को याद करने की मुख्य विधि क्या है?
उत्तर: हर घड़ी स्मृति रखो कि “मैं आत्मा हूँ” और सामने बैठे शिव बाबा को ‘मामेकम्’ याद करो। यही सहज योग विकर्म विनाश करता है; जितनी गहरी याद, उतनी तीव्र शक्तिशाली अनुभूति और माया पर विजय।
प्रश्न 5: महावीर बच्चे कौन कहलाते हैं और उन्हें माया क्यों हिला नहीं सकती?
उत्तर: जो निरन्तर योगबल से पाँच विकार-रूपी रावण पर जीत पाकर माया के तूफानों में अचल-अडोल रहते हैं, वे ही सच्चे महावीर हनूमान समान बच्चे हैं। उनकी स्थिर स्मृति—“हम बाबा के वीर बच्चे हैं”—उन्हें हर परीक्षा में अडिग रखती है।
प्रश्न 6: ‘दो बाप’ की पहचान स्पष्ट करो।
उत्तर: एक लौकिक बाप देहधारी है, जो जन्म देता है; दूसरा पारलौकिक परमपिता शिव बाबा है, जो आत्माओं का सच्चा ज्ञान-सागर बाप है। ऊँचा बाप वही परमात्मा है, जो ज्ञान देकर हमें देवता-पद का वर्सा दिलाते हैं।
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