Ravana Rajya vs Ram Rajya (29) Why were there no pilgrimages, temples or hospitals in Satya Yuga?

रावण राज्य बनाम रामराज्य (29) सतयुग में तीर्थयात्रा,मंदिर या अस्पताल क्याें नहीं थे?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

YouTube player

सतयुग में तीर्थयात्रा, मंदिर या अस्पताल क्यों नहीं थे?

स्वर्ग की सच्ची पवित्रता की व्याख्या

“धर्म, कर्मकांड और दुख से परे की दुनिया: सतयुग का सच उजागर हुआ”

(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित)


भूमिका: आज की तीर्थयात्राओं की सच्चाई

क्या आपने कभी सोचा है कि आज की तीर्थयात्राएँ, जो आत्मिक शुद्धि के लिए होती हैं, वास्तव में क्या वही उद्देश्य पूरा कर पा रही हैं?

आज कई लोग तीर्थयात्रा पर भी शराब, नशा और वासनात्मक दृष्टिकोण लेकर जाते हैं। पवित्रता का नाम लेकर यात्रा पर निकलने वाले अनेक लोग वहाँ भी अपने पुराने कर्म नहीं छोड़ते।

यह चिंतन का विषय है: क्या ऐसी यात्रा आत्मा को शुद्ध कर सकती है?


कटु सत्य: तीर्थ अब ‘पवित्र’ नहीं रहे

  • कई धार्मिक स्थलों पर अनैतिक कार्य जैसे वेश्यावृत्ति भी पाई जाती है।

  • मंदिर, चर्च, मस्जिद – जहाँ आत्मा को शांति मिलनी चाहिए – वहाँ भी अब शोर, दिखावा और व्यावसायिकता है।

  • लोग मंदिर जाते हैं, मगर लौटकर फिर वही बुरे कर्म करते हैं।

 यह दर्शाता है कि हम एक आध्यात्मिक रूप से पतित युग में हैं – कलियुग में।


सवाल: सतयुग में तीर्थ क्यों नहीं थे?

ब्रह्माकुमारी ज्ञान कहता है कि सतयुग – स्वर्ण युग – एक ऐसी दुनिया थी जहाँ:

  • भगवान की पूजा नहीं होती थी, क्योंकि वहाँ भगवान के जैसा जीवन था।

  • कोई मंदिर नहीं थे, क्योंकि हर आत्मा स्वयं में देवता थी – चरित्रवान, पवित्र और दिव्य।

  • कोई तीर्थ नहीं थे, क्योंकि संपूर्ण भारत भूमि ही तीर्थभूमि थी – एक पवित्र स्वर्ग।

पूरी पृथ्वी एक “स्वर्गिक स्थान” थी।


सतयुग का जीवन: शुद्धता और पूर्णता का आदर्श

सतयुग में:

  • आत्माएँ शुद्ध, शांत और संतुष्ट थीं।

  • शरीर स्वस्थ, सुंदर और सदा युवा रहते थे।

  • न कोई रोग था, न कोई भय। इसलिए:

    • अस्पतालों की ज़रूरत नहीं थी।

    • दवाइयों, डॉक्टरों का नाम तक नहीं सुना जाता।

 न्याय की भी आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि:

  • कोई अपराध नहीं होता था,

  • न कोर्ट थे, न जेल।

 प्रकृति भी सहयोगी थी – समय पर वर्षा, भरपूर फसल, कोई प्राकृतिक आपदा नहीं।


मंदिर की आवश्यकता क्यों नहीं थी?

  • सतयुग में हर आत्मा ईश्वर के गुणों का प्रतीक थी।

  • सत्य, शांति, प्रेम, आनंद, पवित्रता – यही उनके स्वभाव थे।

  • इसलिए उन्हें भगवान को खोजने की आवश्यकता नहीं थी।

    • ईश्वर उनके जीवन में प्रत्यक्ष अनुभव के रूप में था – मंदिरों की मूर्तियों में नहीं।


आज की दुनिया क्यों अलग है?

  • आज की दुनिया “लौह युग” है – कलियुग

  • लोग शरीर-चेतना, वासना, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार में फँसे हुए हैं।

  • मंदिरों में भगवान को ढूँढते हैं, पर अपने जीवन में ईश्वर के गुणों को अपनाने में असमर्थ हैं।

 भगवान स्वयं कहते हैं – “मैं अब तुम्हें स्वयं राजयोग सिखाने आया हूँ – ताकि तुम फिर से देवता बनो।”


निष्कर्ष: स्वर्ग का द्वार अब खुला है

प्रिय आत्माओं,

  • सतयुग कोई कल्पना नहीं, कोई मिथक नहीं – यह वास्तविकता है।

  • वह दुनिया फिर से स्थापित हो रही है – आपके और मेरे माध्यम से।

  • इसके लिए हमें:

    • धर्म के बाहरी कर्मकांडों से परे जाकर,

    • राजयोग सीखना है,

    • और ईश्वर शिवबाबा से जुड़कर अपनी आत्मा को पवित्र बनाना है।

 यही आत्मिक यात्रा हमें उस स्वर्गिक जीवन के योग्य बनाती है, जहाँ:

  • मंदिर की आवश्यकता नहीं होती,

  • कोई दुख नहीं होता,

  • केवल आनंद, मौन और मुस्कान होती है।


शीर्षक पुनः

“सतयुग में तीर्थयात्रा, मंदिर या अस्पताल क्यों नहीं थे?”

“धर्म, कर्मकांड और दुख से परे की दुनिया: सतयुग का सच उजागर हुआ”

(ब्रह्माकुमारीज़ के ईश्वरीय ज्ञान के अनुसार)

प्रश्न 1: आज की तीर्थयात्राओं की वास्तविक स्थिति क्या दर्शाती है?

उत्तर:आज की तीर्थयात्राएँ केवल एक धार्मिक रस्म बनकर रह गई हैं। लोग वहाँ जाकर भी अपने दुर्व्यसनों को नहीं छोड़ते — जैसे शराब पीना, अहंकार या क्रोध। कई पवित्र स्थानों पर भी भ्रष्टाचार, वेश्यावृत्ति और अंधविश्वास खुलेआम होता है। यह दिखाता है कि यह कलियुग है – आत्मिक पतन और विकारों का युग।

प्रश्न 2: सतयुग और त्रेतायुग में तीर्थयात्राएँ क्यों नहीं होती थीं?

उत्तर:क्योंकि सतयुग में संपूर्ण पृथ्वी ही तीर्थ होती है। हर आत्मा स्वयं पवित्र होती है, और ईश्वर की अनुभूति जीवन के हर क्षण में होती है। वहाँ किसी विशेष स्थान की जरूरत नहीं होती। वहाँ “खोज” की नहीं, “अनुभव” की स्थिति होती है – क्योंकि ईश्वर की उपस्थिति आत्मा के भीतर ही महसूस होती है।

प्रश्न 3: अगर सतयुग में कोई मंदिर नहीं था, तो ईश्वर की भक्ति कैसे होती थी?

उत्तर:सतयुग में भक्ति नहीं, साक्षात अनुभव होता है। वहाँ ईश्वर के गुण आत्मा में ही प्रकट होते हैं। इसलिए किसी मूर्ति, मंदिर या पूजा-पाठ की आवश्यकता नहीं होती। वहाँ जीवन ही पूजा है – पवित्रता और दिव्यता से भरपूर।

प्रश्न 4: सतयुग में अस्पताल या डॉक्टर की जरूरत क्यों नहीं पड़ती?

उत्तर:क्योंकि वहाँ कोई रोग ही नहीं होता। हर आत्मा और उसका शरीर प्राकृतिक संतुलन और शुद्धता में होता है। प्रकृति और आत्मा, दोनों सामंजस्य में होते हैं। जीवन दीर्घायु, रोगमुक्त और सुखमय होता है – यह ही सच्चा स्वर्ग है।

प्रश्न 5: सतयुग में अदालत, जेल या कानून की आवश्यकता क्यों नहीं होती?

उत्तर:क्योंकि वहाँ कोई पाप, अन्याय या अपराध नहीं होता। हर आत्मा सत्य, प्रेम और अहिंसा में स्थित होती है। वहाँ न कोई झगड़ा होता है, न कोई धोखा – इसलिए वहाँ न्याय व्यवस्था की कोई आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 6: क्या सतयुग की दुनिया केवल कल्पना है?

उत्तर:नहीं, सतयुग कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक दिव्य यथार्थ है जिसे स्वयं ईश्वर शिव राजयोग के माध्यम से पुनः स्थापित कर रहे हैं। यह वही रामराज्य है जिसकी कल्पना महात्मा गांधी ने की थी – और जो अब आपकी मेरी आत्मा की पवित्रता के माध्यम से फिर से आने वाला है।

प्रश्न 7: उस सतयुगी दुनिया के लिए हम क्या कर सकते हैं?

उत्तर:हमें अब खाली कर्मकांड छोड़कर आत्मिक जीवन अपनाना होगा।

  • राजयोग सीखकर शिव बाबा से जुड़ना होगा।

  • अपने विचार, बोल और कर्मों को पवित्र बनाना होगा।

  • दूसरों को दुख देने की बजाय प्रेम और शांति देना होगा।
    यही रास्ता है उस स्वर्ग की ओर – जहाँ कोई मंदिर, तीर्थ या अस्पताल नहीं होते – क्योंकि सब कुछ पहले से ही सम्पूर्ण होता है।

निष्कर्ष

अब समय है सत्य को स्वीकारने का,
और अपने जीवन को स्वर्ग की दिशा में मोड़ने का।
ईश्वर स्वयं आए हैं – आपको उस नई दुनिया का निर्माता बनाने।

सतयुग, स्वर्ग की सच्चाई, स्वर्ग क्या है, ब्रह्माकुमारीज ज्ञान, सतयुग में मंदिर क्यों नहीं थे, सतयुग में अस्पताल क्यों नहीं थे, तीर्थयात्रा का सच, कलियुग बनाम सतयुग, धर्म का पतन, सतयुग का जीवन, ब्रह्माकुमारी शिवबाबा, राजयोग मेडिटेशन, सतयुग की दुनिया, सतयुग और त्रेतायुग, ईश्वरीय ज्ञान, शिव बाबा का संदेश, पवित्रता की शक्ति, ब्रह्माकुमारी आध्यात्मिक ज्ञान, स्वर्ग का जीवन, स्वर्ण युग की व्याख्या, धर्म और कर्मकांड, सच्चा रामराज्य, गांधीजी का सपना, नई दुनिया का आरंभ, ब्रह्माकुमारी सतयुग ज्ञान, आध्यात्मिक जागृति, आत्मज्ञान, स्वच्छ भारत स्वर्ग भारत, शांति और पवित्रता, आत्मा का सच्चा स्वरूप,

Satyug, Truth of Heaven, What is Heaven, Brahma Kumaris Knowledge, Why there were no temples in Satyug, Why there were no hospitals in Satyug, Truth of Pilgrimage, Kaliyug vs Satyug, Decline of Religion, Satyug Life, Brahma Kumari Shiv Baba, Rajyoga Meditation, Satyug World, Satyug and Treta Yug, Divine Knowledge, Shiv Baba’s Message, Power of Purity, Brahma Kumari Spiritual Knowledge, Heavenly Life, Explanation of Golden Age, Religion and Rituals, True Ram Rajya, Gandhiji’s Dream, Beginning of New World, Brahma Kumari Satyug Knowledge, Spiritual Awakening, Self-Knowledge, Clean India Heaven India, Peace and Purity, True Nature of Soul,