T.L.P 85″What is clairvoyance? Who holds the key to it?

T.L.P 85″दिव्यदृष्टि क्या है? उसकी चाबी किसके हाथ में है?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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🪔 भूमिका (Introduction)

(थोड़े शांत और उत्साहजनक स्वर में बोलें)
“पति जो भी अपने जीवन में श्रेष्ठ कर्मों की पूंजी जमा करेगा वह बनेगा पदमा पदम।
परंतु ऐसे श्रेष्ठ कर्म कौन करना सिखा सकता है?
सिर्फ और सिर्फ परमपिता परमात्मा शिव।
उनकी दी हुई दिव्य दृष्टि आत्मा को अलौकिक संसार का साक्षात्कार कराती है।
तो आइए, आज हम समझते हैं — ‘दिव्य दृष्टि क्या है?’ और ‘इसकी चाबी किसके हाथ में है?'”


🔑 1. दिव्य दृष्टि: एक अलौकिक अनुभव

  • दिव्य दृष्टि कोई साधारण दृष्टि नहीं, यह आत्मिक आंखें हैं।

  • इससे आत्मा परमात्मा के साकार और निराकार स्वरूप को अनुभव करती है।

  • यह हमें दिखाती है:

    • परमधाम

    • सूक्ष्म लोक

    • भविष्य की घटनाएं

    • और आत्मा की गहराई

🎙️ “यह दृष्टि हमें वहाँ ले जाती है जहाँ हमारी भौतिक आंखें कभी नहीं पहुँच सकतीं।”


🌌 2. दिव्य दृष्टि की परिभाषा

  • दिव्य दृष्टि = आत्मिक दृष्टि, जो दो भौतिक आंखों से परे है।

  • इससे आत्मा सूक्ष्म और अलौकिक जगत को देख सकती है।

  • यह साक्षात्कार है — यथार्थ ज्ञान को देखने और समझने की शक्ति।

🎙️ “दिव्य दृष्टि से हम साक्षात्कार करते हैं — वो सत्य जो हम केवल सुनते थे, अब देख भी सकते हैं।”


3. दिव्य दृष्टि की चाबी किसके हाथ में है?

  • क्या परमात्मा इसे अपने संकल्प से देते हैं?

  • नहीं। परमात्मा शिव सदा संकल्प-रहित रहते हैं।

  • जब ड्रामा अनुसार समय आता है, तभी कार्य संपन्न होता है।

🎙️ “परमात्मा स्वयं नहीं सोचते — ड्रामा अनुसार जो संकल्प उठता है, वही कार्य होता है।”


🕊️ 4. यह शक्ति किसे मिलती है?

  • दिव्य दृष्टि उन्हीं आत्माओं को प्राप्त होती है जो:

    • पवित्र होती हैं

    • सच्ची लगन में होती हैं

    • और निरंतर परमात्मा की याद में स्थित होती हैं

🎙️ “साक्षात्कार कोई चमत्कार नहीं, यह हमारी आत्मिक स्थिति का परिणाम है।”


📿 5. ध्यान, साक्षात्कार और दिव्य दृष्टि में संबंध

  • दुनिया वाले कहते हैं: ध्यान में आंखें बंद करो और दर्शन करो।

  • परंतु बाबा ने कहा: “ध्यान नहीं, योग करो।”

  • दिव्य दृष्टि = बुद्धि की आंखें

  • साक्षात्कार = समझ की गहराई से देखना

🎙️ “आंखें बंद नहीं करनी — बुद्धि के नेत्र खोलने हैं।”


🧠 6. कैसे मिलेगी दिव्य दृष्टि?

  • रोजाना गहन मंथन करें

  • परमात्मा शिव की याद में स्थित रहें

  • ज्ञान का यथार्थ चिंतन करें

🎙️ “जितना मंथन करोगे, उतनी दृष्टि स्पष्ट होगी।”


निष्कर्ष (Conclusion)

  • दिव्य दृष्टि = परमात्मा की दी हुई शक्ति

  • परंतु संचालित होती है ड्रामा अनुसार, ना कि मन से

  • हम तैयार हों — पवित्रता, योग, और मंथन से

🎙️ “दृष्टि मिलती है — जब आत्मा तैयार होती है। इसलिए अपने मन और बुद्धि को दिव्यता में स्थित करें।”


🔚 समाप्ति पंक्ति:

“बाबा निमित्त हैं ज्ञान देने के…
और हम निमित्त हैं उसे समझने और आत्मा में धारण करने के।
यही है सच्चा साक्षात्कार।
यही है दिव्य दृष्टि।”

पति जो भी अपने जीवन में श्रेष्ठ कर्मों की पूंजी जमा करेगा, वह बनेगा पदमा पदम

प्रश्नोत्तर श्रृंखला: दिव्य दृष्टि क्या है और इसकी चाबी किसके हाथ में है?


प्रश्न 1: श्रेष्ठ कर्म क्या होते हैं और उनकी पूंजी कैसे जमा की जाती है?

उत्तर:श्रेष्ठ कर्म वे होते हैं जो आत्मा की शुद्धता, पवित्रता और सेवा से जुड़े हों। जब आत्मा ईश्वरीय shrimat पर चलते हुए अपने मन, वचन और कर्म द्वारा दूसरों को सुख देती है, सच्चाई पर चलती है, और परमात्मा को याद करती है—तो ऐसे कर्म श्रेष्ठ बन जाते हैं। ये कर्म आत्मा के खाते में जमा होते हैं, और वही पूंजी आत्मा को पदमा पदम भाग्यशाली बनाती है।


प्रश्न 2: हमें श्रेष्ठ कर्म कौन करना सिखाता है?

उत्तर:सिर्फ एक परमपिता परमात्मा शिव ही हमें श्रेष्ठ कर्म करना सिखाते हैं। वे ही सच्चे शिक्षक हैं, जो श्रीमत के द्वारा हमें बतलाते हैं कि कौन सा कर्म पाप है और कौन सा पुण्य। मनुष्य, धर्मगुरु, या ग्रंथ हमें सीमित दृष्टिकोण से कर्म समझा सकते हैं, परंतु परमात्मा हमें कर्मों का सम्पूर्ण और त्रिकालदर्शी ज्ञान देते हैं।


प्रश्न 3: दिव्य दृष्टि क्या होती है?

उत्तर:दिव्य दृष्टि एक विशेष आत्मिक शक्ति है जिससे आत्मा भौतिक आंखों से परे जाकर सूक्ष्म और अलौकिक जगत का अनुभव कर सकती है। इससे आत्मा परमात्मा के साकार और निराकार स्वरूप को देखती है, अपने पूर्व जन्मों की झलक पाती है, और भविष्य की घटनाओं को समझ सकती है। यह आत्मा की आंख है, जिसे ‘बुद्धि का नेत्र’ भी कहा जाता है।


प्रश्न 4: क्या दिव्य दृष्टि कोई चमत्कार है या कोई योग्यता?

उत्तर:दिव्य दृष्टि कोई चमत्कार नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धता और योगबल की देन है। यह योग्यता उन्हीं आत्माओं को प्राप्त होती है जो परमात्मा शिव की सच्ची याद और श्रीमत पर स्थित रहती हैं। यह कोई इन्द्रजाल या जादू नहीं, बल्कि ज्ञान के द्वारा आत्मा की जागरूकता का उच्चतम अनुभव है।


प्रश्न 5: क्या परमात्मा इस दिव्य दृष्टि की चाबी स्वयं इस्तेमाल करते हैं?

उत्तर:नहीं। परमात्मा शिव सदा संकल्प-रहित अवस्था में स्थित रहते हैं। वे स्वयं किसी को दृष्टि देने का निश्चय नहीं करते, न कोई चाबी घुमाते हैं। जब ड्रामा अनुसार आत्मा की अवस्था योग्यता को प्राप्त हो जाती है, तब दिव्य दृष्टि का अनुभव स्वतः हो जाता है। परमात्मा तो निमित्त हैं—कार्य ड्रामा के नियम अनुसार होता है।


प्रश्न 6: क्या साक्षात्कार और दिव्य दृष्टि एक ही बात है?

उत्तर:जी हां। जब आत्मा किसी गहरे ज्ञान को अनुभवपूर्वक समझती है, चाहे वो परमधाम की अनुभूति हो या ब्रह्मा बाबा के द्वारा परमात्मा का आभास—तो वह दिव्य दृष्टि या साक्षात्कार कहलाता है। यह सिर्फ देखने से नहीं, बल्कि समझने और महसूस करने से होता है। यह अनुभव आंखों से नहीं, परन्तु बुद्धि की आंख से होता है।


प्रश्न 7: क्या हम दिव्य दृष्टि को प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष कर सकते हैं?

उत्तर:बिलकुल! हमें चाहिए कि हम रोज़ योगाभ्यास करें, मनन और मंथन करें, श्रीमत पर चलें, और अपने संकल्पों को शुद्ध बनाएं। जब आत्मा पवित्रता, ईमानदारी और लगन की अवस्था में आती है, तब दिव्य दृष्टि अपने आप कार्य करती है। ज्ञान पर मनन करने से ही दिव्य दृष्टि जागृत होती है।


प्रश्न 8: क्या दिव्य दृष्टि की कोई सीमा है?

उत्तर:भौतिक दृष्टि की सीमाएं होती हैं, पर दिव्य दृष्टि की सीमा आत्मा की स्थिति पर निर्भर करती है। जितनी आत्मा की स्थिति उन्नत, निर्मल और शांत होती है, उतना ही वह गहराई से सूक्ष्मता को देख और अनुभव कर सकती है। परमधाम, भविष्य की झलक, साकार-निराकार रूप—सब इसी दिव्य दृष्टि से संभव हैं।


प्रश्न 9: क्या दिव्य दृष्टि को कोई नकारात्मक रूप से भी समझता है?

उत्तर:हां, कई बार लोग इसे चमत्कार या भौतिक आंखों से कुछ देखने की आशा से जोड़ते हैं। वे सोचते हैं कि ध्यान में बैठेंगे और किसी रूप का दर्शन होगा। लेकिन ब्रह्माकुमारी ज्ञान में यह स्पष्ट है कि दिव्य दृष्टि बुद्धि और अनुभव की दृष्टि है, न कि बाहरी आंखों से कुछ देखने की।


प्रश्न 10: निष्कर्ष में हमें क्या समझना चाहिए?

उत्तर:हमें यह समझना चाहिए कि दिव्य दृष्टि, श्रेष्ठ कर्म और साक्षात्कार—ये सब ईश्वरीय ज्ञान और योग की साधना से मिलते हैं। यह कोई चमत्कार नहीं बल्कि आत्मा की सच्ची स्थिति का प्रकटीकरण है। जब आत्मा परमात्मा के श्रीमत पर चलती है, उसकी बुद्धि शुद्ध होती है, तब ज्ञान का साक्षात्कार अपने आप होता है। यही दिव्य दृष्टि है।

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