The lottery of the Confluence Age – victory over vices and the gift of the status of a deity

संगमयुग की लॉटरी – बैटरी पर विजय और देवता पद की बदी

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“विकारों पर विजय = वैकुण्ठ की लॉटरी” | संगम का सुहावना समय | 


प्रस्तावना (Intro)

ओम् शांति।
आज हम चर्चा करेंगे उस महान समय की,
जिसे स्वयं परमात्मा “वण्डरफुल संगम का सुहावना समय” कहते हैं।
बाबा कहते हैं —
“इस विराट फिल्म प्लैन अनुसार संगम के स्वीट समय आप अनन्य दैवी बच्चे ही विकारों पर विजय प्राप्त कर वैकुण्ठ की स्वीट लॉटरी पाते हो।”
तो आइए, इस दिव्य वाणी को headings और उदाहरणों के साथ गहराई से समझें।


 1. संगमयुग – सबसे स्वीट, सबसे शक्तिशाली समय

बाबा की दृष्टि में यह संगम कोई छोटा युग नहीं,
बल्कि आत्मा का डायमंड टाइम है।
84 जन्मों का भविष्य, सिर्फ इन कुछ वर्षों के पुरुषार्थ पर निर्भर करता है।

 उदाहरण:
एक स्टूडेंट पूरे साल पढ़ता है, लेकिन उसका भाग्य सिर्फ 3 घंटे के पेपर में बनता है।
उसी तरह यह संगम — आत्मा के पूरे ड्रामा का निर्णायक काल है।


 2. यह ललाट क्यों लक्की है? – भाग्य की रेखा यहीं बनती है

बाबा कहते हैं –
“तुम्हारा यह ललाट बहुत लक्की है”
क्योंकि इसी ललाट (मस्तक) में स्मृति और ज्ञान की शक्ति रहती है।
यही ज्ञान बिंदु, परमात्मा से हमें जोड़ता है।

 उदाहरण:
एक कलाकार की कला उँगलियों में नहीं,
उसके ललाट की सोच में होती है।
वैसे ही, तुम आत्मा हो — भाग्य रचने वाले कलाकार


 3. विकारों पर विजय = वैकुण्ठ की लॉटरी

बाबा कहते हैं —
“आप अनन्य दैवी बच्चे ही विकारों पर विजय प्राप्त कर वैकुण्ठ की स्वीट लॉटरी पाते हो।”

यह कोई मामूली जीत नहीं,
बल्कि आत्मा की सबसे शाश्वत सफलता है।

 उदाहरण:
एक भाई ऑफिस में रोज़ क्रोध करता था,
लेकिन जब उसने बाबा का ज्ञान लिया —
अब वही स्थिति आती है, पर वह शांत, स्थिर, और प्रसन्न रहता है।
यही है विकारों पर विजय!


 4. नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी – ज्ञान से पूज्य पद की प्राप्ति

बाबा कहते हैं —
“इस समय तुम नर और नारी अविनाशी ज्ञान से पूज्य योग्य देवता पद प्राप्त करते हो।”
देवता कौन?
वो जो निर्मल, सहनशील, और शुभभावना से भरपूर होते हैं।

 उदाहरण:
एक गृहिणी, जो घर की जिम्मेदारी निभाते हुए
हर बात में प्यार और धैर्य रखती है —
वही “लक्ष्मी स्वरूप” बन जाती है।


 5. संगम का सुहावना समय – यही है वण्डरफुल रीति

बाबा कहते हैं:
“यही है संगम के सुहावने वण्डरफुल समय की वण्डरफुल रीति।”

यह समय है:
स्वयं को बदलने का
परमात्मा से योग लगाने का
देवता बनने की तैयारी करने का

यह समय आत्मा की सबसे प्यारी दिवाली है —
जहाँ आत्मा अज्ञान की रात से निकल कर
सतज्ञान के प्रकाश में आती है।


निष्कर्ष (Essence):

संगम का यह छोटा-सा समय,
आपके सम्पूर्ण 84 जन्मों का भाग्य निर्माता है।

यही वह काल है जहाँ:
 आत्मा विकारों से मुक्त होती है
परमात्मा के सान्निध्य में आती है
नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनती है
और स्वर्ग की लॉटरी जीतती है

तो अब प्रश्न यह है:
क्या आप इस दिव्य अवसर को पहचानकर
इस संगम के सुहावने समय में
अपना भाग्य रचने के लिए तैयार हैं?

“विकारों पर विजय = वैकुण्ठ की लॉटरी” | संगम का सुहावना समय | 


प्रश्न-उत्तर (Q&A Format):

 Q1: संगमयुग को बाबा “डायमंड समय” क्यों कहते हैं?

उत्तर:क्योंकि यही वह संक्षिप्त समय है जब आत्मा अपने सभी 84 जन्मों का भाग्य रचती है।
यह समय छोटा है, पर इसकी ताकत असीम है।
जैसे छात्र का भाग्य 3 घंटे के पेपर में बनता है, वैसे ही संगम का समय आत्मा के संपूर्ण ड्रामा का निर्णायक काल है।


 Q2: बाबा “ललाट बहुत लक्की है” — यह किसलिए कहते हैं?

उत्तर:इसलिए क्योंकि इसी ललाट (मस्तक) में आत्मा स्थित होती है, और यही से स्मृति, चिंतन, और परमात्म स्मृति होती है।
यह ललाट “ज्ञान का केंद्र” है — जहाँ से परमात्मा हमें जोड़ते हैं, और हम भाग्य रचते हैं।


 Q3: विकारों पर विजय कैसे वैकुण्ठ की लॉटरी बनती है?

उत्तर:विकारों पर विजय पाना ही आत्मा की सबसे बड़ी जीत है।
जब आत्मा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से मुक्त हो जाती है,
तो वही आत्मा दैवी बनती है — और वही देवता बनकर वैकुण्ठ (स्वर्ग) की लॉटरी जीतती है।


 Q4: इस समय “नर से नारायण” और “नारी से लक्ष्मी” कैसे बनते हैं?

उत्तर:परमात्मा शिव हमें अविनाशी ज्ञान देते हैं — जो आत्मा को देवता बना देता है।
देवता वो नहीं जो मंदिरों में बैठे हैं,
देवता वो हैं जो स्वभाव से निर्मल, कर्मों में श्रेष्ठ, और दृष्टि में शुभ भावना रखते हैं।
ऐसी आत्माएँ ही संगम पर पूज्य पद की अधिकारी बनती हैं।


Q5: “संगम का सुहावना समय” इतना खास क्यों है?

उत्तर:क्योंकि यही वह समय है जब:

  • आत्मा स्वयं को जानती है

  • परमात्मा से मिलन होता है

  • विकारों से मुक्ति मिलती है

  • और भविष्य 21 जन्मों का राज्यभोग सुनिश्चित होता है

यह आत्मा की सबसे बड़ी दीपावली है — जहाँ अज्ञान का अंधेरा मिटाकर दिव्यता का प्रकाश होता है।


 Q6: क्या सभी आत्माएँ वैकुण्ठ की लॉटरी जीत सकती हैं?

उत्तर:नहीं, बाबा कहते हैं — “आप अनन्य दैवी बच्चे ही वैकुण्ठ की स्वीट लॉटरी पाते हो।”
जो आत्मा सच्चे दिल से परमात्मा को याद करती है,
जो ईश्वरीय श्रीमत पर चले,
और विकारों पर जीत पाए —
वही आत्मा लॉटरी की अधिकारी बनती है।

Disclaimer (डिस्क्लेमर):

यह वीडियो आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित है।
यह ब्रह्माकुमारी संस्था के दिव्य मुरली शिक्षाओं एवं आध्यात्मिक अनुभूतियों पर आधारित है।
इसका उद्देश्य आत्म-जागृति और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना है।
यह किसी धर्म, संप्रदाय या व्यक्ति विशेष के विरोध में नहीं है।

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