Shri Krishna and Ram were tainted, but why did Lakshmi and Narayan remain untainted?

श्रीकृष्ण – राम पर लगे कलंक, पर लक्ष्मी-नारायण क्यों रहे निष्कलंक?

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“क्यों श्रीकृष्ण और श्रीराम पर लगे कलंक, पर लक्ष्मी-नारायण पर नहीं? | निष्कलंक देवता कौन?”


 प्रस्तावना:

भारत की धार्मिक भूमि पर दो नाम बड़े आदर से लिए जाते हैं — श्रीकृष्ण और श्रीराम
लेकिन क्या आपने कभी सोचा…
इन दोनों पर भक्ति मार्ग में कई प्रकार के कलंक क्यों लगाए गए?
 और लक्ष्मी-नारायण पर एक भी कलंक क्यों नहीं?
क्या इसका कोई आत्मिक और आध्यात्मिक रहस्य है?

आइए आज इस दिव्य रहस्य से परदा उठाते हैं।


 1. श्रीकृष्ण – सत्य आत्मा, पर काल की कल्पना से कलंकित

साकार मुरली – 23 मई 2024:

“श्रीकृष्ण सतयुग का पहला राजकुमार है। उस पर कोई कलंक नहीं था, पर भक्ति मार्ग में रासलीला आदि जोड़ दिए हैं।”

सत्य: श्रीकृष्ण 16 कला संपूर्ण आत्मा है
भ्रांति: रासलीला, माखन चोरी जैसे वर्णन भक्ति की कल्पनाएं हैं

सत्य आत्मा, पर दर्पण में धुंधलापन आ गया।


 2. श्रीराम – मर्यादा पुरुषोत्तम, पर लोककथाओं से प्रभावित

साकार मुरली – 19 जून 2024:

“राम-सीता की कथा में भी बहुत कुछ जोड़ दिया गया है… त्रेता में थोड़ी गिरावट आने से उसकी स्मृति में त्याग और परीक्षा की बातें जोड़ दी गईं।”

सत्य: श्रीराम 14 कला संपूर्ण, आदर्श आत्मा
भ्रांति: सीता त्याग, शम्बूक वध – ये त्रेता की स्मृति में जुड़ी मानवीय व्याख्याएँ हैं

मर्यादा का दर्पण, पर थोड़ा धुंधला।


 3. लक्ष्मी-नारायण – क्यों नहीं लगे कोई कलंक?

साकार मुरली – 13 जून 2024:

“लक्ष्मी-नारायण पर कोई कलंक नहीं लगा। वे 16 कला संपूर्ण, सर्वगुण संपन्न, मर्यादा पुरुषोत्तम आत्माएँ हैं।”

सतयुग की सर्वोच्च आत्माएँ
परमात्मा की प्रत्यक्ष संतान
दिव्यता व पवित्रता की मूर्तियाँ

सत्य का स्वर्णिम दर्पण — एकदम साफ, निष्कलंक।


4. दृष्टांत – सत्य का दर्पण vs विकृति

आत्मा युग कला स्मृति रूप कारण कलंक का
श्रीकृष्ण सतयुग 16 सुंदर, मुरलीधारी भक्ति मार्ग की कल्पना
श्रीराम त्रेता 14 मर्यादा पुरुषोत्तम लोकमत व संवेदनशील कथाएँ
लक्ष्मी-नारायण सतयुग 16 देवी-देवता, निष्कलंक सत्यता व संपूर्णता

अव्यक्त मुरली – 1 जनवरी 1985:

“भक्ति में सत्य छुप जाता है। सत्य आत्माएँ भी काल के फेर में विकृति का शिकार हो जाती हैं, पर लक्ष्मी-नारायण की स्मृति सबसे स्पष्ट और निष्कलंक है।”


 5. कलचक्र के आधार पर रहस्य:

  • सतयुग: आत्मा संपूर्ण → चित्र संपूर्ण

  • त्रेता: आत्मा थोड़ी गिरी → चित्र में भावनात्मक व्याख्या

  • भक्ति मार्ग: कल्पनाओं व आस्थाओं का युग → सत्य पर परदा

जो सत्य था, वो कभी छिप गया, पर नष्ट नहीं हुआ।


 6. निष्कर्ष:

श्रीकृष्ण और श्रीराम – सच्ची आत्माएँ, पर भक्ति मार्ग की कल्पनाओं से कलंकित स्मृतियाँ
लक्ष्मी-नारायण – ईश्वर द्वारा निर्मित प्रथम दैवी आत्माएँ, जिनका जीवन श्रीमत पर आधारित, और स्मृति निष्कलंक रही।

क्यों श्रीकृष्ण और श्रीराम पर लगे कलंक, पर लक्ष्मी-नारायण पर नहीं? | निष्कलंक देवता कौन?


प्रश्न 1:श्रीकृष्ण पर ‘रासलीला’ और ‘माखन चोरी’ जैसे कलंक क्यों लगाए गए, जबकि वह 16 कला संपूर्ण आत्मा माने जाते हैं?

उत्तर:श्रीकृष्ण सतयुग का पहला राजकुमार है — 16 कला संपूर्ण, परमात्मा की प्रत्यक्ष संतान।
परंतु भक्ति मार्ग में भावनात्मकता, कल्पनात्मक रचनाएँ और रसरंजन के कारण रासलीला व माखन चोरी जैसे प्रसंग जोड़ दिए गए।
मुरली – 23 मई 2024:
“श्रीकृष्ण पर कोई कलंक नहीं था, पर भक्ति मार्ग में रासलीला आदि जोड़ दिए हैं।”

 सत्य आत्मा का दर्पण था स्वच्छ, पर भक्ति मार्ग में धुंधला कर दिया गया।


प्रश्न 2:श्रीराम को ‘सीता का त्याग’, ‘शम्बूक वध’ जैसे घटनाओं से क्यों जोड़ा गया? क्या वे सत्य हैं?

उत्तर:श्रीराम त्रेता युग के आदर्श पुरुष माने जाते हैं — 14 कला संपूर्ण आत्मा।
त्रेता में आत्मा की थोडी गिरावट होती है, और समय के साथ लोककथाएं, जनमत और संवेदनशीलता ने त्याग और परीक्षा को भावनात्मक रूप दे दिया।
मुरली – 19 जून 2024:
“राम-सीता की कथा में भी बहुत कुछ जोड़ दिया गया है…”

 मर्यादा का प्रतीक होने के बावजूद, राम की स्मृति पर भी विकृति का प्रभाव पड़ा।


प्रश्न 3:लक्ष्मी-नारायण पर कोई कलंक क्यों नहीं लगा?

उत्तर:लक्ष्मी-नारायण सतयुग की संपूर्ण देवता आत्माएँ हैं।
वे ईश्वरीय श्रीमत पर चलकर देवता बने और उन पर कोई भी मानवीय कलंक नहीं लगाया जा सका क्योंकि उनकी स्मृति, आचरण और चित्र दिव्यता के शिखर पर हैं।
मुरली – 13 जून 2024:
“लक्ष्मी-नारायण पर कोई कलंक नहीं लगा। वे 16 कला संपूर्ण आत्माएँ हैं।”

 सत्य का दर्पण यहाँ एकदम साफ रहा — निष्कलंक।


प्रश्न 4:तो फिर भक्ति मार्ग में सत्य इतना विकृत क्यों हो गया?

उत्तर:भक्ति मार्ग ‘अज्ञान काल’ है, जिसमें मनुष्य की भावनाएँ और कल्पनाएँ ज्यादा सक्रिय रहती हैं।
वे सत्य को स्थूल में खींचकर, मनोरंजन या भावुकता से जोड़ देते हैं।
अव्यक्त मुरली – 1 जनवरी 1985:
“भक्ति में सत्य छुप जाता है… सत्य आत्माएँ भी काल के फेर में विकृति का शिकार हो जाती हैं।”

 कलयुग में सत्य पर परदा, पर सत्य नष्ट नहीं होता — बस छिप जाता है।


प्रश्न 5:क्या इसका कोई आध्यात्मिक व आत्मिक रहस्य भी है?

उत्तर:हाँ, यह पूरा रहस्य कलचक्र (कालचक्र) पर आधारित है:

युग आत्मा की स्थिति चित्र की स्थिति कलंक का कारण
सतयुग संपूर्ण (16 कला) दिव्य सत्य उजागर
त्रेता 14 कला आदर्श, पर संवेदनशील भावनात्मक व्याख्याएँ
द्वापर/कलियुग आत्मा गिरती गई चित्रों में विकृति कल्पनात्मक कलंक

इसलिए श्रीकृष्ण और श्रीराम की स्मृति विकृत हुई, पर लक्ष्मी-नारायण की स्मृति निष्कलंक रही।


प्रश्न 6:तो निष्कलंक देवता कौन हैं?

उत्तर:लक्ष्मी-नारायण ही निष्कलंक देवता हैं —

  • 16 कला संपूर्ण

  • परमात्म श्रीमत पर चलकर बने

  • भक्ति मार्ग में भी उनकी स्मृति सबसे शुद्ध और आदर्श रही

 वे ही सच्चे अर्थों में “सर्वगुण संपन्न, मर्यादा पुरुषोत्तम, निष्कलंक” हैं।

Disclaimer (अस्वीकरण):

इस वीडियो में प्रस्तुत विचार ब्रह्माकुमारियों के मुरली ज्ञान पर आधारित हैं।
इसका उद्देश्य किसी भी धर्म, परंपरा या आस्था का खंडन नहीं, बल्कि आत्मज्ञान द्वारा सत्यता को उजागर करना है।
यह प्रस्तुति आध्यात्मिक रहस्यों के विवेकपूर्ण विश्लेषण के लिए है, न कि आलोचना के लिए।
हम सभी धार्मिक महापुरुषों का आदर करते हैं।

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