MURLI 09-10-2025 |BRAHMA KUMARIS

YouTube player

Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below

09-10-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठेबच्चे – तुम अभी कांटे से फूल बने हो, तुम्हें हमेशा सबको सुख देना है, तुम किसी को भी दु:ख नहीं दे सकते हो”
प्रश्नः- अच्छे फर्स्टक्लास पुरुषार्थी बच्चे कौन से बोल खुले दिल से बोलेंगे?
उत्तर:- बाबा हम तो पास विद् ऑनर होकर दिखायेंगे। आप बेफिक्र रहो। उनका रजिस्टर भी अच्छा होगा। उनके मुख से कभी भी यह बोल नहीं निकलेंगे कि अभी तो हम पुरुषार्थी हैं। पुरुषार्थ कर ऐसा महावीर बनना है जो माया जरा भी हिला न सके।

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चे रूहानी बाप द्वारा पढ़ रहे हैं। अपने को आत्मा समझना चाहिए। निराकार बाप के हम निराकारी बच्चे आत्मायें पढ़ रहे हैं। दुनिया में साकारी टीचर ही पढ़ाते हैं। यहाँ है निराकार बाप, निराकार टीचर, बाकी इनकी कोई वैल्यु नहीं। शिवबाबा बेहद का बाप आकर इनको वैल्यु देते हैं। मोस्ट वैल्युएबुल है शिवबाबा, जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं। कितना ऊंच कार्य करते हैं। जितना बाप ऊंच ते ऊंच गाया जाता है, उतना ही बच्चों को भी ऊंच बनना है। तुम जानते हो सबसे ऊंच है बाप। यह भी तुम्हारी बुद्धि में है कि बरोबर, अभी स्वर्ग की राजाई स्थापन हो रही है, यह है संगमयुग। सतयुग और कलियुग का बीच, पुरुषोत्तम बनने का संगमयुग। पुरुषोत्तम अक्षर का अर्थ भी मनुष्य नहीं जानते। ऊंच ते ऊंच सो फिर नीच ते नीच बने हैं। पतित और पावन में कितना फ़र्क है। देवताओं के जो पुजारी होते हैं, वह खुद वर्णन करते हैं, आप सर्वगुण सम्पन्न……. विश्व के मालिक। हम विषय वैतरणी नदी में गोता खाने वाले हैं। कहने मात्र सिर्फ कहते हैं, समझते थोड़ेही हैं। ड्रामा विचित्र वण्डरफुल है। ऐसी-ऐसी बातें तुम कल्प-कल्प सुनते हो। बाप आकर समझाते हैं। जिनका बाप के साथ पूरा लव है उनको बहुत कशिश होती है। अब आत्मा बाप को कैसे मिले? मिलना होता है साकार में, निराकारी दुनिया में तो कशिश की बात ही नहीं। वहाँ तो हैं ही सब पवित्र। कट निकली हुई है। कशिश की बात नहीं। लव की बात यहाँ होती है। ऐसे बाबा को तो एकदम पकड़ लो। बाबा आप तो कमाल करते हो। आप हमारी जीवन ऐसी बनाते हो। बहुत लव चाहिए। लव क्यों नहीं है क्योंकि कट चढ़ी हुई है। याद की यात्रा के सिवाए कट निकलेगी नहीं, इतने लवली नहीं बनते हैं। तुम फूलों को तो यहाँ ही खिलना है, फूल बनना है, तब फिर वहाँ जन्म-जन्मान्तर फूल बनते हो। कितनी खुशी होनी चाहिए – हम कांटे से फूल बन रहे हैं। फूल हमेशा सबको सुख देते हैं। फूल को सब अपनी आंखों पर रखते हैं, उनसे खुशबू लेते हैं। फूलों का इत्र बनाते हैं। गुलाब का जल बनाते हैं। बाप तुमको कांटों से फूल बनाते हैं। तो तुम बच्चों को खुशी क्यों नहीं होती है! बाबा तो वन्डर खाते हैं, शिवबाबा हमको स्वर्ग का फूल बनाते हैं! फूल भी पुराना होता है, तो फिर एकदम मुरझा जाता है। तुम्हारी बुद्धि में है अभी हम मनुष्य से देवता बनते हैं। तमोप्रधान मनुष्य और सतोप्रधान देवताओं में कितना फ़र्क है। यह भी सिवाए बाप के और कोई समझा न सके।

तुम जानते हो हम देवता बनने के लिए पढ़ रहे हैं। पढ़ाई में नशा रहता है ना। तुम भी समझते हो हम बाबा द्वारा पढ़कर विश्व के मालिक बनते हैं। तुम्हारी पढ़ाई है फार फ्यूचर। फ्युचर के लिए पढ़ाई कब सुनी है? तुम ही कहते हो हम पढ़ते हैं नई दुनिया के लिए। नये जन्म के लिए। कर्म-अकर्म-विकर्म की गति भी बाप समझाते हैं। गीता में भी है परन्तु उनका अर्थ गीता वालों को थोड़ेही आता है। अभी बाप द्वारा तुमने जाना है कि सतयुग में कर्म अकर्म हो जाता है फिर रावण राज्य में कर्म विकर्म होना शुरू होते हैं। 63 जन्म तुम ऐसे कर्म करते आये हो। विकर्मों का बोझा सिर पर बहुत है। सब पाप आत्मायें बन गये हैं। अब वह पास्ट के विकर्म कैसे कटेंगे। तुम जानते हो पहले सतोप्रधान थे फिर 84 जन्म लेते हैं। बाप ने ड्रामा की पहचान दी है। जो पहले-पहले आयेंगे, पहले-पहले जिनका राज्य होगा वही 84 जन्म लेंगे। फिर बाप आकर राज्य-भाग्य देगा। अभी तुम राज्य ले रहे हो। समझते हो हमने कैसे 84 का चक्र लगाया है। अब फिर पवित्र बनना है। बाबा को याद करते-करते आत्मा पवित्र हो जायेगी फिर यह पुराना शरीर खत्म हो जायेगा। बच्चों को अपार खुशी होनी चाहिए। यह महिमा तो कभी भी कहाँ नहीं सुनी कि बाप, बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है। सो भी तीनों ही ऊंच ते ऊंच हैं। सत बाप, सत टीचर, सतगुरू तीनों एक ही हैं। अभी तुमको भासना आती है। बाबा जो ज्ञान का सागर है, सभी आत्माओं का बाप है, वह हमको पढ़ा रहे हैं। युक्ति रच रहे हैं। मैगजीन में भी अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स निकलती रहती हैं। हो सकता है रंगीन चित्रों की भी मैगजीन निकले। सिर्फ अक्षर छोटे-छोटे हो जाते हैं। चित्र तो बने हुए हैं। कहाँ भी कोई बना सकते हैं। ऊपर से लेकर हर एक चित्र का आक्यूपेशन तुम जानते हो। शिवबाबा का भी आक्यूपेशन तुम जानते हो। बच्चे बाप का आक्यूपेशन जरूर बाप द्वारा ही जानेंगे ना। तुम कुछ भी नहीं जानते थे। छोटे बच्चे पढ़ाई से क्या जानें। 5 वर्ष के बाद पढ़ना शुरू करते हैं। फिर पढ़ते-पढ़ते कई वर्ष लग जाते हैं, ऊंच इम्तहान पास करने में। तुम हो कितने साधारण और बनते क्या हो! विश्व के मालिक। तुम्हारा कितना श्रृंगार होगा। गोल्डन स्पून इन माउथ। वहाँ का तो गायन ही है। अभी भी कोई अच्छे बच्चे शरीर छोड़ते हैं तो बहुत अच्छे घर में जन्म लेते हैं। तो गोल्डन स्पून इन माउथ मिलता है। इनएडवान्स तो जायेंगे ना कोई पास। निर्विकारी के पास तो पहले-पहले जन्म श्रीकृष्ण को ही लेना है। बाकी तो जो भी जायेंगे वह विकारी पास ही जन्म लेंगे। परन्तु गर्भ में इतनी सज़ायें नहीं भोगेंगे। बड़े अच्छे घर में जन्म लेंगे। सज़ायें तो कट गई, बाकी करके थोड़ी होंगी। इतना दु:ख नहीं होगा। आगे चल देखना तुम्हारे पास बड़े-बड़े घर के बच्चे प्रिन्स-प्रिन्सेज कैसे आते हैं। बाप तुम्हारी कितनी महिमा करते हैं। तुमको हम अपने से भी ऊंच बनाता हूँ। जैसे कोई लौकिक बाप बच्चों को सुखी बनाते हैं। 60 वर्ष हुए बस खुद वानप्रस्थ में चले जाते हैं, भक्ति में लग जाते हैं। ज्ञान तो कोई दे न सके। ज्ञान से सर्व की सद्गति मैं करता हूँ। तुम्हारे निमित्त सबका कल्याण हो जाता है क्योंकि तुम्हारे लिए जरूर नई दुनिया चाहिए। तुम कितने खुश होते हो। अब वेजीटेरियन की कान्फ्रेन्स में भी तुम बच्चों को निमंत्रण मिला हुआ है। बाबा तो कहते रहते हैं हिम्मत करो। देहली जैसे शहर में तो एकदम आवाज़ फैल जाए। दुनिया में अन्धश्रद्धा की भक्ति बहुत है। सतयुग-त्रेता में भक्ति की कोई बात होती नहीं। वह डिपार्टमेंट अलग है। आधाकल्प ज्ञान की प्रालब्ध होती है। तुमको 21 जन्म का वर्सा मिलता है, बेहद के बाप से। फिर 21 पीढ़ी तुम सुखी रहते हो। बुढ़ापे तक दु:ख का नाम नहीं रहता। फुल आयु सुखी रहते हो। जितना वर्सा पाने का पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। तो पुरुषार्थ पूरा करना चाहिए। तुम देखते हो नम्बरवार माला कैसे बनती है। पुरुषार्थ अनुसार ही बनेगी। तुम हो स्टूडेन्ट, वन्डरफुल। स्कूल में भी बच्चों को दौड़ाते हैं ना निशान तक। बाबा भी कहते हैं तुमको निशान तक दौड़कर फिर यहाँ ही आना है। याद की यात्रा से तुम दौड़कर जाओ फिर तुम नम्बरवन में आ जायेंगे। मुख्य है याद की यात्रा। कहते हैं – बाबा हम भूल जाते हैं। अरे बाप इतना तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, उनको तुम भूल जाते हो। भल तूफान तो आयेंगे। बाप हिम्मत दिलायेंगे ना। साथ-साथ कहते हैं यह युद्ध-स्थल है। युद्धिष्ठिर भी वास्तव में बाप को कहना चाहिए जो युद्ध सिखलाते हैं। युद्धिष्ठिर बाप तुमको सिखलाते हैं – माया से तुम युद्ध कैसे कर सकते हो। इस समय युद्ध का मैदान है ना। बाप कहते हैं – काम महाशत्रु है, उन पर जीतने से तुम जगत जीत बनेंगे। तुमको मुख से कुछ भी जपना, करना नहीं है, चुप रहना है। भक्ति मार्ग में कितनी मेहनत करते हैं। अन्दर राम-राम जपते हैं, उसको ही कहा जाता है नौधा भक्ति। तुम जानते हो बाबा हमको अपनी माला का बना रहे हैं। तुम रूद्र माला के मणके बनने वाले हो जिसको फिर पूजेंगे। रूद्र माला और रूण्ड माला बन रही है। विष्णु की माला को रूण्ड कहा जाता है। तुम विष्णु के गले का हार बनते हो। कैसे बनेंगे? जब दौड़ी में विन करेंगे। बाप को याद करना है और 84 के चक्र को जानना है। बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे। तुम कैसे लाइट हाउस हो। एक आंख में मुक्तिधाम, एक में जीवनमुक्तिधाम। इस चक्र को जानने से तुम चक्रवर्ती राजा, सुखधाम के मालिक बन जायेंगे। तुम्हारी आत्मा कहती है – अभी हम आत्मायें जायेंगे अपने घर। घर को याद करते-करते जायेंगे। यह है याद की यात्रा। तुम्हारी यात्रा देखो कैसी फर्स्टक्लास है। बाबा जानते हैं हम ऐसे बैठे-बैठेक्षीरसागर में जायेंगे। विष्णु को क्षीर सागर में दिखाते हैं ना। बाप को याद करते-करते क्षीर सागर में चले जायेंगे। क्षीर सागर अभी तो है नहीं। जिन्हों ने तलाव बनाया है जरूर क्षीर डाला होगा। आगे तो क्षीर (दूध) बहुत सस्ता था। एक पैसे का लोटा भरकर आता था। तो क्यों नहीं तलाव भरता होगा। अभी तो क्षीर है कहाँ। पानी ही पानी हो गया है। बाबा ने नेपाल में देखा है – बहुत बड़ा विष्णु का चित्र है। सांवरा ही बनाया है। अभी तुम विष्णुपुरी के मालिक बन रहे हो – याद की यात्रा से और स्वदर्शन चक्र फिराने से। दैवीगुण भी यहाँ धारण करने हैं। यह है पुरुषोत्तम संगमयुग। पढ़ते-पढ़ते तुम पुरुषोत्तम बन जायेंगे। आत्मा का कनिष्टपना छूट जायेगा। बाबा रोज़-रोज़ समझाते हैं – नशा चढ़ना चाहिए। कहते हैं बाबा पुरुषार्थ कर रहे हैं। अरे खुले दिल से बोलो ना – बाबा हम तो पास विद आनर होकर दिखायेंगे। आप फिकर मत करो। फर्स्टक्लास बच्चे जो अच्छी रीति पढ़ते हैं, उनका रजिस्टर भी अच्छा होगा। बाबा को कहना चाहिए – बाबा आप बेफिकर रहो, हम ऐसा बनकर दिखायेंगे। बाबा भी जानते हैं ना, बहुत टीचर्स बड़ी फर्स्टक्लास हैं। सब तो फर्स्टक्लास नहीं बन सकते। अच्छे-अच्छे टीचर्स एक दो को भी जानते हैं। सबको महारथियों की लाइन में नहीं ला सकते। अच्छे बड़े-बड़े सेन्टर्स खोलो तो बड़े-बड़े आदमी आयेंगे। कल्प पहले भी हुण्डी भरी थी। सांवलशाह बाबा हुण्डी जरूर भरेंगे। दोनों बाप बचड़ेवाल हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के कितने बच्चे हैं। कोई गरीब, कोई साधारण, कोई साहूकार, कल्प पहले भी इनके द्वारा राजाई स्थापन हुई थी, जिसको दैवी राजस्थान कहा जाता था। अब तो आसुरी राजस्थान है। सारी विश्व दैवी राजस्थान थी, इतने खण्ड थे नहीं। यही देहली जमुना का कण्ठा था, उनको परिस्तान कहा जाता है। वहाँ की नदियाँ आदि उछलती थोड़ेही हैं। अभी तो कितनी उछलती हैं, डैम्स फट पड़ते हैं। प्रकृति के जैसे हम दास बन गये हैं। फिर तुम मालिक बन जायेंगे। वहाँ माया की ताकत नहीं रहती है जो बेइज्जती करे। धरती की ताकत नहीं जो हिल सके। तुमको भी महावीर बनना चाहिए। हनूमान को महावीर कहते हैं ना। बाप कहते हैं तुम सब महावीर हो। महावीर बच्चे कभी हिल न सकें। महावीर महावीरनी के मन्दिर बने हुए हैं। चित्र इतने थोड़ेही सबके रखेंगे। माडल रूप में बनाया हुआ है। अभी तुम भारत को स्वर्ग बना रहे हो तो कितनी खुशी होनी चाहिए। कितने अच्छे गुण होने चाहिए। अवगुणों को निकालते जाओ। सदैव हर्षित रहना है। तूफान तो आयेंगे। तूफान आयें तब तो महावीरनी की ताकत देखने में आये। तुम जितना मजबूत बनेंगे उतना तूफान आयेंगे। अभी तुम पुरुषार्थ कर महावीर बन रहे हो, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। ज्ञान का सागर बाप ही है। बाकी सब शास्त्र आदि हैं भक्ति मार्ग की सामग्री। तुम्हारे लिए है – पुरुषोत्तम संगमयुग। कृष्ण की आत्मा यहाँ ही बैठीहै। भागीरथ यह है। ऐसे तुम सब भागीरथ हो, भाग्यशाली हो ना। भक्ति मार्ग में बाप तो कोई का भी साक्षात्कार करा सकते हैं। इस कारण मनुष्यों ने सर्वव्यापी कह दिया है, यह भी ड्रामा की भावी। तुम बच्चे बहुत ऊंच पढ़ाई पढ़ रहे हो। अच्छा!

मीठे-मीठेसिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) आत्मा पर जो कट (जंक) चढ़ी है, उसे याद की यात्रा से उतार कर बहुत-बहुत लवली बनना है। लव ऐसा हो जो बाप की सदा कशिश रहे।

2) माया के तूफानों से डरना नहीं है, महावीर बनना है। अपने अवगुणों को निकालते जाना है, सदा हर्षित रहना है। कभी भी हिलना नहीं है।

वरदान:- शुद्ध संकल्पों की शक्ति के स्टॉक द्वारा मन्सा सेवा के सहज अनुभवी भव
अन्तर्मुखी बन शुद्ध संकल्पों की शक्ति का स्टॉक जमा करो। यह शुद्ध संकल्प की शक्ति सहज ही अपने व्यर्थ संकल्पों को समाप्त कर देगी और दूसरों को भी शुभ भावना, शुभ कामना के स्वरूप से परिवर्तन कर सकेंगे। शुद्ध संकल्पों का स्टॉक जमा करने के लिए मुरली की हर प्वाइंट को सुनने के साथ-साथ शक्ति के रूप में हर समय कार्य में लगाओ। जितना शुद्ध संकल्पों की शक्ति का स्टॉक जमा होगा उतना मन्सा सेवा के सहज अनुभवी बनते जायेंगे।
स्लोगन:- मन से सदा के लिए ईष्या-द्वेष को विदाई दो तब विजय होगी।

 

अव्यक्त-इशारे – स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो

जितना अभी तन, मन, धन और समय लगाते हो, उससे मन्सा शक्तियों द्वारा सेवा करने से बहुत थोड़े समय में सफलता ज्यादा मिलेगी। अभी जो अपने प्रति कभी-कभी मेहनत करनी पड़ती है – अपनी नेचर को परिवर्तन करने की वा संगठन में चलने की वा सेवा में सफलता कभी कम देख दिलशिकस्त होने की, यह सब समाप्त हो जायेगी।

प्रश्न 1:
अच्छे फर्स्टक्लास पुरुषार्थी बच्चे कौन से बोल खुले दिल से बोलेंगे?
उत्तर:
वे बाबा से कहेंगे — “बाबा, हम तो पास विद ऑनर होकर दिखायेंगे। आप बेफिक्र रहो।”
उनका रजिस्टर भी अच्छा होगा। उनके मुख से कभी यह नहीं निकलेगा कि “अभी तो हम पुरुषार्थी हैं।”
वे महावीर बन पुरुषार्थ करेंगे, जिन्हें माया जरा भी हिला न सके।


प्रश्न 2:
बाबा बच्चों को “कांटे से फूल” क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि पहले हम विकारी, दुःख देने वाले मनुष्य (कांटे) थे, अब बाप हमें पवित्र, सुखदायक, सुगंधित आत्मा (फूल) बना रहे हैं।
फूल सबको सुख देते हैं, उनके पास से खुशबू मिलती है, इसलिए बच्चों को भी सबको सुख देना है, किसी को दुःख नहीं देना है।


प्रश्न 3:
शिवबाबा को “मोस्ट वैल्युएबल” क्यों कहा गया है?
उत्तर:
क्योंकि वही बेहद के बाप हैं जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं।
वही पतितों को पावन बनाते हैं और मनुष्यों को देवता बनाते हैं।
उनसे ऊंचा, शक्तिशाली या ज्ञानी कोई नहीं — इसलिए वे मोस्ट वैल्युएबल हैं।


प्रश्न 4:
‘पुरुषोत्तम संगमयुग’ को ऊंच युग क्यों कहा गया है?
उत्तर:
यह वह समय है जब आत्मा पतित से पावन बनती है, मनुष्य से देवता बनती है।
इसी युग में बाप पढ़ाते हैं और आत्माओं को पुरुषोत्तम अर्थात श्रेष्ठतम बनाते हैं।
इसलिए यह युग सभी युगों से ऊंचा है।


प्रश्न 5:
आत्मा पर चढ़ी “कट” (जंक) कैसे उतरेगी?
उत्तर:
बाप को याद करने की यात्रा से।
जितनी याद की यात्रा सच्ची और स्थिर होगी, उतनी आत्मा पवित्र, लवली और लाइट बनती जायेगी।


प्रश्न 6:
बाबा कहते हैं – “अच्छे बच्चे फर्स्टक्लास टीचर हैं” – इसका अर्थ क्या है?
उत्तर:
जो बच्चे पढ़ाई में रुचि लेते हैं, सेवा करते हैं, और दूसरों को भी सच्चा ज्ञान पढ़ाते हैं — वे फर्स्टक्लास टीचर हैं।
ऐसे बच्चे ही बाबा को कहते हैं — “बाबा, आप निश्चिंत रहो, हम ऐसा बनकर दिखायेंगे।”


प्रश्न 7:
‘महावीर’ कौन कहलाते हैं?
उत्तर:
जो माया के तूफानों में भी अडोल, अचल रहते हैं।
जिन्हें क्रोध, लोभ, ईर्ष्या या अपमान हिला नहीं सकता।
बाबा कहते हैं — “महावीर वो हैं, जो हर तूफान में हर्षित रह सकें।”


प्रश्न 8:
बाबा बच्चों को “फूल बने रहो” क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि फूलों की तरह ही मीठा, स्नेही और सुखद बनना है।
फूल कभी किसी को कांटा नहीं चुभाते, वैसे ही हमें किसी को भी दुःख नहीं देना है।
फूलों की तरह सबके जीवन में खुशबू फैलाना ही ईश्वरीय जीवन का सार है।


प्रश्न 9:
कर्म-अकर्म-विकर्म की गति क्या है?
उत्तर:
सतयुग में सब कर्म अकर्म होते हैं – अर्थात् फलमुक्त।
रावणराज्य (द्वापर-कलियुग) में कर्म विकर्म बन जाते हैं।
अब बाप आकर विकर्मों को मिटाने की युक्ति बताते हैं — बाप की याद से।


प्रश्न 10:
देवता और मनुष्य में क्या फ़र्क है?
उत्तर:
देवता सतोप्रधान, पवित्र, सुखदायक होते हैं;
मनुष्य तमोप्रधान, विकारी और दुःखदायक बन जाते हैं।
बाप आकर फिर से हमें सतोप्रधान देवता बनाने का कार्य करते हैं।


प्रश्न 11:
माया के तूफान क्यों आते हैं और उनसे क्या सीख मिलती है?
उत्तर:
तूफान आत्मा की शक्ति जांचने के लिए आते हैं।
जितनी शक्ति और स्थिरता बढ़ती है, उतने ही माया के तूफान आते हैं।
महावीर वे हैं जो इन तूफानों से डरते नहीं, बल्कि उन्हें पार कर विजयी बनते हैं।


प्रश्न 12:
मुख्य पुरुषार्थ क्या है जो बाबा बच्चों को सिखाते हैं?
उत्तर:
मुख्य पुरुषार्थ है — बाबा की याद में रहना और विकर्मों का हिसाब मिटाना।
यही याद की यात्रा आत्मा को स्वच्छ बनाकर, उसे चक्रवर्ती राजा बना देती है।


प्रश्न 13:
‘रूद्र माला’ और ‘रूण्ड माला’ में क्या अंतर है?
उत्तर:
‘रूद्र माला’ ब्रह्मा मुख वंशावली की आत्माओं की माला है जो शिवबाबा से सीधा ज्ञान लेते हैं।
‘रूण्ड माला’ अर्थात् विष्णु की माला, उन आत्माओं की है जो पूर्ण बनकर विष्णुपुरी के अधिकारी बनते हैं।


प्रश्न 14:
बाबा क्यों कहते हैं कि “तुम लाइट हाउस हो”?
उत्तर:
क्योंकि तुम दो दुनियाओं को देखते हो –
एक आंख में मुक्तिधाम (परमधाम) और दूसरी में जीवनमुक्तिधाम (सत्ययुग)।
तुम्हारे स्मृति-चक्र से अंधकार मिटता है और ज्ञान का प्रकाश फैलता है।


प्रश्न 15:
“मन से सदा के लिए ईर्ष्या-द्वेष को विदाई दो, तब विजय होगी” — इसका अर्थ क्या है?
उत्तर:
जब मन से ईर्ष्या-द्वेष की जड़ समाप्त हो जाती है, तब सच्चा शांति-सुख अनुभव होता है।
ईर्ष्या-द्वेष माया का सूक्ष्म रूप है, उसे विदा करने से आत्मा विजयी बन जाती है।


प्रश्न 16:
“मन्सा सेवा के सहज अनुभवी बनो” — इसका रहस्य क्या है?
उत्तर:
जब मन में शुद्ध संकल्पों की शक्ति का स्टॉक जमा हो जाता है,
तो मन ही सेवा का माध्यम बन जाता है।
ऐसे योगी अंतर्मुखी बन दूसरों के मन परिवर्तन का कार्य कर सकते हैं।


प्रश्न 17:
बाबा को “तीनों में एक” — बाप, टीचर, और गुरु — क्यों कहा गया है?
उत्तर:
क्योंकि वही सच्चे अर्थों में बाप हैं जो जन्म देते हैं,
टीचर हैं जो पढ़ाते हैं, और
सतगुरु हैं जो मुक्ति-जीवनमुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।
तीनों रूपों में वही एक शिवबाबा हैं।


प्रश्न 18:
बाबा बच्चों को क्या नशा रखना सिखाते हैं?
उत्तर:
यह नशा कि हम बाबा द्वारा विश्व के मालिक बन रहे हैं।
हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं।
यह नशा ही जीवन को दिव्य और पुरुषार्थी बनाता है।


प्रश्न 19:
‘अवगुण निकालना’ कैसे सम्भव है?
उत्तर:
स्व-चिंतन और बाबा की याद से।
जब आत्मा प्रकाश में रहती है, तो अंधकार रूप अवगुण स्वतः समाप्त होते जाते हैं।
बाबा कहते हैं — “सदैव हर्षित रहो, अवगुण निकालते जाओ, और माया के तूफान में भी न हिलो।”


प्रश्न 20:
इस मुरली का सार क्या है?
उत्तर:
हम अभी कांटे से फूल बन रहे हैं।
याद की यात्रा से विकर्म मिटाकर, महावीर बन, सबको सुख देने वाले देवता बनना है।
हमें निश्चय रखना है — “हम पास विद ऑनर होकर दिखायेंगे, बाबा आप बेफिक्र रहो।”

मीठे बच्चे मुरली, ब्रह्माकुमारिज मुरली, आज की मुरली, आज का ज्ञान, शिवबाबा के वचन, ब्रह्माकुमारी मुरली हिंदी, बापदादा के वचन, ब्रह्माकुमारिज हिंदी मुरली, ब्रह्माकुमारिज राजयोग, परमात्मा का संदेश, आत्मा और परमात्मा, कांटे से फूल बनना, सुख देना दुख न देना, पुरुषार्थी बच्चे, पास विद ऑनर, महावीर बनना, माया पर जीत, याद की यात्रा, स्वदर्शन चक्र, रूद्र माला, विष्णु माला, संगमयुग का ज्ञान, पुरुषोत्तम संगमयुग, देवता बनने की पढ़ाई, स्वर्ग का फूल, ब्रह्माकुमारिज ज्ञान, ब्रह्माकुमारी शिवबाबा, ब्रह्मा बाबा मुरली, बाप टीचर गुरु एक, रूहानी बाप रूहानी बच्चे, ईश्वरीय ज्ञान, ब्रह्माकुमारिज आज की मुरली, मुरली सार हिंदी में, ब्रह्माकुमारिज मुरली पॉइंट्स, ओम शांति ज्ञान, ब्रह्माकुमारी क्लास, बापदादा आज की मुरली, ब्रह्माकुमारिज योग, ब्रह्माकुमारी राजयोग मेडिटेशन, शिवबाबा ज्ञान, संगमयुग पढ़ाई, ब्रह्माकुमारी विचार, ब्रह्माकुमारिज शिक्षा, शिवबाबा संदेश, ओम शांति ब्रह्माकुमारिज, ब्रह्माकुमारी दिल्ली सेंटर, परमात्मा का ज्ञान, देहली सेंटर ब्रह्माकुमारिज, ज्ञान का सागर शिवबाबा, आत्मा की यात्रा, निर्विकारी जीवन, विश्व कल्याण, सतयुग की स्थापना, नई दुनिया की तैयारी, ओम शांति,

Sweet children, Murli, Brahma Kumaris Murli, today’s Murli, today’s knowledge, Shiv Baba’s words, Brahma Kumaris Murli in Hindi, BapDada’s words, Brahma Kumaris Hindi Murli, Brahma Kumaris Rajyoga, God’s message, soul and God, transform from thorns into flowers, give happiness and not sorrow, effort-making children, pass with honour, become mahavirs, victory over Maya, journey of remembrance, Swadarshan Chakra, Rudra Mala, Vishnu Mala, knowledge of the Confluence Age, Purushottam Confluence Age, study to become deities, flower of heaven, Brahma Kumaris knowledge, Brahma Kumaris Shiv Baba, Brahma Baba Murli, Father, Teacher, Guru, one spiritual Father, spiritual children, divine knowledge, Brahma Kumaris today’s Murli, Murli essence in Hindi, Brahma Kumaris Murli points, Om Shanti knowledge, Brahma Kumaris class, BapDada today’s Murli, Brahma Kumaris yoga, Brahma Kumaris Rajyoga meditation, Shiv Baba knowledge, Confluence Age studies, Brahma Kumaris thoughts, Brahma Kumaris education, Shiv Baba’s message, Om Shanti Brahma Kumaris, Brahma Kumaris Delhi Center, Knowledge of God, Delhi Center Brahma Kumaris, Ocean of Knowledge Shiv Baba, Journey of the Soul, Viceless Life, World Welfare, Establishment of Satyayug, Preparation for the New World, Om Shanti,