MURLI 07-06-2025/BRAHMAKUMARIS

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(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

07-06-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम अभी पुजारी से पूज्य बन रहे हो, पूज्य बाप आये हैं तुम्हें आप समान पूज्य बनाने”
प्रश्नः- तुम बच्चों के अन्दर कौन-सा दृढ़ विश्वास है?
उत्तर:- तुम्हें दृढ़ विश्वास है कि हम जीते जी बाप से पूरा वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। बाबा की याद में यह पुराना शरीर छोड़ बाप के साथ जायेंगे। बाबा हमें घर का सहज रास्ता बता रहे हैं।
गीत:- ओम् नमो शिवाए……….

ओम् शान्ति। ओम् शान्ति। ओम् शान्ति तो बहुत मनुष्य कहते रहते हैं। बच्चे भी कहते हैं, ओम् शान्ति। अन्दर जो आत्मा है – वह कहती है ओम् शान्ति। परन्तु आत्मायें तो यथार्थ रीति अपने को जानती नहीं हैं, न बाप को जानती हैं। भल पुकारते हैं परन्तु बाप कहते हैं मैं जो हूँ, जैसा हूँ यथार्थ रीति मुझे कोई नहीं जानते। यह (ब्रह्मा) भी कहते हैं कि मैं अपने को नहीं जानता था कि मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ! आत्मा तो मेल है ना। बच्चा है। फादर है परमात्मा। तो आत्मायें आपस में ब्रदर्स हो गई। फिर शरीर में आने कारण कोई को मेल, कोई को फीमेल कहते हैं। परन्तु यथार्थ आत्मा क्या है, यह कोई भी मनुष्य मात्र नहीं जानते। अभी तुम बच्चों को यह नॉलेज मिलती है जो फिर तुम साथ ले जाते हो। वहाँ यह नॉलेज रहती है, हम आत्मा हैं यह पुराना शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। आत्मा की पहचान साथ में ले जाते। पहले तो आत्मा को भी नहीं जानते थे। हम कब से पार्ट बजाते हैं, कुछ नहीं जानते थे। अभी तक भी कई अपने को पूरा पहचानते नहीं हैं। मोटे रूप से जानते हैं और मोटे लिंग रूप को ही याद करते हैं। मैं आत्मा बिन्दी हूँ। बाप भी बिन्दी है, उस रूप में याद करें, ऐसे बहुत थोड़े हैं। नम्बरवार बुद्धि है ना। कोई तो अच्छी रीति समझकर औरों को भी समझाने लग पड़ते हैं। तुम समझाते हो अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करना है। वही पतित-पावन है। पहले तो मनुष्यों को आत्मा की ही पहचान नहीं है, तो वह भी समझाना पड़े। अपने को जब आत्मा निश्चय करें तब बाप को भी जान सकें। आत्मा को ही नहीं पहचानते हैं इसलिए बाप को भी पूरा जान नहीं सकते। अभी तुम बच्चे जानते हो हम आत्मा बिन्दी हैं। इतनी छोटी-सी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है, यह भी तुमको समझाना पड़े। नहीं तो सिर्फ कहते ज्ञान बहुत अच्छा है। भगवान से मिलने का रास्ता बड़ा अच्छा बताते हैं। परन्तु मैं कौन हूँ, बाप कौन है, यह नहीं जानते। सिर्फ अच्छा-अच्छा कह देते हैं। कोई तो फिर ऐसे भी कहते हैं कि यह तो नास्तिक बना देते हैं। तुम जानते हो – ज्ञान की समझ कोई में भी नहीं है। तुम समझाते हो अभी हम पूज्य बन रहे हैं। हम किसकी पूजा नहीं करते हैं क्योंकि जो सबका पूज्य है ऊंच ते ऊंच भगवान, उनकी हम सन्तान हैं। वह है ही पूज्य पिताश्री। अभी तुम बच्चे जानते हो – पिताश्री हमको अपना बनाकर और पढ़ा रहे हैं। सबसे ऊंच ते ऊंच पूज्य एक ही है, उनके सिवाए और कोई पूज्य बना न सके। पुजारी जरूर पुजारी ही बनायेंगे। दुनिया में सब हैं पुजारी। तुमको अभी पूज्य मिला है, जो आपसमान बना रहे हैं। तुमसे पूजा छुड़ा दी है। अपने साथ ले जाते हैं। यह छी-छी दुनिया है। यह है ही मृत्युलोक। भक्ति शुरू ही तब होती है जब रावण राज्य होता है। पूज्य से पुजारी बन जाते हैं। फिर पुजारी से पूज्य बनाने के लिए बाप को आना पड़ता है। अभी तुम पूज्य देवता बन रहे हो। आत्मा शरीर द्वारा पार्ट बजाती है। अभी बाप हमको पूज्य देवता बना रहे हैं, आत्मा को पवित्र बनाने के लिए। तो तुम बच्चों को युक्ति दी है – बाप को याद करने से तुम पुजारी से पूज्य बन जायेंगे क्योंकि वह बाप है सर्व का पूज्य। जो आधाकल्प पुजारी बनते हैं, वह फिर आधाकल्प पूज्य बनते हैं। यह भी ड्रामा में पार्ट है। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को कोई भी नहीं जानते। अभी बाप द्वारा तुम बच्चे जानते हो और दूसरे को भी समझाते हो। पहली-पहली मुख्य बात यह समझानी है – अपने को आत्मा बिन्दी समझो। आत्मा का बाप वह निराकार है, वह नॉलेजफुल ही आकर पढ़ाते हैं। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं। बाप आते हैं एक बार। उनको जानना भी एक बार होता है। आते भी एक ही बार संगमयुग पर हैं। पुरानी पतित दुनिया को आकर पावन बनाते हैं। अभी बाप ड्रामा प्लैन अनुसार आये हैं। कोई नई बात नहीं है। कल्प-कल्प ऐसे ही आता हूँ। एक सेकण्ड भी आगे-पीछे नहीं हो सकता है। तुम बच्चों की दिल में जंचता है कि बरोबर बाबा हम आत्माओं को सच्चा ज्ञान दे रहे हैं, फिर कल्प बाद भी बाप को आना पड़ेगा। बाप द्वारा जो इस समय जाना है वह फिर कल्प बाद जानेंगे। यह भी जानते हैं अब पुरानी दुनिया का विनाश होगा फिर हम सतयुग में आकर अपना पार्ट बजायेंगे। सतयुगी स्वर्गवासी बनेंगे। यह तो बुद्धि में याद है ना। याद रहने से खुशी भी रहती है। स्टूडेन्ट लाइफ है ना। हम स्वर्गवासी बनने के लिए पढ़ रहे हैं। यह खुशी स्थाई रहनी चाहिए, जब तक स्टडी पूरी हो। बाप समझाते रहते हैं कि स्टडी पूरी तब होगी जब विनाश के लिए सामग्री तैयार होगी। फिर तुम समझ जायेंगे – आग जरूर लगेगी। तैयारियां तो होती रहती हैं ना। एक-दो में कितना गर्म होते रहते हैं। चारों तरफ भिन्न-भिन्न प्रकार की सेनायें हैं। सब लड़ने के लिए तैयार होते रहते हैं। कोई न कोई अटक ऐसी डालते जो लड़ाई जरूर लगे। कल्प पहले मुआफिक विनाश तो होना ही है। तुम बच्चे देखेंगे। आगे भी बच्चों ने देखा है एक चिनगारी से कितनी लड़ाई लगी थी। एक-दो को डराते रहते हैं कि ऐसा करो नहीं तो हमें यह बॉम्ब्स हाथ में उठाने पड़ेंगे। मौत सामने आ जाता है तो फिर बनाने के सिवाए रह नहीं सकते हैं। आगे भी लड़ाई लगी थी तो बॉम्ब्स लगा दिये। भावी थी ना। अभी तो हज़ारों बॉम्ब्स हैं।

तुम बच्चों को यह जरूर समझाना है कि अभी बाप आया हुआ है, सबको वापिस ले जाने। सब पुकार रहे हैं, हे पतित-पावन आओ। इस छी-छी दुनिया से हमको पावन दुनिया में ले चलो। तुम बच्चे जानते हो पावन दुनियायें हैं दो – मुक्ति और जीवनमुक्ति। सबकी आत्मायें पवित्र बन मुक्तिधाम चली जायेंगी। यह दु:खधाम विनाश हो जायेगा, जिसको मृत्युलोक कहा जाता है। पहले अमरलोक था, फिर चक्र लगाए अब मृत्युलोक में आये हो। फिर अमर-लोक की स्थापना होती है। वहाँ अकाले मृत्यु कोई होती नहीं इसलिए उनको अमरलोक कहा जाता है। शास्त्रों में भी भल अक्षर हैं, परन्तु यथार्थ रीति कोई भी समझते नहीं हैं। यह भी तुम जानते हो – अब बाबा आया हुआ है। मृत्युलोक का विनाश जरूर होना है। यह 100 परसेन्ट सरटेन है। बाप समझा रहे हैं कि अपनी आत्मा को योगबल से पवित्र बनाओ। मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। परन्तु यह भी बच्चे याद नहीं कर सकते हैं। बाप से वर्सा अथवा राजाई लेने में मेहनत तो चाहिए ना। जितना हो सके याद में रहना है। अपने को देखना है – कितना समय हम याद में रहते हैं और कितनों को याद दिलाते हैं? मनमनाभव, इनको मंत्र भी नहीं कहा जाए, यह है बाप की याद। देह-अभिमान को छोड़ देना है। तुम आत्मा हो, यह तुम्हारा रथ है, इससे तुम कितना काम करते हो। सतयुग में तुम देवी-देवता बन कैसे राज्य करते हो फिर तुम यही अनुभव पायेंगे। उस समय तो प्रैक्टिकल में आत्म-अभिमानी रहते हो। आत्मा कहेगी हमारा यह शरीर बूढ़ा हुआ है, यह छोड़ नया लेंगे। दु:ख की बात ही नहीं। यहाँ तो शरीर न छूटे उसके लिए भी कितनी डॉक्टर की दवाइयों आदि की मेहनत करते हैं। तुम बच्चों को बीमारी आदि में भी पुराने शरीर से कभी तंग नहीं होना है क्योंकि तुम समझते हो इस शरीर में ही जी करके बाप से वर्सा पाना है। शिवबाबा की याद से ही पवित्र बन जायेंगे। यह है मेहनत। परन्तु पहले तो आत्मा को जानना पड़े। मुख्य तुम्हारी है ही याद की यात्रा। याद में रहते-रहते फिर हम चले जायेंगे मूलवतन। जहाँ के हम निवासी हैं, वही हमारा शान्तिधाम है। शान्तिधाम, सुखधाम को तुम ही जानते हो और याद करते हो। और कोई नहीं जानते। जिन्होंने कल्प पहले बाप से वर्सा लिया है, वही लेंगे।

मुख्य है याद की यात्रा। भक्ति मार्ग की यात्रायें अब खत्म होनी हैं। भक्ति मार्ग ही खलास हो जायेगा। भक्ति मार्ग क्या है? जब ज्ञान हो तब समझें। समझते हैं भक्ति से भगवान मिलेगा। भक्ति का फल क्या देंगे? कुछ भी पता नहीं। तुम बच्चे अब समझते हो बाप बच्चों को जरूर स्वर्ग की बादशाही का ही वर्सा देंगे। सबको वर्सा दिया था, यथा राजा-रानी तथा प्रजा सब स्वर्गवासी थे। बाप कहते हैं 5000 वर्ष पहले भी तुमको स्वर्गवासी बनाया था। अब फिर तुमको बनाता हूँ। फिर तुम ऐसे 84 जन्म लेंगे। यह बुद्धि में याद रहना चाहिए, भूलना नहीं चाहिए। जो नॉलेज सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की बाप के पास है वह बच्चों की बुद्धि में टपकती है। हम कैसे 84 जन्म लेते हैं, अभी फिर बाबा से वर्सा लेते हैं, अनेक बार बाप से वर्सा लिया है, बाप कहते हैं जैसे लिया था फिर लो। बाप तो सबको पढ़ाते रहते हैं। दैवीगुण धारण करने के लिए भी सावधानी मिलती रहती है। अपनी जांच करने के लिए साक्षी हो देखना चाहिए कि कहाँ तक हम पुरुषार्थ करते हैं, कोई समझते हैं हम बहुत अच्छा पुरुषार्थ कर रहे हैं। प्रदर्शनी आदि का प्रबन्ध करता रहता हूँ ताकि सबको मालूम पड़ जाए कि भगवान बाप आया हुआ है। मनुष्य बिचारे सब घोर नींद में सोये हुए हैं। ज्ञान का किसी को पता ही नहीं है तो जरूर भक्ति को ऊंच ही समझेंगे। आगे तुम्हारे में भी कोई ज्ञान था क्या? अभी तुमको मालूम पड़ा है, ज्ञान का सागर बाप ही है, वही भक्ति का फल देते हैं, जिसने जास्ती भक्ति की है, उनको जास्ती फल मिलेगा। वही अच्छी रीति पढ़ते हैं ऊंच पद पाने के लिए। यह कितनी मीठी-मीठी बातें हैं। बुढ़ियों आदि के लिए भी बहुत सहज कर समझाते हैं। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। ऊंच ते ऊंच है भगवान शिव। शिव परमात्माए नम: कहा जाता है, वह कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हों। बस। और कोई तकलीफ नहीं देते हैं। आगे चल शिवबाबा को भी याद करने लग पड़ेंगे। वर्सा तो लेना है, जीते जी बाप से वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। शिवबाबा की याद में शरीर छोड़ देते हैं, तो वह फिर संस्कार ले जाते हैं। स्वर्ग में जरूर आयेंगे, जितना योग उतना फल मिलेगा। मूल बात है – चलते-फिरते जितना हो सके याद में रहना है। अपने सिर से बोझा उतारना है, सिर्फ याद चाहिए और कोई तकलीफ बाप नहीं दते हैं। जानते हैं आधाकल्प से बच्चों ने तकलीफ देखी है इसलिए अभी आया हूँ, तुमको सहज रास्ता बताने – वर्सा लेने का। बाप को सिर्फ याद करो। भल याद तो आगे भी करते थे परन्तु कोई ज्ञान नहीं था, अभी बाप ने ज्ञान दिया है कि इस रीति मुझे याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। भल शिव की भक्ति तो दुनिया में बहुत करते हैं, बहुत याद करते हैं परन्तु पहचान नहीं है। इस समय बाप खुद ही आकर पहचान देते हैं कि मुझे याद करो। अभी तुम समझते हो हम अच्छी रीति जानते हैं। तुम कहेंगे हम जाते हैं बापदादा के पास। बाप ने यह भागीरथ लिया है, भागीरथ भी मशहूर है, इन द्वारा बैठ ज्ञान सुनाते हैं। यह भी ड्रामा में पार्ट है। कल्प-कल्प इस भाग्यशाली रथ पर आते हैं। तुम जानते हो कि यह वही है जिसको श्याम सुन्दर कहते हैं। यह भी तुम समझते हो। मनुष्यों ने फिर अर्जुन नाम रख दिया है। अभी बाप यथार्थ समझाते हैं – ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं। बच्चों में अभी समझ है कि हम ब्रह्मापुरी के हैं फिर विष्णुपुरी के बनेंगे। विष्णुपुरी से ब्रह्मापुरी में आने में 84 जन्म लगते हैं। यह भी अनेक बार समझाया है जो तुम फिर से सुनते हो। आत्मा को अब बाप कहते हैं सिर्फ मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे इसलिए तुमको खुशी भी होती है। यह एक अन्तिम जन्म पवित्र बनने से हम पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। तो क्यों न पवित्र बनें। हम एक बाप के बच्चे ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, फिर भी वह जिस्मानी वृत्ति बदलने में टाइम लगता है। धीरे-धीरे पिछाड़ी में कर्मातीत अवस्था होनी है। इस समय किसकी कर्मातीत अवस्था होना असम्भव है। कर्मातीत अवस्था हो जाए फिर तो यह शरीर भी न रहे, इनको छोड़ना पड़े। लड़ाई लग जाए, एक बाप की ही याद रहे, इसमें मेहनत है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) साक्षी हो अपने को देखना है कि हम कहाँ तक पुरुषार्थ करते हैं? चलते फिरते, कर्म करते कितना समय बाप की याद में रहते हैं?

2) इस शरीर से कभी भी तंग नहीं होना है। इस शरीर में ही जी करके बाप से वर्सा पाना है। स्वर्गवासी बनने के लिए इस लाइफ में पूरी स्टडी करनी है।

वरदान:- त्रिकालदर्शी और साक्षी दृष्टा बन हर कर्म करते बन्धनमुक्त स्थिति के अनुभव द्वारा दृष्टान्त रूप भव
यदि त्रिकालदर्शी स्टेज पर स्थिति हो, कर्म के आदि मध्य अन्त को जानकर कर्म करते हो तो कोई भी कर्म विकर्म नहीं हो सकता है, सदा सुकर्म होगा। ऐसे ही साक्षी दृष्टा बन कर्म करने से कोई भी कर्म के बन्धन में कर्म बन्धनी आत्मा नहीं बनेंगे। कर्म का फल श्रेष्ठ होने के कारण कर्म सम्बन्ध में आयेंगे, बन्धन में नहीं। कर्म करते न्यारे और प्यारे रहेंगे तो अनेक आत्माओं के सामने दृष्टान्त रूप अर्थात् एक्जैम्पल बन जायेंगे।
स्लोगन:- जो मन से सदा सन्तुष्ट है वही डबल लाइट है।

 

अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

कोई भी समर्थ संकल्प आत्मिक शक्ति अर्थात् एनर्जी जमा करता है, समय भी सफल करता है। व्यर्थ संकल्प एनर्जी और समय को व्यर्थ गंवाता है इसलिए अब व्यर्थ संकल्प की रचना बन्द करो। यह रचना ही आत्मा रचता को परेशान करने वाली है इसलिए सदा इसी शान में रहो कि मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, समर्थ आत्मा हूँ तो कभी परेशान नहीं होंगे और अनेकों की परेशानी को मिटाने वाले बन जायेंगे।

मीठे बच्चे – तुम अभी पुजारी से पूज्य बन रहे हो, पूज्य बाप आये हैं तुम्हें आप समान पूज्य बनाने”

प्रश्न-उत्तर श्रृंखला:


प्रश्न 1:तुम बच्चों के अन्दर कौन-सा दृढ़ विश्वास है?
उत्तर:हम बच्चों को दृढ़ विश्वास है कि हम जीते जी बाप से पूरा वर्सा लेकर ही यह पुराना शरीर छोड़ेंगे। बाबा की याद में शरीर छोड़ बाप के साथ घर वापिस जायेंगे। यही सहज घर वापसी का रास्ता है।


प्रश्न 2:मनुष्य ‘ओम् शान्ति’ क्यों कहते हैं, और वास्तव में इसका अर्थ क्या है?
उत्तर:मनुष्य ‘ओम् शान्ति’ तो कहते हैं, परंतु आत्मा को और बाप को यथार्थ रूप में नहीं जानते। वास्तव में ‘ओम् शान्ति’ आत्मा की स्थिति है। आत्मा शान्त स्वरूप है। आत्मा कहती है – ओम् शान्ति। यह पहचान बाप आकर ही देते हैं।


प्रश्न 3:भक्ति मार्ग से ज्ञान मार्ग में क्या अंतर है?
उत्तर:भक्ति मार्ग अन्धश्रद्धा और अज्ञान का मार्ग है, जिसमें भगवान को पुकारा जाता है परन्तु पहचाना नहीं जाता। ज्ञान मार्ग में बाप खुद आकर आत्मा और परमात्मा की यथार्थ पहचान देते हैं और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं।


प्रश्न 4:बाप किस उद्देश्य से आते हैं और बच्चों को क्या बनाते हैं?
उत्तर:बाप संगम युग पर आकर पुजारी बने बच्चों को फिर से पूज्य देवता बनाते हैं। आत्माओं को पवित्र बनाकर उन्हें सत्युग के राज्य के लायक बनाते हैं। यही बाप का उद्देश्य है – पतितों को पावन बनाना।


प्रश्न 5:मनुष्य आत्मा और परमात्मा को क्यों नहीं पहचान पाते?
उत्तर:क्योंकि आत्मा के बारे में यथार्थ ज्ञान नहीं है। आत्मा को शरीर समझ लिया गया है और बाप को भी किसी भौतिक रूप में देखा जाता है। आत्मा को बिन्दी समझना और बाप को भी बिन्दी जानकर याद करना ही सही योग है, जो बाप समझाते हैं।


प्रश्न 6:याद की यात्रा क्यों आवश्यक है?
उत्तर:याद की यात्रा से ही आत्मा पवित्र बनती है और विकर्म विनाश होते हैं। यही मुख्य पुरुषार्थ है – मनमनाभव। याद से आत्मा अपने मूल स्वरूप को अनुभव करती है और बाप समान बनती है।


प्रश्न 7:विनाश की क्या आवश्यकता है और यह कैसे होगा?
उत्तर:विनाश पुरानी पतित दुनिया के अंत के लिए आवश्यक है। यह ड्रामा की निश्चित योजना अनुसार होता है। चारों तरफ युद्ध की तैयारियाँ हो रही हैं, बॉम्ब्स तैयार हैं। एक चिनगारी से ही महायुद्ध प्रारंभ हो सकता है।


प्रश्न 8:भक्ति का फल कौन देता है और कैसे?
उत्तर:भक्ति का फल ज्ञान का सागर शिवबाबा ही देते हैं। जो आत्मा जितनी गहन भक्ति करती है, उतना ही वह ज्ञान सुनकर ऊँचा पद प्राप्त करती है। परन्तु यह ज्ञान केवल एक बार संगम युग पर बाप द्वारा ही मिलता है।


प्रश्न 9:कौन से दो लोक पावन कहे जाते हैं और क्यों?
उत्तर:मुक्तिधाम (शान्तिधाम) और जीवनमुक्तिधाम (सुखधाम) – ये दोनों ही पावन लोक हैं। मुक्तिधाम में आत्माएँ पवित्र, अव्यक्त स्थिति में रहती हैं। जीवनमुक्तिधाम सतयुग है जहाँ पवित्र शरीर में आत्माएँ जन्म लेती हैं।


प्रश्न 10:‘भागीरथ’ किसे कहा जाता है और क्यों?
उत्तर:ब्रह्मा बाबा को ‘भागीरथ’ कहा जाता है क्योंकि शिवबाबा ने उन्हें रथ बनाकर अपने ज्ञान को सुनाने का कार्य चुना है। उन्हीं के माध्यम से साकार ज्ञान बाप बच्चों को देते हैं। यह भाग्यशाली रथ कल्प-कल्प बाप का कार्य करता है।

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