Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below
| 12-11-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
|
मधुबन |
| “मीठे बच्चे – तुम ड्रामा के खेल को जानते हो इसलिए शुक्रिया मानने की भी बात नहीं है” | |
| प्रश्नः- | सर्विसएबुल बच्चों में कौन-सी आदत बिल्कुल नहीं होनी चाहिए? |
| उत्तर:- | मांगने की। तुम्हें बाप से आशीर्वाद या कृपा आदि मांगने की जरूरत नहीं है। तुम किसी से पैसा भी नहीं मांग सकते। मांगने से मरना भला। तुम जानते हो ड्रामा अनुसार कल्प पहले जिन्होंने बीज बोया होगा वह बोयेंगे, जिनको अपना भविष्य पद ऊंच बनाना होगा वह जरूर सहयोगी बनेंगे। तुम्हारा काम है सर्विस करना। तुम किसी से कुछ मांग नहीं सकते। भक्ति में मांगना होता, ज्ञान में नहीं। |
| गीत:- | मुझको सहारा देने वाले…….. |
ओम् शान्ति। यह बच्चों के अन्दर से शुक्रिया अक्षर बाप-टीचर-गुरू के लिए नहीं निकल सकता क्योंकि बच्चे जानते हैं यह खेल बना हुआ है। शुक्रिया आदि की बात नहीं है। यह भी बच्चे जानते हैं ड्रामा अनुसार। ड्रामा अक्षर भी तुम बच्चों की बुद्धि में आता है। खेल अक्षर कहने से ही सारा खेल तुम्हारी बुद्धि में आ जाता है। गोया स्वदर्शन चक्रधारी तुम आपेही बन जाते हो। तीनों लोक भी तुम्हारी बुद्धि में आ जाते हैं। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन। यह भी जानते हो अब खेल पूरा होता है। बाप आकर तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। तीनों कालों, तीनों लोकों, आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं। काल समय को कहा जाता है। यह सब बातें नोट करने बिगर याद नहीं रह सकती। तुम बच्चे तो बहुत प्वाइंट्स भूल जाते हो। ड्रामा के ड्यूरेशन को भी तुम जानते हो। तुम त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी बनते हो, ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल जाता है। सबसे बड़ी बात है कि तुम आस्तिक बन जाते हो, नहीं तो निधनके थे। यह ज्ञान तुम बच्चों को मिल रहा है। स्टूडेण्ट की बुद्धि में सदैव नॉलेज मंथन होती है। यह भी नॉलेज है ना। ऊंच ते ऊंच बाप ही नॉलेज देते हैं, ड्रामा अनुसार। ड्रामा अक्षर भी तुम्हारे मुख से निकल सकता है। सो भी जो बच्चे सर्विस में तत्पर रहते हैं। अभी तुम जानते हो – हम आरफन थे। अब बेहद का बाप धणी मिला है तो धणके बने हैं। पहले तुम बेहद के आरफन थे, बेहद का बाप बेहद का सुख देने वाला है और कोई बाप नहीं जो ऐसा सुख देता हो। नई दुनिया और पुरानी दुनिया यह सब तुम बच्चों की बुद्धि में है। परन्तु औरों को भी यथार्थ रीति समझायें, इस ईश्वरीय धन्धे में लग जाएं। हर एक के सरकमस्टांश अपने-अपने होते हैं। समझा भी वह सकेंगे जो याद की यात्रा में होंगे। याद से बल मिलता है ना। बाप है ही – जौहरदार तलवार। तुम बच्चों को जौहर भरना है। योगबल से विश्व की बादशाही पाते हो। योग से बल मिलता है, ज्ञान से नहीं। बच्चों को समझाया है – नॉलेज सोर्स ऑफ इनकम है। योग को बल कहा जाता है। रात-दिन का फ़र्क है। अब योग अच्छा या ज्ञान अच्छा? योग ही नामीग्रामी है। योग अर्थात् बाप की याद। बाप कहते हैं इस याद से ही तुम्हारे पाप कट जायेंगे। इस पर ही बाप ज़ोर देते हैं। ज्ञान तो सहज है। भगवानुवाच – मैं तुमको सहज ज्ञान सुनाता हूँ। 84 के चक्र का ज्ञान सुनाता हूँ। उसमें सब आ जाता है। हिस्ट्री-जॉग्राफी है ना। ज्ञान और योग दोनों है सेकण्ड का काम। बस हम आत्मा हैं, हमको बाप को याद करना है। इसमें मेहनत है। याद की यात्रा में रहने से शरीर की जैसे विस्मृति होती जाती। घण्टा भर भी ऐसे अशरीरी होकर बैठो तो कितने पावन हो जाएं। मनुष्य रात को कोई 6, कोई 8 घण्टा नींद करते हैं तो अशरीरी हो जाते हैं ना। उस समय में कोई विकर्म नहीं होता है। आत्मा थक कर सो जाती है। ऐसे भी नहीं कोई पाप विनाश होते हैं। नहीं, वह है नींद। विकर्म कोई होता नहीं है। नींद न करे तो पाप ही करते रहेंगे। तो नींद भी एक बचाव है। सारा दिन सर्विस कर आत्मा कहती है मैं अब सोता हूँ, अशरीरी बन जाता हूँ। तुमको शरीर होते अशरीरी बनना है। हम आत्मा इस शरीर से न्यारी, शान्त स्वरूप हैं। आत्मा की महिमा कभी नहीं सुनी होगी। आत्मा सत् चित आनन्द स्वरूप है। परमात्मा की महिमा गाते हैं कि सत है, चैतन्य है। सुख-शान्ति का सागर है। अब तुमको फिर कहेंगे मास्टर, बच्चे को मास्टर भी कहते हैं। तो बाप युक्तियां भी बतलाते रहते हैं। ऐसे भी नहीं सारा दिन नींद करनी है। नहीं, तुमको तो याद में रह पापों का विनाश करना है। जितना हो सके बाप को याद करना है। ऐसे भी नहीं बाप हमारे ऊपर रहम वा कृपा करते हैं। नहीं, यह उनका गायन है – रहमदिल बादशाह। यह भी उनका पार्ट है, तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाना। भक्त लोग महिमा गाते हैं – तुम्हें सिर्फ महिमा नहीं गानी है। यह गीत आदि भी दिनप्रतिदिन बंद होते जाते हैं। स्कूल में कभी गीत होते हैं क्या? बच्चे शान्ति में बैठे रहते हैं। टीचर आता है तो उठकर खड़े होते हैं, फिर बैठते हैं। यह बाप कहते हैं मुझे तो पार्ट मिला हुआ है पढ़ाने का, सो तो पढ़ाना ही है। तुम बच्चों को उठने की दरकार नहीं। आत्मा को बैठ सुनना है। तुम्हारी बात ही सारी दुनिया से न्यारी है। बच्चों को कहेंगे क्या तुम उठो। नहीं, वह तो भक्ति मार्ग में करते, यहाँ नहीं। बाप तो खुद उठकर नमस्ते करते हैं। स्कूल में अगर बच्चे देरी से आते हैं तो टीचर या तो रूल लगायेंगे या बाहर में खड़ा कर देंगे इसलिए डर रहता है टाइम पर पहुँचने का। यहाँ तो डर की बात नहीं। बाप समझाते रहते हैं – मुरलियां मिलती रहती हैं। वह रेग्युलर पढ़नी है। मुरली पढ़ो तो तुम्हारी प्रेजेन्ट मार्क पड़े। नहीं तो अबसेन्ट पड़ जायेगी क्योंकि बाप कहते हैं तुमको गुह्य-गुह्य बातें सुनाता हूँ। तुम अगर मुरली मिस करेंगे तो वह प्वाइंट्स मिस हो जायेंगी। यह हैं नई बातें, जो दुनिया में कोई नहीं जानते। तुम्हारे चित्र देखकर ही चक्रित हो जाते हैं। कोई शास्त्रों में भी नहीं है। भगवान ने चित्र बनाये थे। तुम्हारी यह चित्रशाला है नई। ब्राह्मण कुल के जो देवता बनने वाले होंगे उनकी बुद्धि में ही बैठेगा। कहेंगे यह तो ठीक है। कल्प पहले भी हमने पढ़ा था, जरूर भगवान पढ़ाते हैं।
भक्ति मार्ग के शास्त्रों में पहले नम्बर में गीता ही है क्योंकि पहला धर्म ही यह है। फिर आधाकल्प के बाद उसके भी बहुत पीछे दूसरे शास्त्र बनते हैं। पहले इब्राहम आया तो अकेला था। फिर एक से दो, दो से चार हुए। जब धर्म की वृद्धि होते-होते लाख डेढ़ हो जाते तो शास्त्र आदि बनते हैं। उनके भी आधा समय बाद ही बनते होंगे, हिसाब किया जाता है ना। बच्चों को तो बहुत खुशी होनी चाहिए। बाप से हमको वर्सा मिलता है। तुम जानते हो बाप हमको सारा ज्ञान सृष्टि चक्र का समझाते हैं। यह है बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी। सबको बोलो यहाँ वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाई जाती है जो और कोई सिखला न सके। भल वर्ल्ड का नक्शा निकालते हैं। परन्तु उसमें यह कहाँ दिखलाते कि लक्ष्मी-नारायण का राज्य कब था, कितना समय चला। वर्ल्ड तो एक ही है। भारत में ही राज्य करके गये हैं, अब नहीं हैं। यह बातें किसकी भी बुद्धि में नहीं हैं। वह तो कल्प की आयु ही लम्बी लाखों वर्ष कह देते। तुम मीठे-मीठे बच्चों को कोई जास्ती तकलीफ नहीं देते। बाप कहते हैं पावन बनना है। पावन बनने के लिए तुम भक्ति मार्ग में कितने धक्के खाते हो। अब समझते हो धक्के खाते-खाते 2500 वर्ष गुजर गये। अब फिर बाबा आया है फिर से राज्य-भाग्य देने। तुमको यही याद है। पुरानी से नयी और नयी से पुरानी दुनिया जरूर होती है। अभी तुम पुराने भारत के मालिक हो ना। फिर नये के मालिक बनेंगे। एक तरफ भारत की बहुत महिमा गाते रहते, दूसरे तरफ फिर बहुत ग्लानि करते रहते। वह भी तुम्हारे पास गीत है। तुम समझाते हो – अब क्या-क्या हो रहा है। यह दोनों गीत भी सुनाने चाहिए। तुम बता सकते हो – कहाँ रामराज्य, कहाँ यह!
बाप है गरीब निवाज़। गरीबों की ही बच्चियां मिलेंगी। साहूकारों को तो अपना नशा रहता है। कल्प पहले जो आये होंगे वही आयेंगे। फिकरात की कोई बात नहीं। शिवबाबा को कभी कोई फिकरात नहीं होती, दादा को होगी। इनको अपना भी फिकर है, हमको नम्बरवन पावन बनना है। इसमें है गुप्त पुरुषार्थ। चार्ट रखने से समझ में आता है, इनका पुरुषार्थ जास्ती है। बाप हमेशा समझाते रहते हैं डायरी रखो। बहुत बच्चे लिखते भी हैं, चार्ट लिखने से सुधार बहुत हुआ है। यह युक्ति बहुत अच्छी है, तो सबको करना चाहिए। डायरी रखने से तुमको बहुत फायदा होगा। डायरी रखना माना बाप को याद करना। उसमें बाप की याद लिखनी है। डायरी भी मददगार बनेगी, पुरुषार्थ होगा। डायरियां कितनी लाखों, करोड़ों बनती हैं, नोट आदि करने लिए। सबसे मुख्य बात तो यह है नोट करने की। यह कभी भूलना नहीं चाहिए। उसी समय डायरी में लिखना चाहिए। रात को हिसाब-किताब लिखना चाहिए। फिर मालूम पड़ेगा यह तो हमको घाटा पड़ रहा है क्योंकि जन्म-जन्मान्तर के विकर्म भस्म करने हैं।
बाप रास्ता बताते हैं – अपने ऊपर रहम वा कृपा करनी है। टीचर तो पढ़ाते हैं, आशीर्वाद तो नहीं करेंगे। आशीर्वाद, कृपा, रहम आदि मांगने से मरना भला। कोई से पैसा भी नहीं मांगना चाहिए। बच्चों को सख्त मना है। बाप कहते हैं ड्रामा अनुसार जिन्होंने कल्प पहले बीज बोया है, वर्सा पाया है वह आपेही करेंगे। तुम कोई काम के लिए मांगो नहीं। नहीं करेगा तो नहीं पायेगा। मनुष्य दान-पुण्य करते हैं तो रिटर्न में मिलता है ना। राजा के घर वा साहूकार के पास जन्म होता है। जिनको करना होगा वह आपेही करेंगे, तुमको मांगना नहीं है। कल्प पहले जिन्होंने जितना किया है, ड्रामा उनसे करायेगा। मांगने की क्या दरकार है। बाबा तो कहते रहते हैं हुण्डी भरती रहती है, सर्विस के लिए। हम बच्चों को थोड़ेही कहेंगे पैसा दो। भक्ति मार्ग की बात ज्ञान मार्ग में नहीं होती। जिन्होंने कल्प पहले मदद की है, वह करते रहेंगे, आपेही कभी मांगना नहीं है। बाबा कहते बच्चे चन्दाचीरा तुम इकट्ठा नहीं कर सकते। यह तो संन्यासी लोग करते हैं। भक्ति मार्ग में थोड़ा भी देते हैं, उसका रिटर्न में एक जन्म लिए मिलता है। यह फिर है जन्म-जन्मान्तर के लिए। तो जन्म-जन्मान्तर के लिए सब कुछ दे देना अच्छा है ना। इनका तो नाम भोला भण्डारी है। तुम पुरुषार्थ करो तो विजय माला में पिरोये जा सकते हो, भण्डारा भरपूर काल कंटक दूर है। वहाँ कभी अकाले मृत्यु नहीं होती। यहाँ मनुष्य काल से कितना डरते हैं। थोड़ा कुछ होता है तो मौत याद आ जाता। वहाँ यह ख्याल ही नहीं, तुम अमरपुरी में चलते हो। यह छी-छी मृत्युलोक है। भारत ही अमरलोक था, अब मृत्युलोक है।
तुम्हारा आधाकल्प बहुत छी-छी पास हुआ है। नीचे गिरते आये हो। जगन्नाथ पुरी में बहुत गन्दे-गन्दे चित्र हैं। बाबा तो अनुभवी है ना। चारों तरफ घूमा हुआ है। गोरे से सांवरा बना है। गांव में रहने वाला था। वास्तव में यह सारा भारत गांव है। तुम गांव के छोरे हो। अब तुम समझते हो हम विश्व के मालिक बनते हैं। ऐसे मत समझना हम तो बाम्बे में रहने वाले हैं। बाम्बे भी स्वर्ग के आगे क्या है! कुछ भी नहीं। एक पत्थर भी नहीं। हम गांव के छोरे निधणके बन गये हैं अब फिर हम स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं तो खुशी रहनी चाहिए। नाम ही है स्वर्ग। कितने हीरे-जवाहरात महलों में लगे रहते हैं। सोमनाथ का मन्दिर ही कितना हीरे-जवाहरातों से भरा हुआ था। पहले-पहले शिव का मन्दिर ही बनाते हैं। कितना साहूकार था। अभी तो भारत गांव है। सतयुग में बहुत मालामाल था। यह बातें दुनिया में तुम्हारे सिवाए कोई भी नहीं जानते। तुम कहेंगे कल हम बादशाह थे, आज फकीर हैं। फिर विश्व के मालिक बनते हैं। तुम बच्चों को अपने भाग्य पर शुक्रिया मानना चाहिए। हम पदमापदम भाग्यशाली हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विकर्मों से बचने के लिए इस शरीर में रहते अशरीरी बनने का पुरुषार्थ करना है। याद की यात्रा ऐसी हो जो शरीर की विस्मृति होती जाए।
2) ज्ञान का मंथन कर आस्तिक बनना है। मुरली कभी भी मिस नहीं करनी है। अपनी उन्नति के लिए डायरी में याद का चार्ट नोट करना है।
| वरदान:- | रूहानी शक्ति को हर कर्म में यूज़ करने वाले युक्तियुक्त जीवनमुक्त भव इस ब्राह्मण जीवन की विशेषता है ही रूहानियत। रुहानियत की शक्ति से ही स्वयं को वा सर्व को परिवर्तन कर सकते हो। इस शक्ति से अनेक प्रकार के जिस्मानी बन्धनों से मुक्ति मिलती है। लेकिन युक्तियुक्त बन हर कर्म में लूज़ होने के बजाए, रूहानी शक्ति को यूज़ करो। मन्सा-वाचा और कर्मणा तीनों में साथ-साथ रूहानियत की शक्ति का अनुभव हो। जो तीनों में युक्तियुक्त हैं वो ही जीवनमुक्त हैं। |
| स्लोगन:- | सत्यता की विशेषता द्वारा खुशी और शक्ति की अनुभूति करते चलो। |
अव्यक्त इशारे – अशरीरी व विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ
जो भी परिस्थितियां आ रही हैं और आने वाली हैं, उसमें विदेही स्थिति का अभ्यास बहुत चाहिए इसलिए और सभी बातों को छोड़ यह तो नहीं होगा, यह तो नहीं होगा… क्या होगा.., इस क्वेश्चन को छोड़ दो, अभी विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ। विदेही बच्चों को कोई भी परिस्थिति वा कोई भी हलचल प्रभाव नहीं डाल सकती।
प्रश्न 1:सर्विसएबुल बच्चों में कौन-सी आदत बिल्कुल नहीं होनी चाहिए?
उत्तर:
मांगने की। सर्विसएबुल बच्चों को बाप से कृपा, आशीर्वाद या पैसा किसी से भी मांगने की जरूरत नहीं है।
भक्ति में मांगना होता है, पर ज्ञान मार्ग में नहीं।
जो बच्चे जानते हैं — “ड्रामा अनुसार जिसने पहले बीज बोया होगा वही अब सहयोगी बनेगा”,
वे कभी किसी से कुछ मांगते नहीं।
मांगना यानी आत्म-स्वाभिमान को गिराना। इसलिए कहा गया — “मांगने से मरना भला।”
प्रश्न 2:
बच्चों को बाप से “शुक्रिया” क्यों नहीं कहना चाहिए?
उत्तर:
क्योंकि यह ड्रामा का बना हुआ खेल है।
बाप-टीचर-गुरु जो कुछ करते हैं, वह अपने पार्ट के अनुसार करते हैं।
बच्चे जानते हैं — “ड्रामा में सब कुछ पहले से निश्चित है।”
इसलिए शुक्रिया या कृपा की बात नहीं है।
हम जानते हैं — बाप का काम है हमें ज्ञान देना और सतोप्रधान बनाना।
हमारा काम है पढ़ना और अमल में लाना।
प्रश्न 3:
ड्रामा का ज्ञान हमें कौन-से गुण देता है?
उत्तर:
ड्रामा का ज्ञान हमें त्रिकालदर्शी और त्रिनेत्री बनाता है।
हम समझ जाते हैं कि हर घटना पूर्वनिश्चित है — इसलिए किसी पर गुस्सा, दुख या आश्चर्य नहीं होता।
जो त्रिकालदर्शी है, वह सदा शांत, निश्चिंत और प्रसन्न रहता है।
बाप हमें यही स्थिति सिखाते हैं — “जो हुआ, जो हो रहा है, और जो होगा — सब ठीक है।”
प्रश्न 4:
आत्मा को योग की शक्ति से क्या प्राप्त होता है?
उत्तर:
योग से आत्मा को बल मिलता है — यह बल ही विश्व की बादशाही दिलाता है।
ज्ञान केवल समझ है, पर योग बल देता है।
बाप कहते हैं — “ज्ञान तो सहज है, पर योग में मेहनत है।”
याद की यात्रा से पाप विनाश होते हैं और आत्मा पवित्र बनती है।
प्रश्न 5:
अशरीरी बनने का अभ्यास क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
क्योंकि विकर्मों से बचने का यही उपाय है।
जब आत्मा शरीर से न्यारी होकर बाप की याद में रहती है,
तो धीरे-धीरे शरीर की विस्मृति होने लगती है।
यह अभ्यास ही हमें अशरीरी, शुद्ध और शक्तिशाली बनाता है।
प्रश्न 6:
बच्चों को मुरली नियमित रूप से पढ़ने की क्यों सलाह दी जाती है?
उत्तर:
क्योंकि मुरली ही बाप की कक्षा है।
यदि मुरली मिस होती है तो उस दिन के अमूल्य पॉइंट्स मिस हो जाते हैं।
मुरली सुनना और नोट्स बनाना आत्मा के उन्नति का माध्यम है।
बाबा कहते हैं — “ड्रामा की गुह्य बातें मैं सुनाता हूँ, इसलिए एक भी दिन मिस मत करो।”
प्रश्न 7:
डायरी लिखने का क्या लाभ है?
उत्तर:
डायरी रखना मतलब बाप की याद को पक्का करना।
जब हम रोज़ अपनी याद का चार्ट लिखते हैं,
तो हमें पता चलता है कि दिनभर में कितना याद रहा, कहाँ कमी रही।
इससे पुरुषार्थ में सुधार आता है और पापों का हिसाब खत्म होता है।
डायरी आत्म-निरीक्षण की कुंजी है।
प्रश्न 8:
ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग में क्या अंतर है?
उत्तर:
भक्ति मार्ग में लोग दान-पुण्य, कृपा, आशीर्वाद और मांगना करते हैं।
ज्ञान मार्ग में कुछ मांगना नहीं — केवल कर्म करना और परिणाम ड्रामा पर छोड़ना।
बाबा कहते हैं — “जिसने कल्प पहले किया है, वही अब करेगा। इसलिए मांगने की दरकार नहीं।”
प्रश्न 9:
बच्चों को अपने ऊपर रहम कैसे करनी चाहिए?
उत्तर:
अपने ऊपर रहम का अर्थ है — आत्मा की उन्नति के लिए खुद पुरुषार्थ करना।
बाप तो टीचर हैं, पढ़ाते हैं; पर कृपा करनी हमारी जिम्मेदारी है।
योग और याद से ही आत्मा अपने ऊपर रहम कर सकती है।
मुख्य धारणा (धारणा के लिए मुख्य सार):
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विकर्मों से मुक्त होने के लिए शरीर में रहते हुए अशरीरी स्थिति का अभ्यास करो।
-
मुरली नियमित रूप से पढ़ो, नोट्स बनाओ और याद का चार्ट रखो — यही उन्नति का साधन है।
वरदान:
“रूहानी शक्ति को हर कर्म में यूज़ करने वाले युक्तियुक्त जीवनमुक्त भव।”
जो बच्चे मन्सा, वाचा, कर्मणा तीनों में रूहानियत को धारण करते हैं,
वे ही युक्तियुक्त बनते हैं और जीवन-मुक्त स्थिति का अनुभव करते हैं।
स्लोगन:
“सत्यता की विशेषता द्वारा खुशी और शक्ति की अनुभूति करते चलो।”
अव्यक्त इशारा:
“अशरीरी और विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ।”
जो भी परिस्थितियाँ आएँ, “क्या होगा?” के प्रश्नों को छोड़ो —
सिर्फ आत्म-जागरूकता और बाप की याद में स्थित रहो।
विदेही बच्चों पर कोई भी हलचल या प्रभाव नहीं पड़ सकता।
मीठे बच्चे, ड्रामा का खेल, शुक्रिया न लेना, मांगने की आदत, सर्विसएबुल बच्चे, ब्रह्माकुमारी मुरली, शिवबाबा का महावाक्य, साकार मुरली, आत्मा का ज्ञान, याद की यात्रा, योगबल, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, अमृतवेला, मुरली का सार, बापदादा की शिक्षाएँ, ब्रह्माकुमारी हिन्दी, ईश्वरीय ज्ञान, आत्म-स्मरण, अशरीरी अवस्था, जीवनमुक्त अवस्था, डायरी लिखने की युक्ति, पुरुषार्थ, विकर्म विनाशन, योगबल, ज्ञानमार्ग, भक्तिमार्ग, आत्म-जागरूकता, सत्यता की विशेषता, आत्माबल, आध्यात्मिक ध्यान, मुरली चिंतन, BKMurli, शिवबाबा, ब्रह्माकुमारी, राजयोग ध्यान, आध्यात्मिक ज्ञान, BK_Hindi_Murli, BK_Yog_Classes, BK_Rajyoga, BrahmaKumaris_YouTube, BK_Spiritual_Talks,Sweet children, play of drama, not accepting thanks, habit of asking for, serviceable children, Brahma Kumaris Murli, Mahavakya of Shivbaba, Sakar Murli, knowledge of the soul, journey of remembrance, power of yoga, Trikaldarshi, Trinetri, Amritvela, essence of Murli, BapDada’s teachings, Brahma Kumaris Hindi, Divine knowledge, self-recollection, disembodied state, life-free state, diary-keeping trick, effort, destruction of sins, power through yoga, path of knowledge, path of devotion, self-awareness, specialty of truthfulness, power of soul, spiritual meditation, Murli contemplation, BKMurli, ShivBaba, BrahmaKumaris, RajyogaMeditation, SpiritualKnowledge, BK_Hindi_Murli, BK_Yog_Classes, BK_Rajyoga, BrahmaKumaris_YouTube, BK_Spiritual_Talks,

