सहज राजयोग कोर्स 03 दिवस ब्रह्मा कुमारीज
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“समय, आत्मा और परमात्मा: ड्रामा का रहस्य और हमारी भूमिका |
प्रस्तावना: ओम् शांति
आज हम राजयोग के पाठों में एक ऐसे चिंतन में प्रवेश कर रहे हैं, जो आत्मा, समय और परमात्मा — इन तीन अनादि तत्वों के संबंध और ड्रामा के शाश्वत चक्र को उजागर करता है।
हमने कई प्रश्न उठाए हैं — चित्रगुप्त कौन है? कर्म कौन लिखता है? समय की वैल्यू क्यों नहीं समझी जाती?
इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक ही स्थान पर मिलता है — जब हम समझते हैं ड्रामा की सटीकता और परमात्मा की भूमिका।
1. क्या चित्रगुप्त सचमुच कर्मों को लिखते हैं?
हमने सुना है कि चित्रगुप्त कर्मों का लेखा रखते हैं। परंतु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो चित्रगुप्त कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि हमारी बुद्धि में बैठा रिकॉर्डिंग यंत्र है।
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हर कर्म संकल्प के रूप में आत्मा में रिकॉर्ड होता है।
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यह आत्मिक हार्डडिस्क हर कल्प वही रिकॉर्ड प्ले करती है।
चित्रगुप्त = आत्मा की स्मृति का यंत्र।
2. समय, आत्मा और परमात्मा — तीन अनादि तत्व
कई भाई-बहनों का प्रश्न था कि —
“समय, आत्मा और परमात्मा — ये तीनों क्या बराबर हैं?”
उत्तर है:
हाँ, तीनों अनादि, अविनाशी और अपरिवर्तनीय हैं।
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आत्मा पतित-पावन बनती है,
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समय कलयुगी से सतयुगी बनता है,
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लेकिन परमात्मा सदा शुद्ध और अकलुष रहता है।
फिर भी, तीनों के बिना ड्रामा अधूरा है।
जैसे मकान की एक छोटी ईंट भी आवश्यक है, वैसे ही ये तीन तत्व मिलकर पूर्ण ब्रह्मांडीय व्यवस्था बनाते हैं।
3. मुर्गी पहले या अंडा? — समय और युगों की गहराई
एक रोचक प्रश्न आया —
“पहले सतयुग था या त्रेता? पहले कौन?”
यह वैसा ही है जैसे पूछना — “पहले अंडा था या मुर्गी?”
उत्तर:
यह सृष्टि एक चक्र है — कहीं से भी शुरू करो, शुरुआत वहीं आकर समाप्त होती है।
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सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग और संगम — सबका क्रम चक्रीय है।
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यह घड़ी के बारह घंटों की तरह दोहराव वाला शाश्वत ड्रामा है।
4. हर समय अंडा भी है और मुर्गी भी है
यह ब्रह्मा बाबा की विशेष शिक्षा है —
“ड्रामा में हर स्थिति साथ-साथ विद्यमान है।”
जैसे न्यूटन का नियम है —
“जो चल रहा है, चलता रहेगा जब तक कोई उसे रोके न।”
वैसे ही यह सृष्टि ड्रामा बनी बनाई बन रही है, अब कुछ बननी नहीं है।
हम जो जी रहे हैं, वह पहले रिकॉर्ड किया हुआ है।
जो आज हो रहा है, वह अगले कल्प के लिए रिकॉर्ड हो रहा है।
5. क्या समय को भी उतनी ही वैल्यू दी जानी चाहिए जितनी परमात्मा को?
हां। समय को हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं,
जबकि वह परमात्मा के आने का मंच है।
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संगम युग का समय ही हमें परमात्मा से मिलाता है।
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इसलिए इस “समय देवता” को भी उतनी ही श्रद्धा दी जानी चाहिए।
6. ड्रामा की वैज्ञानिक व्याख्या — न्यूटन और बॉल मॉडल से समझें
जैसे एक बॉल दूसरी को टकराती है, फिर तीसरी को —
और एक निरंतर चेन रिएक्शन चलता है,
वैसे ही कर्म, उसकी प्रतिक्रिया और पुनः प्रतिक्रिया — यह चक्र चलता रहता है।
इसलिए ड्रामा अचल है।
हर कर्म की प्रतिक्रिया होगी और वही अगले कर्म की प्रेरणा बनेगी।
7. उत्तर तभी मिलेंगे जब जानने वाला समझ में आए
एक सुंदर उदाहरण —
अगर कोई कहे “कल छुट्टी है,” तो हम सबसे पहले पूछते हैं —
“किसने कहा?”
जब तक हमें ये न पता हो कि कहने वाला पीएम है या कोई प्रामाणिक व्यक्ति — हम मानते नहीं।
इसी तरह, जब तक हमें निश्चय नहीं होगा कि यह ज्ञान देने वाला परमात्मा है — तब तक हमारे प्रश्न शांत नहीं होंगे।
निष्कर्ष: जब जानने वाला “परमात्मा” हो, तब ही आत्मा को समाधान मिलता है
हम सब प्रश्नों का समाधान तब होता है —
जब हमें यह अनुभव होता है कि सिखाने वाला, बताने वाला, ब्रह्मांड का ज्ञानी — स्वयं परम पिता परमात्मा शिव हैं।
“समय, आत्मा और परमात्मा: ड्रामा का रहस्य और हमारी भूमिका |
प्रश्न 1: क्या चित्रगुप्त सच में हमारे कर्मों को लिखते हैं?
उत्तर:नहीं। चित्रगुप्त कोई व्यक्ति नहीं है, बल्कि यह हमारी आत्मा की बुद्धि रूपी रिकॉर्डिंग मशीन है, जिसमें हर संकल्प और कर्म स्वतः रिकॉर्ड हो जाता है।
हर कल्प वही रिकॉर्डिंग दोहराई जाती है।
चित्रगुप्त = आत्मा की स्मृति का यंत्र।
प्रश्न 2: क्या समय, आत्मा और परमात्मा तीनों बराबर हैं?
उत्तर:हाँ, ये तीनों अनादि, अविनाशी और अपरिवर्तनीय तत्व हैं।
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आत्मा पतित से पावन बनती है।
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समय भी कलयुगी से सतयुगी बनता है।
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परंतु परमात्मा सदा पावन और निराकार रहता है।
तीनों ही ड्रामा की पूर्णता के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न 3: पहले कौन था — सतयुग या त्रेता? अंडा या मुर्गी?
उत्तर:यह प्रश्न सृष्टि चक्र की गहराई को दर्शाता है।
जैसे घड़ी में 1 बजे के बाद 2 और फिर 3 बजता है, वैसे ही युग चक्रीय क्रम में चलते हैं।
सृष्टि चक्र में कोई शुरुआत नहीं — यह निरंतर चलने वाला घूर्णन है।
प्रश्न 4: “हर समय अंडा और मुर्गी दोनों होते हैं” — इसका क्या अर्थ है?
उत्तर:इसका अर्थ है कि सभी अवस्थाएं ड्रामा में साथ–साथ मौजूद रहती हैं।
जैसे न्यूटन का नियम कहता है —
“जो गति में है, वह गति में रहेगा”,
वैसे ही सृष्टि का ड्रामा लगातार दोहराता है — न कुछ नया बनता है, न कुछ मिटता है।
प्रश्न 5: क्या समय को उतनी ही वैल्यू मिलनी चाहिए जितनी परमात्मा को?
उत्तर:जी हां।
समय ही वह मंच है जिस पर परमात्मा अवतरित होते हैं।
विशेषकर संगम युग — जो आत्मा और परमात्मा के मिलन का काल है — उसे अत्यंत मूल्यवान समझा जाना चाहिए।
प्रश्न 6: न्यूटन और बॉल मॉडल से ड्रामा को कैसे समझें?
उत्तर:जैसे एक बॉल दूसरी को टकरा कर गति देती है, फिर तीसरी…
उसी प्रकार, हर कर्म की प्रतिक्रिया होती है, और वह प्रतिक्रिया भी अगली क्रिया का कारण बनती है।
यह कर्म-प्रतिकर्म की श्रृंखला ही ड्रामा की निरंतरता है।
प्रश्न 7: हमारे प्रश्नों का समाधान कब होता है?
उत्तर:जब हमें यह साक्षात्कार होता है कि ज्ञान देने वाला परमात्मा शिव है,
तभी हमारे मन के सभी प्रश्न शांत होते हैं।
विश्वास के बिना उत्तर अधूरे लगते हैं।
निष्कर्ष प्रश्न:
क्यों कहा गया है कि आत्मा को समाधान तभी मिलता है जब जानने वाला ‘परमात्मा’ हो?
उत्तर:क्योंकि सभी सृष्टि, काल, कर्म और आत्मा का पूर्ण और सटीक ज्ञान केवल परमात्मा शिव बाबा ही देते हैं।
जब आत्मा यह अनुभव करती है कि सिखाने वाला अलौकिक शिक्षक है, तभी उसे संपूर्ण समाधान और शांति प्राप्त होती है।
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