MURLI 08-10-2025 |BRAHMA KUMARIS

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Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below

08-10-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठेबच्चे – तुम इस पाठशाला में आये हो स्वर्ग के लिए पासपोर्ट लेने, आत्म-अभिमानी बनो और अपना नाम रजिस्टर में नोट करा दो तो स्वर्ग में आ जायेंगे”
प्रश्नः- कौन-सी स्मृति न रहने के कारण बच्चे बाप का रिगार्ड नहीं रखते हैं?
उत्तर:- कई बच्चों को यही स्मृति नहीं रहती कि जिसको सारी दुनिया पुकार रही है, याद कर रही है, वही ऊंच ते ऊंच बाप हम बच्चों की सेवा में उपस्थित हुआ है। यह निश्चय नम्बरवार है, जितना जिसको निश्चय है उतना रिगार्ड रखते हैं।
गीत:- जो पिया के साथ है……..

ओम् शान्ति। सब बच्चे ज्ञान सागर के साथ तो हैं ही। इतने सब बच्चे एक जगह तो रह नहीं सकते। भल जो साथ हैं वह नज़दीक में डायरेक्ट ज्ञान सुनते हैं और जो दूर हैं उन्हों को देरी से मिलता है। परन्तु ऐसे नहीं कि साथ वाले जास्ती उन्नति को पाते हैं और दूर वाले कम उन्नति को पाते हैं। नहीं, प्रैक्टिकल देखा जाता है जो दूर हैं वह जास्ती पढ़ते हैं और उन्नति को पाते हैं। इतना जरूर है बेहद का बाप यहाँ हैं। ब्राह्मण बच्चों में भी नम्बरवार हैं। बच्चों को दैवीगुण भी धारण करने हैं। कोई-कोई बच्चों से बड़ी-बड़ी ग़फलत होती है। समझते भी हैं बेहद का बाप जिसको सारी सृष्टि याद करती है, वह हमारी सेवा में उपस्थित है और हमको ऊंच ते ऊंच बनाने का मार्ग बताते हैं। बहुत प्यार से समझाते हैं फिर भी इतना रिगार्ड देते नहीं। बांधेलियाँ कितनी मार खाती हैं, तड़फती हैं फिर भी याद में रह अच्छा उठा लेती हैं। पद भी ऊंच बन जाता है। बाबा सबके लिए नहीं कहते हैं। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार तो हैं ही। बाप बच्चों को सावधान करते हैं, सब तो एक जैसे हो न सकें। बांधेलियाँ आदि बाहर में रहकर भी बड़ी कमाई करती हैं। यह गीत तो भक्ति मार्ग वालों का बना हुआ है। परन्तु तुम्हारे लिए अर्थ करने जैसा भी है, वह क्या जानें, पिया कौन है, किसका पिया है? आत्मा खुद को ही नहीं जानती तो बाप को कैसे जाने। है तो आत्मा ना। मैं क्या हूँ, कहाँ से आई हूँ – यह भी पता नहीं है। सब हैं देह-अभिमानी। आत्म-अभिमानी कोई है नहीं। अगर आत्म-अभिमानी बनें तो आत्मा को अपने बाप का भी पता हो। देह-अभिमानी होने के कारण न आत्मा को, न परमपिता परमात्मा को जानते हैं। यहाँ तो तुम बच्चों को बाप बैठ सम्मुख समझाते हैं। यह बेहद का स्कूल है। एक ही एम ऑब्जेक्ट है – स्वर्ग की बादशाही प्राप्त करना। स्वर्ग में भी बहुत पद हैं। कोई राजा-रानी कोई प्रजा। बाप कहते हैं – मैं आया हूँ तुमको फिर से डबल सिरताज बनाने। सब तो डबल सिरताज बन न सकें। जो अच्छी रीति पढ़ते हैं वह अपने अन्दर में समझते हैं हम यह बन सकते हैं। सरेन्डर भी हैं, निश्चय भी है। सब समझते हैं इनसे कोई ऐसा छी-छी काम नहीं होता है। कोई-कोई में बहुत अवगुण होते हैं। वह थोड़ेही समझेंगे कि हम कोई इतना ऊंच पद पायेंगे इसलिए पुरुषार्थ ही नहीं करते। बाप से पूछें कि मैं यह बन सकता हूँ, तो बाबा झट बतायेंगे। अपने को देखेंगे तो झट समझेंगे बरोबर मैं ऊंच पद नहीं पा सकता हूँ। लक्षण भी चाहिए ना। सतयुग-त्रेता में तो ऐसी बातें होती नहीं। वहाँ है प्रालब्ध। बाद में जो राजायें होते हैं, वह भी प्रजा को बहुत प्यार करते हैं। यह तो मात-पिता है। यह भी तुम बच्चे ही जानते हो। यह तो बेहद का बाप है, यह सारी दुनिया को रजिस्टर करने वाले हैं। तुम भी रजिस्टर करते हो ना। पासपोर्ट दे रहे हो। स्वर्ग का मालिक बनने के लिए यहाँ से तुमको पासपोर्ट मिलता है। बाबा ने कहा था सबका फोटो होना चाहिए, जो वैकुण्ठ के लायक हैं क्योंकि तुम मनुष्य से देवता बनते हो। बाजू में ताज व तख्त वाला फोटो हो। हम यह बन रहे हैं। प्रदर्शनी आदि में भी यह सैम्पुल रखना चाहिए – यह है ही राजयोग। समझो बैरिस्टर बनते हैं तो वह एक तरफ आर्डनरी ड्रेस में हो, एक तरफ बैरिस्टरी ड्रेस। वैसे एक तरफ तुम साधारण, एक तरफ डबल सिरताज। तुम्हारा एक चित्र है ना – जिसमें पूछते हो क्या बनना चाहते हो? यह बैरिस्टर आदि बनना है या राजाओं का राजा बनना है। ऐसे चित्र होने चाहिए। बैरिस्टर जज आदि तो यहाँ के हैं। तुमको राजाओं का राजा नई दुनिया में बनने का है। एम ऑब्जेक्ट सामने है। हम यह बन रहे हैं। समझानी कितनी अच्छी है। चित्र भी बड़े अच्छे हों फुल साइज़ के। वह बैरिस्टरी पढ़ते हैं तो योग बैरिस्टर से है। बैरिस्टर ही बनते हैं। इनका योग परमपिता परमात्मा से है तो डबल सिरताज बनते हैं। अब बाप समझाते हैं बच्चों को एक्ट में आना चाहिए। लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर समझाना बहुत सहज होगा। हम यह बन रहे हैं तो तुम्हारे लिए जरूर नई दुनिया चाहिए। नर्क के बाद है स्वर्ग।

अभी यह है पुरुषोत्तम संगमयुग। यह पढ़ाई कितना ऊंच बनाने वाली है, इसमें पैसे आदि की दरकार नहीं है। पढ़ाई का शौक होना चाहिए। एक आदमी बहुत गरीब था, पढ़ने के लिए पैसे नहीं थे। फिर पढ़ते-पढ़ते मेहनत करके इतना साहूकार हो गया जो क्वीन विक्टोरिया का मिनिस्टर बन गया। तुम भी अभी कितने गरीब हो। बाप कितना ऊंच पढ़ाते हैं। इसमें सिर्फ बुद्धि से बाप को याद करना है। बत्ती आदि जगाने की भी दरकार नहीं। कहाँ भी बैठेयाद करो। परन्तु माया ऐसी है जो बाप की याद भुला देती है। याद में ही विघ्न पड़ते हैं। यही तो युद्ध है ना। आत्मा पवित्र बनती ही है बाप को याद करने से। पढ़ाई में माया कुछ नहीं करती। पढ़ाई से याद का नशा ऊंच है, इसलिए प्राचीन योग गाया हुआ है। योग और ज्ञान कहा जाता है। योग के लिए ज्ञान मिलता है – ऐसे-ऐसे याद करो। और फिर सृष्टि चक्र का भी ज्ञान है। रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को और कोई नहीं जानते। भारत का प्राचीन योग सिखलाते हैं। प्राचीन तो कहा जाता है नई दुनिया को। उनको फिर लाखों वर्ष दे दिये हैं। कल्प की आयु भी अनेक प्रकार की बताते हैं। कोई क्या कहते, कोई क्या कहते। यहाँ तुमको एक ही बाप पढ़ा रहे हैं। तुम बाहर में भी जायेंगे, तुमको चित्र मिलेंगे। यह तो व्यापारी है ना। बाबा कहते कपड़े पर छप सकते हैं। अगर किसके पास बड़ी स्क्रीन प्रेस न हो तो आधा-आधा कर दे। फिर जॉइंट ऐसा कर लेते हैं जो पता भी नहीं पड़ता है। बेहद का बाप, बड़ी सरकार कहते हैं, कोई छपाकर दिखाये तो मैं उनका नाम बाला करूँगा। यह चित्र कपड़े पर छपाए कोई विलायत ले जाए तो तुमको एक-एक चित्र का कोई 5-10 हज़ार भी दे देवे। पैसे तो वहाँ ढेर हैं। बन सकते हैं, इतनी बड़ी-बड़ी प्रेस हैं, शहरों की सीन सीनरी ऐसी-ऐसी छपती हैं – बात मत पूछो। यह भी छप सकते हैं। यह तो ऐसी फर्स्टक्लास चीज़ है – कहेंगे सच्चा ज्ञान तो इनमें ही है, और कोई के पास तो है ही नहीं। किसको पता ही नहीं – फिर समझाने वाला भी इंगलिश में होशियार चाहिए। इंगलिश तो सब जानते हैं। उन्हों को भी सन्देश तो देना है ना। वही विनाश अर्थ निमित्त बने हुए हैं ड्रामा अनुसार। बाबा ने बताया है उन्हों के पास बॉम्ब्स आदि ऐसे-ऐसे हैं जो दोनों अगर आपस में मिल जाएं तो सारे विश्व के मालिक बन सकते हैं। परन्तु यह ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है जो तुम योगबल से विश्व की बादशाही लेते हो। हथियार आदि से विश्व के मालिक बन न सकें। वह है साइन्स, तुम्हारी है साइलेन्स। सिर्फ बाप को और चक्र को याद करो, आपसमान बनाओ।

तुम बच्चे योगबल से विश्व की बादशाही ले रहे हो। वह आपस में लड़ेंगे भी जरूर। माखन बीच में तुमको मिलना है। श्रीकृष्ण के मुख में माखन का गोला दिखाते हैं। कहावत भी है दो आपस में लड़े, बीच में माखन तीसरा खा गया। है भी ऐसे। सारे विश्व की राजाई का माखन तुमको मिलता है। तो तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए। वाह बाबा आपकी तो कमाल है। नॉलेज तो आपकी ही है। बड़ी अच्छी समझानी है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म वालों ने विश्व की बादशाही कैसे प्राप्त की। यह किसको भी ख्याल में होगा नहीं। उस समय और कोई खण्ड होता नहीं। बाप कहते हैं मैं विश्व का मालिक नहीं बनता, तुमको बनाता हूँ। तुम पढ़ाई से विश्व के मालिक बनते हो। मैं परमात्मा तो हूँ ही अशरीरी। तुम सबको शरीर है। देहधारी हो। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी सूक्ष्म शरीर है। जैसे तुम आत्मा हो वैसे मैं भी परम आत्मा हूँ। मेरा जन्म दिव्य और अलौकिक है, और कोई भी ऐसे जन्म नहीं लेते हैं। यह मुकरर है। यह सब ड्रामा में नूंध है। कोई अभी मर जाते हैं – यह भी ड्रामा में नूंध हैं। ड्रामा की समझानी कितनी मिलती है। समझेंगे नम्बरवार। कोई तो डल बुद्धि होते हैं। तीन ग्रेड्स होती हैं। पिछाड़ी की ग्रेड वाले को डल कहा जाता है। खुद भी समझते हैं यह फर्स्ट ग्रेड में है, यह सेकण्ड में है। प्रजा में भी ऐसे ही है। पढ़ाई तो एक ही है। बच्चे जानते हैं यह पढ़कर हम सो डबल सिरताज बनेंगे। हम डबल सिरताज थे फिर सिंगल ताज फिर नो ताज बनें। जैसा कर्म वैसा फल कहा जाता है। सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे। यहाँ अच्छे कर्म करेंगे तो एक जन्म के लिए अच्छा फल मिलेगा। कोई ऐसे कर्म करते हैं जो जन्म से ही रोगी होते हैं। यह भी कर्मभोग है ना। बच्चों को कर्म, अकर्म, विकर्म का भी समझाया है। यहाँ जैसा करते हैं तो उसका अच्छा वा बुरा फल पाते हैं। कोई साहूकार बनते हैं तो जरूर अच्छे कर्म किये होंगे। अभी तुम जन्म-जन्मान्तर की प्रालब्ध बनाते हो। गरीब साहूकार का फ़र्क तो वहाँ रहता है ना, अभी के पुरुषार्थ अनुसार। वह प्रालब्ध है अविनाशी 21 जन्मों के लिए। यहाँ मिलता है अल्पकाल का। कर्म तो चलता है ना। यह कर्म क्षेत्र है। सतयुग है स्वर्ग का कर्म क्षेत्र। वहाँ विकर्म होता ही नहीं। यह सब बातें बुद्धि में धारण करनी है। कोई विरले हैं जो सदैव प्वाइंट्स लिखते रहते हैं। चार्ट भी लिखते-लिखते फिर थक जाते हैं। तुम बच्चों को प्वाइंट्स लिखनी चाहिए। बहुत महीन-महीन प्वाइंट्स हैं, जो सब तुम कभी याद नहीं कर सकेंगे, खिसक जायेंगी। फिर पछतायेंगे कि यह प्वाइंट तो हम भूल गये। सबका यह हाल होता है। भूलते बहुत हैं फिर दूसरे दिन याद पड़ेगा। बच्चों को अपनी उन्नति के लिए ख्याल करना है। बाबा जानते हैं कोई विरले यथार्थ रीति लिखते होंगे। बाबा व्यापारी भी है ना। वह है विनाशी रत्नों के व्यापारी। यह है ज्ञान रत्नों के। योग में ही बहुत बच्चे फेल होते हैं। एक्यूरेट याद में कोई घण्टा डेढ़ भी मुश्किल रह सकते हैं। 8 घण्टा तो पुरुषार्थ करना है। तुम बच्चों को शरीर निर्वाह भी करना है। बाबा ने आशिक-माशूक का भी मिसाल दिया है। बैठे-बैठेयाद किया और झट सामने आ जाते। यह भी एक साक्षात्कार है। वह उनको याद करते, वह उनको याद करते। यहाँ तो फिर एक है माशूक, तुम सब हो आशिक। वह सलोना माशूक तो सदैव गोरा है। एवर प्योर। बाप कहते हैं मैं मुसाफिर सदैव खूबसूरत हूँ। तुमको भी खूबसूरत बनाता हूँ। इन देवताओं की नेचुरल ब्युटी है। यहाँ तो कैसे-कैसे फैशन करते हैं। भिन्न-भिन्न ड्रेस पहनते हैं। वहाँ तो एकरस नेचुरल ब्युटी रहती है। ऐसी दुनिया में अब से तुम जाते हो। बाप कहते हैं मैं पुराने पतित देश, पतित शरीर में आता हूँ। यहाँ पावन शरीर है नहीं। बाप कहते हैं मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश कर प्रवृत्ति मार्ग की स्थापना करता हूँ। आगे चल तुम सर्विसएबुल बनते जायेंगे। पुरुषार्थ करेंगे फिर समझेंगे। आगे भी ऐसा पुरुषार्थ किया था, अब कर रहे हैं। पुरुषार्थ बिगर तो कुछ भी मिल न सके। तुम जानते हो हम नर से नारायण बनने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। नई दुनिया की राजधानी थी, अब नहीं है, फिर होगी। आइरन एज के बाद फिर गोल्डन एज जरूर होगी। राजधानी स्थापन होनी ही है। कल्प पहले मुआफिक। अच्छा!

मीठे-मीठेसिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सरेन्डर के साथ-साथ निश्चयबुद्धि बनना है। कोई भी छी-छी काम न हो। अन्दर कोई भी अवगुण न रहे तब अच्छा पद मिल सकता है।

2) ज्ञान रत्नों का व्यापार करने के लिए बाबा जो अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स सुनाते हैं, उन्हें नोट करना है। फिर उन्हें याद करके दूसरों को सुनाना है। सदा अपनी उन्नति का ख्याल करना है।

वरदान:- बालक और मालिकपन की समानता द्वारा सर्व खजानों में सम्पन्न भव
जैसे बालकपन का नशा सभी में है ऐसे बालक सो मालिक अर्थात् बाप समान सम्पन्न स्थिति का अनुभव करो। मालिकपन की विशेषता है – जितना ही मालिक उतना ही विश्व सेवाधारी के संस्कार सदा इमर्ज रूप में रहें। मालिकपन का नशा और विश्व सेवाधारी का नशा समान रूप में हो तब कहेंगे बाप समान। बालक और मालिक दोनों स्वरूप सदा ही प्रत्यक्ष कर्म में आ जाएं तब बाप समान सर्व खजानों से सम्पन्न स्थिति का अनुभव कर सकेंगे।
स्लोगन:- ज्ञान के अखुट खजानों के अधिकारी बनो तो अधीनता खत्म हो जायेगी।

 

अव्यक्त-इशारे – स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो

जैसे वाचा सेवा नेचुरल हो गई है, ऐसे मन्सा सेवा भी साथ-साथ और नेचुरल हो। वाणी के साथ मन्सा सेवा भी करते रहो तो आपको बोलना कम पड़ेगा। बोलने में जो एनर्जी लगाते हो वह मन्सा सेवा के सहयोग कारण वाणी की एनर्जी जमा होगी और मन्सा की शक्तिशाली सेवा सफलता ज्यादा अनुभव करायेगी।

डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय (Prajapita Brahma Kumaris Ishwariya Vishwa Vidyalaya) की दैनिक मुरली पर आधारित आध्यात्मिक अध्ययन एवं चिंतन है। इसका उद्देश्य आत्म-परिवर्तन, सकारात्मक चिंतन और राजयोग की शिक्षा को सरल भाषा में प्रस्तुत करना है। यह किसी धर्म, व्यक्ति या संस्था की आलोचना नहीं करता।

मीठे बच्चे – तुम इस पाठशाला में आये हो स्वर्ग के लिए पासपोर्ट लेने। आत्म-अभिमानी बनो और अपना नाम रजिस्टर में नोट करा दो तो स्वर्ग में आ जायेंगे।”


प्रश्न 1:

कौन-सी स्मृति न रहने के कारण बच्चे बाप का रिगार्ड नहीं रखते हैं?

उत्तर:
कई बच्चों को यह स्मृति नहीं रहती कि जिसको सारी दुनिया याद कर रही है, वही ऊंच ते ऊंच बाप हमारे सामने उपस्थित होकर हमें ऊंच ते ऊंच बनाने की शिक्षा दे रहा है।
यह निश्चय जितना दृढ़ होता है, उतना ही बच्चे बाप का रिगार्ड रखते हैं।


प्रश्न 2:

इस ईश्वरीय पाठशाला में आने का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर:
इस पाठशाला में आने का उद्देश्य है — स्वर्ग के लिए पासपोर्ट लेना
बाबा हमें डबल सिरताज अर्थात् ताज और तख्त वाला बनाते हैं।
यह बेहद की यूनिवर्सिटी है, जहाँ मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई सिखाई जाती है।


प्रश्न 3:

जो बच्चे दूर रहते हैं, क्या वे कम उन्नति करते हैं?

उत्तर:
नहीं, बाबा कहते हैं — यह जरूरी नहीं कि साथ रहने वाले अधिक उन्नति करें।
अक्सर देखा जाता है कि जो बच्चे दूर रहते हैं, वे अधिक ध्यान से पढ़ते हैं और ज्यादा उन्नति करते हैं।


प्रश्न 4:

दैवी गुण धारण करने में कौन-सी गलती बच्चे करते हैं?

उत्तर:
कई बच्चे जानते हुए भी कि बेहद का बाप हमें ऊंच बनाने आया है, फिर भी लापरवाही करते हैं।
बांधेलियाँ जो बाहर रहती हैं, वे भी याद में रहकर ऊंच पद पा लेती हैं।
परन्तु जो पास हैं, वे भी कभी-कभी रिगार्ड नहीं रखते।


5:

‘पासपोर्ट’ शब्द का यहाँ क्या अर्थ है?

उत्तर:
यह स्वर्ग का पासपोर्ट है।
जैसे किसी देश में जाने के लिए पासपोर्ट चाहिए, वैसे ही स्वर्ग में जाने के लिए यहाँ बाबा से ज्ञान और योग का पासपोर्ट लेना होता है।
बाबा कहते हैं – “जो वैकुण्ठ के लायक हैं, उनका नाम रजिस्टर में होना चाहिए।”


प्रश्न 6:

बाबा बच्चों को कौन-सी याद की पढ़ाई पढ़ाते हैं?

उत्तर:
बाबा कहते हैं – “मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो।”
याद में ही माया विघ्न डालती है, यही असली युद्ध है।
आत्मा पवित्र बनती है केवल बाप को याद करने से।


प्रश्न 7:

‘साइन्स’ और ‘साइलेन्स’ में क्या अंतर बताया गया है?

उत्तर:
दुनिया वाले साइन्स (विज्ञान) से हथियार बनाते हैं और युद्ध करते हैं।
परन्तु बच्चे साइलेन्स (शांति) से योगबल के द्वारा विश्व की बादशाही प्राप्त करते हैं।
बाबा कहते हैं – “तुम योगबल से विश्व के मालिक बनते हो, हथियारों से नहीं।”


प्रश्न 8:

‘दो लड़े और माखन तीसरा खा गया’ – इस कहावत का यहाँ क्या अर्थ है?

उत्तर:
जब दुनिया के लोग युद्ध करेंगे, तब बीच में माखन अर्थात् विश्व की राजाई तुम्हें मिलेगी।
श्रीकृष्ण के मुख में माखन का गोला इसी का प्रतीक है।


प्रश्न 9:

कर्म क्षेत्र और विकर्म क्षेत्र में क्या फर्क है?

उत्तर:
सतयुग में कर्म क्षेत्र है – वहाँ केवल शुभ कर्म होते हैं।
कलियुग में विकर्म क्षेत्र है – यहाँ पाप कर्म होते हैं।
अभी संगमयुग में हम अपने कर्मों को पवित्र बनाकर भविष्य की प्रालब्ध बना रहे हैं।


प्रश्न 10:

बच्चों की उन्नति के लिए बाबा क्या सलाह देते हैं?

उत्तर:
बाबा कहते हैं – “ज्ञान रत्नों को लिखो, नोट करो और दूसरों को सुनाओ।”
जो बच्चे प्वाइंट्स लिखते हैं और उन पर मनन-चिंतन करते हैं, उनकी बुद्धि तेज होती है और उन्नति होती है।


 धारणा के लिए मुख्य सार:

 सरेन्डर के साथ निश्चयबुद्धि बनो। कोई भी अवगुण या छी-छी काम न हो, तभी ऊंच पद मिलेगा।
 ज्ञान रत्नों को नोट करो, उन्हें याद रखो और दूसरों तक पहुँचाओ। हमेशा अपनी उन्नति का ध्यान रखो।


 वरदान:

“बालक और मालिकपन की समानता द्वारा सर्व खजानों में सम्पन्न भव।”
जिस प्रकार बालकपन का नशा होता है, वैसे ही मालिकपन का नशा भी अनुभव करो।
दोनों स्वरूप साथ हों तो बाप समान सर्व खजानों से सम्पन्न स्थिति का अनुभव होगा।


 स्लोगन:

“ज्ञान के अखुट खजानों के अधिकारी बनो तो अधीनता खत्म हो जायेगी।”


 अव्यक्त इशारा:

“मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो।
जैसे वाचा सेवा नेचुरल हो गई है, वैसे मन्सा सेवा भी नेचुरल हो जाए।
जब मन द्वारा सेवा करते रहोगे, तो वाणी की शक्ति बची रहेगी और सफलता अधिक मिलेगी।”

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