Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below
| 10-10-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
|
मधुबन |
| “मीठेबच्चे – तुम्हें एक बाप से एक मत मिलती है, जिसे अद्वेत मत कहते हैं, इसी अद्वेत मत से तुम्हें देवता बनना है” | |
| प्रश्नः- | मनुष्य इस भूल भुलैया के खेल में सबसे मुख्य बात कौन सी भूल गये हैं? |
| उत्तर:- | हमारा घर कहाँ है, उसका रास्ता ही इस खेल में आकर भूल गये हैं। पता ही नहीं है कि घर कब जाना है और कैसे जाना है। अभी बाप आये हैं तुम सबको साथ ले जाने। तुम्हारा अभी पुरुषार्थ है वाणी से परे स्वीट होम में जाने का। |
| गीत:- | रात के राही थक मत जाना…….. |
ओम् शान्ति। गीत का अर्थ और कोई समझ न सके, ड्रामा प्लैन अनुसार। कोई-कोई गीत ऐसे बने हुए हैं, मनुष्यों के, जो तुम्हें मदद करते हैं। बच्चे समझते हैं अभी हम सो देवी-देवता बन रहे हैं। जैसे वह पढ़ाई पढ़ने वाले कहेंगे हम सो डाक्टर, बैरिस्टर बन रहे हैं। तुम्हारी बुद्धि में है हम सो देवता बन रहे हैं – नई दुनिया के लिए। यह सिर्फ तुम्हें ही ख्याल आता है। अमर-लोक, नई दुनिया सतयुग को ही कहा जाता है। अभी तो न सतयुग है, न देवताओं का राज्य है। यहाँ तो हो नहीं सकता। तुम जानते हो यह चक्र घूमकर अभी हम कलियुग के भी अन्त में आकर पहुँचे हैं। और कोई की भी बुद्धि में चक्र नहीं आयेगा। वह तो सतयुग को लाखों वर्ष दे देते हैं। तुम बच्चों को यह निश्चय है – बरोबर यह 5 हज़ार वर्ष बाद चक्र फिरता रहता है। मनुष्य 84 जन्म ही लेते हैं, हिसाब है ना। इस देवी-देवता धर्म को अद्वेत धर्म भी कहा जाता है। अद्वेत शास्त्र भी माना जाता है। वह भी एक ही है, बाकी तो अनेक धर्म हैं, शास्त्र भी अनेक हैं। तुम हो एक। एक द्वारा एक मत मिलती है। उसको कहा जाता है अद्वेत मत। यह अद्वेत मत तुमको मिलती है। देवी-देवता बनने के लिए यह पढ़ाई है ना इसलिए बाप को ज्ञान सागर, नॉलेज-फुल कहा जाता है। बच्चे समझते हैं हमको भगवान पढ़ाते हैं, नई दुनिया के लिए। यह भूलना नहीं चाहिए। स्कूल में स्टूडेन्ट कभी टीचर को भूलते हैं क्या? नहीं। गृहस्थ व्यवहार में रहने वाले भी जास्ती पोजीशन पाने के लिए पढ़ते हैं। तुम भी गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए पढ़ते हो, अपनी उन्नति करने के लिए। दिल में यह आना चाहिए हम बेहद के बाप से पढ़ रहे हैं। शिव-बाबा भी बाबा है, प्रजापिता ब्रह्मा भी बाबा है। प्रजापिता ब्रह्मा आदि देव नाम बाला है। सिर्फ पास्ट हो गये हैं। जैसे गांधी भी पास्ट हो गये हैं। उनको बापू जी कहते हैं परन्तु समझते नहीं, ऐसे ही कह देते हैं। यह शिवबाबा सच-सच है, ब्रह्मा बाबा भी सच-सच है, लौकिक बाप भी सच-सच होता है। बाकी मेयर आदि को तो ऐसे ही बापू कह देते हैं। वह सब हैं आर्टीफिशल। यह है रीयल। परमात्मा बाप आकर आत्माओं को प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा अपना बनाते हैं। उनके तो जरूर ढेर बच्चे होंगे। शिव-बाबा की तो सब सन्तान हैं, उनको सब याद करते हैं। फिर भी कोई-कोई उनको भी नहीं मानते, पक्के नास्तिक होते हैं – जो कहते हैं यह संकल्प की दुनिया बनी हुई है। अभी तुमको बाप समझाते हैं, यह बुद्धि में याद रखो – हम पढ़ रहे हैं। पढ़ाने वाला है शिवबाबा। यह रात-दिन याद रहना चाहिए। यही माया घड़ी-घड़ी भुला देती है, इसलिए याद करना होता है। बाप, टीचर, गुरू तीनों को भूल जाते हैं। है भी एक ही फिर भी भूल जाते हैं। रावण के साथ लड़ाई इसमें है। बाप कहते हैं – हे आत्मायें, तुम सतोप्रधान थी, अभी तमोप्रधान बनी हो। जब शान्तिधाम में थी तो पवित्र थी। प्योरिटी के बिगर कोई आत्मा ऊपर में रह नहीं सकती इसलिए सब आत्मायें पतित-पावन बाप को बुलाती रहती हैं। जब सभी पतित तमोप्रधान बन जाते हैं तब बाप आकर कहते हैं मैं तुमको सतोप्रधान बनाता हूँ। तुम जब शान्तिधाम में थे तो वहाँ सब पवित्र थे। अपवित्र आत्मा वहाँ कोई रह न सके। सबको सज़ायें भोगकर पवित्र जरूर बनना है। पवित्र बनने बिगर कोई वापिस जा न सके। भल कोई कह देते हैं ब्रह्म में लीन हुआ, फलाना ज्योति ज्योत समाया। यह सब है भक्ति मार्ग की अनेक मतें। तुम्हारी यह है अद्वेत मत। मनुष्य से देवता तो एक बाप ही बना सकते हैं। कल्प-कल्प बाप आते हैं पढ़ाने। उनकी एक्ट हूबहू कल्प पहले मुआफिक ही चलती है। यह अनादि बना-बनाया ड्रामा है ना। सृष्टि चक्र फिरता रहता है। सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग फिर है यह संगमयुग। मुख्य धर्म भी यह है डिटीज्म, इस्लामीज्म, बुद्धिज्म,क्रिश्चियनीज्म अर्थात् जिसमें राजाई चलती है। ब्राह्मणों की राजाई नहीं है, न कौरवों की राजाई है। अभी तुम बच्चों को घड़ी-घड़ी याद करना है – बेहद के बाप को। तुम ब्राह्मणों को भी समझा सकते हो। बाबा ने बहुत बार समझाया है – पहले-पहले ब्राह्मण चोटी हैं, ब्रह्मा की वंशावली पहले-पहले तुम हो। यह तुम जानते हो फिर भक्ति-मार्ग में हम ही पूज्य से पुजारी बन जाते हैं। फिर अभी हम पूज्य बन रहे हैं। वह ब्राह्मण गृहस्थी होते हैं, न कि संन्यासी। संन्यासी हठयोगी हैं, घरबार छोड़ना हठ है ना। हठयोगी भी अनेक प्रकार के योग सिखाते हैं। जयपुर में हठयोगियों का भी म्युज़ियम है। राजयोग के चित्र हैं नहीं। राजयोग के चित्र हैं ही यहाँ देलवाड़ा में। इनका म्युज़ियम तो है नहीं। हठयोग के कितने म्युजियम हैं। राजयोग का मन्दिर यहाँ भारत में ही है। यह है चैतन्य। तुम यहाँ चैतन्य में बैठेहो। मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं कि स्वर्ग कहाँ है। देलवाड़ा मन्दिर में नीचे तपस्या में बैठेहैं, पूरा यादगार है। जरूर स्वर्ग ऊपर ही दिखाना पड़े। मनुष्य फिर समझ लेते कि स्वर्ग ऊपर में है। यह तो चक्र फिरता रहता है। आधाकल्प के बाद स्वर्ग फिर नीचे चला जायेगा फिर आधाकल्प स्वर्ग ऊपर आयेगा। इनकी आयु कितनी है, कोई जानते नहीं। तुमको बाप ने सारा चक्र समझाया है। तुम ज्ञान लेकर ऊपर जाते हो, चक्र पूरा होता है फिर नयेसिर चक्र शुरू होगा। यह बुद्धि में चलना चाहिए। जैसे वह नॉलेज पढ़ते हैं तो बुद्धि में किताब आदि सब याद रहते हैं ना। यह भी पढ़ाई है। यह भरपूर रहना चाहिए, भूलना नहीं चाहिए। यह पढ़ाई बूढ़े, जवान, बच्चे आदि सबको हक है पढ़ने का। सिर्फ अल्फ को जानना है। अल्फ को जान लिया तो बाप की प्रापर्टी भी बुद्धि में आ जायेगी। जानवर को भी बच्चे आदि सब बुद्धि में रहते हैं। जंगल में जायेंगे तो भी घर और बछड़े याद आते रहेंगे। आपेही ढूँढकर आ जाते हैं। अब बाप कहते हैं बच्चे मामेकम् याद करो और अपने घर को याद करो। जहाँ से तुम आये हो पार्ट बजाने। आत्मा को घर बहुत प्यारा लगता है। कितना याद करते हैं परन्तु रास्ता भूल गये हैं। तुम्हारी बुद्धि में है, हम बहुत दूर रहते हैं। परन्तु वहाँ जाना कैसे होता है, क्यों नहीं हम जा सकते हैं, यह कुछ भी पता नहीं है, इसलिए बाबा ने बताया था भूल-भुलैया का खेल भी बनाते हैं, जहाँ से जायें दरवाजा बन्द। अभी तुम जानते हो इस लड़ाई के बाद स्वर्ग का दरवाजा खुलता है। इस मृत्युलोक से सब जायेंगे, इतने सब मनुष्य नम्बरवार धर्म अनुसार और पार्ट अनुसार जाकर रहेंगे। तुम्हारी बुद्धि में यह सब बातें हैं। मनुष्य ब्रह्म तत्व में जाने के लिए कितना माथा मारते हैं। वाणी से परे जाना है। आत्मा शरीर से निकल जाती है तो फिर आवाज़ नहीं रहता। बच्चे जानते हैं हमारा तो वह स्वीट होम है। फिर देवताओं की है स्वीट राजधानी, अद्वेत राजधानी।
बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं। सारी नॉलेज समझाते हैं, जिसके फिर भक्ति में शास्त्र आदि बैठ बनाये हैं, अभी तुमको वह शास्त्र आदि नहीं पढ़ना है। उन स्कूलों में बुढ़ियां आदि नहीं पढ़ती। यहाँ तो सब पढ़ते हैं। तुम बच्चे अमरलोक में देवता बन जाते हो, वहाँ कोई ऐसे अक्षर नहीं बोले जाते हैं, जिससे किसी की ग्लानि हो। अभी तुम जानते हो स्वर्ग पास्ट हो गया है, उनकी महिमा है। कितने मन्दिर बनाते हैं। उनसे पूछो – यह लक्ष्मी-नारायण कब होकर गये हैं? कुछ भी पता नहीं है। अभी तुम जानते हो हमको अपने घर जाना है। बच्चों को समझाया है – ओम् का अर्थ अलग है और सो हम का अर्थ अलग है। उन्होंने फिर ओम्, सो हम सो का अर्थ एक कर दिया है। तुम आत्मा शान्तिधाम में रहने वाली हो फिर आती हो पार्ट बजाने। देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं। ओम् अर्थात् हम आत्मा। कितना फ़र्क है। वह फिर दोनों को एक कर देते हैं। यह बुद्धि से समझने की बातें हैं। कोई पूरी रीति समझते नहीं हैं तो फिर झुटका खाते रहते हैं। कमाई में कभी झुटका नहीं खाते हैं। वह कमाई तो है अल्पकाल के लिए। यह तो आधाकल्प के लिए है। परन्तु बुद्धि और तरफ भटकती है तो फिर थक जाते हैं। उबासी देते रहते हैं। तुमको आंखें बन्द करके नहीं बैठना चाहिए। तुम तो जानते हो आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है। कलियुगी नर्कवासी मनुष्यों को देखने और तुम्हारे देखने में भी रात-दिन का फ़र्क हो जाता है। हम आत्मा बाप द्वारा पढ़ते हैं। यह कोई को पता नहीं। ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा आकर पढ़ाते हैं। हम आत्मा सुन रही हैं। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे। तुम्हारी बुद्धि ऊपर चली जायेगी। शिवबाबा हमको नॉलेज सुना रहे हैं, इसमें बहुत रिफाइन बुद्धि चाहिए। रिफाइन बुद्धि करने के लिए बाप युक्ति बताते हैं – अपने को आत्मा समझने से बाप जरूर याद आयेगा। अपने को आत्मा समझते ही इसलिए हैं कि बाप याद पड़े, सम्बन्ध रहे जो सारा कल्प टूटा है। वहाँ तो है प्रालब्ध सुख ही सुख, दु:ख की बात नहीं। उनको हेविन कहते हैं। हेविनली गॉड फादर ही हेविन का मालिक बनाते हैं। ऐसे बाप को भी कितना भूल जाते हैं। बाप आकर बच्चों को एडाप्ट करते हैं। मारवाड़ी लोग बहुत एडाप्ट करते हैं तो उनको खुशी होगी ना – मैं साहूकार की गोद में आया हूँ। साहूकार का बच्चा गरीब के पास कभी नहीं जायेगा। यह प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे हैं तो जरूर मुख वंशावली होंगे ना। तुम ब्राह्मण हो मुख वंशावली। वह हैं कुख वंशावली। इस फर्क को तुम जानते हो। तुम जब समझाओ तब मुख वंशावली बनें। यह एडाप्शन है। स्त्री को समझते हैं मेरी स्त्री। अब स्त्री कुख वंशावली है या मुख वंशावली? स्त्री है ही मुख वंशावली। फिर जब बच्चे होते हैं, वह हैं कुख वंशावली। बाप कहते हैं यह सब हैं मुख वंशावली, मेरी कहने से मेरी बनी ना। मेरे बच्चे हैं, यह कहने से नशा चढ़ता है। तो यह हैं सब मुख वंशावली, आत्मायें थोड़ेही मुख वंशावली हैं। आत्मा तो अनादि-अविनाशी है। तुम जानते हो यह मनुष्य सृष्टि कैसे ट्रांसफर होती है। प्वाइंट्स तो बच्चों को बहुत मिलती हैं। फिर भी बाबा कहते हैं – और कुछ धारणा नही होती है, मुख नहीं चलता है तो अच्छा तुम बाप को याद करते रहो तो तुम भाषण आदि करने वालों से ऊंच पद पा सकते हो। भाषण करने वाले कोई समय तूफान में गिर पड़ते हैं। वह गिरे नहीं, बाप को याद करते रहें तो जास्ती पद पा सकते हैं। सबसे जास्ती जो विकार में गिरते हैं तो 5 मार (मंजिल) से गिरने से हडगुड टूट जाते हैं। पांचवी मंजिल है – देह-अभिमान। चौथी मंजिल है काम फिर उतरते आओ। बाप कहते हैं काम महाशत्रु है। लिखते भी हैं बाबा हम गिर पड़े। क्रोध के लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि हम गिर पड़े। काला मुँह करने से बड़ी चोट लगती है फिर दूसरे को कह न सकें कि काम महाशत्रु है। बाबा बार-बार समझाते हैं – क्रिमिनल आंखों की बहुत सम्भाल करनी है। सतयुग में नंगन होने की बात ही नहीं। क्रिमिनल आई होती नहीं। सिविल आई हो जाती है। वह है सिविलीयन राज्य। इस समय है क्रिमिनल दुनिया। अभी तुम्हारी आत्मा को सिविलाइज़ मिलती है, जो 21 जन्म काम देती है। वहाँ कोई भी क्रिमिनल नहीं बनते। अब मुख्य बात बाप समझाते हैं बाप को याद करो और 84 के चक्र को याद करो। यह भी वन्डर है जो श्री नारायण है वही अन्त में आकर भाग्यशाली रथ बनते हैं। उनमें बाप की प्रवेशता होती है तो भाग्यशाली बनते हैं। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा, यह 84 जन्मों की हिस्ट्री बुद्धि में रहनी चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठेसिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप की याद से बुद्धि को रिफाइन बनाना है। बुद्धि पढ़ाई से सदा भरपूर रहे। बाप और घर सदा याद रखना है और याद दिलाना है।
2) इस अन्तिम जन्म में क्रिमिनल आई को समाप्त कर सिविल आई बनानी है। क्रिमिनल आंखों की बड़ी सम्भाल रखनी है।
| वरदान:- | दाता पन की स्थिति और समाने की शक्ति द्वारा सदा विघ्न विनाशक, समाधान स्वरूप भव विघ्न-विनाशक समाधान स्वरूप बनने का वरदान विशेष दो बातों के आधार से प्राप्त होता है:- 1) सदा स्मृति रहे कि हम दाता के बच्चे हैं इसलिए मुझे सबको देना है। रिगार्ड मिले, स्नेह मिले तब स्नेही बनें, नहीं। मुझे देना है। 2) स्वयं के प्रति तथा सम्बन्ध सम्पर्क में सर्व के प्रति समाने के शक्ति स्वरूप सागर बनना है। इन्हीं दो विशेषताओं से शुभ भावना, शुभ कामना से सम्पन्न समाधान स्वरूप बन जायेंगे। |
| स्लोगन:- | सत्य को अपना साथी बनाओ तो आपकी नइया (नांव) कभी डूब नहीं सकती। |
अव्यक्त-इशारे – स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो
जब मन्सा में सदा शुभ भावना वा शुभ दुआयें देने का नेचुरल अभ्यास हो जायेगा तो मन्सा आपकी बिजी हो जायेगी। मन में जो हलचल होती है, उससे स्वत: ही किनारे हो जायेंगे। अपने पुरुषार्थ में जो कभी दिलशिकस्त होते हो वह नहीं होंगे। जादू मंत्र हो जायेगा।
“मीठे बच्चे – तुम्हें एक बाप से एक मत मिलती है, जिसे अद्वैत मत कहते हैं; इसी अद्वैत मत से तुम्हें देवता बनना है”
प्रश्न 1:
मनुष्य इस भूल-भुलैया के खेल में सबसे मुख्य बात कौन सी भूल गये हैं?
उत्तर:
मनुष्य यह भूल गये हैं कि उनका सच्चा घर कौन सा है और वहाँ कैसे पहुँचना है।
वे समझ ही नहीं पाते कि हम आत्माएँ कहाँ से आईं और कब घर जाना है।
अब परमपिता शिवबाबा आये हैं हमें उस वाणी से परे, स्वीट होम – शान्तिधाम में साथ ले जाने।
प्रश्न 2:
गीत “रात के राही थक मत जाना” का गूढ़ अर्थ क्या है?
उत्तर:
यह गीत आत्मा की यात्रा का प्रतीक है।
बाबा कहते हैं – बच्चे, तुम रात के राही हो, अर्थात् इस अंधेरी कलियुगी रात के यात्री हो।
थकना नहीं है, क्योंकि सुबह अर्थात् सतयुग का सवेरा आने वाला है।
यह गीत तुम्हें याद की यात्रा में टिके रहने की प्रेरणा देता है।
प्रश्न 3:
बाबा हमें “अद्वैत मत” क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि बाबा कहते हैं – “तुम्हें एक बाप से एक ही मत मिलती है।”
बाकी सभी धर्म अनेक मतों में बँटे हुए हैं, परन्तु यह देवी-देवता धर्म अद्वैत है —
जहाँ सभी आत्माओं की मत एक ही परमात्मा से जुड़ी है।
इसी अद्वैत मत से हम मनुष्य से देवता बनते हैं।
प्रश्न 4:
बाबा को “ज्ञान सागर” और “नॉलेजफुल” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि वही हमें नई सृष्टि के लिए राजयोग की शिक्षा देते हैं।
यह ज्ञान किसी मनुष्य का नहीं, बल्कि स्वयं परमात्मा का ज्ञान है,
जो हमें सतयुग की देवत्व स्थिति तक ले जाता है।
प्रश्न 5:
बाबा हमें बार-बार “मामेकं याद करो” क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि माया घड़ी-घड़ी भुला देती है।
जब हम एक बाप को याद करते हैं तो आत्मा की बुद्धि रिफाइन (शुद्ध) होती जाती है,
विकर्मों का बोझ मिटता है, और आत्मा फिर से सतोप्रधान बन जाती है।
प्रश्न 6:
ब्रह्मा बाबा को “भाग्यशाली रथ” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि उसी श्री नारायण आत्मा में अन्तिम जन्म में शिवबाबा की प्रवेशता होती है।
इसलिए वे ब्रह्मा सो विष्णु बनते हैं —
अर्थात् वही आत्मा फिर से पहले नंबर का देवता बनती है।
प्रश्न 7:
“मुख वंशावली” और “कुख वंशावली” में क्या अंतर है?
उत्तर:
जो आत्माएँ शिवबाबा की मुँह द्वारा गाई गई ज्ञान अमृत वाणी सुनकर
उनकी सन्तान बनती हैं, वे हैं मुख वंशावली ब्राह्मण।
जो देह द्वारा उत्पन्न हैं, वे कहलाते हैं कुख वंशावली।
ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ “मुख वंशावली” हैं — रूहानी सन्तान।
प्रश्न 8:
बाबा “क्रिमिनल आई” और “सिविल आई” से क्या अर्थ समझाते हैं?
उत्तर:
क्रिमिनल आई मतलब ऐसी दृष्टि जो विकारी या देह-अभिमानी हो।
सिविल आई वह है जो शुद्ध और आत्म-दृष्टि वाली हो।
बाबा कहते हैं – “क्रिमिनल आँखों से बड़ी सम्भाल रखो,
क्योंकि सतयुग में सबकी दृष्टि सिविल और पवित्र होती है।”
प्रश्न 9:
राजयोग का मन्दिर कहाँ है और इसका क्या अर्थ है?
उत्तर:
बाबा बताते हैं – राजयोग का वास्तविक मन्दिर भारत में ही है।
यहाँ हम जीवित रूप में बैठकर राजयोग सीख रहे हैं।
देलवाड़ा मन्दिर में उसका पत्थर रूप यादगार बना हुआ है —
नीचे तपस्या और ऊपर स्वर्ग का दृश्य इस ज्ञान यात्रा का प्रतीक है।
प्रश्न 10:
देवताओं की राजधानी को “अद्वैत राजधानी” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि वहाँ एक ही मत, एक ही धर्म, एक ही राजा-रानी होते हैं।
वहाँ कोई मतभेद नहीं, कोई कलह नहीं।
वह है सच्चा स्वर्ग – अमरलोक, जहाँ सब आत्माएँ सतोप्रधान होती हैं।
प्रश्न 11:
बाबा “ओम्” और “सो हम” के बीच क्या अंतर बताते हैं?
उत्तर:
“ओम्” का अर्थ है – मैं आत्मा हूँ।
“सो हम” का अर्थ है – मैं वही हूँ जो पहले था (देवता)।
परन्तु भक्ति मार्ग में लोगों ने इन दोनों का अर्थ मिलाकर गड़बड़ कर दिया है।
अब बाबा सही अर्थ समझाते हैं कि आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी।
प्रश्न 12:
इस ज्ञान की सबसे बड़ी कमाई क्या है?
उत्तर:
यह कमाई आधा कल्प (21 जन्म) तक सुख देने वाली है।
यह कोई अल्पकालिक कमाई नहीं है।
इसलिए बाबा कहते हैं – “कमाई में कभी झुटका नहीं खाना,
क्योंकि यह कमाई तुम्हें अमरलोक का अधिकारी बनाती है।”
प्रश्न 13:
बाबा “दाता पन” और “समाने की शक्ति” से क्या वरदान देते हैं?
उत्तर:
बाबा कहते हैं – “दाता के बच्चे बनो, सबको देने वाले बनो।”
रिगार्ड या स्नेह मिले या न मिले, हमें देना ही है।
जब हम सबके प्रति शुभभावना और समाने की शक्ति से भरपूर बनते हैं,
तब हम बन जाते हैं विघ्न विनाशक समाधान स्वरूप।
प्रश्न 14:
मन्सा-योग का अभ्यास कैसे सशक्त बनता है?
उत्तर:
जब मन में सदा शुभ भावना और शुभ दुआएँ देने का अभ्यास हो जाता है,
तब मन स्वतः व्यर्थ संकल्पों से किनारा कर लेता है।
ऐसे योगी सदा खुश, समाधान स्वरूप और दिलशिकस्त से मुक्त रहते हैं।
मुख्य धारणा के लिए सार:
बाप की याद से बुद्धि को रिफाइन बनाना है।
अन्तिम जन्म में क्रिमिनल आई को समाप्त कर सिविल आई बनानी है।
स्लोगन:
“सत्य को अपना साथी बनाओ तो तुम्हारी नईया कभी डूब नहीं सकती।”
ब्रह्माकुमारीज़, शिव बाबा, अद्वेत मत, देवता बनने का ज्ञान, स्वीट होम, आध्यात्मिक ज्ञान, मुरली शिक्षाएँ, परमात्मा, ब्रह्मा बाबा, राजयोग, सतयुग, कलयुग, संगम युग, मानव आत्माएँ, आध्यात्मिक ज्ञान, दिव्य शिक्षा, आत्म-साक्षात्कार, आत्मा ज्ञान, ईश्वरीय ज्ञान, सिविल आई, क्रिमिनल आई, 84 जन्म, आध्यात्मिक शुद्धता, दिव्य बुद्धि, बाबा का स्मरण, आत्मा यात्रा, आध्यात्मिक अनुशासन, आत्मा परिवर्तन, परमधाम, स्वर्ग और पृथ्वी, आध्यात्मिक शक्ति, ध्यान, आध्यात्मिक अभ्यास, दिव्य योजना, जीवन चक्र, पुनर्जन्म, आध्यात्मिक पाठ, दिव्य मार्गदर्शन, ओम तत् सत्, ईश्वरीय आशीर्वाद, आध्यात्मिक नारा, आत्मा जागरूकता, आंतरिक शांति, आध्यात्मिक पालन-पोषण, बच्चों का आध्यात्मिक विकास, आत्मा अनुकूलन, आध्यात्मिक संरक्षण, पुण्य और पाप, आध्यात्मिक सभ्यता, राज धर्म, आध्यात्मिक ज्ञान, दिव्य शिक्षाएँ, आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि, दिव्य प्रेम, ईश्वरीय स्मरण, बच्चों के लिए आध्यात्मिक ज्ञान,
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