MURLI 12-06-2025/BRAHMAKUMARIS

(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

12-06-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम्हें अभी ज्ञान की दृष्टि मिली है, इसलिए तुम्हारा भटकना बंद हुआ, तुम शान्तिधाम – सुखधाम को याद करते हो”
प्रश्नः- देवताओं में कौन-सी ताकत है और वह ताकत किस विशेषता के कारण है?
उत्तर:- देवताओं में सारे विश्व पर राज्य करने की ताकत है, वह ताकत विशेष एक मत की विशेषता के कारण है। वहाँ एक मत होने के कारण वजीर आदि रखने की दरकार नहीं। देवताओं ने संगम पर बाप से ऐसी श्रीमत ली हुई है जो 21 जन्म राज्य करते हैं। वहाँ एक राजा की एक दैवी फैमिली होती, दूसरी मत होती नहीं।
गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ प्रभू……..

ओम् शान्ति। बच्चों को नयन मिले हैं, पहले नयन नहीं थे, कौन से नयन? ज्ञान के नयन नहीं थे। अज्ञान के नयन तो थे। बच्चे जानते हैं ज्ञान सागर एक ही बाप है। और कोई में यह रूहानी ज्ञान है नहीं, जिस ज्ञान से सद्गति हो अर्थात् शान्तिधाम-सुखधाम जाना हो। अभी तुम बच्चों को दृष्टि मिली है – कैसे सुखधाम बदल कर फिर माया का राज्य वा दु:खधाम बनता है। पुकारने लगते हैं कि नयन हीन को राह बताओ। भक्ति मार्ग के यज्ञ, दान-पुण्य आदि से कोई राह नहीं मिलती है – शान्तिधाम-सुखधाम जाने की। हर एक को अपना पार्ट बजाना ही है। बाप कहते हैं मुझे भी पार्ट मिला हुआ है। भक्ति मार्ग में पुकारते हैं मुक्ति-जीवनमुक्ति की राह बताओ। उसके लिए कितने यज्ञ-तप, दान-पुण्य आदि करते हैं, कितना भटकते हैं। शान्तिधाम-सुखधाम में भटकना होता ही नहीं। यह भी तुम जानते हो, वो तो सिर्फ शास्त्रों की पढ़ाई और जिस्मानी पढ़ाई को ही जानते हैं। इस रूहानी बाप को तो बिल्कुल जानते ही नहीं। रूहानी बाप ज्ञान तब आकर देते हैं जबकि सर्व की सद्गति होती है। पुरानी दुनिया बदलनी होती है। मनुष्य से देवता बनते हैं फिर सारी सृष्टि पर एक ही राज्य होता है देवी-देवताओं का, जिसको ही स्वर्ग कहते हैं। यह भी भारतवासी जानते हैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म भारत में ही था। उस समय कोई और धर्म नहीं था। तुम बच्चों के लिए अभी है संगमयुग। बाकी सब हैं कलियुग में। तुम पुरुषोत्तम संगमयुग पर बैठे हो। जो-जो बाप को याद करते हैं, बाप की श्रीमत पर चलते हैं, वह संगमयुग पर हैं। बाकी कलियुग में हैं। अभी कोई सावरन्टी, किंगडम तो है नहीं। अनेक मतों से राज्य चलता है, सतयुग में तो एक महाराजा की ही मत चलती है, वजीर नहीं होते। इतनी ताकत रहती है। फिर जब पतित बनते हैं तो वजीर आदि रखते हैं क्योंकि वह ताकत नहीं रहती। अभी तो है ही प्रजा का राज्य, सतयुग में एक मत होने से ताकत रहती है। अभी तुम वह ताकत ले रहे हो, 21 जन्म इन्डिपेन्डेन्ट राजाई करते हो। अपनी ही दैवी फैमिली है। अभी यह है तुम्हारा ईश्वरीय परिवार। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप की याद में रहते हो तो तुम ईश्वरीय परिवार के हो। अगर देह-अभिमान में आकर भूल जाते हो तो आसुरी परिवार के हो। एक सेकण्ड में ईश्वरीय सम्प्रदाय के और फिर एक सेकण्ड में आसुरी सम्प्रदाय के बन जाते हो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना कितना सहज है। परन्तु बच्चों को मुश्किल लगता है।

बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे। देह द्वारा कर्म तो करना ही है। देह बिगर तो तुम कर्म कर नहीं सकेंगे। कोशिश करनी है काम काज करते भी हम बाप को याद करें। परन्तु यहाँ तो बिगर काम भी याद नहीं कर सकते हैं। भूल जाते हैं। यही मेहनत है। भक्ति में ऐसे कोई थोड़ेही कहा जाता कि सारा दिन भक्ति करो। उसमें टाइम होता है सवेरे, शाम वा रात को। फिर मंत्र आदि जो मिलते हैं, वह बुद्धि में रहते हैं। अनेकानेक शास्त्र हैं। वह भक्ति मार्ग में पढ़ते हैं। तुमको तो कोई पुस्तक आदि नहीं पढ़ना है, न बनाना है। यह मुरली छपाते भी हैं रिफ्रेश होने के लिए। बाकी कोई भी किताब आदि नहीं रहेंगी। यह सब खत्म हो जानी है। ज्ञान तो है ही एक बाप में। अभी देखो ज्ञान-विज्ञान भवन नाम रखा है, जैसेकि वहाँ योग और ज्ञान सिखाया जाता है। बिगर अर्थ ऐसे ऐसे नाम रख देते हैं। कुछ भी पता नहीं है कि ज्ञान क्या है, विज्ञान क्या है। अभी तुम ज्ञान और विज्ञान को जानते हो। योग से होती है हेल्थ, जिसको विज्ञान कहा जाता है और यह है ज्ञान, जिसमें वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाई जाती है। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है वह जानना है। परन्तु वह पढ़ाई है हद की, यहाँ तो तुमको बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी बुद्धि में है। हम कैसे राज्य लेते हैं, कितना समय और कब राज्य करते थे, कैसे राजधानी मिली थी – यह बातें और कोई की बुद्धि में नहीं आती। बाप ही नॉलेजफुल है। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, बाप ही समझाते हैं। बने-बनाये ड्रामा को न जानने के कारण मनुष्य कह देते हैं – फलाना निर्वाण गया या ज्योति ज्योत समाया।

तुम जानते हो सभी मनुष्य मात्र इस सृष्टि चक्र में आते हैं, इससे कोई एक भी छूट नहीं सकता। बाप समझाते हैं मनुष्य की आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है, कितना बड़ा ड्रामा है। सबमें आत्मा है, उस आत्मा में अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। इनको कहा जाता है बनी बनाई…… अब ड्रामा कहते हैं तो जरूर उनका टाइम भी चाहिए। बाप समझाते हैं यह ड्रामा 5 हज़ार वर्ष का है। भक्ति मार्ग के शास्त्रों में लिख दिया है ड्रामा लाखों वर्ष का है। इस समय ही जबकि बाप ने आकर सहज राजयोग सिखाया था, इस समय के लिए ही गायन है कि कौरव घोर अन्धियारे में थे और पाण्डव रोशनी में थे। वो लोग समझते है कलियुग में तो अजुन 40 हज़ार वर्ष हैं। उन्हों को यह पता नहीं पड़ता कि भगवान आया है, इस पुरानी दुनिया का मौत सामने खड़ा है। सब अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं। जब लड़ाई देखते हैं तो कहते हैं यह तो महाभारत लड़ाई की निशानी है। यह रिहर्सल होती रहेगी। फिर चलते-चलते बंद हो जायेगी। तुम जानते हो अभी हमारी पूरी स्थापना हुई थोड़ेही है। गीता में यह थोड़ेही है कि बाप ने सहज राजयोग सिखलाए यहाँ ही राजाई स्थापन की। गीता में तो प्रलय दिखा दी है। दिखाते हैं और सब मर गये, बाकी 5 पाण्डव बचे। वह भी पहाड़ों पर जाकर गल मरे। राजयोग से क्या हुआ, कुछ भी पता नहीं है। बाप हर एक बात समझाते रहते हैं। वह है हद की बात, हद की रचना हद के ब्रह्मा रचते हैं, पालना भी करते हैं बाकी प्रलय नहीं करते। स्त्री को एडाप्ट करते हैं। बाप भी आकर एडाप्ट करते हैं। कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर बच्चों को नॉलेज सुनाता हूँ, इन द्वारा बच्चों को रचता हूँ। बाप भी है, फैमिली भी है, यह बातें बड़ी गुह्य हैं। बहुत गम्भीर बातें हैं। मुश्किल कोई की बुद्धि में बैठती हैं। अब बाप कहते हैं पहले-पहले तो अपने को आत्मा समझो, आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। शरीर पर ही भिन्न-भिन्न नाम पड़ते हैं। नाम, रूप, फीचर्स सब भिन्न-भिन्न हैं। एक के फीचर्स दूसरे से न मिलें। हर एक आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के अपने फीचर्स हैं। अपनी एक्ट ड्रामा में नूँधी हुई है इसलिए इनको बना-बनाया ड्रामा कहा जाता है, अभी बेहद का बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो। तो हम क्यों न बाप को याद करें। यही मेहनत की बात है।

तुम बच्चे जब याद की यात्रा में बैठते हो तो माया के तूफान आते हैं, युद्ध चलता है, उससे घबराना नहीं है। माया घड़ी-घड़ी याद को तोड़ेगी। संकल्प-विकल्प ऐसे-ऐसे आयेंगे जो एकदम माथा खराब कर देंगे। तुम मेहनत करो। बाप ने समझाया है इन लक्ष्मी-नारायण की कर्मेन्द्रियाँ वश कैसे हुई। यह सम्पूर्ण निर्विकारी थे। यह शिक्षा इन्हों को कहाँ से मिली? अभी तुम बच्चों को यह बनने की शिक्षा मिल रही है। इनमें कोई विकार नहीं होता। वहाँ रावण राज्य ही नहीं। पीछे रावण राज्य होता है। रावण क्या चीज़ है, यह कोई भी नहीं जानते। ड्रामा अनुसार यह भी नूँध है। ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं, इसलिए ही नेती-नेती करते आये हैं। अभी तुम स्वर्गवासी बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक हैं ना। इन्हों के आगे माथा टेकने वाले तमोप्रधान कनिष्ट पुरुष हैं। बाप कहते हैं पहले-पहले तो एक बात पक्की कर लो – अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। इसमें ही मेहनत है। जैसे 8 घण्टे सरकारी नौकरी होती है ना। अभी तुम बेहद की सरकार के मददगार हो। तुमको कम से कम 8 घण्टा पुरुषार्थ कर याद में रहना है। यह अवस्था तुम्हारी ऐसी पक्की हो जायेगी जो कोई की भी याद नहीं आयेगी। बाप की याद में ही शरीर छोड़ेंगे। फिर वही विजय माला के दाने बनेंगे। एक राजा की प्रजा कितनी ढेर होती है। यहाँ भी प्रजा बननी है। तुम विजय माला के दाने पूजने लायक बनेंगे। 16108 की माला भी होती है। एक बड़े बॉक्स में पड़ी रहती है। 8 की माला है, 108 की भी है। अन्त में फिर 16108 की भी बनती है। तुम बच्चों ने ही बाप से राजयोग सीख सारे विश्व को स्वर्ग बनाया है इसलिए तुमको पूजा जाता है। तुम ही पूज्य थे, फिर पुजारी बने हो। यह दादा कहते हैं हमने खुद माला फेरी है, लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में यूँ तो रूद्र माला होनी चाहिए। तुम पहले रूद्र माला फिर रूण्ड माला बनते हो। पहले नम्बर में है रूद्र माला जिसमें शिव भी है, रूण्ड माला में शिव कहाँ से आये। वह है विष्णु की माला। इन बातों को भी कोई समझते थोड़ेही हैं। अभी तुम कहते हो हम शिवबाबा के गले का हार जाए बनते हैं। ब्राह्मणों की माला नहीं बन सकती है। ब्राह्मणों की माला होती नहीं। तुम जितना याद में रहते हो फिर वहाँ भी नजदीक में ही आकर राज्य करेंगे। यह पढ़ाई और कोई जगह मिल न सके। तुम जानते हो अभी हम इस पुराने शरीर को छोड़ स्वर्गवासी बनेंगे। सारा भारत स्वर्गवासी बनेगा। इनपर्टीकुलर, भारत ही स्वर्ग था। 5 हज़ार वर्ष की बात है, लाखों वर्ष की बात हो नहीं सकती। देवताओं को ही 5 हज़ार वर्ष हुए, स्वर्ग को मनुष्य भूल गये हैं। तो ऐसे ही कह देते हैं। बाकी है कुछ नहीं। इतना पुराना संवत आदि है थोड़ेही। है ही सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी फिर और धर्म वाले आते हैं। पुरानी चीजें काम क्या आयेंगी। कितना खरीद करते हैं, पुरानी चीज़ की बहुत वैल्यु करते हैं। सबसे वैल्युबुल है शिवबाबा, कितने शिवलिंग बनाते हैं। आत्मा इतनी छोटी बिन्दी है, यह किसको भी समझ में नहीं आता। अति सूक्ष्म रूप है। बाप ही समझाते हैं इतनी छोटी बिन्दी में इतना पार्ट नूँधा हुआ है, यह ड्रामा रिपीट होता रहता है, यह ज्ञान तुमको वहाँ नहीं रहेगा। यह प्राय: लोप हो जाता है। तो फिर कोई सहज राजयोग सिखा कैसे सकते। यह सब भक्ति मार्ग के लिए बैठ बनाया है। अभी बच्चे जानते हैं बाप द्वारा ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय – तीन धर्म स्थापन हो रहे हैं भविष्य नई दुनिया के लिए। वह पढ़ाई जो तुम पढ़ते हो वह है इस जन्म के लिए। इनकी प्रालब्ध तुमको नई दुनिया में मिलनी है। यह पढ़ाई होती है संगमयुग पर। यह है पुरुषोत्तम संगमयुग। मनुष्य से देवता तो जरूर संगम पर बने होंगे। बाप बच्चों को सब राज़ समझाते हैं। यह भी बाबा जानते हैं तुम सारा दिन इस याद में रह नहीं सकेंगे, इम्पॉसिबुल है इसलिए चार्ट रखो, देखो हम कहाँ तक याद में रह सकते हैं? देह का अभिमान होगा तो याद कैसे रह सकेगी! पापों का बोझा सिर पर बहुत है इसलिए बाबा कहते हैं याद में रहो। त्रिमूर्ति का चित्र पॉकेट में डाल दो, परन्तु तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। अल्फ को याद करने से बे आदि सब याद आ जाता है। बैज़ तो सदा लगा रहे। लिटरेचर भी हो, कोई भी अच्छा आदमी हो तो उनको देना चाहिए। अच्छा आदमी कभी मुफ्त में लेंगे नहीं। बोले, इसका क्या पैसा है? बोलो – यह गरीबों को तो मुफ्त में दिया जाता है, बाकी जो जितना दे। रॉयल्टी होनी चाहिए। तुम्हारी रसम-रिवाज दुनिया से बिल्कुल न्यारी होनी चाहिए। रॉयल आदमी आपेही कुछ न कुछ दे देंगे। यह तो हम सबको देते हैं कल्याण के लिए। कोई पढ़कर भी तुमको पैसे भेज देंगे। खर्चा तो तुम करते हो ना। बोलो, हम अपना तन-मन-धन भारत की सेवा में खर्च करते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) इस बेहद की सरकार को मदद करने के लिए कम से कम 8 घण्टा याद में रहने का पुरुषार्थ करना है। याद में जो माया विघ्न डालती है उससे घबराना नहीं है।

2) इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर ईश्वरीय सम्प्रदाय का बन, ईश्वर की मत पर चलना है। कर्म करते भी एक बाप की याद में रहने का अभ्यास करना है।

वरदान:- अन्तर्मुखता की ग़ुफा में रहने वाले देह से न्यारे देही भव
जो पाण्डवों की गुफायें दिखाते हैं – वह यही अन्तर्मुखता की गुफायें हैं, जितना-देह से न्यारे, देही रूप में स्थित होने की गुफा में रहते हो उतना दुनिया के वातावरण से परे हो जाते हो, वातावरण के प्रभाव में नहीं आते। जैसे ग़ुफा के अन्दर रहने से बाहर के वातावरण से परे हो जाते हैं ऐसे यह अन्तर्मुखता की गुफा भी सबसे न्यारा और बाप का प्यारा बना देती है। और जो बाप का प्यारा है वह स्वत: सबसे न्यारा हो जाता है।
स्लोगन:- साधना बीज है और साधन उसका विस्तार है। विस्तार में साधना को छिपा नहीं देना।

 

अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

अन्तर्मुखी की निशानी सदा सागर के तले में खोये हुए गम्भीरमूर्त। चेहरे द्वारा आत्मिक स्थिति के चिन्ह दिखाई देंगे। एक ओर मनन-चिंतन करने वाला चेहरा और फिर रमणीक अर्थात् मुस्कराता हुआ चेहरा, दोनों ही लक्षण सूरत से प्रत्यक्ष होंगे। अन्तर्मुखी सदा हर्षितमुख दिखाई देंगे क्योंकि माया का सामना करना समाप्त हो जायेगा।

शीर्षक:“मीठे बच्चे – तुम्हें अभी ज्ञान की दृष्टि मिली है, इसलिए तुम्हारा भटकना बंद हुआ, तुम शान्तिधाम – सुखधाम को याद करते हो”

❖ प्रश्नोत्तर श्रृंखला ❖

(ब्रह्मा कुमारी मुरली आधारित)

प्रश्न 1:देवताओं में कौन-सी ताकत होती है और वह ताकत किस विशेषता के कारण होती है?
उत्तर:देवताओं में सारे विश्व पर स्वराज्य करने की ताकत होती है। यह ताकत उन्हें एक मत की विशेषता के कारण मिलती है। सतयुग में एक राजा की एक दैवी फैमिली होती है, इसलिए वजीर या सलाहकारों की जरूरत नहीं होती। यह ताकत उन्होंने संगमयुग पर बाप से मिली श्रीमत द्वारा प्राप्त की होती है।

प्रश्न 2:मनुष्य का भटकना कब बंद होता है?
उत्तर:जब बाप आकर ज्ञान की दृष्टि देते हैं, तब मनुष्य का भटकना बंद हो जाता है। उससे पहले भक्ति मार्ग में मनुष्य शांति और सुख की खोज में यज्ञ, तप, तीर्थ, व्रत आदि करके भटकते रहते हैं।

प्रश्न 3:बाप बच्चों को किस प्रकार की यात्रा कराते हैं और उसका क्या फल होता है?
उत्तर:बाप बच्चों को “याद की यात्रा” कराते हैं। इस यात्रा से विकर्म विनाश होते हैं और आत्मा शुद्ध हो स्वर्ग की अधिकारी बनती है। यही पुरुषार्थ है जो संगमयुग पर करना है।

प्रश्न 4:संगमयुग और कलियुग में अंतर कैसे स्पष्ट होता है?
उत्तर:जो बच्चे बाप को पहचानकर श्रीमत पर चलते हैं, वे संगमयुग में हैं। बाकी जो माया के वश हैं, वे कलियुग में हैं। संगमयुग पुरुषोत्तम युग है, जहाँ मनुष्य से देवता बनने की शिक्षा मिलती है।

प्रश्न 5:राजयोग की शिक्षा से कौन-से आत्मिक परिवर्तन होते हैं?
उत्तर:राजयोग की शिक्षा से आत्मा विकारों से मुक्त होकर देवता बनती है। जैसे लक्ष्मी-नारायण की कर्मेन्द्रियाँ वश थीं, वैसे ही यह शिक्षा आत्मा को सम्पूर्ण निर्विकारी बनाती है।

प्रश्न 6:बाप कौन-सा ज्ञान देते हैं जो और कोई नहीं दे सकता?
उत्तर:बाप सृष्टि चक्र का सम्पूर्ण ज्ञान देते हैं—सतयुग से कलियुग तक की हिस्ट्री-जियोग्राफी, आत्मा-परमात्मा का रहस्य, और सहज राजयोग द्वारा स्वराज्य की प्राप्ति। यह ज्ञान कोई मनुष्य या धर्मगुरु नहीं दे सकता।

प्रश्न 7:रूहानी बाप के ज्ञान से क्या परिवर्तन आता है?
उत्तर:रूहानी बाप के ज्ञान से आत्मा अज्ञान अंधकार से निकल कर ज्ञान रोशनी में आ जाती है। फिर आत्मा स्वधर्म में स्थित हो शान्तिधाम और सुखधाम की ओर अग्रसर होती है।

प्रश्न 8:भक्ति मार्ग और ज्ञान मार्ग में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर:भक्ति मार्ग में मनुष्य शास्त्रों और क्रियाओं में भटकता है जबकि ज्ञान मार्ग में आत्मा बाप से सीधा ज्ञान पाकर मुक्त और जीवनमुक्त बनती है। भक्ति मार्ग में समय-सीमा होती है, ज्ञान मार्ग अखंड है।

प्रश्न 9:स्मृति में रखने योग्य मुख्य पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर:“अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना” यही मुख्य और सबसे सहज पुरुषार्थ है, जिससे विकर्म विनाश होते हैं और आत्मा पावन बनती है।

प्रश्न 10:सच्चे सेवा कार्य में लगे बच्चों की दिनचर्या कितनी होनी चाहिए?
उत्तर:जैसे दुनियावी नौकरी 8 घंटे की होती है, वैसे ही बाप कहते हैं—बेहद की सेवा में भी कम से कम 8 घंटे बाप की याद और सेवा में लगाओ, तभी विजय माला के दाने बन सकते हो।

प्रश्न 11:ज्ञान मार्ग की स्मृति अगले जन्मों में क्यों नहीं रहती?
उत्तर:क्योंकि यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। सतयुग में आत्मा पूर्ण है, वहाँ ज्ञान की आवश्यकता नहीं रहती। यह ज्ञान सिर्फ संगमयुग की पढ़ाई है, जिससे भविष्य की प्रालब्ध बनती है।

प्रश्न 12:रूद्र माला और रूण्ड माला में क्या अंतर है?
उत्तर:रूद्र माला शिवबाबा की होती है, जिसमें ब्राह्मण आत्माएँ होती हैं। रूण्ड माला विष्णु की होती है, जिसमें देवता आत्माएँ हैं। पहले ब्राह्मण रूद्र माला में होते हैं, फिर देवता बनकर रूण्ड माला में प्रवेश करते हैं।

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