P-P 58″ क्या परमात्मा परमधाम से पुकार सुनता है?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“कौन बनेगा पद्मा पदम पति? सभी बनेंगे पद्मा पदम पति, जो बाबा की डायरेक्शन पर न्यारे और प्यारे होकर कर्म करेंगे। और वह कर्म करना हम जितना मंथन करेंगे, उतना हमें उस कर्म करने की भी समझ में आएगी और हम कर पाएंगे।”
1. Introduction:
“ओम शांति! आज का विषय है: क्या परमात्मा परमधाम से पुकार सुनता है? भक्ति मार्ग में अक्सर यह धारणा होती है कि परमात्मा परमधाम से भक्तों की पुकार सुनता है और उनकी मनोकामनाएं पूरी करता है। लेकिन क्या यह सच है? आइए, हम इस विषय पर विचार करें और समझें कि परमात्मा परमधाम से पुकार क्यों नहीं सुन सकता।”
2. परमधाम का स्वभाव:
“परमधाम वह स्थान है, जहाँ पूर्ण शांति और स्थिरता का वास होता है। वहाँ आत्माएँ स्थिर और अचल होती हैं, और यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें न वे कुछ सुन सकती हैं और न ही अनुभव कर सकती हैं। परमात्मा के पास कान नहीं होते, तो वह कैसे सुनेगा? परमधाम में आत्माएँ जड़ अवस्था में होती हैं, और यहाँ कोई पुकार नहीं होती। इसीलिए, यह कहना कि परमात्मा परमधाम से पुकार सुनता है, यह भक्ति मार्ग की एक भ्रांति है।”
3. संगम युग पर परमात्मा का साकार पार्ट:
“परमात्मा का कार्यकाल संगम युग पर शुरू होता है। जब वे ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर आत्माओं को पावन बनाने का कार्य करते हैं। यह वह समय होता है जब परमात्मा आकर सभी आत्माओं की पुकार सुनता है और उन्हें मुक्ति और जीवन मुक्ति का मार्ग दिखाता है। बाबा कहते हैं, ‘मैं तुम्हारी पुकार पर नहीं आता, मैं अपने टाइम पर आता हूँ।’ वह अपने निर्धारित समय पर आकर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं और आत्माओं को उनके जन्म सिद्ध अधिकार प्रदान करते हैं।”
4. परमात्मा का परिचय:
“परमात्मा सभी आत्माओं का अनादि, अविनाशी पिता है। वह कभी जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता, इसलिए उसकी शक्तियाँ भी अविनाशी हैं। वह हर आत्मा का पिता है और सभी की भलाई के लिए कार्य करता है। वह सभी आत्माओं को अपने ज्ञान से सशक्त करता है और उनके जीवन को पावन बनाता है।”
5. ड्रामा का नियम और ईश्वरीय प्रक्रिया:
“परमात्मा और आत्मा दोनों ड्रामा के अनुशासन के अंतर्गत कार्य करते हैं। कोई भी आत्मा या परमात्मा ड्रामा से बाहर नहीं जा सकते। हर कार्य ड्रामा अनुसार ही होता है, और कुछ भी इससे अलग नहीं हो सकता। भक्ति मार्ग में कहा जाता है कि परमात्मा भक्तों की पुकार सुनता है, लेकिन ज्ञान मार्ग के अनुसार, यह सत्य नहीं है। जो कुछ भी भक्तों को अनुभूति होती है, वह ड्रामा अनुसार होती है।”
6. परमात्मा और सांसारिक सुविधाएँ:
“परमात्मा संसार की कोई भी सांसारिक सुविधा किसी को नहीं देता। वह केवल आत्मा को ज्ञान प्रदान करता है, जिससे वह पावन बन सके। परमात्मा का उद्देश्य आत्माओं को अपनी वास्तविकता और आध्यात्मिकता का ज्ञान देना है, ताकि वे अपनी दिव्य शक्ति को पहचान सकें और माया पर विजय प्राप्त कर सकें।”
7. भक्ति मार्ग की वास्तविकता:
“भक्ति मार्ग में आत्मा माया के प्रभाव से भ्रमित हो जाती है। जब आत्मा माया के प्रभाव में होती है, तो उसे सत्य और असत्य का भेद समझ में नहीं आता। इस कारण से, लोग चोरी, झूठ, बेईमानी आदि को सामान्य मान लेते हैं। लेकिन ज्ञान मार्ग में आत्मा सत्य को समझती है और उसे अपनी जीवनशैली में उतारने का प्रयास करती है।”
8. माया पर विजय पाने के लिए शिव बाबा की शक्ति:
“परमात्मा, शिव बाबा, ज्ञान के माध्यम से आत्मा को माया पर विजय पाने की शक्ति देते हैं। वह हमें यह सिखाते हैं कि माया के प्रभाव से बाहर आकर हम अपनी दिव्य पहचान और शक्ति को समझें। परमात्मा की शक्ति से आत्मा माया पर विजय पाती है और अपने जीवन को पवित्र बनाती है।”
9. संगम युग पर आत्मा की यात्रा और परमात्मा का मार्गदर्शन:
“संगम युग पर परमात्मा आत्माओं को ज्ञान का बल और पावन बनने की विधि प्रदान करते हैं। सत्य ज्ञान आत्मा को माया से बचाकर उसे स्थिर करता है। जितना आत्मा श्रीमत पर चलेगी, उतनी ही वह सतयुग में आने के योग्य बनेगी। परमात्मा का मार्गदर्शन हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्मों को साकार बनाकर सृष्टि के संतुलन में भागीदार बनना चाहिए।”
10. निष्कर्ष:
“आज के विषय से हमें यह निष्कर्ष मिलता है:
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परमधाम में पुकार नहीं सुनी जाती।
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ड्रामा के नियम अनुसार ही सब कुछ चलता है।
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परमात्मा संगम युग पर ही अपना साकार पार्ट निभाता है।
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भक्ति मार्ग में आत्मा माया के प्रभाव में रहती है, जबकि संगम युग पर परमात्मा ज्ञान देकर आत्माओं को पावन बनाता है।
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परमात्मा का कार्यकाल सिर्फ संगम युग पर होता है, जहाँ वे ब्रह्मा तन में आकर आत्माओं को मार्गदर्शन देते हैं।
11. प्रेरणा:
“हमें परमात्मा को सत्य रूप में पहचानना चाहिए, विचारों का सागर मंथन करना चाहिए, और सत्य को आत्मसात करना चाहिए। संगम युग पर परमात्मा आत्माओं को पावन बनाकर सतयुग की स्थापना करता है। यही समय है जब हम अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाकर आत्मा को अपनी दिव्यता की ओर मार्गदर्शित कर सकते हैं।”