आत्मा-पदम (41)क्या चाहते हुए शरीर का त्याग कर सकते हैं? क्यों और कैसे?
P-A-41Can we give up our body if we wish? Why and how?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
आत्मा-पद्म (चुसतीस्वी परिचार)
कौन बनेगा पद्मा-पद्म पति?
सभी बनेंगे पद्मा-पद्म पति, जब जानेंगे ईश्वरीय सत्य ज्ञान के एक रत्न को।
आज का विषय:
क्या चाहते हुए शरीर का त्याग संभव है?
आप में से कोई चाहते हुए शरीर का त्याग कर सकता है? क्यों और कैसे?
चाहते हुए शरीर का त्याग नहीं कर सकते।
जब तक आत्मा का शरीर के साथ जुड़ा कोई भी अच्छा या बुरा कर्म पूरा नहीं होता, तब तक चाहकर भी आत्मा शरीर का त्याग नहीं कर सकती।
यह विधि परमात्मा द्वारा निर्धारित है। यह आत्मा के कर्म और उनके फल पर आधारित होती है। जब तक आत्मा का इस देह के साथ जुड़ा पार्ट समाप्त नहीं होता, त्याग संभव नहीं।
सतयुग में शरीर त्याग का कारण:
सतयुग में आत्मा स्वेच्छा और खुशी से शरीर त्यागती है। यह त्याग स्वाभाविक और सकारत्मक भावना से प्रेरित होता है। इसे वस्त्र बदलने के समान माना गया गया है।
जीव-घात पाप क्यों है?
शरीर की हत्या करना पाप है क्योंकि:
- यह दुख और परिस्थितियों से हारकर किया गया कृत्य होता है।
- यह स्वाभाविक या सकारत्मक नहीं होता।
- यह परिवार और समाज को दुखी करता है।
- जीवन के कर्तव्यों से भागें के कारण आत्मा पर पाप का भार चढ़ता है।
सतयुग में त्याग पाप क्यों नहीं है?
सतयुग में देह-त्याग प्राकृतिक प्रक्रिया के अंतर्गत होती है। आत्मा खुशी और समय के अनुसार शरीर त्यागती है। इससे किसी को दुख नहीं पौंचता।
आत्मघात महापाप क्यों है?
आत्मघात का अर्थ है आत्मा का परमात्मा और आत्मिक ज्ञान से अलग होना।
- इससे आत्मा अपने कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति से वंचित हो जाती है।
- यह पाप जीव-घात से भी बड़ा है क्योंकि यह आत्मा के भविष्य को अंधकारमय बना देती है।
जीव-घात और आत्मघात में अंतर:
- जीव-घात: शरीर का त्याग, दुख और परिस्थितियों के
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आत्मा-पद्म (चुसतीस्वी परिचार)
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: क्या चाहते हुए शरीर का त्याग कर सकते हैं?
उत्तर:नहीं, चाहते हुए शरीर का त्याग संभव नहीं है। जब तक आत्मा का शरीर के साथ जुड़ा कोई भी अच्छा या बुरा कर्म पूरा नहीं होता, आत्मा चाहकर भी शरीर का त्याग नहीं कर सकती। यह परमात्मा द्वारा निर्धारित विधि है जो आत्मा के कर्म और उनके फल पर आधारित होती है।
प्रश्न 2: सतयुग में आत्मा शरीर का त्याग कैसे करती है?
उत्तर:सतयुग में आत्मा स्वेच्छा और खुशी से शरीर त्यागती है। यह त्याग स्वाभाविक और सकारात्मक भावना से प्रेरित होता है। इसे वस्त्र बदलने के समान माना गया है, जिससे किसी को दुख नहीं पहुंचता।
प्रश्न 3: जीव-घात पाप क्यों है?
उत्तर:जीव-घात पाप इसलिए है क्योंकि:
- यह दुख और परिस्थितियों से हारकर किया गया कृत्य होता है।
- यह स्वाभाविक या सकारात्मक नहीं होता।
- यह परिवार और समाज को दुखी करता है।
- जीवन के कर्तव्यों से भागने के कारण आत्मा पर पाप का भार चढ़ता है।
प्रश्न 4: सतयुग में देह-त्याग पाप क्यों नहीं है?
उत्तर:सतयुग में देह-त्याग एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। आत्मा खुशी और समय के अनुसार शरीर त्यागती है। इससे किसी को दुख नहीं पहुंचता और यह प्रकृति के नियमों के अनुसार होता है।
प्रश्न 5: आत्मघात महापाप क्यों है?
उत्तर:आत्मघात का अर्थ है आत्मा का परमात्मा और आत्मिक ज्ञान से अलग होना।
- इससे आत्मा अपने कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति से वंचित हो जाती है।
- यह पाप जीव-घात से भी बड़ा है क्योंकि यह आत्मा के भविष्य को अंधकारमय बना देता है।
प्रश्न 6: जीव-घात और आत्मघात में क्या अंतर है?
उत्तर:
- जीव-घात: यह शरीर का त्याग है, जो दुख और परिस्थितियों के कारण किया जाता है।
- आत्मघात: यह आत्मा का परमात्मा और ज्ञान से अलग होना है, जो आत्मा के लिए अधिक विनाशकारी है।
प्रश्न 7: आत्मघात से बचने के लिए क्या उपाय हैं?
उत्तर:आत्मघात से बचने के लिए:
- परमात्मा से जुड़कर आध्यात्मिक ज्ञान और योग का अभ्यास करें।
- सकारात्मक चिंतन और सत्संग का सहारा लें।
- ईश्वरीय मार्गदर्शन को अपने जीवन में अपनाएं।
प्रश्न 8: कौन बनेगा पद्मा-पद्म पति?
उत्तर:सभी आत्माएं पद्मा-पद्म पति बन सकती हैं, जब वे ईश्वरीय सत्य ज्ञान के एक रत्न को समझें और अपने जीवन में लागू करें।
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