सतयुग-(31)जहाँ सभी आत्माएँ सद्गति मे होती हैं
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
सतयुग — जहाँ सभी आत्माएँ सद्गति में होती हैं | सद्गति का रहस्य | Brahma Kumaris Q&A Series
जहाँ सभी आत्माएँ सद्गति में होती हैं
1. सतयुग: सद्गति की दुनिया
सतयुग को कहा गया है — “सद्गति की दुनिया”
जहाँ आत्माएँ जन्म से ही पवित्र, सतोप्रधान और दिव्य होती हैं।
वहाँ कोई पतित नहीं होता, इसलिए किसी को पावन बनने के लिए गुरु की आवश्यकता नहीं पड़ती।
आज के कलियुग में हम पतित होकर मोक्ष या शान्ति की खोज में गुरुओं की शरण में जाते हैं,
पर सतयुग में आत्मा स्वयं ही ईश्वरीय स्थिति में स्थित होती है।
2. देवता: गुणों की मूर्तियाँ
सतयुग में आत्माएँ देवता कहलाती हैं।
वे किसी से ज्ञान लेने नहीं जाते,
बल्कि वे स्वयं ही ज्ञान, प्रेम और पवित्रता की चलती-फिरती प्रतिमाएं होती हैं।
उनकी आत्मिक स्थिति इतनी श्रेष्ठ होती है कि उन्हें गुरु या मार्गदर्शक की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
3. मात-पिता का बच्चों को सम्मान
सतयुग में एक दिव्य दृश्य देखने को मिलता है —
“मात-पिता अपने बच्चों के चरण धोकर उन्हें तख्त पर बिठाते हैं।”
यह कोई अंधभक्ति नहीं, बल्कि उस युग की श्रद्धा, स्नेह और आत्मा-दर्शन को दर्शाता है।
हर आत्मा वहाँ आत्मिक समानता और सम्मान से देखी जाती है।
ना अहंकार, ना ईर्ष्या — केवल स्नेह और आत्मिक सौहार्द।
4. गुरु की आवश्यकता क्यों नहीं?
गुरु की आवश्यकता तब होती है जब आत्मा:
-
पतित होती है
-
मार्ग भटक जाती है
-
मोक्ष या शांति की खोज में होती है
परंतु सतयुग में:
आत्मा पहले से ही सद्गति में स्थित होती है
हर आत्मा स्वधर्म, आत्मगुण और दिव्यता में स्थित होती है
इसलिए वहाँ कोई धर्म-गुरु, मठ, सम्प्रदाय या साधु-संत नहीं होते।
हर आत्मा स्वयं आत्म-गुणों से प्रकाशित होती है।
5. सद्गति की दुनिया: पवित्रता, प्रेम और सहजता
सतयुग को कहा जाता है:
सुखधाम का प्रकट रूप
शान्तिधाम का अनुभव क्षेत्र
वहाँ के रिश्ते, व्यवहार और संस्कार दिव्यता से परिपूर्ण होते हैं।
सद्गति का अर्थ है:
आत्मा का अपने सर्वोच्च स्वरूप में स्थित होना
जहाँ न दुख है, न विकार, न मोह, न अधर्म
6. संगमयुग: पतित से पावन बनने का समय
अब हम उस महान समय पर हैं —
जहाँ कलियुग समाप्त हो रहा है और सतयुग की स्थापना हो रही है।
इस संगम पर परमात्मा शिव स्वयं आकर हमें फिर से सद्गति का मार्ग दिखा रहे हैं।
यह जीवन अब ईश्वरीय विश्वविद्यालय बन चुका है
जहाँ हम फिर से वही स्थिति पा सकते हैं —
देवता बनने की, जो किसी गुरु के नहीं, अपने आत्मगुणों के आधार पर जीते हैं।
7. अंतिम प्रेरणा: स्वयं बनो योगी, स्वयं बनो पावन
आज जो हम राजयोग से पावन बनने का अभ्यास कर रहे हैं,
वही भविष्य में हमारी प्राकृतिक स्थिति बन जाएगी।
जहाँ कोई पतित न हो, वहाँ किसी को पावन बनाने वाला गुरु भी न हो।
ऐसा दिव्य राज्य ही सतयुग कहलाता है।
आइए, इस ज्ञान से अपनी आत्मा को फिर से उसी स्वधर्म में स्थित करें
और बाबा से सीधा योग जोड़ें
ताकि हम भी उस सद्गति के राज्य के अधिकारी बन सकें।
प्रश्न 1:सतयुग को “सद्गति की दुनिया” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:क्योंकि सतयुग में हर आत्मा पवित्र, सतोप्रधान और दिव्य होती है। वहाँ कोई पतितता नहीं होती, इसलिए सभी आत्माएँ पहले से ही सद्गति को प्राप्त होती हैं। दुख, मोह या अधर्म का नाम-निशान नहीं होता।
प्रश्न 2:अगर सतयुग में सभी आत्माएँ पावन होती हैं, तो क्या वहाँ किसी गुरु की ज़रूरत होती है?
उत्तर:नहीं। सतयुग में किसी गुरु की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि वहाँ कोई पतित नहीं होता जिसे पावन बनाने की आवश्यकता हो। गुरु तो तब चाहिए जब आत्मा भटक जाए या अधर्म में चली जाए।
प्रश्न 3:सतयुग में माता-पिता अपने बच्चों के पैर क्यों धोते हैं?
उत्तर:यह वहाँ की दिव्यता और आत्मिक सम्मान का प्रतीक है। वहाँ हर आत्मा को देवतुल्य समझा जाता है। माता-पिता बच्चों को आत्मा समझकर श्रद्धा और प्रेम से देखते हैं, और इस भाव में उनके पैर धोकर तख्त पर बैठाते हैं — यह अहंकार-रहित सम्मान का उदाहरण है।
प्रश्न 4:क्या सतयुग में कोई धर्म, सम्प्रदाय या साधु-संत होते हैं?
उत्तर:नहीं। सतयुग में न कोई धर्म-गुरु होते हैं, न सम्प्रदाय, न ही मठ या साधु-संत। वहाँ की आत्माएँ पहले से ही अपने स्वधर्म और सतोप्रधान अवस्था में स्थित होती हैं। उन्हें बाहरी मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।
प्रश्न 5:सतयुग की आत्माएँ कैसे जीवन जीती हैं?
उत्तर:वे स्वधर्म में स्थित होकर प्रेम, पवित्रता और सामंजस्य से भरा जीवन जीती हैं। उनके सभी संबंध, व्यवहार और संस्कार दिव्यता से युक्त होते हैं। वहाँ हर कर्म धर्मयुक्त और कल्याणकारी होता है।
प्रश्न 6:आज के समय में, जब हम कलियुग के अंत और सतयुग की शुरुआत पर हैं, हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:अब परमात्मा स्वयं आकर हमें पावन बनने की शिक्षा दे रहे हैं। हमें स्वयं से योग लगाकर, अपने गुणों को जागृत करके देवतुल्य बनना है। आज की साधना ही हमारे सतयुगी भविष्य की नींव है।
प्रश्न 7:गुरु की जगह आज हमें किससे मार्गदर्शन लेना है?
उत्तर:हमें अब स्वयं शिव बाबा से सीधा मार्गदर्शन लेना है — जो इस संगमयुग में आकर सभी आत्माओं को सच्चा ज्ञान दे रहे हैं। यही ज्ञान और योग हमारा आत्मबल बनाता है जिससे हम गुरु की आवश्यकता के बिना ही पावन बन सकते हैं।
अंतिम प्रेरणा:
“स्वयं बनो योगी, स्वयं बनो पावन। सतयुग की स्थिति आज के पुरुषार्थ से ही बनती है।”
“जहाँ कोई पतित न हो, वहाँ कोई गुरु भी न हो।”
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