सतयुग-(26)”सतयुग दु:खरहित दुनिया जहां हर आत्मा राजयोगी होती है”
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“सतयुगी दुनिया की रूपरेखा – पूर्णता, रॉयल्टी और दिव्यता की कहानी”
(Brahma Kumaris Spiritual Vision of Heaven – Explained in Hindi)
सतयुगी दुनिया की रूपरेखा – पूर्णता, रॉयल्टी और दिव्यता की कहानी
प्रस्तावना:
साथियों,
आज हम उस स्वर्णिम दुनिया की झलक देखने जा रहे हैं जिसे परमात्मा शिव ‘सुखधाम’ कहते हैं।
यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि वह वास्तविकता है जिसे परमात्मा संगमयुग पर पुनः स्थापित कर रहे हैं।
सतयुग – एक ऐसी दुनिया:
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जहाँ कोई दुख नहीं,
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कोई तनाव नहीं,
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कोई द्वंद, अशांति या अपराध नहीं।
हर आत्मा वहाँ होती है – राजयोगी, दिव्य, और पूर्ण।
1. सतयुग – जहां दुख का नामोनिशान नहीं
बाबा ने स्पष्ट कहा है:
“सतयुग दुखरहित दुनिया है।”
वहाँ:
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न कोई बीमारी है,
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न कोई भय या असुरक्षा,
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न ईर्ष्या, न हीनता, न क्रोध।
गरीब और साहूकार दोनों वहाँ होते हैं,
लेकिन दोनों ही सुखी होते हैं – क्योंकि:
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वहाँ संसाधनों की कमी नहीं होती,
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वहाँ संपन्नता का मतलब है आत्मिक संतुष्टि।
2. राजयोगी आत्माएं – कर्म इंद्रियों की मालिक
सतयुग की आत्माएं केवल शरीरधारी नहीं होतीं,
वे इंद्रियों की स्वामी आत्माएं होती हैं।
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कोई विकार – क्रोध, लोभ, मोह – वहाँ नहीं होते।
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हर कर्म मर्यादा और प्रेम से होता है।
यह होती है राजयोग की प्राप्ति –
जहाँ आत्मा और शरीर दोनों दिव्यता में रहते हैं।
3. नंबरवार आत्माएं, पर दुखरहित स्थिति
हाँ, सतयुग में भी आत्माएं नंबरवार होती हैं –
लेकिन वहाँ:
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कोई तुलना नहीं होती।
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कोई ईर्ष्या या प्रतिस्पर्धा नहीं होती।
हर आत्मा:
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अपनी स्थिति में संतुष्ट होती है,
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और दूसरों की शुभभावना रखती है।
यही होती है सत्य सामाजिक समरसता।
4. सतयुगी रॉयल्टी – कृष्ण का दिव्य नृत्य
श्रीकृष्ण के रास-नृत्य को सतयुग में एक दिव्य पर्व माना जाता है।
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यह केवल शरीर का नृत्य नहीं होता,
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यह होता है दिव्य आत्माओं का उल्लासपूर्ण मिलन।
वहाँ की रॉयल फैमिली:
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सुरुचिपूर्ण, मर्यादित और सेवाभावी होती है।
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शासन नहीं, वहाँ प्रेम से सेवा होती है।
यही होती है सतयुगी रॉयल्टी की गरिमा।
5. “गोल्डन स्पून इन माउथ” – सतयुग की सच्चाई
आज यह कहावत है –
“जन्म लेते ही स्वर्णचम्मच मुंह में होना।”
पर सतयुग में यह वास्तविकता है:
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दिव्य शरीर, दिव्य वातावरण,
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स्वर्णमहल, सात्विक भोजन,
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और संतुलित रिश्ते।
वहाँ जन्म लेना ही सौभाग्य है।
हर आत्मा देवता कुल में आती है।
6. धर्म नहीं, धारणा – सतयुग का नैतिक आधार
सतयुग में:
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कोई अलग-अलग धर्म नहीं होते,
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वहाँ होती है – धारणा।
हर आत्मा के संस्कारों में ही धर्म बसा होता है –
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पवित्रता,
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सत्यता,
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दिव्यता — ये सब स्वाभाविक होते हैं।
वहाँ नैतिकता के लिए कोई कानून नहीं चाहिए –
क्योंकि हर आत्मा आत्मिक कानून के अनुसार चलती है।
समापन:
साथियों,
सतयुग कोई कल्पना नहीं,
वह है परमात्मा द्वारा पुनः रची जा रही एक स्वर्णिम दुनिया।
आज हम जो राजयोग द्वारा आत्मा को पवित्र बना रहे हैं,
वही पुरुषार्थ हमें वहाँ का राजा-रानी बनाता है।
तो आइए —
आज से ही उस दिव्यता को धारण करें,
और उस रॉयल आत्मिक संस्कृति के निर्माता बनें।
“सतयुग की स्थापना हमारे श्रेष्ठ संकल्पों से ही होती है।”
सतयुगी दुनिया की रूपरेखा – पूर्णता, रॉयल्टी और दिव्यता की कहानी
प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
Q1: सतयुगी दुनिया को ‘सुखधाम’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:क्योंकि सतयुग में न कोई दुख होता है, न बीमारी, न डर, न तनाव। हर आत्मा आनंद, संतुलन और दिव्यता में स्थित होती है। वह एक ऐसी दुनिया है जहां हर आत्मा राजयोगी होती है – इसलिए उसे सुखधाम कहा जाता है।
Q2: क्या सतयुग में भी गरीब और साहूकार होते हैं? यदि हाँ, तो वे दुखी क्यों नहीं होते?
उत्तर:हाँ, सतयुग में गरीब और साहूकार दोनों होते हैं, पर कोई भी दुखी नहीं होता। क्योंकि वहां की गरीबी भी रॉयल्टी और दिव्यता से भरपूर होती है। और अमीरी में अहंकार नहीं, सेवा भावना होती है। सभी आत्माएं संतुष्ट रहती हैं।
Q3: ‘राजयोगी आत्मा’ का क्या अर्थ है, और सतयुग में सभी आत्माएं कैसे राजयोगी होती हैं?
उत्तर:‘राजयोगी आत्मा’ का अर्थ है – जो अपनी कर्म इंद्रियों की मालिक हो। सतयुग में सभी आत्माएं विकार रहित होती हैं – क्रोध, लोभ, मोह नहीं होता। उनका हर कर्म मर्यादा और पवित्रता से प्रेरित होता है।
Q4: सतयुग में आत्माएं नंबरवार होती हैं, तो क्या कोई दुखी होता है?
उत्तर:नहीं। सतयुग में नंबरवारता होती है, पर कोई ईर्ष्या, तुलना या हीनता नहीं होती। हर आत्मा अपनी स्थिति में पूर्ण और संतुष्ट होती है। वहां सम्मान और संतुलन की भावना होती है।
Q5: श्रीकृष्ण का डांस क्या दर्शाता है? क्या वह कल्पना है या वास्तविकता?
उत्तर:श्रीकृष्ण का डांस सतयुग की रॉयल फैमिली की दिव्यता और उल्लास का प्रतीक है। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि सतयुग के राजकुमार-राजकुमारियों के दिव्य जीवन की झलक है – जो मर्यादा, गरिमा और सेवा से परिपूर्ण होता है।
Q6: “गोल्डन स्पून इन माउथ” की सतयुगी सच्चाई क्या है?
उत्तर:आज यह एक कहावत है, पर सतयुग में यह वास्तविकता होती है। वहां जन्म लेना ही सौभाग्य होता है। आत्माएं श्रेष्ठ कुल में जन्म लेती हैं, और तन-मन-संपत्ति की कोई कमी नहीं होती। हर आत्मा का जीवन सेवा, दिव्यता और संतुलन से भरा होता है।
Q7: सतयुग में ‘धर्म’ नहीं होता, तो नैतिकता कैसे बनी रहती है?
उत्तर:सतयुग में ‘धारणा’ ही धर्म होती है। वहां पवित्रता और दिव्यता आत्मा के स्वाभाविक संस्कार होते हैं। इसलिए वहां कोई विशेष नियम या प्रयास नहीं करना पड़ता – नैतिकता आत्मा के स्वभाव में समाई होती है।
Q8: क्या आज के कर्म हमारे सतयुगी भविष्य को बनाते हैं?
उत्तर:हाँ। आज जो आत्मा ज्ञान और योग से पावन बन रही है, वही सतयुग में राजा और रानी बनेगी। बाबा की श्रीमत के अनुसार चलने से आत्मा पुनः सतयुगी दुनिया की निर्माता बनती है।
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