पदम-(20)उनके लिए कर्म और फल का विधि-विधान है?
P-20″Is there a rule of action and its results for them?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
कौन बनेगा पदम पदम पति?
अर्थात जिसके खाते में पदम पदम कर्म हैं। पदम कर्म का तात्पर्य है पवित्र कर्म।
पवित्र कर्म वे होते हैं जो परमात्मा के डायरेक्शन पर किए जाते हैं। जो भी कर्म परमात्मा के निर्देशानुसार होते हैं, वे पदम कर्म कहलाते हैं। हमारे खाते में ऐसे पदम कर्म जमा हों, इसके लिए यह आवश्यक है कि हम परमात्मा का सही परिचय प्राप्त करें और उनके द्वारा बताए गए कर्मों को समझें।
आत्मा और कर्मों का विधि-विधान
इस विषय पर चर्चा करने हेतु हमने यह मुरली मंथन का कार्यक्रम रखा है। इसमें हम बाबा के ज्ञान के महत्वपूर्ण प्रश्नों एवं सिद्धांतों पर मंथन करेंगे।
आज का विषय है:
- क्या जानवरों और अन्य योनि की आत्माओं के भी कर्मों का हिसाब-किताब होता है?
- क्या अन्य योनियां केवल भोग योनि हैं, या उनके लिए भी कर्म और फल का विधि-विधान है?
सभी आत्माओं के कर्मों का विधान समझना अत्यंत आवश्यक है। हमारा कर्म सिद्धांत सभी आत्माओं के लिए समान रूप से लागू होता है। चाहे वह मनुष्य हो, पशु हो, पक्षी हो, जीव-जंतु हो – सभी आत्माओं पर एक ही कर्म नियम लागू होता है।
कर्म और फल का सिद्धांत
जो करेंगे, वही मिलेगा। आत्मा जब परमधाम से आती है, तो उसके कर्मों के अनुसार उसे सुख और दुख का अनुभव करना पड़ता है। सुख-दुख का यह लेन-देन आत्मा के स्तर पर होता है।
मुख्य बिंदु:
- हर आत्मा को अपने कर्मों का फल स्वयं भोगना पड़ता है।
- परमात्मा किसी भी आत्मा के कर्मों को क्षमा नहीं कर सकते।
- आत्मा के सुख-दुख का आधार उसके अपने कर्म हैं।
- जो दूसरों को सुख देगा, उसे सुख मिलेगा। जो दूसरों को दुख देगा, उसे दुख मिलेगा।
- आत्मा का अनुभव उसकी योनि और बौद्धिक स्तर पर निर्भर करता है।
जानवरों और अन्य योनियों के कर्मों का विधान
जानवरों और अन्य योनियों के कर्म फल का प्रभाव उनके बौद्धिक और भावनात्मक स्तर के अनुसार होता है। उनके कर्मों का हिसाब-किताब भी उतना ही सटीक और न्यायपूर्ण होता है जितना मनुष्य आत्माओं का। दुनिया के सभी धर्म इस बात को स्वीकार करते हैं कि परमात्मा के घर अवश्य न्याय होगा। यह विश्व-नाटक के विधान का हिस्सा है।
निष्कर्ष
- कर्म और फल का सिद्धांत सभी आत्माओं पर लागू होता है, चाहे वे किसी भी योनि में हों।
- यह धारणा कि अन्य योनियां केवल भोग योनि हैं, सही नहीं है। उनके लिए भी कर्मों का विधान है।
- सुख-दुख का अनुभव और कर्मों का हिसाब-किताब विश्व-नाटक का अभिन्न हिस्सा है।
- अंततः, सभी आत्माओं को अपने कर्मों का पूरा हिसाब करके परमधाम लौटना होता है।
कयामत का समय और अंतिम न्याय
कई धर्मों में कयामत के दिन या जजमेंट डे का उल्लेख है। यह वह समय होगा जब सभी आत्माओं को उनके कर्मों का पूरा हिसाब मिलेगा। यह समय किसी को ज्ञात नहीं, परंतु विभिन्न धर्मों में इसके संकेत दिए गए हैं।
भविष्य में जब आत्माएं परमधाम में लौटेंगी, तो वे अपने मूल स्वरूप में, बिना किसी संकल्प के, पूर्ण शांति की अवस्था में रहेंगी। परमधाम में संकल्प नहीं होते, क्योंकि संकल्प केवल शरीर के साथ जुड़े होते हैं। जब आत्मा शरीर से मुक्त होती है, तो संकल्प भी समाप्त हो जाते हैं।
अतः हमें अपने कर्मों को ध्यानपूर्वक करना चाहिए, क्योंकि यही हमारे भविष्य को निर्धारित करते हैं।
आत्मा की यात्रा: शरीर छोड़ने के बाद
आत्मा का शरीर छोड़ना और नया जन्म
जब आत्मा शरीर छोड़ती है, तो वह किसी प्रकार का ट्रायल नहीं करती, बल्कि नए शरीर में प्रविष्ट हो जाती है। आत्मा के कर्मों का प्रभाव शरीर छोड़ते ही समाप्त हो जाता है। शरीर के साथ ही पुराने जीवन का कर्म संबंध भी समाप्त हो जाता है। आत्मा को पीछे मुड़कर देखने की आवश्यकता नहीं होती कि उसके परिजनों का क्या हुआ।
आत्मा का पुनर्जन्म और स्मृतियाँ
कभी-कभी आत्मा को पिछले जन्म की स्मृति आ सकती है, यह सब ड्रामा का ही हिस्सा होता है। उदाहरण के लिए, जब एक महिला सड़क पर खड़ी गाड़ी रोक रही थी, तो एक व्यक्ति ने उसे देखा और उसकी सहायता करने गया। नीचे उसने देखा कि एक मृत महिला गाड़ी के स्टेयरिंग में फंसी हुई थी, लेकिन उसी का सूक्ष्म शरीर सड़क पर खड़ा था। इस आत्मा का कार्य केवल बच्चे को सुरक्षित करना था, और कार्य पूरा होने पर वह अपने नए शरीर की ओर बढ़ गई।
परमधाम और शिव बाबा
परमधाम में कोई संकल्प नहीं होता। शिव बाबा भी जब कोई कार्य करना चाहते हैं, तो उन्हें शरीर का आधार लेना पड़ता है। जब वह ब्रह्मा बाबा के माध्यम से आते हैं, तभी उनका संकल्प कार्यरत होता है।
ड्रामा की सुनिश्चितता
हर आत्मा अपने निश्चित भाग के अनुसार ही कार्य करती है। आत्मा का पाट पहले से रिकॉर्ड किया हुआ होता है, और वह डिवाइन ड्रामा के अनुसार ही अपने कर्म निभाती है। परमात्मा स्वयं भी इस ड्रामा के नियमों के अनुसार ही कार्य करते हैं।
पशु-पक्षियों की आत्माएँ
जिस प्रकार मानव आत्माएँ कर्मों के अनुसार पुनर्जन्म लेती हैं, वैसे ही पशु-पक्षियों की आत्माएँ भी अपने कर्मों के अनुसार जन्म लेती हैं। यदि मनुष्य ने उनके साथ अत्याचार किया है, तो उसका प्रतिफल अवश्य मिलता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपने पालतू कुत्ते की बहुत अच्छी देखभाल कर रहा था, लेकिन जब उसने कुत्ते को माँस देने से मना कर दिया, तो कुत्ते ने उसी पर हमला कर दिया। यह घटना कर्मों के सिद्धांत को दर्शाती है।
प्रकृति और जीवों की संतुलित व्यवस्था
सतयुग में सभी जीवधारी पवित्रता और योगबल के आधार पर अपनी संतति उत्पन्न करते थे। परंतु आज तमोप्रधानता के कारण न केवल मनुष्य बल्कि पशु-पक्षी भी प्रभावित हो चुके हैं।
चीन का उदाहरण और प्रकृति के संतुलन का महत्व
1955 में चीन में एक शासक ने चिड़ियों, मच्छरों और चूहों को समाप्त करने का आदेश दिया। प्रारंभ में इससे लाभ हुआ, लेकिन कुछ वर्षों बाद अनाज का उत्पादन ठप हो गया और देश में भीषण अकाल पड़ गया। इससे यह सिद्ध होता है कि प्रकृति में सभी जीवधारियों का एक संतुलन होता है, और जब मनुष्य इस संतुलन को बिगाड़ता है, तो उसे उसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
निष्कर्ष
हर आत्मा को अपने कर्मों का हिसाब बराबर करना होता है। कोई भी आत्मा अपने भाग्य से अधिक या कम नहीं पा सकती। परमात्मा भी केवल मार्गदर्शन देते हैं, लेकिन कर्मों का निर्णय आत्मा स्वयं करती है। इस प्रकार, कर्म का सिद्धांत हर जीवधारी के लिए अटल और अपरिवर्तनीय है।
कौन बनेगा पदम पदम पति?
प्रश्न 1: पदम पदम कर्म किसे कहा जाता है?
उत्तर: वे कर्म जो परमात्मा के डायरेक्शन पर किए जाते हैं, उन्हें पदम पदम कर्म कहा जाता है।
प्रश्न 2: कर्मों का हिसाब-किताब किन-किन आत्माओं पर लागू होता है?
उत्तर: सभी आत्माओं पर – मनुष्य, पशु-पक्षी, जीव-जंतु आदि – कर्मों का विधान समान रूप से लागू होता है।
प्रश्न 3: क्या परमात्मा किसी आत्मा के कर्मों को क्षमा कर सकते हैं?
उत्तर: नहीं, परमात्मा किसी भी आत्मा के कर्मों को क्षमा नहीं करते, हर आत्मा को अपने कर्मों का फल स्वयं भोगना पड़ता है।
प्रश्न 4: अन्य योनियों के कर्मों का फल किस प्रकार मिलता है?
उत्तर: उनके बौद्धिक और भावनात्मक स्तर के अनुसार उनका कर्म फल मिलता है, और यह न्यायसंगत होता है।
प्रश्न 5: जब आत्मा शरीर छोड़ती है, तो क्या होता है?
उत्तर: आत्मा नए शरीर में प्रविष्ट हो जाती है और पुराने शरीर के कर्म संबंध समाप्त हो जाते हैं।
प्रश्न 6: परमधाम में आत्मा की स्थिति कैसी होती है?
उत्तर: परमधाम में आत्मा अपने मूल स्वरूप में होती है, जहाँ कोई संकल्प नहीं होते।
प्रश्न 7: क्या जानवरों को भी कर्मों का फल मिलता है?
उत्तर: हाँ, सभी जीवधारी अपने कर्मों के अनुसार फल भोगते हैं, चाहे वे मनुष्य हों या पशु-पक्षी।
प्रश्न 8: सतयुग में प्रकृति और जीवों की व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर: सतयुग में सभी जीवधारी पवित्रता और योगबल के आधार पर संतति उत्पन्न करते थे, जिससे संतुलन बना रहता था।
प्रश्न 9: चीन में 1955 की घटना से क्या सीखा जा सकता है?
उत्तर: जब प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ा जाता है, तो उसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं, जैसे कि चीन में पक्षियों को मारने से अनाज की कमी हो गई।
प्रश्न 10: परमात्मा का कार्य करने का तरीका क्या है?
उत्तर: परमात्मा शरीर के बिना संकल्प नहीं कर सकते, इसलिए वे किसी शरीर के माध्यम से कार्य करते हैं, जैसे ब्रह्मा बाबा के द्वारा।
निष्कर्ष:
हर आत्मा को अपने कर्मों का पूरा हिसाब करना पड़ता है। परमात्मा केवल मार्गदर्शन देते हैं, लेकिन कर्म करने का निर्णय आत्मा स्वयं करती है। कर्म और फल का नियम सभी जीवों पर समान रूप से लागू होता है।
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