MURLI 24-02-2025/BRAHMAKUMARIS

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

24-02-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – यह रूहानी हॉस्पिटल तुम्हें आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी बनाने वाली है, यहाँ तुम देही-अभिमानी होकर बैठो”
प्रश्नः- धन्धा आदि करते भी कौन-सा डायरेक्शन बुद्धि में याद रहना चाहिए?
उत्तर:- बाप का डायरेक्शन है तुम किसी साकार वा आकार को याद नहीं करो, एक बाप की याद रहे तो विकर्म विनाश हों। इसमें कोई ये नहीं कह सकता कि फुर्सत नहीं। सब कुछ करते भी याद में रह सकते हो।

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति बाप का गुडमॉर्निंग। गुडमॉर्निंग के बाद बच्चों को कहा जाता है बाप को याद करो। बुलाते भी हैं – हे पतित-पावन आकर पावन बनाओ तो बाप पहले-पहले ही कहते हैं – रूहानी बाप को याद करो। रूहानी बाप तो सबका एक ही है। फादर को कभी सर्वव्यापी नहीं माना जाता है। तो जितना हो सके बच्चे पहले-पहले बाप को याद करो, कोई भी साकार वा आकार को याद नहीं करो, सिवाए एक बाप के। यह तो बिल्कुल सहज है ना। मनुष्य कहते हैं हम बिजी रहते हैं, फुर्सत नहीं। परन्तु इसमें तो फुर्सत सदैव है। बाप युक्ति बतलाते हैं यह भी जानते हो बाप को याद करने से ही हमारे पाप भस्म होंगे। मुख्य बात है यह। धन्धे आदि की कोई मना नहीं है। वह सब करते हुए सिर्फ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों। यह तो समझते हैं हम पतित हैं, साधू-सन्त ऋषि-मुनि आदि सब साधना करते हैं। साधना की जाती है भगवान से मिलने की। सो जब तक उनका परिचय न हो तब तक तो मिल नहीं सकते। तुम जानते हो बाप का परिचय दुनिया में कोई को भी नहीं है। देह का परिचय तो सबको है। बड़ी चीज़ का परिचय झट हो जाता है। आत्मा का परिचय तो जब बाप आये तब समझाये। आत्मा और शरीर दो चीज़ें हैं। आत्मा एक स्टॉर है और बहुत सूक्ष्म है। उनको कोई देख नहीं सकते। तो यहाँ जब आकर बैठते हैं तो देही-अभिमानी होकर बैठना है। यह भी एक हॉस्पिटल है ना – आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी होने की। आत्मा तो है अविनाशी, कभी विनाश नहीं होती। आत्मा का ही सारा पार्ट है। आत्मा कहती है मैं कभी विनाश को नहीं पाती हूँ। इतनी सब आत्मायें अविनाशी हैं। शरीर है विनाशी। अब तुम्हारी बुद्धि में यह बैठा हुआ है कि हम आत्मा अविनाशी हैं। हम 84 जन्म लेते हैं, यह ड्रामा है। इसमें धर्म स्थापक कौन-कौन कब आते हैं, कितने जन्म लेते होंगे यह तो जानते हो। 84 जन्म जो गाये जाते हैं जरूर किसी एक धर्म के होंगे। सभी के तो हो न सके। सब धर्म इकट्ठे तो आते नहीं। हम दूसरों का हिसाब क्यों बैठ निकालें? जानते हैं फलाने-फलाने समय पर धर्म स्थापन करने आते हैं। उसकी फिर वृद्धि होती है। सब सतोप्रधान से तमोप्रधान तो होने ही हैं। दुनिया जब तमोप्रधान होती है तब फिर बाप आकर सतोप्रधान सतयुग बनाते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो हम भारतवासी ही फिर नई दुनिया में आकर राज्य करेंगे, और कोई धर्म नहीं होगा। तुम बच्चों में भी जिनको ऊंच मर्तबा लेना है वह जास्ती याद में रहने का पुरूषार्थ करते हैं और समाचार भी लिखते हैं कि बाबा हम इतना समय याद में रहता हूँ। कई तो पूरा समाचार लज्जा के मारे देते नहीं। समझते हैं बाबा क्या कहेंगे। परन्तु मालूम तो पड़ता है ना। स्कूल में टीचर स्टूडेन्ट्स को कहेंगे ना कि तुम अगर पढ़ेंगे नहीं तो फेल हो जायेंगे। लौकिक माँ-बाप भी बच्चे की पढ़ाई से समझ जाते हैं, यह तो बहुत बड़ा स्कूल है। यहाँ तो नम्बरवार बिठाया नहीं जाता है। बुद्धि से समझा जाता है, नम्बरवार तो होते ही हैं ना। अब बाबा अच्छे-अच्छे बच्चों को कहाँ भेज देते हैं, वह फिर चले जाते हैं तो दूसरे लिखते हैं हमको महारथी चाहिए, तो जरूर समझते हैं वह हमसे होशियार नामीग्रामी हैं। नम्बरवार तो होते हैं ना। प्रदर्शनी में भी अनेक प्रकार के आते हैं तो गाइड्स भी खड़े रहने चाहिए जांच करने के लिए। रिसीव करने वाले तो जानते हैं यह किस प्रकार का आदमी है। तो उनको फिर इशारा करना चाहिए कि इनको तुम समझाओ। तुम भी समझ सकते हो फर्स्ट ग्रेड, सेकेण्ड ग्रेड, थर्ड ग्रेड सब हैं। यहाँ तो सबकी सर्विस करनी ही है। कोई बड़ा आदमी है तो जरूर बड़े आदमी की खातिरी तो सब करते ही हैं। यह कायदा है। बाप अथवा टीचर बच्चों की क्लास में महिमा करते हैं, यह भी सबसे बड़ी खातिरी है। नाम निकालने वाले बच्चों की महिमा अथवा खातिरी की जाती है। यह फलाना धनवान है, रिलीजस माइन्डेड है, यह भी खातिरी है ना। अब तुम यह जानते हो ऊंच ते ऊंच भगवान है। कहते भी हैं बरोबर ऊंच ते ऊंच है, परन्तु फिर बोलो उनकी बायोग्राफी बताओ तो कह देंगे सर्वव्यापी है। बस एकदम नीचे कर देते हैं। अब तुम समझा सकते हो सबसे ऊंचे ते ऊंच है भगवान, वह है मूलवतन वासी। सूक्ष्मवतन में हैं देवतायें। यहाँ रहते हैं मनुष्य। तो ऊंच ते ऊंच भगवान वह निराकार ठहरा।

अभी तुम जानते हो हम जो हीरे मिसल थे सो फिर कौड़ी मिसल बन पड़े हैं फिर भगवान को अपने से भी जास्ती नीचे ले गये हैं। पहचानते ही नहीं हैं। तुम भारतवासियों को ही पहचान मिलती है फिर पहचान कम हो जाती है। अभी तुम बाप की पहचान सबको देते जाते हो। ढेरों को बाप की पहचान मिलेगी। तुम्हारा मुख्य चित्र है ही यह त्रिमूर्ति, गोला, झाड़। इनमें कितनी रोशनी है। यह तो कोई भी कहेंगे यह लक्ष्मी-नारायण सतयुग के मालिक थे। अच्छा, सतयुग के आगे क्या था? यह भी अभी तुम जानते हो। अभी है कलियुग का अन्त और है भी प्रजा का प्रजा पर राज्य। अभी राजाई तो है नहीं, कितना फर्क है। सतयुग के आदि में राजायें थे और अभी कलियुग में भी राजायें हैं। भल कोई वह पावन नहीं हैं परन्तु कोई पैसा देकर भी टाइटल ले लेते हैं। महाराजा तो कोई है नहीं, टाइटल खरीद कर लेते हैं। जैसे पटियाला का महाराजा, जोधपुर, बीकानेर का महाराजा……. नाम तो लेते हैं ना। यह नाम अविनाशी चला आता है। पहले पवित्र महाराजायें थे, अब हैं अपवित्र महाराजायें। अक्षर चला आता है। इन लक्ष्मी-नारायण के लिए कहेंगे यह सतयुग के मालिक थे, किसने राज्य लिया? अभी तुम जानते हो राजाई की स्थापना कैसे होती है। बाप कहते हैं मैं तुमको अभी पढ़ाता हूँ – 21 जन्मों के लिए। वह तो पढ़कर इसी जन्म में ही बैरिस्टर आदि बनते हैं। तुम अभी पढ़कर भविष्य महाराजा-महारानी बनते हो। ड्रामा प्लैन अनुसार नई दुनिया की स्थापना हो रही है। अभी है पुरानी दुनिया। भल कितने भी अच्छे-अच्छे बड़े महल हैं परन्तु हीरे-जवाहरातों के महल तो बनाने की कोई में ताकत नहीं है। सतयुग में यह सब हीरे-जवाहरातों के महल बनाते हैं ना। बनाने में कोई देरी थोड़ेही लगती है। यहाँ भी अर्थक्वेक आदि होती है तो बहुत कारीगर लगा देते हैं, एक-दो वर्ष में सारा शहर खड़ा कर देते हैं। नई देहली बनाने में करके 8-10 वर्ष लगे परन्तु यहाँ के लेबर और वहाँ के लेबर्स में तो फ़र्क रहता है ना। आजकल तो नई-नई इन्वेन्शन भी निकालते रहते हैं। मकान बनाने की साइन्स का भी ज़ोर है, सब कुछ तैयार मिलता है, झट फ्लैट तैयार। बहुत जल्दी-जल्दी बनते हैं तो यह सब वहाँ काम में तो आते हैं ना। यह सब साथ चलने हैं। संस्कार तो रहते हैं ना। यह साइंस के संस्कार भी चलेंगे। तो अब बाप बच्चों को समझाते रहते हैं, पावन बनना है तो बाप को याद करो। बाप भी गुडमॉर्निंग कर फिर शिक्षा देते हैं। बच्चे बाप की याद में बैठे हो? चलते फिरते बाप को याद करो क्योंकि जन्म-जन्मान्तर का सिर पर बोझा है। सीढ़ी उतरते-उतरते 84 जन्म लेते हैं। अभी फिर एक जन्म में चढ़ती कला होती है। जितना बाप को याद करते रहेंगे उतना खुशी भी होगी, ताकत मिलेगी। बहुत बच्चे हैं जिनको आगे नम्बर में रखा जाता है परन्तु याद में बिल्कुल रहते नहीं हैं। भल ज्ञान में तीखे हैं परन्तु याद की यात्रा है नहीं। बाप तो बच्चों की महिमा करते हैं। यह भी नम्बरवन में है तो जरूर मेहनत भी करते होंगे ना। तुम हमेशा समझो कि शिवबाबा समझाते हैं तो बुद्धियोग वहाँ लगा रहेगा। यह भी सीखता तो होगा ना। फिर भी कहते हैं बाबा को याद करो। किसको भी समझाने के लिए चित्र हैं। भगवान कहा ही जाता है निराकार को। वह आकर शरीर धारण करते हैं। एक भगवान के बच्चे सब आत्मायें भाई-भाई हैं। अभी इस शरीर में विराजमान हैं। सभी अकालमूर्त हैं। यह अकालमूर्त (आत्मा) का तख्त है। अकालतख्त और कोई खास चीज़ नहीं है। यह तख्त है अकालमूर्त का। भृकुटी के बीच में आत्मा विराजमान होती है, इसको कहा जाता है अकालतख्त। अकालतख्त, अकालमूर्त का। आत्मायें सब अकाल हैं, कितनी अति सूक्ष्म हैं। बाप तो है निराकार। वह अपना तख्त कहाँ से लाये। बाप कहते हैं मेरा भी यह तख्त है। मैं आकर इस तख्त का लोन लेता हूँ। ब्रह्मा के साधारण बूढ़े तन में अकाल तख्त पर आकर बैठता हूँ। अभी तुम जान गये हो सब आत्माओं का यह तख्त है। मनुष्यों की ही बात की जाती है, जानवरों की तो बात नहीं। पहले जो मनुष्य जानवर से भी बदतर हो गये हैं, वह तो सुधरें। कोई जानवर की बात पूछे, बोलो पहले अपना तो सुधार करो। सतयुग में तो जानवर भी बड़े अच्छे फर्स्टक्लास होंगे। किचड़ा आदि कुछ भी नहीं होगा। किंग के महल में कबूतर आदि का किचड़ा हो तो दण्ड डाल दे। ज़रा भी किचड़ा नहीं। वहाँ बड़ी खबरदारी रहती है। पहरे पर रहते हैं, कभी कोई जानवर आदि अन्दर घुस न सके। बड़ी सफाई रहती है। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में भी कितनी सफाई रहती है। शंकर-पार्वती के मन्दिर में कबूतर भी दिखाते हैं। तो जरूर मन्दिर को भी खराब करते होंगे। शास्त्रों में तो बहुत दन्त कथायें लिख दी हैं।

अभी बाप बच्चों को समझाते हैं, उनमें भी थोड़े हैं जो धारणा कर सकते हैं। बाकी तो कुछ नहीं समझते। बाप बच्चों को कितना प्यार से समझाते हैं – बच्चे, बहुत-बहुत मीठे बनो। मुख से सदैव रत्न निकलते रहें। तुम हो रूप-बसन्त। तुम्हारे मुख से पत्थर नहीं निकलने चाहिए। आत्मा की ही महिमा होती है। आत्मा कहती है – मैं प्रेजीडेण्ट हूँ, फलाना हूँ…….। मेरे शरीर का नाम यह है। अच्छा, आत्मायें किसके बच्चे हैं? एक परमात्मा के। तो जरूर उनसे वर्सा मिलता होगा। वह फिर सर्वव्यापी कैसे हो सकता है! तुम समझते हो हम भी पहले कुछ नहीं जानते थे। अभी कितनी बुद्धि खुली है। तुम कोई भी मन्दिर में जायेंगे, समझेंगे यह तो सब झूठे चित्र हैं। 10 भुजाओं वाला, हाथी की सूँढ़ वाला कोई चित्र होता है क्या! यह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री। वास्तव में भक्ति होनी चाहिए एक शिवबाबा की, जो सबका सद्गति दाता है। तुम्हारी बुद्धि में हैं – यह लक्ष्मी-नारायण भी 84 जन्म लेते हैं। फिर ऊंच ते ऊंच बाप ही आकर सबको सद्गति देते हैं। उनसे बड़ा कोई है नहीं। यह ज्ञान की बातें तुम्हारे में भी नम्बरवार धारण कर सकते हैं। धारणा नहीं कर सकते तो बाकी क्या काम के रहे। कई तो अन्धों की लाठी बनने के बदले अन्धे बन जाते हैं। गऊ जो दूध नहीं देती तो उसे पिंजरपुर में रखते हैं। यह भी ज्ञान का दूध नहीं दे सकते हैं। बहुत हैं, जो कुछ पुरूषार्थ नहीं करते। समझते नहीं कि हम कुछ तो किसका कल्याण करें। अपनी तकदीर का ख्याल ही नहीं रहता है। बस जो कुछ मिला सो अच्छा। तो बाप कहेंगे इनकी तकदीर में नहीं है। अपनी सद्गति करने का पुरूषार्थ तो करना चाहिए। देही-अभिमानी बनना है। बाप कितना ऊंच ते ऊंच है और आते देखो कैसे पतित दुनिया, पतित शरीर में हैं। उनको बुलाते ही पतित दुनिया में हैं। जब रावण दु:ख देते हैं तो बिल्कुल ही भ्रष्ट कर देते हैं, तब बाप आकर श्रेष्ठ बनाते हैं। जो अच्छा पुरूषार्थ करते हैं वह राजा-रानी बन जाते हैं, जो पुरूषार्थ नहीं करते वह गरीब बन जाते हैं। तकदीर में नहीं है तो तदबीर कर नहीं सकते। कोई तो बहुत अच्छी तकदीर बना लेते हैं। हर एक अपने को देख सकते हैं कि हम क्या सर्विस करते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) रूप-बसन्त बन मुख से सदैव रत्न निकालने हैं, बहुत-बहुत मीठा बनना है। कभी भी पत्थर (कटु वचन) नहीं निकालना है।

2) ज्ञान और योग में तीखा बन अपना और दूसरों का कल्याण करना है। अपनी ऊंच तकदीर बनाने का पुरूषार्थ करना है। अन्धों की लाठी बनना है।

वरदान:- सन्तुष्टता द्वारा सर्व से प्रशन्सा प्राप्त करने वाले सदा प्रसन्नचित भव
सन्तुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप में प्रसन्नता दिखाई देगी और जो सदा सन्तुष्ट वा प्रसन्न रहते हैं उनकी हर एक प्रशन्सा अवश्य करते हैं। तो प्रशन्सा, प्रसन्नता से ही प्राप्त कर सकते हो इसलिए सदा सन्तुष्ट और प्रसन्न रहने का विशेष वरदान स्वयं भी लो और औरों को भी दो क्योंकि इस यज्ञ की अन्तिम आहुति – सर्व ब्राह्मणों की सदा प्रसन्नता है। जब सभी सदा प्रसन्न रहेंगे तब प्रत्यक्षता का आवाज गूंजेगा अर्थात् विजय का झण्डा लहरायेगा।
स्लोगन:- डॉयमण्ड बन डॉयमण्ड बनने का मैसेज देना ही डॉयमण्ड जुबली मनाना है।

 

अव्यक्त इशारे:- एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ

एकान्तवासी बनना अर्थात् चारों ओर के वायब्रेशन से परे चले जाना। कई ऐसे होते हैं जिन्हें एकान्त पसन्द नहीं आता, संगठन में रहना, हंसना, बोलना ज्यादा पसन्द आता, लेकिन यह हुआ बाहरमुखता में आना। अभी अपने को एकान्तवासी बनाओ अर्थात् सर्व आकर्षण के वायब्रेशन से अन्तर्मुख बनो। अब समय ऐसा आ रहा है जो यही अभ्यास काम में आयेगा। अगर बाहर की आकर्षण के वशीभूत होने का अभ्यास होगा तो समय पर धोखा दे देगा।

मीठे बच्चे – यह रूहानी हॉस्पिटल तुम्हें आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी बनाने वाली है, यहाँ तुम देही-अभिमानी होकर बैठो

प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1: धन्धा आदि करते भी कौन-सा डायरेक्शन बुद्धि में याद रहना चाहिए?
उत्तर: बाप का डायरेक्शन है कि तुम किसी साकार वा आकार को याद न करो। केवल एक बाप की याद रहे तो विकर्म विनाश होंगे। इसमें कोई यह नहीं कह सकता कि फुर्सत नहीं। तुम धन्धा आदि करते हुए भी बाप को याद कर सकते हो।

प्रश्न 2: बाप को याद करने से क्या लाभ होता है?
उत्तर: बाप को याद करने से हमारे पाप भस्म होते हैं और आत्मा शुद्ध बनती है। इससे आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी स्थिति प्राप्त होती है।

प्रश्न 3: आत्मा का सही परिचय क्या है और इसे कौन समझाता है?
उत्तर: आत्मा एक अविनाशी स्टार है, जो बहुत सूक्ष्म है और इसे कोई देख नहीं सकता। इसका सही परिचय बाप ही आकर देते हैं और समझाते हैं कि आत्मा और शरीर अलग-अलग हैं।

प्रश्न 4: आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी बनने के लिए क्या करना आवश्यक है?
उत्तर: आधाकल्प के लिए एवरहेल्दी बनने के लिए बाप की याद में रहना और देही-अभिमानी स्थिति में रहकर आत्मा की शुद्धता बनाए रखना आवश्यक है।

प्रश्न 5: धर्म स्थापन का क्या क्रम है और कौन-कौन आते हैं?
उत्तर: धर्म स्थापन का क्रम ड्रामा अनुसार चलता है। विभिन्न धर्म स्थापन करने वाले अपने समय पर आते हैं, जैसे कि सत्ययुग में देवी-देवता धर्म, द्वापर में अन्य धर्मों की स्थापना होती है।

प्रश्न 6: बाप आकर किस प्रकार दुनिया को सतोप्रधान बनाते हैं?
उत्तर: जब दुनिया तमोप्रधान हो जाती है, तब बाप आकर सत्य ज्ञान द्वारा बच्चों को सतोप्रधान बनाते हैं, जिससे सतयुग की स्थापना होती है।

प्रश्न 7: बच्चों को ऊँच मर्तबा प्राप्त करने के लिए क्या पुरूषार्थ करना चाहिए?
उत्तर: ऊँच मर्तबा प्राप्त करने के लिए बाप की याद में रहना, ज्ञान और योग में तीव्र बनना तथा सेवा में आगे रहना आवश्यक है।

प्रश्न 8: बाप बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा देते हैं?
उत्तर: बाप कहते हैं – बच्चे, रूप-बसंत बनो, मुख से सदैव रत्न निकालो और कभी कटु वचन न बोलो। ज्ञान और योग में तीखा बनो तथा अंधों की लाठी बनो।

प्रश्न 9: कौन-सा अभ्यास अंतिम समय में बहुत सहायक होगा?
उत्तर: एकान्तप्रिय बनने और एकता व एकाग्रता को अपनाने का अभ्यास अंतिम समय में बहुत सहायक होगा। इससे बाहरी आकर्षण से मुक्त रहकर अन्तर्मुखता विकसित होगी।

प्रश्न 10: सतयुग और कलियुग के राजाओं में क्या अंतर है?
उत्तर: सतयुग के राजा पवित्र और सम्पूर्ण थे, जबकि कलियुग के राजा अपवित्र होते हैं और टाइटल भी धन देकर खरीदे जाते हैं।

प्रश्न 11: भगवान को सर्वव्यापी क्यों नहीं माना जाता?
उत्तर: भगवान सर्वव्यापी नहीं है क्योंकि वह एक निराकार ज्योति स्वरूप है और आत्माओं का बाप है। अगर वह सर्वव्यापी होता, तो सबकी सद्गति नहीं कर सकता था।

प्रश्न 12: कौन-से बच्चे नम्बरवन में आते हैं?
उत्तर: जो बच्चे बाप की याद में रहते हैं, ज्ञान और योग में तीव्र हैं तथा सेवा में आगे रहते हैं, वे बच्चे नम्बरवन में आते हैं।

प्रश्न 13: अकालतख्त का सही अर्थ क्या है?
उत्तर: अकालतख्त आत्मा का तख्त है, जो भृकुटी के बीच स्थित होता है। सभी आत्माएँ अकालमूर्त हैं और उनका तख्त शरीर में स्थित होता है।

प्रश्न 14: सतयुग में भवन निर्माण और सफाई व्यवस्था कैसी होती है?
उत्तर: सतयुग में हीरे-जवाहरातों के महल होते हैं, सफाई अत्यंत उच्च स्तर की होती है, और किसी भी प्रकार की गंदगी नहीं होती।

प्रश्न 15: सन्तुष्टता का क्या फल मिलता है?
उत्तर: जो बच्चे सन्तुष्ट रहते हैं, वे प्रसन्नचित रहते हैं और सब उनसे प्रसन्न होते हैं। सन्तुष्टता ही सर्व प्रशंसा प्राप्त करने का कारण बनती है।

प्रश्न 16: डॉयमंड जुबली मनाने का सही तरीका क्या है?
उत्तर: डॉयमंड बनकर डॉयमंड बनने का मैसेज देना ही डॉयमंड जुबली मनाना है।

प्रश्न 17: कौन-सा अभ्यास हमें धोखा देने से बचाएगा?
उत्तर: अन्तर्मुखी बनने का अभ्यास हमें बाहरी आकर्षणों से बचाएगा और अंतिम समय में धोखा नहीं देगा।

सार:

बाप बच्चों को समझाते हैं कि इस रूहानी हॉस्पिटल में आकर देही-अभिमानी बनो और एक बाप की याद में रहो। इससे विकर्म विनाश होंगे और आत्मा एवरहेल्दी बनेगी। सन्तुष्ट रहने से प्रसन्नता प्राप्त होगी और अन्तर्मुखी बनने का अभ्यास हमें अंतिम समय में धोखा देने से बचाएगा।

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