The need to understand the knowledge of Gita properly – 01

गीता के ज्ञान को ठीक से समझने कीआवश्यकता – 01

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

गीता का भगवान कौन है? श्रीकृष्ण या परमात्मा शिव? | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 का गूढ़ रहस्य | 


 आज का 37वां पाठ – गीता का भगवान कौन?

आज हम श्रीमद्भगवद्गीता के 37वें पाठ में प्रवेश कर रहे हैं।
अब तक हमने कई दृष्टिकोणों से यह जानने का प्रयास किया कि गीता का वास्तविक भगवान कौन है।
क्या वह श्रीकृष्ण हैं, जैसा सामान्य रूप से समझा जाता है?
या वे स्वयं परमात्मा शिव हैं, जैसा ब्रह्माकुमारी ज्ञान में बताया जाता है?

आज हम इस विषय को एक नई दृष्टि से देखेंगे।
हम गीता के एक-एक अध्याय का अध्यात्मिक विश्लेषण करेंगे —
यह देखने के लिए कि वह किसकी ओर संकेत करता है:
देवता श्रीकृष्ण की ओर या निराकार परमात्मा शिव की ओर।


 गीता का स्वरूप – ब्रह्मविद्या और योगशास्त्र

श्रीमद्भगवद्गीता को “सर्व शास्त्रमय शिरोमणि” कहा गया है।
यह “भगवान की वाणी” मानी जाती है।
लेकिन इसका भगवान कौन है — इस पर मतभेद हैं।

गीता में अनेक ऐसे रहस्य हैं जिनका सामान्य शास्त्रीय व्याख्या से उत्तर नहीं मिलता।
इन उत्तरों को हमें परमात्मा की अमृतवाणी — “मुरली” में स्पष्ट रूप से बताया गया है।


 श्रीकृष्ण या परमात्मा शिव?

अधिकांश लोग गीता को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान मानते हैं।
परंतु यदि गीता में कहा गया है —
“हे अर्जुन, अपने मन का योग मुझसे जोड़”,
तो क्या आत्मा का योग श्रीकृष्ण (एक आत्मा) से लग सकता है?

नहीं।
आत्मा का योग केवल परमात्मा से ही संभव है।

  • श्रीकृष्ण तो सतयुग के पहले जन्म का देवता है।

  • गीता का ज्ञान उस समय दिया जाता है जब धर्म का पतन हो रहा होता है — यानी संगम युग में।

तब परमात्मा, ब्रह्मा तन में प्रवेश कर हमें ज्ञान देते हैं।


 मुरली प्रमाण – 18 जनवरी 2025:

“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूं।
मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर तुम आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूं।”

इससे स्पष्ट होता है:
गीता का भगवान परमात्मा शिव है, न कि श्रीकृष्ण।


 अध्याय 1: अर्जुन विषाद योग – गीता का आरंभ

अर्जुन की मनोस्थिति इस अध्याय का मुख्य विषय है।

श्लोक के समापन में लिखा है:

“इति श्रीमद्भगवद्गीता… श्रीकृष्णार्जुन संवादे अर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः”

इसका तात्पर्य है कि यह संवाद है —
अर्जुन के विषाद (मनोविकार) और द्वंद्व की स्थिति पर आधारित।

 अर्जुन का अंतर्द्वंद्व:

  • क्या अपने ही संबंधियों से युद्ध करना उचित है?

  • क्या राज्य के लिए कुल-नाश सही है?

  • क्या यह धर्म है या अधर्म?

अर्जुन की स्थिति — मोह, भय, भ्रम से भरी हुई है।
उसे आत्मा का ज्ञान नहीं है।


आत्मिक दृष्टि से अर्जुन – हम सब

यदि हम इस अध्याय को आत्मिक दृष्टि से देखें —
तो अर्जुन हर आत्मा का प्रतीक है, जो आज संगम युग में द्वंद्व में है।

  • क्या करूं?

  • किस ओर जाऊं?

  • क्या धर्म है?

  • क्या कर्तव्य है?

यह द्वंद्व आज की हर आत्मा की सच्चाई है।


 निष्कर्ष – गीता का भगवान कौन?

  • गीता का ज्ञान उस समय दिया जाता है जब आत्मा अज्ञान में होती है।

  • तब परमात्मा स्वयं आते हैं —
    देहधारी नहीं, बल्कि निर्देही, निराकार परमात्मा शिव।

“निर्देही” यानी वह आत्मा जो स्वयं देह को धारण नहीं करती।

श्रीकृष्ण तो एक देवता आत्मा है — जो देहधारी है।
परमात्मा शिव — सर्व आत्माओं के पिता हैं, जो स्वयं निराकार हैं।

 इसलिए गीता का ज्ञानदाता कोई देवता नहीं — परमात्मा शिव हैं,
जो ब्रह्मा के मुख से अमरवाणी (मुरली) के रूप में यह ज्ञान देते हैं।

प्रश्न 1: श्रीमद्भगवद्गीता में ‘भगवान’ कौन है — श्रीकृष्ण या परमात्मा शिव?

उत्तर:गीता में ‘भगवान’ का अर्थ निराकार, सर्वशक्तिमान परमात्मा शिव है, न कि देहधारी श्रीकृष्ण।
श्रीकृष्ण सतयुग के पहले जन्म के देवता हैं, जबकि गीता का ज्ञान संगम युग में उस समय दिया जाता है जब धर्म का पतन हो रहा होता है। मुरली में स्वयं परमात्मा कहते हैं:

“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूं।”


प्रश्न 2: यदि गीता का ज्ञान संगम युग में दिया जाता है, तो श्रीकृष्ण इसका माध्यम कैसे हो सकते हैं?

उत्तर:श्रीकृष्ण सतयुग का निवासी है, जो युद्ध या धर्म के पतन की स्थिति में नहीं होता।
गीता का ज्ञान युद्ध (आंतरिक आत्मिक द्वंद्व) की परिस्थिति में दिया गया, जो केवल संगम युग में होता है।
इसलिए, ज्ञानदाता कोई सतयुगी देवता नहीं हो सकता। ज्ञानदाता स्वयं शिव ही हैं, जो ब्रह्मा के तन द्वारा बोलते हैं।


प्रश्न 3: गीता में “हे अर्जुन, अपने मन का योग मुझसे जोड़” — इसका अर्थ क्या है?

उत्तर:यह परमात्मा का निर्देश है कि आत्मा, अपने मन-बुद्धि का योग परमात्मा से लगाए।
श्रीकृष्ण स्वयं एक आत्मा हैं — एक देवता।
आत्मा का सच्चा योग केवल परमात्मा से ही संभव है, क्योंकि वही सर्वात्माओं का पिता है — निर्देही, निराकार।


प्रश्न 4: अध्याय 1 का शीर्षक ‘अर्जुन विषाद योग’ क्यों है?

उत्तर:‘अर्जुन विषाद योग’ में अर्जुन की मानसिक स्थिति का वर्णन है — मोह, भय, द्वंद्व और कर्तव्य भ्रम।
वह युद्ध को लेकर भ्रमित है कि क्या यह धर्म है या अधर्म।
यह अध्याय वास्तव में आत्मा की द्वंद्व की अवस्था को दर्शाता है, जो आज हर आत्मा अनुभव कर रही है।


प्रश्न 5: क्या अर्जुन एक ऐतिहासिक पात्र है या प्रतीकात्मक?

उत्तर:आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अर्जुन हर आत्मा का प्रतीक है,
जो संगम युग में आत्मिक द्वंद्व का सामना कर रही है।
‘क्या करूं, क्या सही है, किस ओर जाऊं’ — ये प्रश्न आज हर व्यक्ति के मन में हैं।


प्रश्न 6: ‘निर्देही’ का क्या अर्थ है और यह गीता के संदर्भ में क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर:‘निर्देही’ का अर्थ है — वह आत्मा जो स्वयं देह को धारण नहीं करती।
सिर्फ परमात्मा शिव ही ऐसे हैं — जिनका कोई शरीर नहीं है।
बाकी सभी आत्माएं देहधारी हैं।
गीता का ज्ञान निर्देही परमात्मा द्वारा दिया गया है — यही इसका मुख्य रहस्य है।


प्रश्न 7: गीता का ज्ञान कैसे और कहां से आता है?

उत्तर:गीता का सच्चा ज्ञान परमात्मा शिव ब्रह्मा के मुख से देते हैं, जिसे ब्रह्माकुमारी संस्थान में ‘मुरली’ कहा जाता है।
यह मुरली अमरवाणी है — जो आत्मा को पुनः आत्मा बनाना सिखाती है।


प्रश्न 8: क्या श्रीकृष्ण और शिव एक ही हैं?

उत्तर:नहीं। श्रीकृष्ण एक महान पुण्य आत्मा हैं — सतयुग के पहले जन्म के देवता।
परमात्मा शिव उनसे श्रेष्ठ हैं — वे स्वयं सर्वात्माओं के पिता हैं, निराकार हैं, सर्वशक्तिमान हैं और स्वयं गीता ज्ञानदाता हैं।


प्रश्न 9: क्या गीता आज के समय के लिए भी प्रासंगिक है?

उत्तर:बिलकुल। गीता का वास्तविक अर्थ आत्मा की आज की स्थिति से जुड़ा हुआ है।
संगम युग में हर आत्मा अर्जुन के समान द्वंद्व और मोह में है।
इसलिए गीता का सच्चा ज्ञान आज मुरली के रूप में पुनः प्रकट हो रहा है।


प्रश्न 10: यदि मैं इस विषय को और विस्तार से समझना चाहूं तो क्या करूं?

उत्तर:आप निकटतम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सेवा केंद्र से संपर्क करें।
वहां राजयोग, आत्मा-परमात्मा का ज्ञान, और मुरली की गहराई से अध्ययन कराया जाता है।

अस्वीकरण:
इस वीडियो में प्रस्तुत ज्ञान ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की आध्यात्मिक शिक्षाओं और मुरली वाणी पर आधारित है।
यह किसी भी धर्म, देवी-देवता, या ग्रंथ का अपमान नहीं करता, बल्कि उनकी गूढ़ आत्मिक व्याख्या को उजागर करता है।
हमारा उद्देश्य केवल सत्य ज्ञान की खोज में रुचि रखने वालों को एक नया दृष्टिकोण प्रदान करना है।

 यदि आप किसी अन्य धारणा को मानते हैं, तो कृपया इस ज्ञान को सहनशीलता और खुले मन से सुनें।

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