Satyayug – (20) The Divine Family of Satyayug: There is everything, yet there is no desire”

सतयुग-(20) सतयुग की दिव्य फैमिलीः वहाँ सब कुछ है, फिर भी कोई इच्छा नहीं”

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“सतयुग की दिव्य फैमिली: वहाँ सब कुछ है, फिर भी कोई इच्छा नहीं!”
जानिए स्वर्ग की उस समर्थ दुनिया को जहाँ हर आत्मा राजा है और सेवा में है वैभव!


 सतयुग की दिव्य फैमिली – जहाँ पूर्णता भी सेवा में रहती है


प्रस्तावना – एक ऐसे युग की ओर…

आज हम आपको ले चलेंगे एक ऐसे दिव्य युग में…
जहाँ हर आत्मा संपूर्ण है, हर आत्मा सम्पन्न है,
और हर आत्मा परमात्मा की बनाई एक दिव्य फैमिली का हिस्सा है।
यह है सतयुग — स्वर्णिम युग…
जहाँ राजा और प्रजा के बीच भेद नहीं,
सब एक हैं, सब परिवार हैं।


1. सतयुग: एक समर्थ और सुखदाई फैमिली

वहाँ एक ऐसी फैमिली होती है जो
अच्छे से अच्छी, सुखदाई, और सम्पन्न है।
राजा हो या प्रजा, भले मर्तबे अलग हों —
लेकिन भावनाएँ, संबंध, और आत्म-सम्मान — सब एक समान।

वहाँ यह नहीं कहा जाएगा कि “ये दास-दासी हैं।”
हाँ, सेवा होगी — लेकिन सेवा का अर्थ वहां दासीपन नहीं,
बल्कि प्यार और आत्म-योग्यता से प्रेरित होता है।


2. भाईचारे में बसी श्रेष्ठता

हर आत्मा उस दिव्य फैमिली की सदस्य है
जो खुश-मिज़ाज, सुखी, और समर्थ है।
वहाँ कोई कमी नहीं, कोई अभाव नहीं।
जो भी श्रेष्ठता आप सोच सकते हैं —
वह वहाँ स्वाभाविक रूप से उपलब्ध है।


3. सतयुग की रॉयल्टी – राज्य अधिकारी हर आत्मा

क्योंकि सतयुग में हर आत्मा राज्य वंश की है —
हर आत्मा एक राजा की तरह समर्थ है।
हर जन्म, हर जीवन रॉयल्टी से भरा होता है।
हर आत्मा सर्व-संपत्ति में सम्पन्न,
हर वस्तु में मालामाल


4. सर्व प्राप्तियाँ – सेवा के लिए तत्पर

अद्भुत बात यह है कि —
वहाँ आत्मा को किसी चीज़ की प्राप्ति की इच्छा नहीं होती…
बल्कि सर्व प्राप्तियाँ स्वयं इच्छुक होती हैं कि
“मुझे सेवा में लगाया जाए!”

हर सुख-साधन, हर वैभव,
एवररेडी हैं सेवा देने के लिए।


5. खुशी की शहनाइयाँ – वहाँ की आत्मिक वायब्रेशन

सतयुग का वातावरण इतना दिव्य होता है कि
सदा खुशी की शहनाइयाँ ऑटोमेटिकली बजती रहती हैं।
कोई बाहरी कारण नहीं,
बल्कि आत्मा की स्थिति ही इतनी ऊँची होती है कि
हर पल — स्वयं में पर्व होता है।


6. निष्कर्ष: क्यों जानें यह सब?

क्योंकि यह कोई कल्पना नहीं,
बल्कि हमारा भविष्य है।

और यह भविष्य इस संगम युग में
हमारे वर्तमान पुरुषार्थ पर आधारित है।

जो आज स्वयं को याद दिलाए —

“मैं वही दिव्य आत्मा हूँ,”
वही कल उस सतयुग का हिस्सा बनता है।

“सतयुग की दिव्य फैमिली: वहाँ सब कुछ है, फिर भी कोई इच्छा नहीं!”

प्रश्न 1: सतयुग की “दिव्य फैमिली” किसे कहते हैं?

उत्तर:सतयुग में हर आत्मा एक रॉयल और समर्थ परिवार की सदस्य होती है। वहाँ राजा और प्रजा के बीच कोई भेदभाव नहीं होता। सब आत्माएँ प्रेम, समानता और श्रेष्ठता में जीती हैं। वहाँ सेवा होती है, लेकिन दास-दासी की भावना नहीं होती — सब एक समर्थ फैमिली के सदस्य होते हैं।

प्रश्न 2: अगर सबकुछ है, तो इच्छा क्यों नहीं होती?

 उत्तर:क्योंकि वहाँ आत्मा पूर्ण है — उसे किसी चीज़ की कमी नहीं होती। वहाँ प्राप्तियाँ आत्मा के पीछे सेवा के लिए तत्पर रहती हैं, लेकिन आत्मा किसी वस्तु की इच्छुक नहीं होती। यह स्थिति सच्चे आत्म-सम्मान और आत्मिक परिपूर्णता की निशानी है।

प्रश्न 3: सतयुग में रॉयल्टी का अर्थ क्या है?

उत्तर:सतयुग की रॉयल्टी बाहरी दिखावे से नहीं, बल्कि आंतरिक पवित्रता, श्रेष्ठता और दिव्यता से होती है। हर आत्मा राज्य वंश की होती है — उसका हर जन्म रॉयल होता है, और हर कर्म सहज रीति से श्रेष्ठ सेवा बन जाता है।

प्रश्न 4: क्या वहाँ सुख-साधनों की भी भरमार होती है?

 उत्तर:हाँ, सतयुग में हर वैभव, हर साधन सदा सेवा में एवररेडी रहता है। लेकिन आत्मा इन साधनों की गुलाम नहीं होती, बल्कि वो साधनों की स्वामी होती है। वहाँ साधन आत्मा की सेवा में रहते हैं, न कि आत्मा साधनों की।

प्रश्न 5: “खुशी की शहनाइयाँ ऑटोमेटिकली बजती हैं” का क्या अर्थ है?

उत्तर:इसका अर्थ है कि सतयुग में आत्मा की स्थिति इतनी श्रेष्ठ होती है कि हर पल एक उत्सव बन जाता है। वहाँ किसी भी खुशी के लिए बाहरी कारण की ज़रूरत नहीं होती — आत्मा स्वयं में इतनी पूर्ण होती है कि उसकी आभा, उसका वातावरण सदा आनंदमय होता है।

प्रश्न 6: अगर सतयुग इतना दिव्य है, तो उसका संबंध आज से क्या है?

 उत्तर:क्योंकि यह दिव्यता कोई कल्पना नहीं, हमारा भविष्य है। और यह भविष्य इस संगम युग में हो रहे हमारे वर्तमान पुरुषार्थ पर आधारित है। जो आज स्वयं को “मैं वही दिव्य आत्मा हूँ” — यह स्मृति में लाता है, वही कल उस सतयुग का अधिकारी बनता है।

 निष्कर्ष:

“सतयुग कोई कल्पना नहीं — यह वही यथार्थ है जिसे परमात्मा संगम युग में हमें फिर से दिला रहे हैं।”

तो आइए — उस दिव्यता को आज अपने स्मृति में लाएं, और कल उस दिव्य परिवार का हिस्सा बनें।

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