सतयुग-(24)”विष्णुपुरी का रहस्य: लक्ष्मी- नारायण को क्यों कहते हैं वैष्णव”
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“विष्णुपुरी का रहस्य: लक्ष्मी-नारायण को क्यों कहते हैं वैष्णव?”
लक्ष्मी-नारायण की पुरी को विष्णुपुरी कहा जाता है। वैष्णव अक्षर भी विष्णु से निकला है। देवतायें वैष्णव थे, वैष्णव पवित्र को ही कहा जाता है। लक्ष्मी-नारायण सदा हर्षित मुख हैं, हर्षितमुख रहना और हँसना अलग-अलग बात है। हर्षितमुख रहने से गुप्त खुशी रहती है। आवाज़ से हँसना बुरी बात है। हर्षित रहना सबसे अच्छा है।
क्या आपने कभी सोचा है —लक्ष्मी-नारायण की नगरी को क्यों कहा जाता है विष्णुपुरी?
और वैष्णव धर्म का असली अर्थ क्या है?आज हम जानेंगे कि सच्चे वैष्णव कौन होते हैं
और क्यों लक्ष्मी-नारायण के चेहरे को कहा जाता है — हर्षितमुख।
🏰 विष्णुपुरी: सतयुग की राजधानी लक्ष्मी-नारायण की पुरी को कहा जाता है —
“विष्णुपुरी”,क्योंकि वही आत्माएं हैं जो सतयुग में
विष्णु वंश की शुरुआत करती हैं। यह कोई साधारण नगरी नहीं —
बल्कि राजाओं की राजधानी,जहाँ हर आत्मा संपूर्णता और दिव्यता में स्थित है।
🌿 वैष्णव शब्द की असली परिभाषा आज वैष्णव कहने से लोग समझते हैं —
विशेष पूजा-पाठ करने वाले लोग।लेकिन सच्चे अर्थ में वैष्णव का मतलब है —
विष्णु के गुणों वाला,अर्थात पवित्र, संयमी, और दिव्य गुणों से युक्त आत्मा।
वैष्णव शब्द विष्णु से निकला है,और विष्णु लक्ष्मी-नारायण का संयुक्त रूप है।
इसलिए देवी-देवताओं को ही असली वैष्णव आत्माएं कहा जाता है।
👑 लक्ष्मी-नारायण: सदा हर्षितमुख लक्ष्मी-नारायण की एक विशेषता है —
उनका सदा हर्षितमुख होना।अब ये “हर्षितमुख” क्या होता है?
यह कोई ज़ोर-ज़ोर से हँसी नहीं —बल्कि एक गुप्त, स्थायी खुशी का रूप है,
जो उनके चेहरे के भावों में दिखाई देता है।
😄 हर्षितमुख और हँसी में अंतर याद रखें —हँसना और हर्षितमुख रहना दो अलग बातें हैं।
🔸 हँसी होती है — ज़ोर से बोलकर, आवाज़ के साथ,जो कई बार हल्कापन या तुच्छता भी ला सकती है।
🔸 लेकिन हर्षितमुख होना मतलब —भीतर की संतुष्टि और खुशी का दिव्य भाव,जो बिना बोले चेहरे से झलकता है।
इसलिए हर्षितमुख रहना श्रेष्ठ है,क्योंकि उसमें आत्मा की गंभीरता, शालीनता, और रॉयल्टी होती है।
🌟 क्यों हर्षितमुख सबसे अच्छा है? जब आत्मा हर्षितमुख रहती है,तो उसका प्रभाव चारों ओर शांति, सौंदर्य और सकाश फैलाता है।
🔹 कोई शब्द नहीं, फिर भी संदेश स्पष्ट।
🔹 कोई अभिनय नहीं, फिर भी आकर्षण गहरा।
🔹 यह स्थिति केवल पवित्रता और आत्म-साक्षात्कार से आती है।
🔔 निष्कर्ष: सच्चे वैष्णव कौन?सच्चे वैष्णव वही हैं —जो लक्ष्मी-नारायण जैसे पवित्र, संयमी और हर्षितमुख हैं।
और यह स्थिति कोई कहानी नहीं —बल्कि आज इस संगम युग में,परमात्मा द्वारा दी जा रही शिक्षा से हम भी विष्णुपुरी के निवासी बन सकते हैं।
अगर आप भी हर्षितमुख और सच्चे वैष्णव बनना चाहते हैं,
तो इस दिव्य ज्ञान को अपने जीवन में अपनाइए।
🌟 “विष्णुपुरी का रहस्य: लक्ष्मी-नारायण को क्यों कहते हैं वैष्णव?” 🌟
❓प्रश्न 1: लक्ष्मी-नारायण की पुरी को “विष्णुपुरी” क्यों कहा जाता है?
✅ उत्तर:क्योंकि लक्ष्मी-नारायण सतयुग की पहली राजवंशी आत्माएं हैं जो विष्णु वंश की शुरुआत करते हैं। उनकी राजधानी ही “विष्णुपुरी” कहलाती है — एक दिव्य और संपूर्ण राज्य, जहाँ हर आत्मा गुणों की मूर्ति होती है।
❓प्रश्न 2: “वैष्णव” शब्द का असली अर्थ क्या है?
✅ उत्तर:“वैष्णव” शब्द “विष्णु” से निकला है और इसका अर्थ है — विष्णु के गुणों वाला। यानि जो आत्मा पवित्र, संयमी, दिव्य गुणों से भरपूर हो। इस दृष्टि से देवी-देवताओं को ही असली वैष्णव आत्माएं कहा जाता है।
❓प्रश्न 3: लक्ष्मी-नारायण को वैष्णव क्यों कहा जाता है?
✅ उत्तर:क्योंकि वे विष्णु के संयुक्त स्वरूप के प्रतिनिधि हैं — अर्थात आत्मा और शक्ति का मिलन। वे संपूर्ण 16 कला संपन्न, पवित्र, संयमी और दिव्यता से भरपूर हैं। इसलिए उन्हें सच्चे वैष्णव कहा जाता है।
❓प्रश्न 4: “हर्षितमुख” क्या होता है? क्या यह सामान्य हँसी की तरह है?
✅ उत्तर:“हर्षितमुख” का अर्थ है — वह स्थायी, गुप्त और आत्मिक खुशी, जो चेहरे से स्वतः झलकती है। यह ज़ोर से हँसने जैसा नहीं, बल्कि आत्मा की संतुष्टि और शालीनता का प्रतीक होता है।
❓प्रश्न 5: हँसी और हर्षितमुख में क्या अंतर है?
✅ उत्तर:
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हँसी होती है आवाज़ के साथ, जो कभी-कभी हल्केपन या तुच्छता को दिखाती है।
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हर्षितमुख होता है स्थायी और गंभीर, जो बिना बोले भी दिव्य आनंद और रॉयल्टी को प्रकट करता है।
❓प्रश्न 6: हर्षितमुख क्यों सबसे उत्तम स्थिति मानी जाती है?
✅ उत्तर:क्योंकि यह आत्मा की गहराई, आत्म-संतुष्टि और पवित्रता को दर्शाता है। ऐसा चेहरा अपने आप में शांति, आकर्षण और सकाश देता है। यह कोई अभिनय नहीं, बल्कि भीतर की स्थिति है।
❓प्रश्न 7: सच्चे वैष्णव कौन हैं?
✅ उत्तर:सच्चे वैष्णव वही हैं जो लक्ष्मी-नारायण की तरह पवित्र, संयमी, दिव्यगुणयुक्त और सदा हर्षितमुख रहते हैं। आज संगम युग में परमात्मा के द्वारा दिए गए ज्ञान से हम भी वही स्थिति प्राप्त कर सकते हैं।
🔔 निष्कर्ष:
🌺 लक्ष्मी-नारायण बनना है?
तो बनो हर्षितमुख वैष्णव आत्मा — जो न सिर्फ भीतर से खुश है, बल्कि अपने दिव्य भावों से संसार को भी संजीवनी देता है।
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