MURLI 17-10-2025 |BRAHMA KUMARIS

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Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below

17-10-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठेबच्चे – जैसे बाप भविष्य 21 जन्मों के लिए सुख देते हैं वैसे आप बच्चे भी बाप के मददगार बनो, प्रीत-बुद्धि बनो, दु:ख देने का कभी ख्याल भी न आये”
प्रश्नः- तुम रूप-बसन्त बच्चों का कर्तव्य क्या है? तुम्हें बाप की कौन-सी शिक्षायें मिली हुई हैं?
उत्तर:- तुम रूप-बसन्त बच्चों का कर्तव्य है मुख से सदैव रत्न निकालना, तुम्हारे मुख से कभी पत्थर नहीं निकलने चाहिए। सर्व बच्चों प्रति बाप की शिक्षा है कि बच्चे 1. आपस में कभी एक-दो को तंग नहीं करना, गुस्सा नहीं करना, यह आसुरी मनुष्यों का काम है। 2. मन्सा में भी किसी को दु:ख देने का ख्याल न आये। 3. निंदा-स्तुति, मान-अपमान सब कुछ सहन करना। अगर कोई कुछ बोलता है तो शान्त रहना। हाथ में लॉ नहीं उठाना।
गीत:- तू प्यार का सागर है……..

ओम् शान्ति। ज्ञान और अज्ञान। तुम बच्चों में अभी ज्ञान है – भक्त लोग महिमा किसकी करते हैं और तुम बच्चे जो यहाँ बैठेहो तुम किसकी महिमा सुनते हो? रात-दिन का फ़र्क है। वो तो ऐसे ही सिर्फ महिमा गाते रहते हैं। इतना प्यार नहीं है क्योंकि पहचान नहीं। तुमको बाप ने पहचान दी है मैं प्यार का सागर हूँ और तुमको प्यार का सागर बना रहा हूँ। बाप प्यार का सागर कितना सबको प्यारा लगता है। वहाँ भी सब एक-दो को प्यार करते हैं। यह तुम यहाँ सीखते हो। किसके साथ भी विरोध नहीं होना चाहिए, जिसको बाबा लून-पानी कहते हैं। अन्दर में किसके लिए ऩफरत नहीं होनी चाहिए। ऩफरत करने वाले कलियुगी नर्कवासी हैं। जानते हो हम सब भाई-बहन हैं। शान्तिधाम में हैं तो भाई-भाई हैं। यहाँ जब कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजाते हैं, तो बहन-भाई हैं। ईश्वरीय सन्तान हैं। ईश्वर की महिमा है वो ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है,यानी सबको सुख देते हैं। तुम सब दिल से पूछो – जैसे बाप भविष्य 21 जन्मों के लिए सुख देते हैं वैसे हम भी वह कार्य करते हैं? अगर बाप के मददगार नहीं बनते, प्यार नहीं करते, एक-दो से प्रीत नहीं है, विपरीत बुद्धि होकर रहते हैं तो विनशन्ती हो जाते हैं। विप्रीत बुद्धि होना असुरों का काम है। अपने को ईश्वरीय सम्प्रदाय कहलाकर फिर एक-दो को दु:ख देना उनको असुर कहा जाता है। तुम बच्चों को किसी को भी दु:ख नहीं देना है। तुम हो ही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता बाप के बच्चे। तो दु:ख देने का ख्याल भी तुमको नहीं आना चाहिए। वह तो हैं ही आसुरी सम्प्रदाय, न कि ईश्वरीय सम्प्रदाय क्योंकि देह-अभिमानी हैं। वह कभी याद की यात्रा में रह न सकें। याद की यात्रा बिगर कल्याण होना नहीं है। वर्सा देने वाले बाप को तो जरूर याद करना है तो विकर्म विनाश होंगे। आधाकल्प तो एक-दो को दु:ख देते आये हो। एक-दो में लड़ते तंग करते रहते हैं, वह आसुरी सम्प्रदाय में गिने जाते हैं। भल पुरुषार्थी हैं तो भी कब तक दु:ख देते रहेंगे इसलिए बाबा कहते हैं अपना चार्ट रखो। चार्ट रखने से मालूम पड़ेगा – हमारा रजिस्टर सुधरता जाता है या वही आसुरी चलन है? बाबा सदैव कहते हैं कभी किसको दु:ख न दो। निंदा-स्तुति, मान-अपमान, ठण्डी-गर्मी सब सहन करना है। कोई ने कुछ कहा तो शान्त रहना चाहिए। ऐसे नहीं कि उनके लिए दो वचन और कह देना है। कोई किसको दु:ख देते हैं तो उनको बाप समझायेंगे ना। बच्चे, बच्चे को कह नहीं सकते। अपने हाथ में लॉ नहीं लेना है। कुछ भी बात है तो बाप के पास आना है। गवर्मेन्ट में भी कायदा है – कोई एक-दो को घूँसा नहीं मार सकते। कम्पलेन कर सकते हैं। लॉ उठाना गवर्मेन्ट का काम है। तुम भी गवर्मेन्ट के पास आओ। हाथ में लॉ नहीं लो। यह तो है ही अपना घर इसलिए बाबा कहते हैं रोज़ कचहरी करो। यह भी समझते नहीं हैं – शिवबाबा ऑर्डर करते हैं। बाबा ने कहा है हमेशा समझो शिवबाबा सुनाते हैं। ऐसे मत समझो ब्रह्मा सुनाते हैं। हमेशा शिवबाबा ही समझो तो उनकी याद रहेगी। यह शिवबाबा ने रथ लिया है, तुमको ज्ञान सुनाने के लिए। सतोप्रधान बनने का रास्ता बाप समझा रहे हैं। वह है गुप्त। तुम हो प्रत्यक्ष। जो भी डायरेक्शन निकलते हैं, समझो शिवबाबा के हैं तो तुम सेफ रहेंगे। तुम बाबा-बाबा शिव को ही कहते हो। वर्सा भी उनसे मिलता है। उनके साथ कितना रिगार्ड, रॉयल्टी से चलना चाहिए। तुम कहते हो ना – बाबा हम तो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। फिर सेकेण्ड,थर्ड बनें, सूर्यवंशी नहीं बनें तो चन्द्रवंशी बनें। ऐसे तो नहीं हम भल दास-दासी बनें। प्रजा बनना तो अच्छा नहीं। तुमको तो यहाँ दैवीगुण ही धारण करने हैं। आसुरी चलन तो नहीं होनी चाहिए। निश्चय नहीं है तो फिर बैठे-बैठेयह कह देते, इनमें शिवबाबा आते हैं – हम तो नहीं समझते। माया का भूत आने से आपस में ऐसे कह देते। आपस में आसुरी स्वभाव वाले मिलते हैं तो फिर ऐसे बोलने लग पड़ते हैं, आसुरी बातें ही मुख से निकलती हैं। बाप कहते हैं तुम आत्मा रूप-बसन्त बनते हो। तुम्हारे मुख से रत्न ही निकलने चाहिए। अगर पत्थर निकलते हैं तो गोया आसुरी बुद्धि ठहरे।

गीत भी बच्चों ने सुना। बच्चे कहते हैं – बाबा प्यार का सागर, सुख का सागर है। शिवबाबा की ही महिमा है। बाप कहते हैं तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। इसमें बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे फेल होते हैं। देही-अभिमानी स्थिति में ठहर नहीं सकते। देही-अभिमानी बनेंगे तब ही इतना ऊंच पद पायेंगे। कई बच्चे फालतू बातों में बहुत टाइम वेस्ट करते हैं। ज्ञान की बात ही ध्यान में नहीं आती। यह भी गायन है घर की गंगा का मान नहीं रखते। घर की चीज़ का इतना मान नहीं रखते हैं। जबकि कृष्ण आदि का चित्र घर में भी है फिर श्रीनाथ द्वारे आदि इतना दूर-दूर क्यों जाते हो। शिव के मन्दिरों में भी है तो पत्थर का ही लिंग। पहाड़ों से पत्थर निकलते हैं, वह घिस-घिस कर लिंग बन जाते हैं, उनमें कोई-कोई पत्थर में सोना भी लगा हुआ होता है। कहा जाता है सोने का कैलाश पर्वत। सोना पहाड़ों से निकलता है ना। तो थोड़ा-थोड़ा सोना लगे हुए पत्थर भी होते हैं जो फिर बहुत अच्छे-अच्छे गोल हो जाते हैं, वह बेचते हैं। मारबल का भी खास बनाते हैं। अब भक्ति मार्ग वालों को कहो कि तुम बाहर में इतना भटकते क्यों हो तो बिगड़ जायेंगे। बाप खुद कहते हैं तुम बच्चों ने बहुत पैसे बरबाद किये हैं। यह भी ड्रामा में पार्ट है जो तुमको धक्का खाना पड़ता है। यह है ही ज्ञान और भक्ति का खेल। अभी तुम बच्चों को सारी समझ मिलती है। ज्ञान है सुख का रास्ता, ज्ञान से सतयुग की राजाई मिलती है। इस समय राजा रानी तथा प्रजा सब नर्क के मालिक हैं। जब कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। इन बातों को अभी तुमने समझा है। अभी तुम कहते हो हम स्वर्गवासी बनने के लिए स्वर्ग की स्थापना करने वाले बाप के पास बैठेहैं। ज्ञान की बूंद मिलती है। थोड़ा भी ज्ञान सुना तो स्वर्ग में जरूर आयेंगे, बाकी है पुरुषार्थ पर। समझते हैं गंगाजल की एक लोटी भी मुख में डालने से पतित से पावन बन जाते हैं। लोटी भरकर ले जाते फिर रोज़ उनसे एक-एक बूंद पानी में मिलाए स्नान करते हैं। वह जैसे गंगा स्नान हो जायेगा। विलायत में भी गंगा जल भरकर ले जाते हैं। यह सब है भक्ति।

बाप बच्चों को समझाते हैं बच्चे माया बड़ा जोर से थप्पड़ लगाती है, विकर्म करा देती है इसलिए कचहरी करो, आपेही अपनी कचहरी करना अच्छा है। तुम अपने को आपेही राजतिलक देते हो तो अपनी जांच करनी है। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। बाप श्रीमत देते हैं ऐसे-ऐसे करो, दैवीगुण धारण करो। जो करेंगे वह पायेंगे। तुम्हारे तो खुशी में रोमांच खड़े हो जाने चाहिए। बेहद का बाप मिला है, उनकी सर्विस में मददगार बनना है। अन्धों की लाठीबनना है। जितना जास्ती बनेंगे, उतना अपना ही कल्याण होगा। बाबा को तो घड़ी-घड़ी याद करना है। नेष्ठा में एक जगह बैठने की बात नहीं। चलते-फिरते याद करना है। ट्रेन में भी तुम सर्विस कर सकते हो। तुम कोई को भी समझा सकते हो कि ऊंच ते ऊंच कौन है? उनको याद करो। वर्सा उनसे ही मिलेगा। आत्मा को बाप से बेहद का वर्सा मिलता है। कोई दान-पुण्य करने से राजा के पास जन्म लेते हैं सो भी अल्पकाल के लिए। सदा तो राजा नहीं बन सकते। तो बाप कहते हैं यहाँ तो 21 जन्मों की गैरन्टी है। वहाँ यह पता नहीं पड़ेगा कि हम बेहद के बाप से यह वर्सा ले आये हैं। यह ज्ञान इस समय तुमको मिलता है तो कितना अच्छी रीति पुरुषार्थ करना चाहिए। पुरुषार्थ नहीं करते हैं तो गोया अपने पांव पर कुल्हाड़ा मारते हैं। चार्ट लिखते रहो तो डर रहेगा। कोई-कोई लिखते भी हैं, बाबा देखेंगे तो क्या कहेंगे। चाल-चलन में बहुत फ़र्क रहता है। तो बाप कहते हैं ग़फलत छोड़ो। नहीं तो बहुत पछताना पड़ेगा। अपने पुरुषार्थ का फिर पिछाड़ी में साक्षात्कार जरूर होगा फिर बहुत रोना पड़ेगा। क्या कल्प-कल्प यही वर्सा मिलेगा। दास-दासी जाकर बनेंगे। आगे तो ध्यान में जाकर सुनाते थे – फलानी दासी है, यह है। फिर बाबा ने बंद कर दिया। पिछाड़ी में फिर तुम बच्चों को साक्षात्कार होंगे। साक्षात्कार बिगर सज़ा कैसे मिल सकती। कायदा ही नहीं।

बच्चों को युक्तियां भी बहुत समझाई जाती हैं तुम अपने पति को बोलो, बाबा कहते हैं बच्चे काम महाशत्रु है, इन पर जीत पहनो। माया जीते जगतजीत बनो। अब हम स्वर्ग के मालिक बनें या तुम्हारे कारण अपवित्र बन नर्क में जायें। बहुत प्यार, नम्रता से समझाओ। मुझे नर्क में क्यों ढकेलते हो। ऐसी बहुत बच्चियां हैं – समझाते-समझाते आखिर पति को ले आती हैं। फिर पति कहता कि यह हमारा गुरू है, इसने हमको बहुत अच्छा रास्ता बताया। बाबा के आगे चरणों में आए गिरते हैं। कभी जीत कभी हार भी होती है। तो बच्चों को बहुत-बहुत मीठा बनना है। जो सर्विस करेंगे वही प्यारे लगेंगे। भगवान बाप आये हैं बच्चों के पास, उनकी श्रीमत पर चलना पड़े। श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो तूफान लगने से गिर पड़ते हैं। ऐसे भी हैं – वह क्या काम के रहेंगे। यह पढ़ाई कोई कॉमन नहीं है और सब सतसंगों आदि में तो है – कनरस, जिससे अल्पकाल सुख मिलता है। यह बाप द्वारा तो 21 जन्मों का सुख मिलता है। बाबा सुख-शान्ति का सागर है, हमको भी बाप से वर्सा मिलना है। सेवा करेंगे तब तो मिलेगा, इसलिए बैज सदा लगा रहे। हमको ऐसा सर्वगुण सम्पन्न बनना है। जांच करनी है कि हम किसको दु:ख तो नहीं देते हैं? आसुरी चलन तो नहीं चलते हैं? माया ऐसे काम कराती है, बात मत पूछो। अच्छे-अच्छे घर वाले भी बतलाते हैं, माया ने यह विकर्म करा लिया। कोई सच बताते, कोई सच नहीं बताने से सौगुणा दण्ड पा लेते। फिर वह आदत बढ़ती जायेगी। बाप को सुनायेंगे तो बाबा सावधान करेंगे। बाबा कहते हैं पाप किया है तो रजिस्टर में लिखो और बता दो तो तुम्हारे पाप आधा खलास हो जायेंगे। सुनाते नहीं, छिपा लेंगे तो फिर करते ही रहेंगे। श्राप मिल जाता है। न बतलाने से एक बार के बदले 100 बार करते रहेंगे। बाबा कितनी अच्छी राय देते हैं परन्तु कोई-कोई को ज़रा भी असर नहीं होता है। अपनी तकदीर को जैसे लात मारते रहते हैं। बहुत-बहुत नुकसान करते हैं। अन्त में सबको साक्षात्कार होगा। यह-यह बनेंगे, क्लास में ट्रांसफर होते हैं तो मार्क्स निकलती हैं ना। ट्रांसफर होने पहले रिजल्ट निकलती है। तुम भी अपने क्लास में जाते हो तो मार्क्स का पता पड़ेगा फिर बहुत ज़ार-ज़ार रोयेंगे। फिर क्या कर सकेंगे? रिजल्ट तो निकल गई ना। जो तकदीर में था वो ले लिया। बाप सब बच्चों को सावधान करते हैं। कर्मातीत अवस्था अभी हो न सके। कर्मातीत अवस्था हो जाए तो फिर शरीर छोड़ना पड़े, अभी कुछ न कुछ विकर्म रहे हुए हैं, हिसाब-किताब है इसलिए योग पूरा नहीं लगता है। अभी कोई भी नहीं कह सकते कि हम कर्मातीत अवस्था में हैं। नज़दीक आने से फिर बहुत निशानियाँ दिखाई पड़ेंगी। सारा मदार तुम्हारी अवस्था पर और विनाश पर है। तुम्हारी पढ़ाई पूरी होने पर होगी तो फिर देखेंगे लड़ाई सिर पर खड़ी है। अच्छा!

मीठे-मीठेसिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) माया के वश होकर कोई भी आसुरी चलन नहीं चलनी है। अपनी चलन का रजिस्टर रखना है। ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जो पश्चाताप् करना पड़े।

2) बहुत-बहुत प्यार और नम्रता से सेवा करनी है। मीठा बनना है। मुख से आसुरी बोल नहीं निकालने हैं। संग की बहुत-बहुत सम्भाल करनी है। श्रीमत पर चलते रहना है।

वरदान:- संगठित रूप में एकरस स्थिति के अभ्यास द्वारा विजय का नगाड़ा बजाने वाले एवररेडी भव
विश्व में विजय का नगाड़ा तब बजेगा जब सभी के सब संकल्प एक संकल्प में समा जायेंगे। संगठित रूप में जब एक सेकण्ड में सभी एकरस स्थिति में स्थित हो जाएं तब कहेंगे एवररेडी। एक सेकण्ड में एकमत, एकरस स्थिति और एक संकल्प में स्थित होने की ही निशानी अंगुली दिखाई है,जिस अंगुली से कलियुगी पर्वत उठ जाता, इसलिए संगठित रूप में एकरस स्थिति बनाने का अभ्यास करो तब ही विश्व के अन्दर शक्ति सेना का नाम बाला होगा।
स्लोगन:- श्रेष्ठ पुरुषार्थ में थकावट आना – यह भी आलस्य की निशानी है।

अव्यक्त इशारे – स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो

आप अपनी आत्मिक दृष्टि से अपने संकल्पों को सिद्ध कर सकते हो। वह रिद्धि सिद्धि है अल्पकाल, लेकिन याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि है अविनाशी। वह रिद्धि सिद्धि यूज़ करते हैं और आप याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि प्राप्त करो।

“मीठे बच्चे — जैसे बाप भविष्य 21 जन्मों के लिए सुख देते हैं, वैसे आप बच्चे भी बाप के मददगार बनो, प्रीत-बुद्धि बनो, दु:ख देने का कभी ख्याल भी न आये।”


प्रश्न 1:तुम रूप-बसन्त बच्चों का कर्तव्य क्या है?

उत्तर:

रूप-बसन्त बच्चों का कर्तव्य है — मुख से सदा ज्ञान-रत्न निकालना।
बाबा ने कहा है — “तुम्हारे मुख से पत्थर नहीं निकलने चाहिए।”
मतलब, हर बोल मीठा, स्नेहभरा और शक्तिदायक होना चाहिए।
जिससे आत्माओं को शान्ति और सुख मिले, दु:ख नहीं।

उदाहरण:
जैसे बसन्त ऋतु में फूलों की खुशबू फैलती है, वैसे ही रूप-बसन्त बच्चे ज्ञान और प्रेम की सुगन्ध फैलाते हैं।


प्रश्न 2:बाबा ने बच्चों को कौन-सी मुख्य शिक्षाएँ दी हैं?

उत्तर:बाबा की तीन मुख्य शिक्षाएँ हैं —

  1. कभी किसी को तंग या दुखी न करो।
    गुस्सा, कटु वचन या ताने — ये आसुरी स्वभाव के चिन्ह हैं।

  2. मन्सा में भी किसी को दु:ख देने का ख्याल न आये।
    आत्मिक दृष्टि से सब भाई-बहन हैं। प्रेम से ही सुख का वातावरण बनता है।

  3. निंदा-स्तुति, मान-अपमान — सब कुछ सहन करो।
    कोई कुछ बोले तो भी शान्त रहो, हाथ में कानून (लॉ) मत लो।
    केवल बाबा को बताओ — वही सच्चे न्यायाधीश हैं।


प्रश्न 3:रूप-बसन्त बनने का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?

उत्तर:रूप-बसन्त बनने का अर्थ है —
अपने मुख और मन्सा से केवल ज्ञान, प्रेम और शान्ति की रश्मियाँ फैलाना।
जैसे बाप “प्यार का सागर” है, वैसे ही बच्चे भी “प्यार के झरने” बनें।

उदाहरण:
जैसे सूर्य सभी को प्रकाश देता है बिना भेदभाव, वैसे ही रूप-बसन्त बच्चे सबको सुख देने वाले बनें।


प्रश्न 4:बाबा ने “विपरीत बुद्धि” से क्यों सावधान किया है?

उत्तर:क्योंकि विपरीत बुद्धि का अर्थ है — बाप से मुंह मोड़ लेना।
जो बच्चे एक-दूसरे से विरोध, नफरत या गुस्सा करते हैं, वे असुर कहे जाते हैं।
बाबा कहते हैं — “ईश्वरीय सम्प्रदाय में रहकर भी अगर किसी को दु:ख देते हो, तो वह असुरता है।”

सच्चे बच्चे वे हैं, जो सबके लिए सुखदाता और शान्तिदाता बनते हैं।


प्रश्न 5:“कचहरी” करने का क्या अर्थ है?

उत्तर:बाबा कहते हैं — रोज़ अपनी आत्मा की कचहरी (self-court) करो।
मतलब, दिनभर में अपने संकल्प, बोल और कर्म की जांच करो —
क्या हमने किसी को दु:ख तो नहीं दिया?
क्या हमारे विचार शुद्ध रहे?

लाभ:जो आत्मा अपनी जांच करती है, वही विकर्मों से मुक्त होकर सतोप्रधान बनती है।


प्रश्न 6:सच्ची सेवा किसे कहते हैं?

उत्तर:सच्ची सेवा है — मीठा बनकर, नम्रता और स्नेह से सबको ईश्वरीय ज्ञान देना।
बाबा कहते हैं — “जो सर्विस करेंगे वही प्यारे लगेंगे।”
बच्चों को हर किसी के लिए “अंधों की लाठी” बनना है।


प्रश्न 7:बाबा ने कर्म और सज़ा के बारे में क्या समझाया?

उत्तर:जो पाप छिपाते हैं, उन्हें “सौगुणा दण्ड” मिलता है।
जो बाबा को सुनाते हैं, उनके पाप आधे खलास हो जाते हैं।
बाबा कहते हैं — “पाप किया है तो बता दो। नहीं तो वह आदत बढ़ती जायेगी।”
यह आत्मा की सफाई का नियम है।


प्रश्न 8:कर्मातीत अवस्था क्या है और कब संभव होगी?

उत्तर:कर्मातीत अवस्था — जब आत्मा पूरी तरह शुद्ध, निर्लेप और स्थिर हो जाए।
अभी कोई भी पूरी तरह कर्मातीत नहीं है क्योंकि कुछ न कुछ हिसाब बाकी है।
बाबा कहते हैं — “नज़दीक आने पर जब सबके संकल्प एकरस होंगे, तब विजय का नगाड़ा बजेगा।”


प्रश्न 9:विजय का नगाड़ा कब बजेगा?

उत्तर:जब सभी आत्माएँ संगठित रूप में एक सेकण्ड में एकरस स्थिति में स्थित हो जाएंगी,
तब विश्व परिवर्तन का समय होगा।
यह है “एवर-रेडी” स्थिति — एकमत, एकसंवेदना, एक लक्ष्य।


सारांश:बाबा कहते हैं —

“जैसे मैं भविष्य 21 जन्मों के लिए सुख देता हूँ, वैसे तुम भी सबको सुख दो।”

अपने मन, वचन और कर्म से किसी को भी दु:ख देने का ख्याल भी न आये।

मुख से रत्न निकालो, पत्थर नहीं।

यही है सच्चे रूप-बसन्त बच्चों की निशानी।


स्लोगन:श्रेष्ठ पुरुषार्थ में थकावट आना — यह भी आलस्य की निशानी है।

वरदान:संगठित रूप में एकरस स्थिति के अभ्यास द्वारा विजय का नगाड़ा बजाने वाले एवररेडी भव।

डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ (Prajapita Brahma Kumaris Ishwariya Vishwa Vidyalaya) की शिक्षाओं और मुरली के आध्यात्मिक अर्थ पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक जागृति, आत्म-संशोधन और सकारात्मक जीवन परिवर्तन के लिए है। यह किसी धर्म, पंथ या संगठन के विरोध में नहीं है। सभी विचार ईश्वरीय मुरली के गूढ़ अर्थ को सरल भाषा में प्रस्तुत करने हेतु हैं।

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