P-P 59″ क्या सर्वशक्तिवान परमात्मा जो चाहे सो कर सकता है
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
1. Introduction:
“ओम शांति! आज का विषय है: क्या सर्वशक्तिमान परमात्मा जो चाहे, सो कर सकता है? यह सवाल अक्सर हमारे मन में उठता है, कि क्या परमात्मा की शक्ति इतनी असीमित है कि वह अपनी इच्छा के अनुसार कुछ भी कर सकता है? क्या उसकी शक्ति कोई सीमा जानती है? इस प्रश्न का उत्तर सीधे-साधे नहीं है, बल्कि यह हमें विश्व नाटक के गहरे सिद्धांतों की ओर ले जाता है।”
2. परमात्मा की सर्वशक्तिमत्ता के नियम:
“परमात्मा को सर्वशक्तिमान कहा जाता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वह अपनी इच्छा से कुछ भी कर सकता है। परमात्मा की सर्वशक्तिमत्ता के भी कुछ नियम हैं। वह सदा शुभ, कल्याणकारी और हितकारी कार्य करता है। उसकी शक्ति असीम है, लेकिन वह किसी भी कर्म को करने से पहले उस कर्म का उद्देश्य और उसके प्रभाव को ध्यान में रखता है। परमात्मा की हर क्रिया आत्माओं के उत्थान और भलाई के लिए होती है।”
3. विश्व नाटक अनादि और अविनाशी है:
“अब हमें यह समझना होगा कि यह सृष्टि एक अनादि और अविनाशी नाटक है। इस नाटक में हर आत्मा का पूर्व निर्धारित पार्ट होता है, जिसमें परमात्मा स्वयं भी शामिल है। हर आत्मा और परमात्मा अपने-अपने निर्धारित कर्तव्यों और भूमिकाओं का पालन करते हैं। यह नाटक 5000 वर्षों का रिकॉर्ड है, जिसमें कोई भी बदलाव या फर्क नहीं हो सकता। आत्मा हो या परमात्मा, सभी अपने-अपने निर्धारित कर्तव्यों को निभाते हैं।”
4. परमात्मा का मर्यादाओं में बंधा होना:
“हालांकि परमात्मा सर्वशक्तिमान है, वह इस विश्व नाटक की मर्यादाओं और विधि-विधान के अनुसार ही कर्म करता है। यह नाटक उच्च व्यवस्था और संतुलन पर आधारित है, जिसमें हर आत्मा को अपनी भूमिका निभानी होती है। परमात्मा कभी भी इस व्यवस्था और संतुलन का उल्लंघन नहीं करता। शिव बाबा (परमात्मा) कभी भी किसी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते हैं।“
5. परमात्मा का कार्य:
“परमात्मा का मुख्य उद्देश्य आत्माओं को उनके मूलभूत धर्म और मर्यादाओं की याद दिलाना है। वह हमें मर्यादा पुरुषोत्तम बनाता है और सिखाता है कि अपने जीवन को धर्म और सत्य के मार्ग पर कैसे अग्रसर किया जाए। परमात्मा की शिक्षा तीन महत्वपूर्ण पहलुओं पर आधारित है:
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आत्म ज्ञान – हमें आत्मा की सही जानकारी मिलती है।
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आत्म सम्मान – हमें अपने स्वमान की समझ आती है।
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आत्म विकास – आत्मा का आध्यात्मिक विकास होता है।”
6. मर्यादा के विपरीत कार्य ना करना:
“परमात्मा चाहे कितना भी सर्वशक्तिमान हो, वह विश्व नाटक की मर्यादाओं के विपरीत कार्य ना तो करता है, ना ही कर सकता है। यह उसकी महानता और न्यायप्रियता को दर्शाता है। परमात्मा की हर क्रिया सृष्टि के संतुलन और कल्याण को बनाए रखने के लिए होती है।”
7. निष्कर्ष:
“हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि परमात्मा सर्वशक्तिमान है, लेकिन उसकी शक्तियाँ और कार्य एक दिव्य मर्यादा और नियम के अंतर्गत आते हैं। वह स्वयं भी विश्व नाटक की मर्यादाओं के भीतर रहते हुए अपनी भूमिका निभाता है। परमात्मा की शिक्षा हमें यह सिखाती है कि हम भी अपनी भूमिका को श्रेष्ठ बनाएं और अपने कर्मों के माध्यम से सृष्टि में संतुलन और समरसता बनाए रखें।”