MURLI 18-10-2025 |BRAHMA KUMARIS

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Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below

18-10-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठेबच्चे – आत्म-अभिमानी होकर बैठो, अन्दर घोटते रहो – मैं आत्मा हूँ…. देही-अभिमानी बनो, सच्चा चार्ट रखो तो समझदार बनते जायेंगे, बहुत फायदा होगा”
प्रश्नः- बेहद के नाटक को समझने वाले बच्चे किस एक लॉ (नियम) को अच्छी रीति समझते हैं?
उत्तर:- यह अविनाशी नाटक हैं, इसमें हर एक पार्टधारी को पार्ट बजाने अपने समय पर आना ही है। कोई कहे हम सदा शान्तिधाम में ही बैठ जाएं – तो यह लॉ नहीं है। उसे तो पार्टधारी ही नहीं कहेंगे। यह बेहद की बातें बेहद का बाप ही तुम्हें सुनाते हैं।

ओम् शान्ति। अपने को आत्मा समझकर बैठो। देह-अभिमान छोड़कर बैठो। बेहद का बाप बच्चों को समझा रहे हैं। समझाया उनको जाता है जो बेसमझ होते हैं। आत्मा समझती है कि बाप सच कहते हैं – हम आत्मा बेसमझ बन गई हैं। मैं आत्मा अविनाशी हूँ, शरीर विनाशी है। मैं आत्म-अभिमान छोड़ देह-अभिमान में फँस पड़ा हूँ। तो बेसमझ ठहरे ना। बाप कहते हैं सब बच्चे बेसमझ हो पड़े हैं, देह-अभिमान में आकर। फिर तुम बाप द्वारा देही-अभिमानी बनते हो तो बिल्कुल समझदार बन जाते हो। कोई तो बन गये हैं, कोई पुरुषार्थ करते रहते हैं। आधाकल्प लगा है बेसमझ बनने में। इस अन्तिम जन्म में फिर समझदार बनना है। आधाकल्प से बेसमझ होते-होते 100 प्रतिशत बेसमझ बन जाते हैं। देह-अभिमान में आकर ड्रामा प्लैन अनुसार तुम गिरते आये हो। अभी तुमको समझ मिली है फिर भी पुरुषार्थ बहुत करना है क्योंकि बच्चों में दैवीगुण भी चाहिए। बच्चे जानते हैं हम सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण…… थे। फिर इस समय निर्गुण बन पड़े हैं। कोई भी गुण नहीं रहा है। तुम बच्चों में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार इस खेल को समझते हैं। समझते-समझते भी कितने वर्ष हो गये हैं। फिर भी जो नये हैं वह अच्छे समझदार बनते जाते हैं। औरों को भी बनाने का पुरुषार्थ करते हैं। कोई ने तो बिल्कुल नहीं समझा है। बेसमझ के बेसमझ ही हैं। बाप आये ही हैं समझदार बनाने। बच्चे समझते हैं माया के कारण हम बेसमझ बने हैं। हम पूज्य थे तो समझदार थे फिर हम ही पुजारी बन बेसमझ बने हैं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म प्राय: लोप हो गया है। इनका दुनिया में किसको पता नहीं है। यह लक्ष्मी-नारायण कितने समझदार थे, राज्य करते थे। बाप कहते हैं तत् त्वम्। तुम भी अपने लिए ऐसे समझो। यह बहुत-बहुत समझने की बातें हैं। सिवाए बाप के कोई समझा न सके। अभी महसूस होता है – बाप ही ऊंच ते ऊंच समझदार ते समझदार होगा ना। एक तो ज्ञान का सागर भी है। सर्व का सद्गति दाता भी है। पतित-पावन भी है। एक की ही महिमा है। इतना ऊंच ते ऊंच बाप आकरके बच्चे-बच्चे कह कैसे अच्छी रीति समझाते हैं। बच्चे अब पावन बनना है। उसके लिए बाप एक ही दवाई देते हैं, कहते हैं – योग से तुम भविष्य 21 जन्म निरोगी बन जायेंगे। तुम्हारे सब रोग, दु:ख खत्म हो जायेंगे। तुम मुक्तिधाम में चले जायेंगे। अविनाशी सर्जन के पास एक ही दवाई है। एक ही इन्जेक्शन आत्मा को आए लगाते हैं। ऐसे नहीं कोई मनुष्य बैरिस्टरी भी करेंगे, इन्जीनियरी भी करेंगे। नहीं। हर एक आदमी अपने धन्धे में ही लग जाते हैं। बाप को कहते हैं आकर पतित से पावन बनाओ क्योंकि पतितपने में दु:ख है। शान्तिधाम को पावन दुनिया नहीं कहेंगे। स्वर्ग को ही पावन दुनिया कहेंगे। यह भी समझाया है मनुष्य शान्ति और सुख चाहते हैं। सच्ची-सच्ची शान्ति तो वहाँ है जहाँ शरीर नहीं, उसको कहा जाता है शान्तिधाम। बहुत कहते हैं शान्तिधाम में रहें, परन्तु लॉ नहीं है। वह तो पार्टधारी हुआ नहीं। बच्चे नाटक को भी समझ गये हैं। जब एक्टर्स का पार्ट होगा तब बाहर स्टेज पर आकर पार्ट बजायेंगे। यह बेहद की बातें बेहद का बाप ही समझाते हैं। ज्ञान सागर भी उनको कहा जाता है। सर्व के सद्गति दाता पतित-पावन हैं। सर्व को पावन बनाने वाले तत्व नहीं हो सकते। पानी आदि सब तत्व हैं, वह कैसे सद्गति करेंगे। आत्मा ही पार्ट बजाती है। हठयोग का भी पार्ट आत्मा बजाती है। यह बातें भी जो समझदार हैं वही समझ सकते हैं। बाप ने कितना समझाया है – कोई ऐसी युक्ति रचो जो मनुष्य समझें – कैसे पूज्य सो फिर पुजारी बनते हैं। पूज्य हैं नई दुनिया में, पुजारी हैं पुरानी दुनिया में। पावन को पूज्य, पतित को पुजारी कहा जाता है। यहाँ तो सब पतित हैं क्योंकि विकार से पैदा होते हैं। वहाँ हैं श्रेष्ठ। गाते भी हैं सम्पूर्ण श्रेष्ठाचारी। अभी तुम बच्चों को ऐसा बनना है। मेहनत है। मुख्य बात है याद की। सभी कहते हैं याद में रहना बड़ा मुश्किल है। हम जितना चाहते हैं, याद में रह नहीं सकते हैं। कोई सच्चाई से अगर चार्ट लिखे तो बहुत फायदा हो सकता है। बाप बच्चों को यह ज्ञान देते हैं कि मनमनाभव। तुम अर्थ सहित कहते हो, तुम्हें बाप हर बात यथार्थ रीति अर्थ सहित समझाते हैं। बाप से बच्चे कई प्रकार के प्रश्नपूछते हैं, बाप करके दिल लेने लिए कुछ कह देते हैं। परन्तु बाप कहते हैं मेरा काम ही है पतित से पावन बनाना। मुझे तो बुलाते ही इसलिए हो। तुम जानते हो हम आत्मा शरीर सहित पावन थी। अभी वही आत्मा शरीर सहित पतित बनी है। 84 जन्मों का हिसाब है ना।

तुम जानते हो – अभी यह दुनिया कांटों का जंगल बन गई है। यह लक्ष्मी-नारायण तो फूल हैं ना। उन्हों के आगे कांटे जाकर कहते हैं आप सर्वगुण सम्पन्न…. हम पापी कपटी हैं। सबसे बड़ा कांटा है – काम विकार का। बाप कहते हैं इस पर जीत पहन जगतजीत बनो। मनुष्य कहते हैं भगवान को कोई न कोई रूप में आना है, भागीरथ पर विराजमान हो आना है। भगवान को आना ही है पुरानी दुनिया को नया बनाने। नई दुनिया को सतोप्रधान, पुरानी को तमोप्रधान कहा जाता है। जबकि अभी पुरानी दुनिया है तो जरूर बाप को आना ही पड़े। बाप को ही रचयिता कहा जाता है। तुम बच्चों को कितना सहज समझाते हैं। कितनी खुशी होनी चाहिए। बाकी किसका कर्मभोग का हिसाब-किताब है, कुछ भी है, वह तो भोगना है, इसमें बाबा आशीर्वाद नहीं करते हैं। हमको बुलाते ही हो – बाबा आकर हमको वर्सा दो। बाबा से क्या वर्सा पाने चाहते हो? मुक्ति-जीवनमुक्ति का। मुक्ति-जीवनमुक्ति का दाता एक ही ज्ञान सागर बाप है इसलिए उनको ज्ञान दाता कहा जाता है। भगवान ने ज्ञान दिया था परन्तु कब दिया, किसने दिया, यह किसको पता नहीं है। सारा मुँझारा इसमें है। किसको ज्ञान दिया, यह भी किसको पता नहीं है। अभी यह ब्रह्मा बैठेहैं – इनको मालूम पड़ा है कि हम सो नारायण था फिर 84 जन्म भोगे। यह है नम्बरवन में। बाबा बतलाते हैं मेरी तो आंख ही खुल गई। तुम भी कहेंगे हमारी तो आंखें ही खुल गई। तीसरा नेत्र तो खुलता है ना। तुम कहेंगे हमको बाप का, सृष्टि चक्र का पूरा ज्ञान मिल गया है। मैं जो हूँ, जैसा हूँ – मेरी आंखें खुल गई हैं। कितना वन्डर है। हम आत्मा फर्स्ट हैं और फिर हम अपने को देह समझ बैठे। आत्मा कहती है हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ। फिर भी हम अपने को आत्मा भूल देह-अभिमानी बन जाते हैं इसलिए अब तुमको पहले-पहले यह समझ देता हूँ कि अपने को आत्मा समझ बैठो। अन्दर में यह घोटते रहो कि मैं आत्मा हूँ। आत्मा न समझने से बाप को भूल जाते हो। फील करते हो बरोबर हम घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में आ जाते हैं। मेहनत करनी है। यहाँ बैठोतो भी आत्म-अभिमानी होकर बैठो। बाप कहते हैं हम तुम बच्चों को राजाई देने आये हैं। आधाकल्प तुमने हमको याद किया है। कोई भी बात सामने आती है तो कहते हैं हाय राम, परन्तु ईश्वर वा राम कौन है, यह किसको पता नहीं। तुमको सिद्ध करना है – ज्ञान का सागर, पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता, त्रिमूर्ति परमपिता परमात्मा शिव है। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर तीनों का जन्म इकट्ठा है। सिर्फ शिवजयन्ती नहीं है परन्तु त्रिमूर्ति शिव जयन्ती है। जरूर जब शिव की जयन्ती होगी तो ब्रह्मा की भी जयन्ती होगी। शिव की जयन्ती मनाते हैं परन्तु ब्रह्मा ने क्या किया। लौकिक, पारलौकिक और यह है अलौकिक बाप। यह है प्रजापिता ब्रह्मा। बाप कहते हैं नई दुनिया के लिए यह नया ज्ञान अभी तुमको मिलता है फिर प्राय: लोप हो जाता है। जिसको बाप रचता और रचना का ज्ञान नहीं तो अज्ञानी ठहरे ना। अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं। ज्ञान से है दिन, भक्ति से है रात। शिवरात्रि का अर्थ भी नहीं जानते इसलिए उनकी हॉली डे भी उड़ा दी है।

अभी तुम जानते हो बाप आते ही हैं – सबकी ज्योत जगाने। तुम यह बत्तियां आदि जगायेंगे तो समझेंगे इनका कोई बड़ा दिन है। अब तुम जगाते हो अर्थ सहित। वो लोग थोड़ेही समझेंगे। तुम्हारे भाषण से पूरा समझ नहीं सकते। अभी सारे विश्व पर रावण का राज्य है, यहाँ तो मनुष्य कितने दु:खी हैं। रिद्धि-सिद्धि वाले भी बहुत तंग करते हैं। अखबारों में भी पड़ता है, इनमें ईविल सोल है। बहुत दु:ख देते हैं। बाबा कहते हैं इन बातों से तुम्हारा कोई कनेक्शन नहीं। बाप तो सीधी बात बताते हैं – बच्चे, तुम मुझे याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठेसिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) यथार्थ रीति बाप को याद करने वा आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है, सच्चाई से अपना चार्ट रखना है, इसमें ही बहुत-बहुत फायदा है।

2) सबसे बड़ा दु:ख देने वाला कांटा काम विकार है, इस पर योगबल से विजय प्राप्त कर पतित से पावन बनना है। बाकी किन्हीं भी बातों से तुम्हारा कनेक्शन नहीं।

वरदान:- प्रैक्टिकल जीवन द्वारा परमात्म ज्ञान का प्रूफ देने वाले धर्मयुद्ध में विजयी भव
अभी धर्म युद्ध की स्टेज पर आना है। उस धर्म युद्ध में विजयी बनने का साधन है आपकी प्रैक्टिकल जीवन क्योंकि परमात्म ज्ञान का प्रूफ ही प्रैक्टिकल जीवन है। आपकी मूर्त से ज्ञान और गुण प्रैक्टिकल में दिखाई दें क्योंकि आजकल डिसकस करने से अपनी मूर्त को सिद्ध नहीं कर सकते लेकिन अपनी प्रैक्टिकल धारणा मूर्त से एक सेकण्ड में किसी को भी शान्त करा सकते हो।
स्लोगन:- आत्मा को उज्जवल बनाने के लिए परमात्म स्मृति से मन की उलझनों को समाप्त करो।

 

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य

“योग से ही मुक्त होने की शक्ति मिलती है”

पहले-पहले तो अपने को एक मुख्य प्वाइन्ट ख्याल में अवश्य रखनी है, जब इस मनुष्य सृष्टि झाड़ का बीज रूप परमात्मा है तो उस परमात्मा द्वारा जो नॉलेज प्राप्त हो रही है वो सब मनुष्यों के लिये जरूरी है। सभी धर्म वालों को यह नॉलेज लेने का अधिकार है। भल हरेक धर्म की नॉलेज अपनी-अपनी है, हरेक का शास्त्र अपना-अपना है, हरेक की मत अपनी-अपनी है, हरेक का संस्कार अपना-अपना है लेकिन यह नॉलेज सबके लिये हैं। भल वो इस ज्ञान को न भी उठा सके, हमारे घराने में भी न आवे परन्तु सबका पिता होने कारण उनसे योग लगाने से फिर भी पवित्र अवश्य बनेंगे। इस पवित्रता के कारण अपने ही सेक्शन में पद अवश्य पायेंगे क्योंकि योग को तो सभी मनुष्य मानते हैं, बहुत मनुष्य ऐसे कहते हैं हमें भी मुक्ति चाहिए, मगर सजाओं से छूट मुक्त होने की शक्ति भी इस योग द्वारा मिल सकती है।

“अजपाजाप अर्थात् निरंतर ईश्वरीय याद”

यह जो कहावत है श्वांसो श्वांस अजपाजाप जपते रहो उसका यथार्थ अर्थ क्या है? जब हम कहते हैं अजपाजाप तो इसका यथार्थ अर्थ है जाप के बिगर श्वांसो-श्वांस अपना बुद्धियोग अपने परमपिता परमात्मा के साथ निरंतर लगाना और यह ईश्वरीय याद श्वांसो-श्वांस कायम चलती आती है, उस निरंतर ईश्वरीय याद को अजपाजाप कहते हैं। बाकी कोई मुख से जाप जपना अर्थात् राम राम कहना, अन्दर में कोई मंत्र उच्चारण करना, यह तो निरंतर चल नहीं सकता। वो लोग समझते हैं हम मुख से मंत्र उच्चारण नहीं करते लेकिन दिल में उच्चारण करना, यह है अजपाजाप। परन्तु यह तो सहज एक विचार की बात है जहाँ अपना शब्द ही अजपाजाप है, जिसको जपने की भी जरूरत नहीं है। आंतरिक बैठ कोई मूर्ति का ध्यान भी नहीं करना है, न कुछ सिमरण करना है क्योंकि वो भी निरंतर खाते पीते रह नहीं सकेंगे लेकिन हम जो ईश्वरीय याद करते हैं, वही निरंतर चल सकती है क्योंकि यह बहुत सहज है। जैसे समझो बच्चा है अपने बाप को याद करता है, तो उसी समय बाप का फोटो सामने नहीं लाना पड़ता है लेकिन मन्सा-वाचा-कर्मणा बाप के सारे आक्यूपेशन, एक्टिविटी, गुणों सहित याद आता है बस, वह याद आने से बच्चे की भी वो एक्ट चलती है, तब ही सन शोज़ फादर करेंगे। वैसे अपने को भी और सबकी याद दिल भीतर से मिटाए, उस एक ही असली पारलौकिक परमपिता परमात्मा की याद में रहना है, इसमें उठते-बैठते, खाते-पीते निरंतर याद में चल सकते हैं। उस याद से ही कर्मातीत बनते हैं। तो इस नेचुरल याद को ही अजपाजाप कहते हैं। अच्छा – ओम् शान्ति।

अव्यक्त इशारे – स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो

अभ्यास की प्रयोगशाला में बैठ, योग का प्रयोग करो तो एक बाप का सहारा और माया के अनेक प्रकार के विघ्नों का किनारा अनुभव करेंगे। अभी ज्ञान के सागर, गुणों के सागर, शक्तियों के सागर में ऊपर-ऊपर की लहरों में लहराते हो इसलिए अल्पकाल की रिफ्रेशमेंट अनुभव करते हो। लेकिन अब सागर के तले में जाओ तो अनेक प्रकार के विचित्र अनुभव कर रत्न प्राप्त करेंगे।

“मीठे बच्चे – आत्म-अभिमानी होकर बैठो, अन्दर घोटते रहो – मैं आत्मा हूँ…. देही-अभिमानी बनो, सच्चा चार्ट रखो तो समझदार बनते जायेंगे, बहुत फायदा होगा”


 प्रश्नोत्तर (Q&A Format)

प्रश्न 1:

बेहद के नाटक को समझने वाले बच्चे किस एक ‘लॉ’ (नियम) को अच्छी रीति समझते हैं?

उत्तर:

वे यह लॉ अच्छी रीति समझते हैं कि यह अविनाशी नाटक है।
इसमें हर एक आत्मा को अपना पार्ट बजाने अपने समय पर आना ही है।
कोई यह नहीं कह सकता कि “मैं शान्तिधाम में ही सदा बैठा रहूँगा”—ऐसा सम्भव नहीं।
जो स्टेज पर आता ही नहीं, वह पार्टधारी नहीं कहलाता।
यह बेहद की बातें हैं जो बेहद के बाप शिव बाबा ही समझाते हैं।


प्रश्न 2:

बाप बच्चों को सबसे पहले क्या समझाते हैं?

उत्तर:

बाप कहते हैं — “अपने को आत्मा समझकर बैठो। देह-अभिमान छोड़ दो।
आत्मा कहे — “मैं अविनाशी हूँ, शरीर विनाशी है।”
देह-अभिमान में आने से आत्मा बेसमझ बन जाती है।
जब आत्मा अपने को समझती है, तो समझदार बन जाती है।


प्रश्न 3:

मनुष्य बेसमझ कैसे बने और फिर समझदार कैसे बनते हैं?

उत्तर:

आधा कल्प से आत्माएँ देह-अभिमान में आकर बेसमझ बनती गईं।
अंतिम जन्म में, बाप आकर फिर से देही-अभिमान छुड़ाकर समझदार बनाते हैं।
इसलिए कहा गया — “तुम्हें अब समझदार बनना है, क्योंकि आधा कल्प तुम बेसमझ बने रहे।

प्रश्न 4:

बाप की सबसे बड़ी “दवाई” कौन-सी है?

उत्तर:

बाप की एक ही दवाई है — योग।
वे कहते हैं — “योग से तुम भविष्य 21 जन्म निरोगी बन जायेंगे।”
यही अविनाशी सर्जन (डॉक्टर) का इन्जेक्शन है, जो आत्मा को पवित्र और निरोगी बनाता है।


प्रश्न 5:

मनुष्य क्यों कहते हैं – “भगवान को आना ही है”?

उत्तर:

क्योंकि अब पुरानी दुनिया तमोप्रधान बन चुकी है।
नई सतोप्रधान दुनिया बनाने के लिए भगवान को आना ही पड़ता है।
वे ही रचयिता, पतित-पावन और सर्व का सद्गति दाता हैं।
बाप कहते हैं – “मैं आया हूँ पुरानी दुनिया को नया बनाने।”


प्रश्न 6:

बाबा के अनुसार सबसे बड़ा ‘कांटा’ कौन-सा है?

उत्तर:

सबसे बड़ा कांटा है — काम विकार का।
इसी पर जीत प्राप्त करने से आत्मा जगतजीत बनती है।
इस कांटे पर विजय ही सच्ची धर्मयुद्ध की जीत है।


प्रश्न 7:

सच्चा चार्ट रखने का क्या लाभ है?

उत्तर:

जो सच्चाई से अपना चार्ट लिखते हैं —
कि आज कितनी याद रही, कितनी भूल हुई,
उनका आत्म-बोध बढ़ता है।
चार्ट लिखने से देही-अभिमान मिटता है और बहुत-बहुत फायदा होता है।


प्रश्न 8:

“अजपाजाप” का यथार्थ अर्थ क्या है?

उत्तर:

अजपाजाप का अर्थ है —
जाप किए बिना निरंतर ईश्वरीय याद में रहना।
श्वांसो-श्वांस बाप को याद करना,
बिना किसी शब्द या मूर्ति के ध्यान में।
यह स्वाभाविक, सहज और निरंतर याद ही असली अजपाजाप है।


प्रश्न 9:

सच्ची शान्ति कहाँ है – शान्तिधाम या स्वर्ग में?

उत्तर:

सच्ची शान्ति शान्तिधाम (मुक्तिधाम) में है,
जहाँ शरीर नहीं होता – सिर्फ आत्माएँ रहती हैं।
परन्तु पावनता और सुख तो स्वर्ग में है।
इसलिए कहा गया — “शान्तिधाम को पावन दुनिया नहीं कहेंगे।”


प्रश्न 10:

‘त्रिमूर्ति शिव जयन्ती’ का अर्थ क्या है?

उत्तर:

जब शिव आते हैं, तो साथ ही ब्रह्मा, विष्णु और शंकर का कार्य भी आरम्भ होता है।
इसलिए सिर्फ शिव जयन्ती नहीं, बल्कि “त्रिमूर्ति शिव जयन्ती” मनाई जाती है।
शिव के माध्यम से ही ब्रह्मा के द्वारा सृष्टि रचना का आरम्भ होता है।


प्रश्न 11:

बाप बच्चों को कौन-सा वर्सा देने आये हैं?

उत्तर:

बाप कहते हैं – “मैं तुम्हें मुक्ति और जीवनमुक्ति का वर्सा देने आया हूँ।”
इसलिए उन्हें कहा जाता है —
“ज्ञान का सागर, पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता।”


प्रश्न 12:

धर्मयुद्ध में विजयी कैसे बनें?

उत्तर (वरदान के अनुसार):

धर्मयुद्ध में विजयी वही बनते हैं जिनका जीवन प्रैक्टिकल ज्ञान का प्रमाण बन जाता है।
सिर्फ चर्चा से नहीं, अपने आचरण और गुणों से ज्ञान का प्रभाव दिखाओ।
ऐसे धर्मयुद्ध के विजयी आत्मा बनो।


 धारणा के मुख्य सार:

1️⃣ यथार्थ रीति से बाप को याद करना और आत्म-अभिमान में रहना — यही असली मेहनत है।
2️⃣ सच्चाई से चार्ट लिखो, यही तुम्हारी उन्नति का साधन है।
3️⃣ काम विकार पर विजय पाओ — यही सबसे बड़ा धर्मयुद्ध है।


 स्लोगन:

“आत्मा को उज्जवल बनाने के लिए परमात्म स्मृति से मन की उलझनों को समाप्त करो।”


 मातेश्वरी जी के अनमोल वचन:

“योग से ही मुक्त होने की शक्ति मिलती है।”
अर्थात — जितना निरंतर ईश्वरीय स्मृति का अभ्यास होगा,
उतनी आत्मा अजपाजाप अवस्था में रहकर कर्मातीत और मुक्त बन जाएगी।

डिस्क्लेमर:

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज के मुरली-संदेश पर आधारित आध्यात्मिक अध्ययन हेतु है।
इसका उद्देश्य आत्म-जागृति और योगाभ्यास की प्रेरणा देना है।
यह किसी धर्म या व्यक्ति विशेष की आलोचना नहीं करता।

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