T.L.P 86 “Are souls present in the entire universe?

T.L.P 86″क्या आत्मायें सारे ब्रह्माण्ड में स्थित हैं?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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ओम शांति आज का पदम है — हमारा क्या आत्माएं सारे ब्रह्मांड में स्थित है? क्या उनका परमात्मा के साथ संबंध है? दो प्रश्न हैं एक साथ:
क्या आत्माएं सारे ब्रह्मांड में स्थित हैं? क्या उनका परमात्मा के साथ संबंध है?

इसको हम परमात्म के दृष्टिकोण से देखते हैं — कि कैसे इस विषय को हम विस्तार से समझें। इसके लिए पहला पॉइंट हमने लिया है: आत्मा और परमात्मा का दिव्य संबंध।
आप क्या बता सकते हैं आत्मा और परमात्मा का आपस में संबंध क्या है? ये तो सभी बता सकते हैं।

परमात्मा — सबसे पहली बात, ठीक है, ध्यान दीजिए — सबसे पहले हम आत्मा और परमात्मा को देखें तो दोनों में शब्द हैं: आत्मा, परम आत्मा।
आत्मा भी एक आत्मा है, परमात्मा भी एक आत्मा है।दोनों अदृश्य हैं।
दोनों आत्माएं हैं — चाहे आत्मा हो या परमात्मा — वे परम आत्मा है।परंतु दोनों के दोनों अदृश्य हैं।
दोनों आत्माएं हैं, दोनों अदृश्य हैं, दोनों अविनाशी हैं, अनादि हैं और स्वयंभू हैं।आत्मा भी स्वयंभू है, और परमात्मा भी स्वयंभू है।

अब संबंध में देखिए — संबंध के अनुसार, दोनों के अंदर समानताएं हैं।
ये दोनों का आपस में क्या है? समानता भी है, संबंध भी है और अंतर भी।
तीनों चीजों को एक साथ देखेंगे: दिव्य संबंध में अलग-अलग देखेंगे कि आत्मा को हम यह तो नहीं कह सकते कि आत्मा और परमात्मा में अंतर नहीं है।
तीन चीजें हो जाती हैं: संबंध, समानता, और अंतर।
तीनों में जाकर के हमारा स्पष्ट होगा कि परमात्मा और आत्मा दोनों एक समान हैं।साइज दोनों का एक बराबर है।सभी आत्माओं का साइज और परमात्मा का साइज समान है।

अब जैसे हम “पिता” कह देते हैं, तो हमें यह संबंध भी अपनी बुद्धि में स्पष्ट करना है कि परमात्मा ने आत्माओं को पैदा नहीं किया।वो पैदा करने वाला पिता नहीं है,
परंतु वे पतित होने के बाद पावन बनाने का कार्य करता है।पतित से पावन बनाने के निमित्त होने के कारण परमात्मा “पिता” कहलाता है।
वह सारे संसार की आत्माओं को पतित से पावन बनाता है।अनादि काल से अस्तित्व में है।इनका आरंभ भी नहीं और इनका अंत भी नहीं।अनादि और अनंत हैं।
परमात्मा जो सभी आत्माओं का पिता है, परंतु “पिता” भी हमें याद रहना चाहिए — कि वह पिता कैसे है?क्या वह हमें पतित से पावन बनाता है।
पावन सारी आत्माओं को बनाता है — चाहे वह 0 से 1 बने, 0 से 8 बने, 0 से 60 बने, 80 बने, 90 बने, 100 बने — वो पुरुषार्थ उस आत्मा का अपना होता है।

परमात्मा सदा निर्विकारी है, अविनाशी है, और ज्योति स्वरूप है।और आत्मा क्या है?विकारी बनती है — निर्विकारी से विकारी बनती है,
और फिर परमात्मा आकर आप समान निर्विकारी बनाते हैं।यह आत्मा और परमात्मा का आपस में संबंध हुआ।

यह प्रश्न कि आत्माएं संपूर्ण ब्रह्मांड में स्थित हैं — और क्या वे परमात्मा से जुड़ी हुई हैं —
यह गहराई से इस पर मंथन करने की ज़रूरत है, विचार करने की ज़रूरत है।आत्माएं ब्रह्मांड में कहां स्थित हैं?
आत्माएं केवल पृथ्वी पर ही नहीं हैं — बल्कि समस्त ब्रह्मांड में स्थित हैं।क्या समझते हैं? क्या आत्माएं सारे ब्रह्मांड में हैं?परमधाम, जिसे शांति धाम या मूल वतन कहा जाता है —

सभी आत्माओं का मूल घर है।अब क्या मूल वतन सारी दुनिया में है?क्या सारे ब्रह्मांड में मूल वतन है?

यह एक शुद्ध, दिव्य और असीमित प्रकाशमय क्षेत्र है — जहां आत्माएं परम शांति में स्थित रहती हैं।
इन बातों से समझ में आता है कि इनके विचार से वह बहुत बड़ा क्षेत्र है।क्योंकि इनकी बुद्धि में यह आया है — इनकी समझ में यह आया है कि हम आकाश के भी पार हैं।
चारों तरफ आकाश है — और उस आकाश के पार ही परमधाम है।तो नेचुरल — वह असीमित है।ब्रह्मांड असीमित है।
आकाश को सीमित कर दिया, चारों तरफ ब्रह्मांड है, और जहां आत्माएं रहती हैं।

हर एक व्यक्ति को अपना विचार देने का अधिकार होता है — इनका विचार यह है।तो आप इस पर कुछ कहना चाहेंगे तो बताइए।जहां आत्माएं परम शांति में स्थित रहती हैं —
यह एक भ्रमित करने वाला विषय है।क्या कहेंगे आप, भाईजी?हाँ जी, ये जो स्टेटमेंट आप दिखा रहे हैं — ये SPARC वालों ने बनाया है, तभी तो चर्चा करेंगे।
बता रहे हैं परमधाम का क्षेत्र है, तो लोग क्षेत्रफल बता सकते हैं।मतलब वो क्षेत्रफल…?

जितनी उनकी बुद्धि थी, उन्होंने अपनी बुद्धि के हिसाब से निर्णय लिया।
अब बाकी अगर कभी उन्होंने बता भी दिया क्षेत्रफल — इतना है…

उन्होंने यह बताया कि आकाश — क्योंकि बाबा ने कहा, “मैं आकाश तत्व से भी पार हूं” —
तो जब आकाश खत्म हुआ होगा या आकाश को रोकने के लिए एक ब्रह्मांड होगा —
जो चारों तरफ फैला हुआ होगा, और वहां आत्माएं रहती हैं।उन्होंने स्थान बताने की कोशिश की।अब उन्होंने अपनी समझ से जो भी दिखाया —
हमें उस बात को पहले लेना है ना, और फिर हम उनको सच समझा सकते हैं।भाईजी, मेरा एक प्रश्न है इसमें —
हाँ जी, मेरा यह प्रश्न है: कि आत्मा संगठित हो सकती है क्या?संगठित?इकट्ठी? हाँ — हो सकती है क्या?
उसी उस तरीके से तो इकट्ठी हो सकती है — जिस तरीके से चने की बोरियां इकट्ठी की जाएं,
या आलू की बोरियां इकट्ठी की जाएं।इस प्रकार से सारी आत्माएं इकट्ठी हो सकती हैं।

भाईजी, बाबा ने तो कहा — “एक ही रहेंगे”, एक मुरली में दिन पहले की बात है।
उसमें बताया बाबा ने कि सब इकट्ठे ही रहेंगे।हम सारी आत्माएं इकट्ठे रहेंगे।परंतु हम आत्माएं…
वही सोचने वाली बात आती है — कि हम आत्माएं कितनी बड़ी हैं?क्योंकि हमारा बाबा इसमें ये भी कहते हैं ना —
“एक साथ चली जाएंगी, सभी आत्माएं।”तो एक जगह जाती हैं, तो इकट्ठी रहती हैं क्या?रह सकती हैं क्यों नहीं?

सारी आत्माएं इकट्ठी होने के लिए कितनी जगह चाहिए?बिल्कुल भी नहीं — जगह तो नहीं चाहिए।पर कोई ठिकाना होगा क्या उनका?सारी आत्माओं का ठिकाना कहीं होगा क्या?भाई, ठिकाने की बात तो हम बाद में करेंगे ना।
पहला प्रश्न आपने ये पूछा कि सारी आत्माएं एक होंगी —तो उसके लिए जवाब है: “हाँ, सारी आत्माएं इकट्ठी हो सकती हैं।”
एक ही जगह पर हो सकती हैं। हम लोग अब बेहद के बाद जो कुछ भी नहीं है, वो “कुछ भी नहीं” को हम लोग क्या क्या समझ के चले।
“कुछ भी नहीं” तो “कुछ भी नहीं”, “कुछ भी” तो “कुछ भी नहीं”।जीरो की डेफिनेशन क्या है? जीरो की परिभाषा यही है – कुछ भी नहीं।

भाईजी, अगर अभी हम बैठे हैं, तो हमारे इर्द-गिर्द आत्माएं हो सकती हैं।
कहीं भी हो सकती हैं – हमारे शरीर में, हमारे शरीर से बाहर, द्वार में, पानी में, आकाश में – कहीं भी।
परंतु उनके कारण आकाश पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पानी पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।किसी चीज पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
जब उसका पार्ट आएगा, वह ऑटोमेटिक खुल जाएगी।सही बात। जब उसका पार्ट आएगा तो किसी न किसी शरीर का आधार ले लेगी, प्रवेश कर जाएगी शरीर में।
भाईजी, अपना काम करना शुरू कर देगी। पता भी नहीं चलेगा।उसका लोकेशन नहीं करें – लोकेशन को टेस्ट करने की जरूरत क्या?
उसका लोकेशन ये है कि वो “कुछ भी नहीं” जगह पर रहती है।वो कहीं भी हो सकती है।भाईजी, मैं भी वही बोल रहा था।
मतलब की हर कल्प में उसका परमानेंट जगह तो फिक्स है ना।बिलकुल। पार्ट फिक्स है कि किस-किस शरीर का पार्ट बजाना है।

भाईजी, पुराने लोगों के कान होते तो ऐसे ही आत्माओं के – मतलब सुनती है।कोई बात कहते हैं कि निराकार अवस्था में क्या माँ नहीं सुनता?

बाबा ने तो एक बात कही है – सभी आत्माएं एक साथ जाती हैं।जाने को कहा, एक साथ जाती हैं।पर आने को एक-एक आती हैं।

बोला, जाने को तो सब एक साथ जाती हैं, सारी आत्माएं जाएंगी एक साथ।पर तो आएगी नंबरवार।

प्रति जिस शरीर की आवश्यकता रहेगी, उसी की आत्मा आएगी।बिलकुल यही बात है।तो परमधाम बड़ा-बड़ा नहीं है।
परमधाम सूक्ष्म, सूक्ष्म, सूक्ष्म, अति सूक्ष्म है।भाईजी, आत्मा को कहीं जाने की जरूरत नहीं है।
आत्मा अपने आप में सिमट जाती है।इतनी सूक्ष्म अवस्था में चली जाती है, कहीं जाने की जरूरत नहीं।

सारी आत्माएं एक जगह पर, जहां होंगी – वहां अपने आप में सिमट जाती हैं।बोले तो परम अवस्था में चली जाती हैं।भाईजी, वही तो मैं कह रहा था।

जहां-जहां हैं, वो वहीं हैं – जहां “कुछ भी नहीं” है।बाबा ने मुरली में बहुत अच्छे से बताया है – “कुछ भी नहीं”।
परमधाम की भी पकड़ समझो, उस जाने-आने को टाइम कितना लगता है?टाइम भी नहीं लगता।
कह लो कि सेकंड में पहुँच जाए।उसको जाने को टाइम नहीं लगता।
उसके लिए सवाल ही नहीं।उसको आने को भी – एक-एक कर के नंबरवार आएंगी।

जाने को सब एक साथ चले जाएंगी।तो उसकी अवस्था पर है सब कुछ।उस आत्मा की परम अवस्था ही उसका प्वाइंट है।

इतनी बड़ी शरीर में भी देखो, आत्मा ने कहां से कोई जगह ली है?नेक्स्ट – हमारा अगला प्रश्न, अगला पॉइंट देखेंगे।

ये हम सबको समझ में आ गया।नंबर तीन है – आत्मा और परमात्मा का संबंध।फिर से देखने के लिए कहा है –
आत्मा और परमात्मा का संबंध शाश्वत और अविनाशी है।जैसे सूर्य के प्रकाश से सभी तारे प्रकाशित होते हैं,
वैसे ही परमात्मा से सभी आत्माएं शक्ति और प्रकाश प्राप्त करती हैं।
ज्ञान प्राप्त भी परमात्मा से होता है।इसलिए परमात्मा को ज्ञान सूर्य कहा गया है।

आत्मा अपने मूल स्वरूप में परमात्मा से संबंधित रहती है।लेकिन शरीर धारण करने पर वे इस संबंध को भूल जाती है।

परमात्मा के साथ रहते हुए उसे क्या स्मृति रहती है?कुछ भी नहीं।आत्मा जिने लिखा, उनको भी समझ में नहीं आई होगी ये बात।
भक्ति मार्ग में कहा गया है – आत्मा परमात्मा में समा जाती है।
तो वो क्या उस हिसाब से बोला है?उन्होने जैसे भी बोला हो,
परंतु हमें बहुत अच्छी तरह से समझना और स्पष्ट करना है -कि आत्मा जो है, वह परमात्मा के साथ परमधाम में बिल्कुल साथ रहते हुए भी
एक-दूसरे से कोई संकल्प का भी आदान-प्रदान नहीं कर पाती।संकल्प तो है ही नहीं।
संकल्प नहीं हैं तो एक-दूसरे में कोई हलचल भी नहीं है।भाई हां जी।

मेरा नेट चला गया था।आपका नेट चला गया था?इसको सारा में हम अभी ठीक से देखेंगे।सारांश में देखेंगे –
आत्माएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं।प्रत्येक आत्मा एक विशाल ऊर्जा-जाल (एनर्जी फील्ड) का हिस्सा है।जैसे आकाश में हवा की तरंगे एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचती हैं,
वैसे ही आत्माओं की भावनाएं और संकल्प पूरे विश्व को प्रभावित करते हैं।यहां तक कि आत्मा जो संकल्प छोड़ती है, वो संकल्प पूरे विश्व को प्रभावित करता है।इसमें कोई असहमति नहीं है।
परंतु वो तरंगे भी अदृश्य होती हैं।उन तरंगों को भी हम देख नहीं सकते।एक आत्मा के संकल्पों और कर्मों का प्रभाव संपूर्ण विश्व पर पड़ता है।
भले ही वे प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में समझ न आएं।ये बात बिल्कुल सही है,
क्योंकि वो कभी भी प्रत्यक्ष रूप में किसी को समझ में नहीं आएगा।उस आत्मा को ही यह अनुभव होगा कि “मुझे ऐसे करना चाहिए”,
ये बात मेरे विचार में आ रही है।यह ठीक है।
उसके बुद्धि के अंदर ही यह लगेगा – मुझे ऐसे करो या आप ऐसे करो।और आपका संकल्प सीधा बुद्धि के अंदर टच करेगा।
और वो बुद्धि मन को भी क्रॉस कर जाएगा।वो सीधा बुद्धि को टच करेगा और बुद्धि उसे स्वीकार या अस्वीकार करेगी।
वो उस बुद्धि का अपना पार्ट है।नंबर पांच है – ब्रह्मा बाबा और विश्व कल्याण।

ब्रह्मा बाबा जो अब सूक्ष्म लोक में स्थित हैं,संपूर्ण विश्व की आत्माओं से संबंध बनाए रखते हैं।

क्योंकि अब ब्रह्मा बाबा को -बिना विमान के उड़ने का अधिकार है।वह विश्व के किसी भी कोने में
फ्रैक्शन ऑफ सेकंड में पहुंच सकते हैं।

सूक्ष्म शरीर के साथ।भाईजी हां जी, सूक्ष्म शरीर के साथ।सूक्ष्म शरीर भी कहीं भी पहुंच सकता है।
सूक्ष्म शरीर को भी ये पाँचों तत्व रोक नहीं सकते।क्योंकि सूक्ष्म शरीर तत्व से बना ही नहीं है।
वो भी छठे तत्व का ही रूप है।वह भी केवल दिखाई देता है।उसको आत्मा देख सकती है।सूक्ष्म शरीर और उसमें आत्मा
अपना कार्मिक अकाउंट भी बराबर कर सकती है।लेनदेन भी बराबर कर सकती है।किसको देखना है,
कितनों को एक साथ देखना है,एक को दिखना है या अनेक को -वो उनके कर्म के हिसाब से।

🪔 ओम शांति: आज का पदम

विषय: क्या आत्माएं सारे ब्रह्मांड में स्थित हैं? क्या उनका परमात्मा के साथ संबंध है?

प्रश्न 1: क्या आत्माएं सारे ब्रह्मांड में स्थित हैं?

उत्तर:आत्माएं केवल इस पृथ्वी पर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हैं — परंतु वो व्याप्ति किसी भौतिक रूप में नहीं, बल्कि “अविकारी दिव्य ऊर्जा” के रूप में होती है।
हर आत्मा का मूल स्थान है परमधाम — जिसे शांति धाम या मूल वतन भी कहते हैं। यह एक सूक्ष्मतम, अतीन्द्रिय प्रकाशमय क्षेत्र है — जो इस भौतिक ब्रह्मांड के भी परे है।

🎯 मुख्य बात:आत्माएं सशरीर नहीं, बल्कि सूक्ष्मतम रूप में हर दिशा में व्याप्त हो सकती हैं — परंतु उनका स्थायी ठिकाना है परमधाम।
जहाँ कोई ध्वनि नहीं, गति नहीं, और समय नहीं — बस “परम शांति की अवस्था” है।

प्रश्न 2: क्या आत्माओं का परमात्मा के साथ कोई संबंध है?

उत्तर:हाँ, आत्मा और परमात्मा का शाश्वत, अविनाशी और दिव्य संबंध है।
यह संबंध जन्म-मरण से परे है। आत्मा और परमात्मा दोनों ज्योति बिंदु स्वरूप, अविनाशी, स्वयंभू और अदृश्य हैं।
दोनों में समानता भी है, अंतर भी है, और गहरा संबंध भी।

👨‍👦 यह संबंध क्या है?जैसे सूर्य अपने प्रकाश से सभी तारों को ऊर्जा देता है —
वैसे ही परमात्मा, ज्ञान-सूर्य के रूप में आत्माओं को शक्ति, प्रकाश और दिशा देता है।

परमात्मा आत्माओं को पैदा नहीं करता —
बल्कि जब आत्मा पतित बन जाती है, तो परमात्मा उसे पावन बनाता है।
इसलिए परमात्मा को हम “पतित-पावन पिता” कहते हैं।

प्रश्न 3: आत्मा और परमात्मा क्या एक जैसे हैं?

उत्तर:
आत्मा और परमात्मा दोनों ज्योति बिंदु हैं —
लेकिन अंतर भी है:

 

विशेषता आत्मा परमात्मा
विकारी बन सकती है हाँ कभी विकारी नहीं होती
जन्म-मरण में आती है हाँ कभी जन्म नहीं लेती
कर्म करती है हाँ कर्म कराती है, परंतु स्वयं अकर्ता है
ज्ञान सीमित होता है हाँ सर्वज्ञानी, सर्वशक्तिवान

प्रश्न 4: क्या सभी आत्माएं संगठित होकर एक जगह रह सकती हैं?

उत्तर:हाँ, बाबा ने मुरली में कहा है:
“सभी आत्माएं एक साथ जाएंगी, और एक-एक कर के आएंगी।”
इसका अर्थ है कि सभी आत्माएं परमधाम में एकत्रित रहती हैं —
पर वहां कोई “फिजिकल स्पेस” की ज़रूरत नहीं होती।
वह एक अति सूक्ष्म स्थिति होती है — जहाँ आत्माएं संकल्प रहित, क्रिया रहित, शांति की परम अवस्था में स्थित होती हैं।

प्रश्न 5: आत्मा और परमात्मा के बीच संकल्प या संवाद होता है क्या?

उत्तर:परमधाम में आत्मा और परमात्मा दोनों संकल्प रहित स्थिति में होते हैं।
वहाँ कोई शब्द, ध्वनि या संवाद नहीं होता।
यह संपूर्ण स्थिरता की स्थिति है।
लेकिन जब परमात्मा ज्ञान देने हेतु संगम युग पर अवतरित होते हैं —
तब आत्माएं परमात्मा से संवाद करती हैं, ज्ञान प्राप्त करती हैं, और पुनः अपने मूल स्वरूप को पहचानती हैं।

प्रश्न 6: क्या ब्रह्मा बाबा भी आत्माओं से संबंध में रहते हैं?

उत्तर:बिलकुल — ब्रह्मा बाबा अब सूक्ष्म शरीर में स्थित हैं और
संपूर्ण विश्व की आत्माओं से संबंध बनाए रखते हैं।
वे विमानों से नहीं, बल्कि विचार और संकल्प की शक्ति से
फ्रैक्शन ऑफ सेकंड में कहीं भी पहुंच सकते हैं।
उनका कार्य अब सूक्ष्म लोक से विश्व कल्याण करना है।

सारांश:

  • आत्माएं ब्रह्मांड में कहीं भी हो सकती हैं, परंतु उनका मूल घर परमधाम है।

  • आत्मा और परमात्मा का संबंध शाश्वत और अविनाशी है।

  • परमात्मा आत्मा को पतित से पावन बनाने आता है — यही उनका “पिता-पुत्र” संबंध है।

  • सभी आत्माएं परमधाम में एक साथ जा सकती हैं, और फिर एक-एक कर के पुनः अवतरित होती हैं।

  • ब्रह्मा बाबा अब सूक्ष्म लोक से आत्माओं के कल्याण में सक्रिय हैं।


🎤 अंत में:-जो आत्मा अपने सच्चे पिता परमात्मा को पहचान लेती है,
उसका जीवन स्वर्णिम बन जाता है।

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